May ०९, २०१८ ११:०३ Asia/Kolkata

क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-640

 

وَقَالَ الَّذِينَ كَفَرُوا إِنْ هَذَا إِلَّا إِفْكٌ افْتَرَاهُ وَأَعَانَهُ عَلَيْهِ قَوْمٌ آَخَرُونَ فَقَدْ جَاءُوا ظُلْمًا وَزُورًا (4)

 

और काफ़िरों ने कहा कि यह (क़ुरआन) तो झूठ के अतिरिक्त कुछ नहीं है जिसे मुहम्मद ने स्वयं ही गढ़ लिया है और कुछ दूसरे लोगों ने इस काम में उनकी सहायता की है। निश्चय ही (इस निराधार आरोप के कारण) उन्होंने बहुत बड़ा झूठ बोला और अत्याचार किया है। (25:4)

 

 

وَقَالُوا أَسَاطِيرُ الْأَوَّلِينَ اكْتَتَبَهَا فَهِيَ تُمْلَى عَلَيْهِ بُكْرَةً وَأَصِيلًا (5) قُلْ أَنْزَلَهُ الَّذِي يَعْلَمُ السِّرَّ فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ إِنَّهُ كَانَ غَفُورًا رَحِيمًا (6)

और वे कहते थे कि ये पिछले लोगों की कहानियाँ हैं जिन्हें उन्होंने लिख लिया है तो वही उनसे सुबह शाम लिखाई जाती हैं। (25:5) (हे पैग़म्बर!) कह दीजिए कि इस (क़ुरआन) को उसने उतारा है जो आकाशों और धरती के रहस्य जानता है। निश्चय ही वह बहुत क्षमाशील (और) अत्यन्त दयावान है। (25:6)

 

 

وَقَالُوا مَالِ هَذَا الرَّسُولِ يَأْكُلُ الطَّعَامَ وَيَمْشِي فِي الْأَسْوَاقِ لَوْلَا أُنْزِلَ إِلَيْهِ مَلَكٌ فَيَكُونَ مَعَهُ نَذِيرًا (7) أَوْ يُلْقَى إِلَيْهِ كَنْزٌ أَوْ تَكُونُ لَهُ جَنَّةٌ يَأْكُلُ مِنْهَا وَقَالَ الظَّالِمُونَ إِنْ تَتَّبِعُونَ إِلَّا رَجُلًا مَسْحُورًا (8) انْظُرْ كَيْفَ ضَرَبُوا لَكَ الْأَمْثَالَ فَضَلُّوا فَلَا يَسْتَطِيعُونَ سَبِيلًا (9)

और उन्हों कहा कि यह कैसा पैग़म्बर है जो खाना खाता है और बाज़ारों में चलता-फिरता है? इसकी ओर कोई फ़रिश्ता क्यों नहीं उतरा जो इसके साथ रह कर (लोगों को) सावधान करता? (25:7) या इसे कोई ख़ज़ाना प्रदान नहीं किया गया? या इसके पास कोई बाग़ क्यों नहीं है जिस (के फलों में) से यह खाए। और अत्याचारियों ने कहा कि तुम लोग तो बस एक ऐसे व्यक्ति का अनुसरण कर रहे हो जिस पर जादू कर दिया गया है! (25:8) (हे पैग़म्बर!) देखिए कि उन्होंने आप पर कैसी-कैसी फब्तियाँ कसीं। तो वे बहक गए हैं जिसके परिणाम स्वरूप अब वे (सत्य का) कोई मार्ग नहीं पा सकते। (25:9)