Aug ०१, २०१८ १५:३७ Asia/Kolkata

मध्यपूर्व के संदर्भ में अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की एक रणनीति का नाम "डील आफ़ द सेंचुरी" है। 

ट्रम्प अपने पूरे प्रयास के साथ इस रणनीति को लागू कर करने पर तुले हुए हैं। 

मध्यपूर्व के संदर्भ में अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की नई रणनीति डील आफ द सेंचुरी के सात मुख्य खिलाड़ी हैं।  संयुक्त राज्य अमरीका, अवैध ज़ायोनी शासन, फ़िलिस्तीन, सऊदी अरब, संयुक्त अरब इमारात, जार्डन और मिस्र।  इन सातों में सबसे महत्वपूर्ण और मुख्य खिलाड़ी अमरीका है।  इसका कारण यह है कि अमरीका की ही यह देन है।  डील आफ द सेंचुरी का मुख्य लक्ष्य बैतुल मुक़द्दस, फ़िलिस्तीनी शरणार्थियों और फ़िलिस्तीनी संकट को सदा के लिए समाप्त करने के साथ ही दो अलग देशों का गठन करना है फ़िलिस्तीन और यहूदी।  अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने डावोस-2018 के शिखर सम्मेलन में कहा था कि अमरीका की ओर से अपने दूतावास को बैतुल मुक़द्दस स्थानांतरित करने का अर्थ यह है कि बैतुल मुक़द्दस नगर का निर्धारण अब फ़िलिस्तीनियों और इस्राईलियों की वार्ता का विषय न रहे।

ट्रम्प की योजना डील आफ द सेंचुरी को क्रियान्वित करने वालों में ट्रम्प के दामाद व सलाहकार जेयर्ड कुशनर, मध्यपूर्व के लिए अमरीका के विशेष दूत जैसन ग्रीनब्लाट तथा अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन में अमरीकी राजदूत डेविड फ्रेडमेन का नाम लिया जा सकता है।  इस योजना को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से ट्रम्प के दामान कुशनर और मध्यपूर्व के लिए अमरीका के विशेष दूत जैसन ग्रीनब्लाट ने क्षेत्रीय देशों के कई दौरे करके इन देशों विशेषकर जार्डन के अधिकारियों को डील आफ द सेंचुरी के बारे में बताया है।  इस संबन्ध में कैरेट एंड स्टिक वाली नीति अपना रखी है।  डेविड फ्रेडमेन भी, जो इस्राईल में अमरीका के राजदूत हैं, अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन में ज़ायोनी शासन की विस्तारवादी नीतियों के प्रबल समर्थक हैं।  यही कारण है कि इस्राईल, बहुत तेज़ी से अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन में कालोनी निर्माण के काम को विस्तृत करते हुए फ़िलिस्तीनियों की भूमि को हड़पता रहा है।

इसी संदर्भ में क़तर से प्रकाशित होने वाले समाचारपत्र "अलअरबियुल जदीद" में सालेह अन्नआमी लिखते हैं कि बैतुल मुक़द्दस में अमरीका के राजूदत डेविड फ्रेडमेन न केवल यह कि अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन में बनने वाली अवैध कालिनियों के निर्माण की निंदा नहीं करते बल्कि उनका कहना है कि इस प्रकार की बातें इस्राईल के भीतर गृहयुद्ध का कारण हैं।

