मार्गदर्शन- 71
आज़ादी वह आदर्श स्थिति है जिसे हासिल करना इंसान की प्रवृत्ति का हिस्सा है और इसी की तलाश में वह लगा रहता है।
कोई भी इंसान ग़ुलामी को पसंद नहीं करता लेकिन आज़ादी का वास्तविक अर्थ पश्चिम में आज़ादी के अर्थ से बहुत भिन्न है। अमरीका का कर्मपत्र जो ख़ुद को आज़ादी का प्रतीक समझता है और आज़ादी के नाम की एक प्रतिमा उसने अपने यहां लगा रखी है, बेगुनाह इंसानों को क़ैदी बनाने से भरा पड़ा है और इस ग़ुलामी में अश्वेत सहित दूसरे वर्ण के लोग भी शामिल हैं। अब तो यह बात किसी से छिपी हुई नहीं रह गयी है कि अमरीकी अधिकारियों की ओर से आज़ादी का नारा एक सुदंर नक़ाब की तरह है कि जिसके पीछे जंग और रक्तपात का घिनौना चेहरा छिपा हुआ है। यह चेहरा है अपने हित के लिए जंग व जनसंहार और अपने हितों के लिए दूसरों के अधिकारों को पैर तले कुचलने का इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई इस बारे में फ़रमाते हैं, "इस्लामी जगत पर हालिया वर्षों में सैन्य चढ़ाई कि जिसमें असंख्य लोग मारे गए, पश्चिम के विरोधाभासी तर्क की एक और मिसाल है। आक्रमण का निशाना बनने वाले देश कि जिनका जानी व माली नुक़सान हुआ, उनकी आर्थिक व औद्योगिक ढांचागत सुविधाएं तबाह हो गयी, उनकी विकास की गति रुक गयी या धीमी पड़ गयी और कुछ देश दसियों साल पिछड़ गए, इसके बावजूद उनसे बड़े दुस्साहस से कहा जाता है कि ख़ुद को पीड़ित न समझें।" किस तरह किसी देश से कि जिसे खंडहर बना दिया है, जिसके शहरों व गावों को राख का ढेर बना गया दिया है, यह कहा जाता है कि ख़ुद को पीड़ित न समझा।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता इस्लाम को वह आवाज़ मानते हैं जो इंसान की वास्तविक आज़ादी के लिए प्रकट हुयी और उसका संदेश हर समय इंसान को जागरूकता का निमंत्रण देता है। उनका मानना है, "इस्लाम मानवता की आज़ादी के लिए आया है। मानव समाज के विभिन्न वर्गों को अत्याचारी तंत्रों के दबाव से आज़ाद कराने और न्याय पर आधारित शासन क़ायम करने के लिए और मानव जीवन पर डेरा डाले हुए अंधविश्वास पर आधारित विचारों से आज़ादी दिलाने के लिए आया है, ऐसे विचार जो इंसान को उसके हितों की विपरीत दिशा की ओर ले जाते हैं। इतिहास पढ़ने से पता चलता है कि तत्कालीन दो मशहूर सभ्यताएं अर्थात ईरान में सासानी श्रृंख्ला के दौर की सभ्यता और रोमी साम्राज्य की सभ्यता के दौरान, मानव समाज के विभिन्न वर्गों के जो हालात थे उनके बारे में पढ़ कर दिल तड़प उठता है। उस दौर में आम लोगों का जीवन बहुत ही दयनीय था। वे लोग ग़ुलामी में थे। इस्लाम आया उसने आज़ादी दिलायी। इस आज़ादी को पहली बार इंसान ने अपने वजूद में और अपनी आत्मा में महसूस किया। जब इंसान को आज़ादी का एहसास हो और वह बंधनों को तोड़ने की ज़रूरत महसूस की तो उसकी ऊर्जा इस भावना से प्रभावित होती है और अगर वह हिम्मत दिखाए, आगे बढ़े तो वास्तविक आज़ादी को मसहूस करेगा। इस्लाम ने यह काम इंसानों के लिए किया। आज भी वही संदेश है इस्लामी जगत और पूरी दुनिया के लिए।"
