अल्लाह के ख़ास बन्दे- 41
इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम पहली रजब सन 57 हिजरी क़मरी को मदीना में पैदा हुए।
उनका नाम मोहम्मद, कुन्नियत अबू जाफ़र और उपाधि बाक़िरुल उलूम थी। बाक़िरुल उलूम का अर्थ है ज्ञान की गुत्थियों को सुलझाने वाला। शाफ़ेई मत के मशहूर धर्मगुरु इब्ने हजर हैसमी अपनी किताब सवाएक़ुल मोहर्रिक़ा में इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के बारे में लिखते हैः "उन्हें बाक़िर के नाम से बुलाते थे। बाक़िर शब्द बक़रुल अर्ज़ से निकला है जिसका अर्थ ज़मीन को खोद कर उसमें छिपी चीज़ों को निकालना है। उन्हें इसलिए बाक़िर कहते थे क्योंकि वह ऐसी इस्लामी शिक्षाओं, आदेश व दर्शन को स्पष्ट करते थे जो सिर्फ़ संकीर्ण मानसिकता वाले लोगों के लिए स्पष्ट न था।"
इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने ऐसे परिवार में आखें खोली जो हर दृष्टि से श्रेष्ठ था। उनके पिता इमाम ज़ैनुल आबेदीन, दादा इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम, मां इमाम हसन अलैहिस्सलाम की बेटी थीं जो बहुत ही सदाचारी व विद्वान महिला थीं। इसीलिए इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के बारे में कहा जाता है कि वह मां-बाप दोनों तरफ़ से अलवी, फ़ातेमी, और हाशेमी थे। इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया कि एक दिन पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम ने अपने एक विश्वस्त सहाबी जाबिर बिन अब्दुल्लाह अंसारी से फ़रमायाः "हे जाबिर! ईश्वर तुम्हें लंबी उम्र देगा यहां तक कि मेरे बेटे मोहम्मद बिन अली बिन हुसैन को जिनका नाम तौरैत में बाक़िर है, देखोगे। उस समय उन्हें मेरा सलाम कहना।"

जिस तरह पैग़म्बरे इस्लाम ने भविष्यवाणी की थी वैसा ही हुआ और जाबिर बिन अब्दुल्लाह अंसारी ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम की इमामत, उसके बाद इमाम हसन अलैहिस्सलाम की इमामत, उसके बाद इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की इमामत और फिर इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम की इमामत के काल में एक दिन उनकी सेवा पहुंचे तो इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम को देखा जो बच्चे थे। उन्हें देखते ही जाबिर को पैग़म्बरे इस्लाम की बात याद आयी और इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम से पूछा कि यह बच्चा कौन है? आपने फ़रमायाः "मोहम्मद बाक़िर, मेरे बाद इमाम है।" यह सुनकर जाबिर से रहा न गया वह अपनी जगह से उठे और उन्होंने इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम को अपनी गोद में लेकर प्यार किया और कहाः "मेरी जान आप पर क़ुर्बान हो! अपने नाना पैग़म्बरे इस्लाम का सलाम क़ुबूल कीजिए। उन्होंने आपको सलाम कहलवाया था।" यह सुनकर इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम की आंखों में आंसू आ गए और फ़रमायाः "सलाम हो आप पर हे मेरे पिता पैग़म्बरे इस्लाम जब तक ज़मीन और आसमान बाक़ी हैं। हे जाबिर! आप पर भी सलाम हो कि आपने पैग़म्बरे इस्लाम का सलाम मुझ तक पहुंचाया।"
