Jul ०७, २०१८ १४:२२ Asia/Kolkata

दुनिया में बहुत से लोगों के सामने उनके जीवन में कई ऐसे प्रश्न आते हैं जिनका सामना अन्य लोगों को भी अपने जीवन में करना पड़ता है।

आम लोगों से लेकर बड़े-बड़े विचारकों तक के सामने कुछ ऐसे सवाल उनके जीवन में आते हैं जिनका जवाब सोच-विचार के बिना संभव नहीं है।  इन सवालों में सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि क्या सृष्टि में कुछ एसी चीज़ें मौजूद हैं जो इस बात की ओर संकेत करती हैं कि इसका बनाने वाला एक ही है।  इन बातों का जवाब आसमानी धर्मों ने स्पष्ट रूप में दिया है।  रोचक बात यह है कि इस्लाम ने सबको सृष्टि में सोच-विचार का निमंत्रण दिया है।

मनुष्य जब पैदा होता है और जब मरता है उस समय तक वह इसी संसार में जीवन व्यतीत करता है।  जो कुछ भी वह देखता है वह इसी दुनिया में देखता है और जो कुछ अनुभव करता है वह भी इसी संसार में करता है।  यहां तक कि जब मनुष्य मर जाता है तो इसी संसार में उसे दफ़्न किया जाता है।  बाद में वह इसी मिट्टी में मिलकर इसी संसार का हिस्सा बन जाता है।  वह अपने जीवन में अपनी आवश्यकताओं की समस्त वस्तुएं इसी संसार से हासिल करता है और उनका प्रयोग भी इसी संसार में करता है।

मानव ने दाने, मिट्टी,पानी और प्रकाश के बीच संपर्क को समझकर कृषि का काम आरंभ किया।  मानव ने शरणस्थल बनाकर स्वयं को सर्दी, गर्मी, धूप और तूफ़ान से बचाया।  उसने आग का पता लगाकर मानव जीवन को परिवर्तित कर दिया।  प्राकृति के नियमों में सोच-विचार करके मनुष्य समुद्र की गहराइयों में गया, उसने आसमान में उड़ना सीखा।  अब वह बहुत ही कम समय में लंबी दूरी तै कर लेता है।  इन बातों से यह पता चलता है कि संसार में पाए जाने वाले अन्य प्राणियों में केवल मनुष्य ही वह प्राणी है जिसने प्रकृति के नियमों का पता लगाकर उनका सदुपयोग करते हुए अपने जीवन में सुधार किया।  इस प्रकार वह गुफाओं में रहने वाले मनुष्य से परिवर्तित होकर आधुनिक मनुष्य में बदल चुका है।  सृष्टि के इन्ही नियमों के कारण बड़ी-बड़ी खोजें की गईं और नए-नए अविष्कार किये गए।  सृष्टि के कुछ नियम स्थिर और अटल हैं जैसे सूर्य हमेशा पूरब से निकलता है, पानी आसमान से बरसता है, धरती में गुरुत्वाकर्षण शक्ति पाई जाती है और इसी प्रकार के कुछ अन्य अटल नियम।

अब हमें यह देखना चाहिए कि क्या मनुष्य यह नहीं सोचता कि वह संसार जिसमे वह अपना पूरा जीवन व्यतीत करता है और जहां पर उसने बड़ी मेहनत से जानकारियां अर्जित करके प्रगति एवं विकास किया है, वह किस तरह से अस्तित्व में आया है? क्या मनुष्य यह समझता है कि धरती पर जो गुरूत्वाकर्षण शक्ति है वह उसकी देन है या उसने उसे लोगों के लिए रहने योग्य बनाया है।  क्या यह बात मानी जा सकती है कि पेड़ बनने के लिए दाने, पानी और मिट्टी में पाया जाने वाला संबन्ध स्वयं अस्तित्व में आया है? क्या यह बात सही है कि यह पूरी सृष्टि ख़ुद ही सामने आई है।  क्या यह सही है कि इस सृष्टि के निर्माण के पीछे किसी का हाथ है?