डील आफ द सेंचुरी योजना को लागू करने के लिए अमरीका जिस प्रकार के प्रयास कर रहा है वे इस प्रकार हैं।  इस्राईल तथा फ़ार्स की खाड़ी के अरब देशों की निकटता की भूमिका प्रशस्त करना, उनके संबन्धों को सामान्य बनाना, ईरानोफ़ोबिया को हवा देना, कुछ देशों की आर्थिक चिंताओं का दुरूपयोग करना और साथ ही इसे दबाव के लिए एक हथकण्डे के रूप में प्रयोग करना आदि।  यही कारण है कि हालिया दिनों में इस्राईल के साथ सऊदी अरब, बहरैन और संयुक्त अरब इमारात के संबन्ध अधिक विस्तृत हुए हैं।  मिस्र और जार्डन तो दशकों पहले ही इस्राईल के साथ शांति समझौता कर चुके हैं।  अमरीका ने क्षेत्र विशेषकर मध्यपूर्व के लिए ईरान और शियत को जो ख़तरे के रूप में दर्शाने का प्रयास किया है वह ट्रम्प, नेतनयाहू और बिन सलमान की तिकड़ी के प्रयासों से अधिक स्पष्ट हुआ है।

जार्डन, मिस्र और फ़िलिस्तीन से मुक़ाबले के लिए आर्थिक दबाव को हथकण्डे के रूप में प्रयोग किया जा रहा है।  जार्डन में हालिया महीनों के दौरान होने वाले विरोध प्रदर्शनों को दबाने में सऊदी अरब और संयुक्त अरब इमारात के आर्थिक सहायता की विशेष भूमिका रही।  इसके अतिरिक्त ग़ज़्ज़ा के पुनर्वास का प्रस्ताव, जार्डन नदी के पश्चिमी तट की आर्थिक स्थिति को सुधारने के आश्वासन और इसी प्रकार से मिस्र को आर्थिक पैकेज देने जैसी बातें इस विषय की पुष्टि करती हैं कि डील आफ द सेंचुरी योजना को लागू करने के लिए आर्थिक हथकण्डे को भी प्रयोग किया जा रहा है।

निःसन्देह, इस्राईल ने डील आफ द सेंचुरी को अपने हितों की पूर्ति के उद्देश्य से प्राथमिकता में रखा है।  इसका कारण यह है कि बैतुल मुक़द्दस का पूर्ण रूप से यहूदीकरण, यहूदी और फ़िलिस्तीनी दो देशों का गठन, अवैध कालोनी निर्माण को वैधता प्रदान करना, बैतुल मुक़द्दस के साथ ही फ़िलिस्तीनी शरणार्थियों के विषय को सदा के लिए भुला देने जैसी बातों पर ही इस तथाकथित शांति समझौते के अन्तर्गत वार्ता की जाएगी।

डील आफ दे सेंचुरी के संदर्भ में इस्राईल का व्यवहारिक आदर्श यह है कि सऊदी अरब की क्षेत्रीय तथा आंतरिक नीतियों का समर्थन किया जाए और कालोनी निर्माण को जारी रखते हुए नए क़ानून बनाए जाएं।  इस्राईल, सऊदी अरब के भीतर मुहम्मद बिन सलमान की क्षेत्रीय एवं आंरतरिक नीतियों का समर्थन करता है।  इससे पता चलता है कि इस्राईल, वर्तमान परिस्थितियों में सऊदी अरब को सबसे बड़ा अरब खिलाड़ी मानता है।  इस्राईल, मुहम्मद बिन सलमान की आंतरिक नीतियों का समर्थन इसलिए कर रहा है क्योंकि वे इस्राईल हित में हैं।  उदाहरण स्वरूप सऊदी अरब के युवराज ने देश के भीतर जो सुधार का काम शुरू किया है वह धर्म की भूमिका को प्रभावहीन बना रहा है जबकि दूसरी ओर यही काम सऊदी जनता का पाश्चत्य जीवन की ओर अन्मुख करने में भी सहायक सिद्ध हो रहा है।  सऊदी अरब की महत्वपूर्ण क्षेत्रीय रणनीति में से एक, ईरान तथा प्रतिरोध को ख़तरे के रूप में दर्शाना है।  सऊदी शासक सलमान के सत्ता संभालने के बाद इस नीति को पूरी शक्ति के साथ लागू किया जा रहा है।  सऊदी अरब की यह नीति भी इस्राईली हितों की पूर्तिकर्ता है।  इस प्रकार इस्राईल और सऊदी अरब का एक अनाधिकारिक गठबंधन बन चुका है।

