मस्जिद और उपासना- 25
सामान्य रूप से हर शहर में उस शहर की जनसंख्या और आबादी को देखकर कुछ मस्जिदें बनाई जाती हैं।
इन्हीं मस्जिदों में से एक मस्जिदे बाज़ार है जिसमें आने वाले अधिकतर लोग व्यापारी और बाज़ारी होते हैं।
हमने मस्जिद की सामाजिक गतिविधियों के बारे में बताया था। पिछले कार्यक्रम में हमने बताया था कि यदि कोई रास्ता भटक जाता है या रास्ते में रात हो जाती है तो मस्जिद उसके ठहरने के लिए बेहतरीन स्थान है। आज के कार्यक्रम हम मस्जिद के आर्थिक मामले के एक अन्य पहलू पर चर्चा करेंगे।

मस्जिद, सबसे अधिक जनाधारित स्थान के रूप में मुसलमानों की सामाजिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक यहां तक कि आर्थिक गतिविधियों को विस्तृत करने के लिए बेहतरीन केन्द्र और ईमान को मज़बूत करने का बेहतरीन स्थान है। इस्लाम धर्म के उदय काल में मस्जिद पैसा एकत्रित करने और उसको मुसलमानों के बीच वितरित करने का बेहतरीन स्थान रही है। युद्ध में प्राप्त होने वाले धन व संपत्ति को भी मस्जिद में पहुंचा दिया जाता था और वहां पर सैनिकों में बांटा जाता था। इतिहास में मिलता है कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने बद्र युद्ध में हासिल किए गये माल के बारे में ऐतिहासिक कार्यवाही करते हुए अब्दुल्लाह काब नामक व्यक्ति को युद्ध में हासिल होने वाला माल जमा करने और उसके पंजीकरण की ज़िम्मेदारी सौंपी थी। उसके बाद पैग़म्बरे इसलाम ने स्वयं उस माल को सैनिकों के बीच वितरित किया।
मूल रूप से मस्जिद से मिला हुआ एक कमरा बनाया जाता था जिसका नाम ख़ज़ाना रखा जाता था । समय बीतने के साथ ही उसका नाम बैतुल माल रखा जाने लगा क्योंकि सभी लोग मस्जिद को मुसलमानों की सार्वजनिक धन संपत्ति एकत्रित होने और सुरक्षित रखे जाने के लिए बेहतरीन स्थान समझते थे।

सामान्य रूप से हर शहर में उस शहर की जनसंख्या और आबादी को देखकर कुछ मस्जिदें बनाई जाती हैं। इन्हीं मस्जिदों में से एक मस्जिदे बाज़ार है जिसमें आने वाले अधिकतर लोग व्यापारी और बाज़ारी होते हैं। जामे मस्जिद सामान्य रूप से शहर के केन्द्र में बनायी जाती है जहां पर शहर के मुसलमान अपने विशेष कार्यक्रम, जुमे की नमाज़, ईद की नमाज़ और ईदुल अज़हा की नमाज़ें अदा करते हैं। इन मस्जिदों के साथ मस्जिदें बाज़ार नामक मस्जिद भी हुआ करती थी जिसमें आने वाले अधिकतर व्यापारी और बाज़ारी लोग होते थे। वह लोग नमाज़ के समय अपना काम धंधा बंद कर देते थे और अज़ान होते ही मस्जिद में नमाज़ अदा करते थे जो उनके कार्य स्थल के निकट होती थी। इस मस्जिद के इमाम साहब व्यापारियों के लिए पेश आने वाले इस्लामी क़ानूनों और नियमों को दो नमाज़ों के बीच में बयान करते थे । इस मस्जिद में व्यपार और आर्थिक मामलों से संबंधित बातें और चर्चाएं ही होती थीं । अतीत में व्यापारी, लेन देन तथा व्यापार के इस्लामी क़ानून और नियमों को याद करने के लिए कुछ समय विशेष करते थे। यही कारण था कि बाज़ार मस्जिद की पहचान, व्यापार और उपासना दोनों को शामिल किए हुए होती थी। व्यापारी लोग मस्जिद से प्रेरणा लेते हुए अपनी बंदगी की आत्मा को सुरक्षित रखते हुए अपने काम धंधे में व्यस्त होते थे। मस्जिद व्यापारियों को सच्चाई का पाठ सिखाती है, उनको अमानतदारी सिखाती है, उनको डंडी मारने से बचने का निर्देश देती है और इस प्रकार मस्जिद, बाज़ार को धार्मिक पहचान देती है।

