सृष्टि के रहस्य- 6
ज़्यादातर लोग अपने जीवन में कुछ सवालों का जवाब चाहते हैं।
इसमें साधारण लोगों से लेकर विचारक भी शामिल हैं। लोगों को अपने जीवन के विभिन्न चरणों में कुछ ऐसे सवालों का सामना होता है कि अगर उन्होंने उसकी अनेक बार अनदेखी की हो लेकिन अंत में उसके बारे में सोचने पर मजबूर हो जाते हैं। जैसे सृष्टि और सृष्टि के रचयिता के बारे में यह सवाल ज़्यादातर लोगों के मन में उठता है कि क्या इस सृष्टि में किसी रचियता की मौजूदगी के चिन्ह हैं। ये इंसान के मूल सवालों में शामिल है। दार्शनिक मत, इब्राहीमी और ग़ैर इब्राहीमी धर्मों ने भी इस तरह के सवालों के जवाब दिए हैं।
इस्लाम ने सभी को सृष्टि के बारे में चिंतन मनन करने के लिए प्रेरित किया है और सृष्टि के बारे में दृष्टिकोण पेश किया है।
सृष्टि की सच्चाई के बारे में जो बातें हम आपको बताने जा रहे हैं उसमें वरिष्ठ धर्मगुरुओं के विचारों व बयानों के ज़रिए आपको सृष्टि के बारे में दोबारा सोचने के लिए प्रेरित करेंगे और इस सवाल का जवाब देने की कोशिश करेंगे कि हमारे आस-पास मौजूद चीज़ें एक रचयिता के वजूद का पता देती हैं।
क्या आपने कभी इस बात की ओर ध्यान दिया कि इंसान सिर्फ़ ज़मीन के ऊपर जीवन गुज़ारता है जबकि जानवर ज़मीन पर, ज़मीन के नीचे, समुद्र और महासागर में जीवन गुज़ारते हैं। यह कह सकते हैं कि जानवरों की संख्या की धरती पर इंसान की आबादी से कोई तुलना नहीं की जा सकती। इसी तरह जानवर जितनी जगह पर रहते हैं वह इंसान के प्रयोग में मौजूद जगह से कहीं ज़्यादा है। जानवर चाहे पानी में रहने वाले हों, चाहे समुद्र में रहने वाले हों, चाहे पक्षी हों, चाहे रेंगने वाले हों, या जंगल में एक शाख से दूसरी शाख पर छलांग लगाने वाले हों, हर एक अपने आप में आकर्षक व अनोखे हैं और उनकी हैरत में डालने वाली अलग ही दुनिया है।
जब फाड़ खाने वाले दरिन्दों के बारे में ध्यान देते हैं तो यह पाते हैं कि उनमें सिर्फ़ कुत्ता ऐसा जानवर है जो अपने मालिक से मोहब्बत करता है और उसकी रक्षा व देखभाल करता है। कुत्ता रात के अंधेरे में घर की दीवार और छत पर जाता है ताकि घर और घर के मालिक को चोरों और दुश्मनों के ख़तरे से बचाए। कुत्ते के पास नुकीले दांत और ख़ौफ़नाक आवाज़ होती है जिसकी वजह से चोर डर कर भागता है और इस तरह कुत्ता उस क्षेत्र की रक्षा करता है जिसकी उसे ज़िम्मेदारी सौंपी जाती है।
शायद आपने ख़बरों में या किसी वीडियो क्लिप में कुत्ते की अपने मालिक से मोहब्बत की घटना सुनी या देखी हो। यह मोहब्बत कभी कभी इस सीमा तक पहुंच जाती है कि वह अपने मालिक की जान की रक्षा के लिए अपनी जान की बाज़ी लगा देता है। कुत्ता अपने मालिक से इतनी मोहब्बत करता है कि उसे भूख या प्यास लगी होती है तो संयम से काम लेता है। सवाल यह पैदा होता है कि कुत्ते के वजूद में यह मेहरबानी व मोहब्बत की भावना क्यों पैदा की गयी है? क्या इसलिए नहीं कि वह इंसान की रक्षा करे? किसने कुत्ते में मेहरबानी की भावना को पैदा किया है?