फ़िलिस्तीनियों की भूमि पर अवैध कालोनियों का निर्माण इस्राईल की महत्वपूर्ण रणनीति है जिसे अमरीका का खुला समर्थन प्राप्त है।  अवैध कालोनियों के निर्माण का अर्थ है यहूदियों की संख्या में दिन-प्रतिदिन वृद्धि तथा अपनी ही मातृभूमि से फ़िलिस्तिनयों का बड़ी संख्या में पलायन।  फ़िलिस्तीनियों की भूमि पर अवैध कालोनियों का निर्माण जैसा काम, डील आफ द सेंचुरी योजना के लिए सबसे अधिक सहायक है।

इस संदर्भ में न्यूयार्क टाइम्स ने लेख में लिखा है कि पश्चिमी तट के पांच दशकों से भी अधिक समय से अतिग्रहण के बाद इस्राईल ने अतिग्रहित हज़ारों हेक्टर भूमि को सार्वजनिक भूमि घोषित कर दिया।  इसके बाद उसने आधी से अधिक भूमि को कालोनी निर्माण के लिए प्रयोग करना आरंभ कर दिया।  कालोनी निर्माण के विरोधी गुट के अनुसार जिस भूमि का इस्राईल ने अतिग्रहण किया था उसका 99.76 प्रतिशत भाग आज भी इस्राईल के पास है जबकि दश्मल दो-चार प्रतिशत ही फ़िलिस्तीनियों के अधिकार में दिया गया है।  इस्राईल के क़ानूनी मामलों के विशेषज्ञों का कहना है कि सन 1980 में जिन भूमियों की पहचान करके उनकी सूचियां बनाई गई थीं वे भी कालोनी निर्माण के काम में ही प्रयोग की जाएंगी।

डील आफ द सेंचुरी की आड़ में इस्राईल ने जो व्यवहार अपना रखा है उसके अन्तर्गत नए क़ानून बनाना भी इसमें सहायक सिद्ध होगा।  इसी परिप्रेक्ष्य में इस्राईल की संसद क्नेसेट ने 19 जूलाई 2018 को एक जातिवादी प्रस्ताव पारित करके उसे क़ानून का रूप दिया जिसका नाम था यहूदी देश।  इस क़ानून के अनुसार फ़िलिस्तीनियों की भूमि, यहूदियों की एतिहासिक मातृभूमि है जिसके बारे में फैसला करने का यहूदियों को पूरा अधिकार है।  इस क़ानून में हेब्रू भाषा को आधिकारिक भाषा बताया गया है जबकि अरबी भाषा के संबन्ध में कहा गया है कि केवल आवश्यकता के समय ही इसका प्रयोग किया जा सकता है।  इस क़ानून में बैतुल मुक़द्ददस को अवैध ज़ायोनी शासन की राजधानी घोषित किया गया है।  नए इस्राईली क़ानून के अनुसार अवैध अधिकृत भूमि में कालोनी निर्माण के साथ ही साथ नई-नई कोलोनियों का निर्माण किया जाना चाहिए।

मिडिल ईस्ट वेबसाइट पर इस्राईल की संसद में पारित नए क़ानून को अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन में नस्लभेद को लागू करने की संज्ञा दी गई है।  इसमें कहा गया है कि इसका मूल लक्ष्य, फ़िलिस्तीनियों की पहचान को सदा के लिए समाप्त करना है।  बिन वाइट लिखते हैं कि यहूदी देश के प्रस्ताव का पारित होना फ़िलिस्तीनियों के विरुद्ध खुला भेदभाव है।  उनका कहना है कि यह वास्तव में एक एतिहासिक युद्ध है जो जनसंख्या से संबन्धित है।  इस्राईलियों के मतानुसार यह युद्ध, फ़िलिस्तीनियों के विरुद्ध कड़ी कार्यवाहियों को आवश्यक बताता है जिसके अनुसार फ़िलिस्तीनियों का दमन बहुत ज़रूरी है।