दूसरी ओर अधिकतर व्यापारी और विक्रेता जैसे ही शहर में प्रविष्ट होते तो वे तुरंत शहर की मस्जिद का रूख़ करते थे। शहर की मस्जिद में इन व्यापारियों की उपस्थिति से पता चलता है कि बाज़ार में नया माल आया है और नमाज़ समाप्त होने के बाद, माल के ख़रीदार, माल ख़रीदने के लिए बातचीत शुरु कर देते हैं। यद्यपि मस्जिद के भीतर सीधा लेन देन नहीं होता और मस्जिद में केवल इबादत पर भी ध्यान दिया जाता है किन्तु वस्तुओं को देखना और परखना तथा रेट तय करना, नमाज़ और दुआएं अंजाम देने के बाद होते हैं। ध्यान योग्य बिन्दु यह है कि मस्जिदों और व्यापारियों के बीच परस्पर सहयोग हुआ करता था। अर्थात जिस प्रकार मस्जिद आर्थिक मामलों में व्यापारियों की सहायता किया करती थी, ठीक उसी प्रकार व्यापारी भी इस्लाम धर्म के प्रचार व प्रसार के लिए दूर दूर की यात्रा करते थे। यदि व्यापारियों का कारवां एक स्थान पर कई बार रुकता था, तो वहां पर मस्जिद का निर्माण करते थे और वहां के लोगों को इस्लाम का निमंत्रण देते थे। एशिया में इस्लाम धर्म व्यापारियों के कारण फैला और इसी प्रकार अफ़्रीक़ा में इस्लाम धर्म भी व्यापारियों की ही देन है।

वर्तमान समय में शौचालयों, अस्पतालों और स्कूलों के निर्माण वंचितों को सहायता पहुंचाने तथा सांस्कृतिक, प्रचारिक और सांस्कृतिक मामलों को आगे बढ़ाने के लिए मस्जिदों की मुख्य भूमिका रही है। कुछ मस्जिदों में ऋण बैंक बनाए गये हैं और उन लोगों को जिनको ज़रूरत होती है ऋण दिए जाते हैं, यह ऋण बिना ब्याज के होता था। इस प्रकार से मुसलमान, मस्जिदों में एकत्रित होने के साथ ही आर्थिक गतिविधियों को भी अंजाम देते थे।

कुछ लोगों का यह मानना है कि यमन को यमन इसलिए कहा गया है क्योंकि वह काबे के दक्षिण में स्थित है और यह विभूतियों और अनुकंपाओं वाली धरती है। यमनियों के गौरवों में से एक यह है कि उनका देश एकमात्र देश था जिसने बिना रक्तपात के पैग़म्बरे इस्लाम (स) के विशेष दूत हज़रत अली अलैहिस्सलाम के प्रविष्ट होते ही इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया था। इतिहास में मिलता था है कि मक्के पर विजय के बाद आठवीं हिजरी क़मरी में पैग़म्बरे इस्लाम ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम को यमन में हमदान क़बीले के पास भेजा ताकि वह उनको इस्लाम धर्म का निमंत्रण दें, जब हज़रत अली अलैहिस्सलाम यमन पहुंचे, और लोगों को एकत्रित करके और ईश्वर की प्रशंसा करने के बाद जब उन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम का पत्र उन्हें पढ़कर सुनाया, यमन के सबसे बड़े क़बीले हमदान के लोग जोश में आ गये और एक ही दिन में सारे लोगों ने इस्लाम स्वीकार कर लिया, इस क़बीले के इस्लाम स्वीकार करने के कारण, यमन के सभी लोग धीरे धीरे इस्लाम स्वीकार करने लगे।

कुछ सूत्रों के अनुसार यमनियों में पहली मुस्लिम महिल उम्मे सईद बरज़ख़िया थीं। उस महिला ने अपने घर को मस्जिद बना दिया और उसका नाम मस्जिदे अली रखा और अब भी वह इसी नाम से प्रसिद्ध है। यमन में अधिकतर मस्जिदें आयताकार और समलम्ब चतुर्भुजी हैं इसमें बड़े बड़े हाल और प्रागड़ होते हैं। यमन की मस्जिदों की सुन्दरता, उनकी ख़ूबसूरती में छिपी हुई हैं। उनके शिलालेख प्लास्टर आफ़ पैरिस के होत हैं जिनपर विभिन्न प्रकार की सुन्दर डिज़ाइनें, बेलबूटे और आकृतियां बनी हुई हैं। मस्जिदों की छत लकड़ियों की बनी हुई जिनपर मुन्नबतकारी की डिज़ाइनों के बेहतरीन नमूने देखे जा सकते हैं। यहां की मस्जिद अपनी डिज़ाइनों के कारण इतिहास की अद्वितीय मस्जिदें हैं जबकि इनकी मीनारें भी इस्लामी जगत में अपनी पहचान अलग ही रखती हैं।