इन बातों को समझने के लिए हमे अपने चारों ओर के वातावरण में सोच-विचार करना चाहिए।  उदाहरण स्वरूप अगर हम एक नवजात को देखें तो पता चलेगा कि वह पहले एक भ्रूण था जो मां की कोख में जी रहा था।  नवजात, पहले अपनी मां की कोख में अंधकार में रह रहा था जो बाद में इस दुनिया में आया।  यह नवजात पहले अपनी मां के पेट में जो खाना खाता था वह ख़ून था जो बाद में उसके संसार में आने के बाद दूध में परिवर्तित हो गया।  यह दूध नवजात का सबसे महत्वपूर्ण भोजन था।

बाद में जब नवजात बड़ा होने लगता है तो उसे ठोस पदार्थ की ज़रूरत होती है। ठोस पदार्थ खाने के लिए उसे दातों की आवश्यकता पड़ती है जो उसे प्रदान किये जाते हैं।  इस प्रकार से एक प्रक्रिया है जो शताब्दियों से चली आ रही है।

अगर कभी ऐसा हो कि रेडियो या समाचारपत्र से यह पता चले कि आज वह दिन है जब मां की पेट में रहने वाले बच्चें अपनी मां के पेट में भोजन प्राप्त नहीं कर सके और सबके सब मुरझा गए।  या ऐसा सुनने को मिले कि आज महिलाओं ने बिना किसी दर्द के बच्चों को जन्म दिया।  तो क्या एसा संभव है? क्या इतिहास में एसा कुछ हुआ है।  तो इसका जवाब यह होगा कि नहीं ऐसा कभी नहीं हुआ और ऐसा कभी होगा भी नहीं।  इसका मुख्य कारण यह है कि सृष्टि की रचना और उसके संचालन में किसी ऐसे की भूमिका है जो अदृश्य है किंतु सब बातों से अवगत रहकर इसका संचालन कर रहा है।  इसीलिए हम विश्वास के साथ कह सकते हैं कि वे बातें कभी हो ही नहीं सकतीं जिनका अभी हमने उल्लेख किया।

 

अभी हम बच्चे के उदाहरण को फिर पेश करते हैं।  अगर ऐसा हो कि किसी नवजात के दांत कई साल तक न निकलें तो वह ऐसे में ठोस पदार्थ का प्रयोग नहीं कर सकता और सदैव ही तरल पदार्थों का सेवन करेगा।  ऐसे में उसके शरीर के भीतर आवश्यक शक्ति उत्पन्न नहीं हो पाएगी।

दुनिया में जो बच्चा भी जन्म लेता है वह कमज़ोर होता है और हर दृष्टि से अक्षम होता है।  बाद में धीरे-धीरे वह बड़ा होता है।  उसकी बुद्धि बढ़ती है और वह धीरे-धीरे परिपूर्णता की ओर बढ़ने लगता है।  लेकिन इसके विपरीत अगर एक बच्चा दुनिया में ऐसी स्थिति में जन्म ले कि वह शारीरक और बौद्धिक दृष्टि से संपन्न हो तो फिर उसके माता और पिता बच्चों को पालने और उनके प्रशिक्षण जैसी ज़िम्मेदारियों से माफ़ हो जाएंगे किंतु जब इस प्रकार के बच्चे बूढ़े होंगे तो उनको अपने माता-पिता के बलिदान का आभास ही नहीं होगा क्योंकि उनके माता-पिता ने उनके लिए किसी प्रकार की कठिनाइयां ही सहन नहीं की थीं।  इसका कारण यह है कि यह बच्चा आरंभ से ही बुद्धिमान, शक्तिशाली और आत्मनिर्भर रहा है।

ऐसा भी हो सकता था कि मनुष्य की संतान, जानवरों या पशुओं के बच्चों की तरह पैदा होने के कुछ ही समय के बाद आत्मनिर्भर जीवन व्यतीत करती।  जब कछुए का बच्चा पैदा होता है तो वह अपने मां-बाप को देखे बिना ही पानी की और ओर बढ़ने लगता है।  पानी में पहुंचते ही वह अपना जीवन स्वतंत्र रूप से बिना मां-बात की सहायता से आरंभ कर देता है।  वह अपने माता और पिता के प्रेम का आभास नहीं कर पाता।

क्या ऐसा नहीं लगता कि मनुष्य को बनाने में बहुत ज़्यादा ग़ौर और सोच-विचार नहीं किया गया है।  यदि मनुष्य की सृष्टि के बारे में ठीक से सोचा जाए तो हम इस निष्कर्श पर पहुंचेंगे कि इसको बहुत ही उचित ढंग से बनाया गया है और जिसने भी इसको बनाया वह एक ऐसी शक्ति है जिसने मनुष्य को उसकी सारी आवश्यकताओं को दृष्टिगत रखते हुए उसको बनाया है।

 

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