अगर कुत्ते में इंसान और उससे संबंधित चीज़ों की रक्षा करने की क्षमता, इस जानवर की पैदाइश के बारे में सोचने के लिए हमे प्रेरित करती है तो कुछ और जानवर भी हैं जिनका वजूद हमें उनके बारे में सोचने के लिए प्रेरित करता है। जैसे बंदर और उसके बहुत से शरीर के अंग जैसे सिर, शक्ल, भुजा, सीने और अंदर के अंगों का इंसान के अंगों जैसा होना, सोचने लायक बिन्दु है। बंदर एक समझदार जानवर है और अपने मालिक के इशारों व निर्देशों को समझ जाता है और इंसान की ज़्यादातर हरकतों की नक़ल करता है। बंदर के वजूद और इंसान से मिलती जुलती उसकी बहुत सी विशेषताओं में कैसे बिन्दु निहित हैं? इंसान इस जानवर के वजूद के बारे में सोच विचार से बहुत से निष्कर्श हासिल करता है। शायद बंदर को इसलिए इंसान से मिलता जुलता बनाया है ताकि वह यह समझे कि इतनी समानताओं के बावजूद वह भी जानवर की प्रवृत्ति रखता है और अगर उसमें बुद्धि व सोच समझ कर बोलने की क्षमता न होती तो वह भी जानवर होता। इसके अलावा बंदर के जिस्म में कुछ चीज़ें ऐसी हैं जो इंसान में नहीं हैं, जैसे मुंह का आकार, लंबी दुम और पूरे शरीर पर बाल। अब अगर इसका उलटा होता कि बंदर के भी बुद्धि होती और वह भी इंसान की तरह सोच समझ कर बोलता, तो इंसान और उसके बीच आंशिक अंतर, इंसान के गुट में उसके शामिल होने में रुकावट न बनते। इसका मतलब यह हुआ कि जो चीज़ बंदर को इंसान से अलग करती है वह बंदर में दिमाग़ व सोचने समझने की क्षमता न होता है। यही सोचने समझने की क्षमता की जवह से इंसान अन्य जानवरों से श्रेष्ठ है।
इसी तरह जानवरों की पैदाइश में जिस अनुरूपता को मद्देनज़र रखा गया है, वह भी हैरत में डालने वाली चीज़ है। इससे सृष्टि के रचयिता की शक्ति व महानता का पता चलता है। मिसाल के तौर पर हाथी एक भीमकाय जानवर है जो ज़मीन के ऊपर ज़िन्दगी गुज़ारता है। सूंड को हाथी के शरीर के मुख्य अंगों में गिना जाता है। इस सूंड से हाथी पानी पीता, घास खाता है। या यह कहें कि सूंड से हाथी हाथ का काम लेता है। अगर हाथी के शरीर की रचना के अनुरूप सूंड न होती तो वह कोई चीज़ ज़मीन से उठा कर न खा पाता क्योंकि हाथी की गर्दन दूसरे जानवरों की गर्दन के विपरीत लंबी नहीं है जो खाद्य पदार्थ की ओर अपनी गर्दन बढ़ाते हैं। हाथी की गर्दन लंबी नहीं होती, उसे सूंड दिया गया है जिससे वह गर्दन का काम लेता है और उससे अपनी ज़रूरत पूरी करता है। क्या सृष्टि पर मेहरबान रचयिता के अलावा कोई और है जो एक जानवर को ऐसा अंग दे जिससे वह ग़ैर मौजूद अंग का काम ले सके?