इस्लाम में आज़ादी के विषय पर एक अहम बिन्दु जिस पर चर्चा की गयी है वह यह कि इस्लाम सिर्फ़ व्यक्ति के लिए आज़ादी नहीं चाहता बल्कि अत्याचार से पीड़ित सभी लोगों की आज़ादी चाहता है। अर्थात हर मुसलमान की यह ज़िम्मेदारी है कि वह अत्याचारियों के हाथों पीड़ित को रिहाई दिलाने के बारे में सोचे। चाहे वे पीड़ित मुसलमान हो या ग़ैर मुसलमान, कोई फ़र्क़ नहीं है। इस्लामी गणतंत्र ईरान के फ़िलिस्तीन का समर्थन करने का एक कारण यही ईश्वरीय दायित्व है। फ़िलिस्तीन की पीड़ित जनता, जिसका देश ज़ायोनियों के हाथों अतिग्रहण में चला गया, आज की दुनिया में पीड़ित राष्ट्र की प्रतीक है और इस्लामी गणतंत्र ईरान इन पीड़ितों की अतिक्रमणकारियों के हाथों से स्वतंत्रता तक उनकी सहायता करता रहेगा। इस बारे में इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता कहते हैं, "फ़िलिस्तीन की पीड़ित जनता 60 साल से ज़्यादा समय से आतंकवाद के सबसे बुरे रूप को झेल रही है। आज योरोपीय जनता कुछ दिनों के लिए अपने घर में पनाह लेने पर मजबूर हुयी और सार्वजनिक स्थलों पर जाने से दूर रही सो एक भी फ़िलिस्तीनी परिवार दशकों से अपने घर में ज़ायोनियों की जनसंहारक मशीनरी से सुरक्षित नहीं है। आज किस प्रकार की हिंसा की, निर्दयता की दृष्टि से ज़ायोनी शासन की अवैध कॉलोनियों के निर्माण से तुलना की जा सकती है? यह शासन, अपने प्रभावी घटकों या कम से कम विदित रूप से स्वतंत्र नज़र आने वाले अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की ओर से बिना किसी गंभीर निंदा के, हर दिन फ़िलिस्तीनियों के घरों, बाग़ों और खेतों को तबाह कर रहा है। उन्हें घर के सामान हटाने, या फ़सल की कटाई का भी मौक़ा नहीं देता। यह सब, भयभीत व रोती हुयी महिलाओं व बच्चों की आंखों के सामने घटित होता है जो अपनी आंखों से अपने परिजनों को मार खाते और यातना ग्रह भेजे जाते हुए देख चुके हैं। क्या आज की दुनिया में इससे बड़े पैमाने पर इतने लंबे समय से जारी अत्याचार व नृशंसता की कोई मिसाल है?"
इस्लामी संस्कृति में अंतिम मोक्षदाता के इंतेज़ार का उद्देश्य पूरी मानवता को आज़ादी दिलाना है। इस आसमानी धर्म की नज़र में अंतिम मोक्षदाता पूरी मानवता को चाहे मुसलमान हो या ग़ैर मुसलमान आज़ादी दिलाएगा। लेकिन पश्चिम के संकीर्ण दृष्टिकोण में आज़ादी सिर्फ़ व्यक्तिगत स्तर पर भोग विलास पर आकर ख़त्म हो जाती है। पश्चिम में महिलाओं के अधिकारों का हनन इसी मौज मस्ती का नतीजा है जिसका आज़ादी के नाम पर प्रचार होता है। आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई फ़रमाते हैं, "औरतों को पश्चिम में आज़ादी के नाम पर जो छूट दी गयी है, वह धोखा है। यह आज़ादी नहीं है। जिन्होंने दो लिंगों के बीच सीमा को पूरी तरह ख़त्म कर दिया है, व्यवहार, भाषा, प्रचार और विचार में लैंगिक आज़ादी को बढ़ावा दिया, उन्हें इसका जवाब देना चाहिए। नतीजा यह हुआ कि महिलाओं की तुलना में शारीरिक रूप से मनुष्य के बलवान होने के दृष्टिगत औरत पीड़ित हो और उसके अधिकार का हनन हो। औरत को अपने उत्पादों को बेचने के लिए एक माध्यम बनाएं। उपभोग की वस्तु के समान। आप सांस्कृतिक मैग्ज़ीनों को देखें जिनमें एक वस्तु को बेचने के लिए एक औरत को निर्वस्त्र दिखाते हैं। क्या महिला का इससे ज़्यादा भी अपमान हो सकता है? उन्हें जवाब देना चाहिए। हिजाब उस व्यक्ति के लिए सम्मान का प्रतीक है जो हिजाब करता है। औरत का हिजाब करना उसका सम्मान करना है।"
