Apr ११, २०१८ १३:३० Asia/Kolkata

इस्लामी शिक्षाओं में इस बात पर विशेष बल दिया गया है कि जीवन में किसी भी स्थान पर मनुष्य को निर्धारित सीमाओं का उल्लंघन नहीं करना चाहिए। 

इसका अर्थ यह है कि किसी भी काम में न तो बहुत आगे बढ़ा जाए और न ही इसके विपरीत हो।  उदाहरण स्वरूप समस्याओं के समय मनुष्य को किसी भी स्थिति में ईश्वर की कृपा के प्रति निराश नहीं होना चाहिए।  उसे यह नहीं सोचना चाहिए कि जो मुश्किल उसके साथ है वह कभी समाप्त नहीं होगी और अब उसका जीवन नरक बन गया है।  इसके विपरीत जब किसी को कोई सफलता या खुशी हासिल हो तब भी खुशी में इतराना नहीं चाहिए।  इंसान को खुशी में इतना नहीं डूबना चाहिए कि वह ईश्वर को ही भूल जाए।  इस प्रकार कहा जा सकता है कि सुख और दुख दोनों में से किसी भी स्थिति में मनुष्य को हमेशा बीच का रास्ता अपनाना चाहिए।

जिस संसार में हम जीवन व्यतीत करते हैं परिवर्तन होते रहते हैं।  कहते हैं कि परिवर्तन, सृष्टि का नियम है।  जीवन में मनुष्य को कभी समस्याओं का सामना करना पड़ता है तो कभी खुशियों का।  अपने जीवन में मनुष्य को कभी ऐसी कठिन समस्याओं का सामना करना पड़ जाता है जिससे वह घबरा जाता है जबकि एसा भी होता है कि जीवन में कभी-कभी एसी खुशी मिलती है जिससे वह बहुत प्रसन्न हो जाता है।  यहां पर विशेष बात यह है कि दोनो में से किसी भी स्थिति में मनुष्य को ईश्वर को भूलना नहीं चाहिए बल्कि बीच का रास्ता अपनाए रखना चाहिए।  इसका मुख्य कारण यह है कि ईश्वर, केवल संसार का ही नहीं बल्कि पूरी सृष्टि का स्वामी है।  उसके हाथ में सबकुछ है।  वह हर काम करने में सक्षम है।  मनुष्य की समस्याओं को हल करना उसके लिए कोई बड़ी बात नहीं है।  परेशानी के समय मनुष्य यदि ईश्वर पर भरोसा करे तो उसे शांति भी मिलेगी और समस्या का समाधान भी होगा।

मनुष्य अपने जीवन में विभिन्न प्रकार से प्रसन्न होता है।  कभी उसे धन-दौलन खुश करती है तो कभी किसी पद के मिलने से वह प्रसन्न हो जाता है।  कभी कोई शुभसूचना उसे खुश कर देती है तो कभी किसी और मार्ग से उसे खुशी की ख़बर सुनने को मिलती है।  इस्लामी शिक्षाओं में कहा गया है कि जहां तक हो सके अपने मोमिन भाई को प्रसन्न करो।  इस बारे में इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम कहते हैं कि किसी मोमिन को खुश करना, ईश्वर के निकट बहुत अच्छा काम है।  आप कहते हैं कि उसको भूख से छुटकारा दिलाओ या उसकी किसी एसी समस्या का समाधान करो जिसमे वह बुरी तरह से घिरा हुआ है।  इसी संबन्ध में इमाम मुहम्मद बाक़र अलैहिस्सलाम का कहना है कि किसी मोमिन को प्रसन्न करना, ईश्वर के निकट सबसे अच्छा काम है।  इन कथनों से हमे पता चलता है कि मनुष्य को अपने जीवन में अपने मोमिन भाई को खुश करना चाहिए।