शायद किसी के मन में यह सवाल उठे कि हाथी को दूसरे जानवरों की तरह लंबी गर्दन के साथ क्यों नहीं पैदा किया गया। हाथी के शरीर के बारे में थोड़े सोच विचार से इसका जवाब मिल जाता है। जैसा कि आप जानते हैं कि हाथी एक विशालकाय व भारी जानवर है। उसका सिर और कान बहुत बड़े और भारी होते हैं। अगर उसके सिर को गर्दन से जोड़ा जाता तो गर्दन इतनी बड़ी हो जाती कि उसके शरीर के अनुरूप न होती, ऐसी हालत में हाथी के लिए दूसरी मुश्किलें पैदा हो जातीं या गर्दन छोटी होती तो उसमें हाथी के सिर और कान को उठाने की क्षमता न होती। हाथी के सिर उसके शरीर से इसलिए चिपका हुआ है ताकि उसे किसी तरह के काम में मुश्किल न हो। इस गर्दन की जगह पर उसकी सूंड पैदा की गयी है ताकि उसके ज़रिए अपना खाना खाए और गर्दन के बिना ही अपने ज़रूरी काम अंजाम दे।
पशुओं के स्वाभाविक व्यवहार इंसान से मिलते जुलते हैं। जब एक इंसान की मौत होती है तो बाक़ी लोग उसे आम तौर पर दफ़्न करते हैं या उसके शरीर को यूं ही छोड़ नहीं देते। इस तरह का व्यवहार जानवरों में भी दिखाई देता है। जिन जानवरों की मौत का वक़्त निकट आ जाता है वह ख़ुद को एकांत में ले जाते हैं और वहां अपने जीवन का अंत करते हैं या दूसरे जानवर उन्हें दफ़्न करते हैं। अगर ऐसा नहीं है तो जंगली जानवर और परभक्षियों के शव कहां हैं? ये जानवर कम नहीं हैं कि दिखाई न दें, जबकि जानवरों की संख्या इंसान से कहीं ज़्यादा है लेकिन हमें उनके शरीर जंगलों व मैदानों में बिखरे हुए नज़र नहीं आते।
पहाड़, जंगलों और मैदानों में हिरण, गाय, पहाड़ी बकरी, ज़ेब्रा और इसी तरह शेर, चीते, तेंदुए, भेड़िये और लकड़बग्घे, ज़मीन पर रेंगने वाले जानवर और कीड़े मकोड़े, कौए, हंस, कबूतर, पक्षियों का शिकार करने वाले और मांसाहारी पक्षी जब मरते हैं तो दिखाई नहीं देते।
सच्चाई यह है कि इन जानवरों को जब लगता है कि उनकी मौत क़रीब आ गयी है तो वे गढ़े में छिप जाते हैं और वहीं मर जाते हैं। अलबत्ता यह भी मुमकिन है दूसरे जानवर उन्हें दफ़्न करते हों। अगर ऐसा न होता तो सारे जंगल, मैदान, पहाड़ इन जानवरों के शव की बदबू से गंधाते और हर जगह घातक बीमारियां फैल जातीं।
इंसान को हैरत है कि किस तरह उसकी यह आदत जो उसने अपने वजूद के आरंभ में एक कौए से अपने शरीर को दफ़्न करना सीखा, जानवरों की पृवत्ति में मौजूद है ताकि इंसान विभिन्न बीमारियों से सुरक्षित रहे।
इंसान को यह मानना पड़ता है जैसा कि पवित्र क़ुरआन में बारंबार इस बात का ज़िक्र है कि ज़मीन-आसमान, स्तनधारियों और दूसरी चीज़ों की सृष्टि सोच विचार करने वालों के लिए निशानी हैं और ये सब चीज़ें इस बात की दलील हैं कि पूरी सृष्टि में व्यवस्था, ज्ञान, शक्ति, प्रेम व स्नेह भरा हुआ है और इन सबका स्रोत एक मेहरबान रचयिता है।