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता औरत के संबंध में पश्चिम के दृष्टिकोण की साफ़ शब्दों में आलोचना करते हुए कहते हैं, "आज जो कुछ पश्चिम में औरतों की आज़ादी के नाम पर प्रचलित है और पश्चिम की संस्कृति व साहित्य में औरत के बारे में जो ग़लत विचार मौजूद है, इतिहास के किसी काल में इसकी मिसाल नहीं मिलती। अतीत में भी हर जगह औरत पर अत्याचार हुआ है लेकिन मौजूदा दौर में यह व्यापक अत्याचार पश्चिमी सभ्यता की देन है। औरत को पुरुष की मौज मस्ती के माध्यम के रूप में पहचनवाया और उसे महिलाओं की आज़ादी का नाम दिया। सच तो यह है कि इस आज़ादी में अय्याश पुरुष को महिला से मौज मस्ती करने की आज़ादी दी गयी न कि महिला को आज़ादी दी गयी। महिलाओं पर न सिर्फ़ औद्योगिक क्षेत्र व रोज़गार के क्षेत्र इत्यादि में अत्याचार किया गया बल्कि कला व साहित्य के क्षेत्र में भी नारी जाति पर अत्याचार हुआ। आज आप कहानियों, नाविलों, चित्रों, विभिन्न प्रकार की
कलाकृतियों को देखिए तो पाइयेगा कि नारी जाति को किस दृष्टिकोण से देखा जाता है? क्या महिला में जो सार्थक व मूल्यवान आयाम है, उस पर ध्यान दिया गया? क्या नारी में मौजूद प्रेम व मेहरबानी की भावना पर जो ईश्वर ने उसे प्रदान की है, मातृत्व की भावना, बच्चों के पालन पोषण की भावना पर ध्यान दिया गया या अय्याशी के आयामों पर?"
इस्लाम की नज़र में यौन दृष्टि से आज़ादी का अर्थ इंसान की आत्मा को क़ैद करना है। जिस वक़्त अय्याश इंसान दैहिक मज़े में कूद पड़ता है तो उसकी आत्मा क़ैदी हो जाती है और उस वक़्त अध्यात्म के आधार टूट जाते हैं जो इंसान की आज़ादी के लिए पर की हैसियत रखते हैं। अमरीकी सरकार युवाओं को व्यस्त रखने के लिए यौन दृष्टि से असीमित आज़ादी देना चाहती है ताकि युवा अमरीकी सरकार की मनमानी की ओर से आंखे मूंदे रखें, दुनिया में जहां जहां अमरीकी सरकार अत्याचार करती है, अमरीकी युवा उसका विरोध न करें, उनका आत्मोत्थान न हो और वे आध्यात्म में निहित विशाल आनंद को महसूस न करें। इसलिए इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने पश्चिमी जवानों के नाम अपने ख़त में मूल स्रोत से इस्लाम को पहचानने का निमंत्रण दिया है न कि मीडिया के ज़रिए। वरिष्ठ नेता ने पश्चिमी युवाओं को लिखा, "इस्लाम को मूल स्रोत के ज़रिए पहचानिए। इस्लाम को क़ुरआन और पैग़म्बरे इस्लाम के आचरण से पहचानिए। मैं यह पूछना चाहता हूं कि क्या अब तक आपने मुसलमानों के क़ुरआन को पढ़ा? क्या पैग़म्बरे इस्लाम की शिक्षाओं, उनके नैतिक व मानवीय मूल्यों का अध्ययन किया। क्या मीडिया के अलावा किसी और स्रोत से इस्लाम के संदेश को पढ़ा है? क्या कभी अपने आपसे यह सवाल किया कि इसी इस्लाम ने किन मूल्यों की बुनियाद पर दुनिया में शताब्दियों तक सबसे बड़ी वैज्ञानिक व वैचारिक सभ्यता को विकसित किया और सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिकों व विचारकों का प्रशिक्षण किया।"
मैं आपसे कहना चाहता हूं कि दुष्प्रचार को अपने और वास्तविकता के बीच रुकावट बनने मत दीजिए कि वह आपमें ऐसी भावना पैदा करदे कि आप निष्पक्ष रूप से फ़ैसला न कर सकें। ख़ुद को मानसिक व कृत्रिम सीमाओं में सीमित मत कीजिए। हालांकि कोई व्यक्ति पैदा हुयी खायी को अकेले नहीं भर सकता लेकिन आपमें से हर एक ख़ुद को और अपने आस-पास के लोगों को जागरुक बनाने के लिए इन खाइयों के ऊपर विचार व न्याय का पुल बना सकता है।