अभी इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की उम्र तीन या चार साल से ज़्यादा न थी कि आशूर की त्रासदी घटी। दूसरे शब्दों में इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने अपने जीवन के सबसे संवेदनशील चरण अर्थात बचपन में कर्बला में आशूर को घटी घटना को देखा जो मानवता के इतिहास की सबसे त्रासदीपूर्ण घटनाओं में से एक है। अभी इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के मन से आशूर की घटना की पीड़ा दूर नहीं हुयी थी कि यज़ीद की सेना ने मक्का और मदीना पर चढ़ाई कर दी। इसके अलावा इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के पिता इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने अपनी इमामत अर्थात जनता के मार्गदर्शन के ईश्वरीय दायित्व के 34 साल में उमवी शासकों की तानशाही को देखा था जो पूरी तरह शुद्ध मोहम्मदी इस्लाम और अलवी शियत को ख़त्म करना चाहते थे। दूसरी ओर इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम इस दौरान अपने पिता के संघर्ष के गवाह थे। वह इमाम जिसने यज़ीद के धर्म विरोधी व शैतानी प्रवृत्ति वाले परिवार के अस्ली चेहरे को बेनक़ाब करने के साथ साथ दुआ के सांचे में शुद्ध इस्लामी शिक्षाओं को बड़ी सीमा तक समाज में पहुंचाने में सफलता हासिल की थी। इन सब बातों के अनुभव से इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के लिए नए हालात मुहैया हुए। ख़ास तौर पर इसलिए कि इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के दौर में उमवी शासन का पतन शुरु हो चुका था। अगर इस्लामी जगत के किसी क्षेत्र में कोई विद्रोह करता था तो शासक को तेज़ी से हटा दिया जाता था। जैसा कि इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की इमामत के 19 वर्ष के दौरान 5 उमवी शासक सत्ता में आए जिनके नाम, वलीद बिन अब्दुल मलिक, सुलैमान बिन अब्दुल मलिक, उमर बिन अब्दुल अज़ीज़, यज़ीद बिन अब्दुल मलिक और हेशाम बिन अब्दुल मलिक थे।

इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने इस अवसर से लाभ उठाते हुए एक सांस्कृतिक क्रान्ति की बुनियाद रखी। इस सैद्धांतिक उद्देश्य को हासिल करने के लिए ज़रूरी था कि पहले शियत की जीवनदायी शिक्षाओं पर पड़ा पर्दा हटे और फिर ऐसी हस्तियों का प्रशिक्षण हो जो शुद्ध इस्लामी संस्कृति के प्रचार व प्रसार की दिशा में प्रभावी क़दम उठाएं। साथ ही एक सच्चे शिया की विशेषताओं को पेश करके झूठे शियों ख़ास तौर पर शियत का दावा करने वाले अब्बासियों के पाखंड से पर्दा उठाएं जो अपने धूर्ततापूर्ण नारों के ज़रिए जनता को धोखा देकर सामाजिक मंच पर आ पहुंचे थे। इन अहम कार्यवाहियों की अहमियत उस समय समझ में आती है जब हम शियत के इतिहास पर नज़र डालते हैं। जब हम शियत के इतिहास पर नज़र डालते हैं तो पाते हैं कि वह शिया जिसकी विशेषता पैग़म्बरे इस्लाम ने अपने जीवन काल में यह बतायी थी कि वह हज़रत अली अलैहिस्सलाम की इमामत पर आस्था रखता होगा, वह किस तरह सत्ता के लोभी लोगों और उमवी व अबू सुफ़ियानी तानाशाहों की ओर से धर्म में फैलायी गयीं ग़लत बातों की वजह से पहचानने में नहीं आता था। उमवी शासकों ने हालात इस हद तक ख़राब कर दिए थे कि धोखा खाए हुए मुसलमान 50 साल अपनी नमाज़ों के बाद हज़रत अली अलैहिस्सलाम पर धिक्कार भेजते रहे। इमाम हसन अलैहिस्सलाम को सत्य बात कहने और शुद्ध मोहम्मदी इस्लाम की रक्षा करने की वजह से ज़हर दिया गया और उनके शव पर तीर बरसाए गए। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का ख़ून बहाया गया और इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम को आशूर की त्रासदी के बाद बंदी बनाया ताकि उमवी शासकों के लिए लूट पाट का रास्ता खुल जाए और सच्चे इस्लाम के अनुयायी और सत्य के इच्छुक शिया किसी तरह की कोई गतिविधि न करने पाएं।
इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने उमवियों और अब्बासियों के बीच सत्ता की खींचतान की चरम सीमा पर सांस्कृतिक क्रान्ति लाने की कोशिश की ताकि शियत की शिक्षाएं फिर से जीवित हों। इसलिए उन्होंने बहुत ही योजना के साथ बुनियादी काम शुरु किए। उन्होंने अपने आस पास आम और ख़ास वर्ग के लोगों को इकट्ठा किया और उन्हें इस्लाम की शुद्ध शिक्षाओं से अवगत कराया ताकि शुद्ध मोहम्मदी इस्लाम में जान आ जाए और वह मिटने न पाए।