जो लोग ईश्वर पर आस्था रखते हैं उनका पूरा प्रयास यह रहता है कि वे अपने ईश्वर को प्रसन्न रखें।  इसके लिए वे ईश्वर के विशेष दूत पैग़म्बरे इस्लाम से निकटता हासिल करना चाहते हैं ताकि इस माध्यम से वे ईश्वर के निकट हो सके।  इस मार्ग तक पहुंचने का सीधा सा उपाय, ईश्वर के बंदों को खुश करना है।  यह बात समाज पर सकारात्मक प्रभाव डालती है।  यही छोटी सी बात दुश्मनी और शत्रुता के दूर होने का भी कारण बनती है।  दूसरों, विशेषकर अपने मोमिन भाई को खुश करने के बारे में पैग़म्बरे इस्लाम (स) का कहना है कि जो भी किसी मोमिन को प्रसन्न करेगा उसने मुझको प्रसन्न किया और जिसने मुझको प्रसन्न किया उसने ईश्वर को प्रसन्न किया।

 

इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम कहते हैं कि जब प्रलय के दिन ईश्वर, मनुष्य को उसकी क़ब्र से बाहर निकालेगा तो उसके साथ क़ब्र से एक (तिमसाल) निकलेगा। अर्थात मनुष्य का कर्म साक्षात रूप में निकलेगा। यह उसके आगे-आगे चलेगी।  जब वह व्यक्ति प्रलय के किसी दृश्य को देखकर डरेगा तो वह (तिमसाल) उससे कहेगा कि तुम डरो नहीं।  तुमको डरने की कोई ज़रूरत नहीं कि तुम्हारे लिए शुभ सूचना है।  जबतक तुम्हारा हिसाब न हो तुम डरना नहीं।  बाद में ईश्वर भी एसे व्यक्ति का बड़ी आसानी से हिसाब लेगा और उसे स्वर्ग की ओर भेज दिया जाएगा।  स्वर्ग जाने के मार्ग में वह साक्षात कर्म उसके आगे-आगे चलेगी।  ऐसे में व्यक्ति उससे कहेगा कि कितनी अच्छी बात है कि तुम मेरी क़ब्र से मेरे साथ हो और तुमने मेरे साथ भलाई की यहां तक कि मुझको स्वर्ग की शुभ सूचना दी गई और अब मैं उस ओर जा रहा हूं।  फिर वह व्यक्ति पूछेगा कि आख़िर तुम कौन हो? इसपर उसे उत्तर मिलेगा कि मैं वही खुशी हूं जिसे तुमने अपने मोमिन भाई तक पहुंचाया था।

इमाम जाफ़र सादिक़ कहते हैं कि किसी मोमिन की मुश्किल को दूर करने और उसकी समस्याओं के समाधान के लिए भरसक प्रयास करो क्योंकि ईश्वर के निकट उसपर भरोसे या ईमान के बाद, किसी मोमिन को प्रसन्न करने से अच्छा कोई दूसरा काम नहीं है।  वे कहते हैं कि इस काम के लिए मनुष्य को दूसरों की तुलना में बहुत तेज़ी से आगे बढ़ना चाहिए।  इससे पता चलता है कि इस्लामी शिक्षाओं के अनुसार किसी मोमिन को खुश करना बहुत महत्व रखता है।  यहां तक कहा गया है कि अगर किसी एक वाक्य से भी मोमिन को खुश किया जा सके तो उसे करना चाहिए।  हालांकि यह बहुत छोटी सी बात है।  जहां तक हो सके उसकी समस्याओं का समाधान करने के प्रयास किये जाएं ताकि वह वास्वत में प्रसन्न हो सके।  इस बारे में पैग़म्बरे इस्लाम का कथन है कि जो भी अपने मुसलमान भाई का मान-सम्मान करे तो एसा व्यक्ति हमेशा ईश्वर की कृपा की छाया में होगा।  ईश्वर की यह कृपा उस समय तक जारी रहेगी जबतक वह इस प्रकार का काम करता रहेगा।

 