इन्हीं मस्जिदों में से एक मस्जिदे जामे बकीरिया है। यह मस्जिद यमन में उसमानी शासन काल की प्रसिद्ध व सुन्दरतम मस्जिदों में से एक है। वर्ष 1594 में हसन पाशा ने सनआ शहर में इसको बनववाया था। यह मस्जिद बहुत बड़ी है जिसमें बड़ा सा हाल है। इस मस्जिद का गुंबद बहुत बड़ा है और इसके पूर्वी भाग में तीन छोटे छोटे गुंबद हैं। मस्जिद के दक्षिणी भाग में भी तीन गुबंद हैं जिसे सुन्दर प्लास्टर आफ़ पैरिस से बनाया गया है। इसमें एक वर्गागार प्रांगढ़ है जो मस्जिद के हाल को वज़ू करने की जगह से अलग करता है। इस मस्जिद में मीनार पूर्वी भाग में बनी हुई है। इसमें दो गुबदों को ग्यारहवीं शताब्दी में बढ़ाया गया है।
मस्जिदे अशरफ़िया, यमन की प्रसिद्ध मस्जिदों में से एक है जो तइज़र शहर में स्थित है। इसमें आठ छोटे छोटे और एक बड़ा गुंबदद है। इस मस्जिद को प्लास्टर आफ़ पैरिस और सुन्दर डिज़ाइनों से सजाया गया है। मस्जिद के पिछले हिस्से में शाही क़ब्रिस्तान है और इसमें पवित्र क़ुरआन की शिक्षा दी जाती है।

वर्ष 2015 में यमन पर सऊदी अरब के हमले के कारण इस देश की कई मस्जिदों को भारी नुक़सान पहुंचा है जबकि कुछ मस्जिदें पूरी तरह तबाह हो गयी हैं और कुछ में बहुत अधिक नुक़सान हुआ है। सनआ प्रांत में बनी मतर क्षेत्र में जबले नबी शुएब नाम ऐतिहासिक मस्जिद पूरी तरह तबाह हो गयी, यह मस्जिद एक हज़ार साल पुरानी थी।
मस्जिद अलहादी यहिया सादा शहर की प्राचीनतम मस्जिदों में से एक है जो 1200 पुरानी है। यह मस्जिद सादा शहर के दक्षिणपूर्वी क्षेत्र में स्थिति है इस मस्जिद को 290 हिजरी क़मरी में अलहादी इला अलहक्क़ के नाम से प्रसिद्ध यहिया बिन हुसैन ने बनाया था। यहिया बिन हुसैन यमन में चौथी हिजरी क़मरी में ज़ैदी शासन श्रंखला के संस्थापक थे। मस्जिदे अलहादी यमन में ज़ैदी शिया मुसलमानों का प्रचीनतम शिक्षा केन्द्र रहा है, यमन पर सऊदी अरब की बमबारी में इस प्रचीन धरोहर को भी बहुत अधिक नुक़सान पहुंचा है।
यमन की प्राचीन मस्जिदों में से एक मस्जिद इमाम अब्दुर्रज़ाक बिन हमाम है जिसे 211 हिजरी क़मरी में सनआ प्रांत में बनाया गया। यह मस्जिद भी सऊदी अरब की बमबारी में तबाह हो गयी। यमन की प्रसिद्ध मस्जिदों मे से एक मस्जिद जामे सालेह है । यह मस्जिद राजधानी सनआ के दक्षिण में है और वर्तमान इस्लामी वास्तुकला का बेहतरीन नमूना है। यह मस्जिद अरब मुस्लिम देशों में इस्लामी इमारतों में सबसे प्रसिद्ध, बड़ी और अद्भुत इमारतों में समझी जाती है। इस मस्जिद को यमन के पूर्व राष्ट्रपति अली अब्दुल्लाह साहेल के आदेश पर बनाया गया। इसमें एक समय में 45 हज़ार नमाज़ी नमाज़ अदा कर सकते हें। मस्जिद में छह मीनारे हैं जिनमें से चार की लंबाई 100 मीटर है जबकि दो अन्य की 80 मीटर है। यह मीनारें पश्चिमी एशिया की बड़ी मीनारों में समझी जाती हैं। मस्जिद में कुल मिलाकर 23 गुंबद हैं। यह मस्जिद आठ साल में बनी है और इसके निर्माण पर दस करोड़ डालर ख़र्च हुए हैं। वर्ष 2008 में इसका उद्घाटन किया गया। इस आलीशान मस्जिद का उद्घाटन ऐसी स्थिति में हुआ कि यमन की आधे से अधिक जनसंख्या की आय दो डालर से भी कम थी।