कार्यक्रम के इस भाग में इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम द्वारा शुद्ध मोहम्मदी इस्लाम की रक्षा के लिए उठाए गए क़दम के बारे में आपको बताने जा रहे हैं। इस बात के मद्देनज़र कि उमवी शासकों ने 100 साल से ज़्यादा तक चलने वाले अपने शासन काल में हज़रत अली अलैहिस्सलाम और उनके पवित्र वंशज की छवि को ख़राब करने के लिए किसी भी तरह के हथकंडे से संकोच नहीं किया, इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम का पहला क़दम यह था कि उन्होंने समाज को इमामत का उच्च स्थान पहचनवाया। उसके बाद इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने शूरा नामक सूरे की आयत नंबर 23 के अनुसार कि जिसमें ईश्वर ने कहाः "हे पैग़म्बर! आप लोगों से कह दीजिए कि तुम्हारे मार्गदर्शन के बदले में मैं तुमसे कोई बदला नहीं चाहता सिर्फ़ यह कि मेरे निकटवर्ती परिजनों से मोहब्बत करो।" समाज को पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों की मोहब्बत और उनसे श्रद्धा की अनिवार्यता समझायी। इसी आधार पर इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने फ़रमायाः "हम पवित्र परिजनों से मोहब्बत धर्म की बुनियाद है।" एक अन्य कथन में इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने फ़रमायाः "ईश्वर से मोहब्बत करो और हम पवित्र परिजनों से भी ईश्वर और उसके पैग़म्बर के आदेशानुसार प्रेम करो।" पांचवे इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों की अहमियत को स्पष्ट करने के लिए उसे कर्म के स्वीकृति की पूर्व शर्त बताते हुए फ़रमायाः "अगर कोई व्यक्ति रात से सुबह तक उपासना करे, पूरी उम्र रोज़ा रखे, अपनी पूरी संपत्ति ईश्वर के मार्ग में ख़र्च कर दे और हर साल जीवन भर हज करे लेकिन हमसे मोहब्बत न करे और हमारा अनुसरण न करे तो उसका हर कर्म निरर्थक है और उसे ईश्वर से किसी बदले की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए।"
इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम इसलिए पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों से दोस्ती और मोहब्बत पर बल देते थे क्योंकि सत्ता के लोभी, लोगों के मन से पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों की मोहब्बत ख़त्म करने पर तुले हुए थे। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने अपनी आंखों से देखा था कि कर्बला के मरुस्थल में न सिर्फ़ यह कि पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों का अपमान किया गया बल्कि उनके दादा इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम तथा उनके वफ़ादार साथियों को भी बड़ी बेदर्दी से शहीद कर दिया गया। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने अच्छी तरह समझ लिया था कि किस तरह भ्रष्ट धर्मगुरु उन्होंने उमवी शासकों की ओर से दी जाने वाली लालच के बदले में हज़रत अली अलैहिस्सलाम की बुराईं में हदीसे गढ़ीं और मोआविया के आदेश से बच्चों के मन में पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों के विरुद्ध द्वेष के बीज बोए। इसलिए इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने महसूस किया कि अब दुश्मन के ज़हरीले प्रचार को नाकाम बनाने, उनके झूठ से पर्दा उठाने और ईश्वरीय आदेश के अनुसार, पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों से श्रद्धा की अहमियत को ज़ाहिर करने के लिए सामने आने और जनमत को आकृष्ट करने के लिए मार्ग समतल करने का वक़्त है।