इस्लाम की दृष्टि में मोमिन को बहुत महत्व प्राप्त है इसीलिए उसे प्रसन्न करने के महत्व को हमने बताया।  यहां पर इस बिंदु का उल्लेख बहुत ज़रूरी है कि दूसरों को खुश करने का यह अर्थ कभी भी नहीं है कि झूठे किस्से, उल्टे सीधे जोक्स या भोंडी हरकतें करके दूसरों को हंसाया जाए।  या दूसरों को खुश करने के लिए झूठ का सहारा लिया जाए या दूसरों को अपमानित किया जाए।  इस्लाम इस बात की किसी भी स्थिति में अनुमति नहीं देता।  वास्तव में दूसरों को खुश करने का अर्थ यह है कि उसकी जो ज़रूरत है उसे पूरा किया जाए या वह जिस समस्या में घिरा हुआ है उसको उससे निकाला जाए।  अगर ऐसे किसी व्यक्ति को जो वास्तव में परेशान है और हमारी उल्टीसीधी बातों से हंस भी दे तब भी ऐसी हंसी का कोई महत्व नहीं है क्योंकि जब दिल रो रहा हो तो यह हंसी उसकी मुश्किल का हल नहीं कर सकती।

महत्वपूर्ण बात यह है कि मनुष्य को चाहिए कि वह अपने मोमिन भाई की समस्याओं के समाधान के लिए अपनी योग्यता और क्षमता के अनुसार प्रयास जारी रखे।  उदाहरण स्वरूप अगर वह देखे कि उसके मोमिन भाई पर क़र्ज़ है तो उसे अदा करने की कोशिश करे।  अगर उसके बेटे या बेटी की शादी पैसे की वजह से रुकी हुई है तो उसके लिए कोई प्रयास करे।  अगर वह बेरोज़गार है तो रोज़गार का कोई प्रबंध करे।  अगर बेघर है तो उसके लिए कोई शरण स्थल उपलब्ध कराए।  इस प्रकार के और भी बहुत से काम हैं जो किये जा सकते हैं।  एसे काम करके वास्तव में अपने मोमिन भाई को खुश किया जा सकता है।  कहने का तातपर्य यह है कि मनुष्य को चाहिए कि वह अपने मोमिन भाई के दिल को खुश करे न कि केवल उसके होठों पर किसी प्रकार से हंसी बिखेरे चाहे झूठ बोलकर ही क्यों न हो।

दूसरों को खुश करने या उनको हंसाने के लिए यदि किसी का अपमान होता है या उसकी किसी एसी बात का उल्लेख किया जाता है जिसे सुनकर वह दुखी हो और दूसरे हंसें तो यह बिल्कुल ग़लत है।  ऐसा काम किसी भी स्थिति में सही नहीं है।  इसका मुख्य कारण यह है कि हम सब ईश्वर बंदे हैं।  ईश्वर ने ही हम सबको पैदा किया है।  स्वयं ईश्वर नहीं चाहता कि उसके बंदों का मज़ाक़ उड़ाया जाए या उसके रहस्य दूसरों को बताए जाएं।  यदि इस प्रकार से किसी को खुश किया जाए या हंसाया जाए तो यह काम पुण्य न होकर घोर अपराध और पाप है।  इस बारे में पैग़म्बरे इस्लाम का कहना है कि कभी ऐसा होता है कि कोई व्यक्ति दूसरों को हंसाने के लिए कोई बात कहता है।  बाद में वही बात उसके नरक में प्रवेश का कारण बनती है।  आप कहते हैं कि धिक्कार हो उसपर हो जो दूसरों को हंसाने के लिए झूठी बातें या झूठी कहानियां सुनाए।

इसी के साथ इस्लामी शिक्षाओं में यह भी कहा गया है कि जिसने किसी मोमिन को खुश किया और उसे प्रसन्नता प्रदान की।  प्रसन्न होने वाले व्यक्ति को उसका ध्यान रखना चाहिए।  इसका पहला चरण यह है कि उसका आभार व्यक्त करे और अगर हो सके तो अपनी क्षमता के अनुसार उसे कोई उपहार दे।  यह एक वास्तविकता है कि जो मनुष्य किसी दूसरे के उपकार पर आभार व्यक्त न कर सके वह किसी भी स्थिति में अपने पैदा करने वाले का आभार व्यक्त नहीं करेगा।  यदि व्यक्ति दूसरों का आभार व्यक्त करेगा तो इससे समाज में इस बात का प्रचलन बढ़ेगा कि अच्छे काम पर दूसरों को सराहा जाए जिससे समाज में अच्छाइयां बढ़ेंगी।