ईरान की सांस्कृतिक धरोहर-33
ईरानी क़ालीनों की डिज़ाइन में बुनियादी प्रेरणा, प्रकृति और उसके सौन्दर्य से मिलती है हालांकि बहुत से डिज़ाइन, कलाकार की अपनी उपज भी होते हैं और कुछ कलाकार प्रकृति अपनी सोच और बहुत कुछ मिलाकर भी कालीन का डिज़ाइन तैयार करते हैं।
बहुत से कलाकार, शिल्पकारों की मेहनत से लाभ उठाते हैं और प्रसिद्ध इमारतों की खूबसूरत डिज़ाइनों से कालीनों को सजाते हैं लेकिन थोड़े बहुत बदलाव के साथ, लेकिन यह बदलाव एसा नहीं होता कि उस इमारत की पहचान गुम हो जाए बल्कि डिज़ाइनर इस प्रकार की डिज़ाइनों में इमारत की डिज़ाइन का मूल रूप सुरक्षित रखता है। अलबत्ता यह खुद एक लंबी चर्चा है। लेकिन इस प्रकार की डिज़ाइनों के लिए ईरान की कुछ इमारतों का नाम ज़रूर लिया जा सकता है।
जैसे इस्फहान नगर की विश्व विख्यात मस्जिदे शैख़ लुत्फुल्लाह का गुंबद या फिर नीशापूर में सैयद महरूक़ के मज़ार का प्रवेश द्वार , या इसफ़्हान में मस्जिदे इमाम का गुंबद या फिर फार्स प्रान्त में हज़ार वर्ष पहले के पेर्सपोलिस के खंडहर और किरमानशाह का ताक़े बुस्तान और इस्फ़हान की जुमा मस्जिद। यह वह इमारते हैं जिन्हें देख देख कर कालीन के कलाकारों ने सैंकड़ों डिज़ाइनें बनायी हैं।
गणित के लाभ तो सभी जानते हैं और यह भी पता है कि यह पुराने समय से अत्याधिक लाभदायक विषयों में से रहा है। गणित का आधार दर्शन शास्त्र रहा है और खुद गणित कई कलाओं और कई प्रकार के ज्ञानों का आधार है किंतु इस्लामी कलाओं में इसका विशेष महत्व है और ईरान में तैयार किये जाने वाले कालीनों की बुनाई से इस ज्ञान का तो चोली दामन का साथ है।
कालीन की बुनाई को इस्लामी कला की चरम सीमा कहा जाता है । कालीन के हर फंदे और हर गांठ में जो समानता व बारीकी होती है वह दरअसल ज्योमेट्री या ज्यामिति के सिद्धान्तों का कमाल है। मतलब यह कि कालीन के हर डिज़ाइन में रेखागणित के सिद्धान्तों को आधार बनाया जाता है किंतु कुछ डिज़ाइन दिखने में भी ज्योमितिय होते हैं मतलब रेखागणित के सिद्धान्तों पर आधारित आकृतियां, रेखाएं और चौकोर गोल या त्रिकोणीय डिज़ाइन होते हैं ।
इस प्रकार के डिज़ाइन ईरानी कालीनों की बुनाई में अत्याधिक महत्वपूर्ण समझे जाते हैं।
इस प्रकार के डिज़ाइनों को प्रायः ईरान के बंजारे प्रयोग करते हैं और कालीन की बुनाई करने वाले यह बंजारे अपनी रचनात्मकता और आस पास के माहौल से प्रेरणा लेकर अत्याधिक मनमोहक और सुंदर डिज़ाइन तैयार करते हैं। इस प्रकार के डिज़ाइनों में एक दूसरे से मिलते जुलते डिज़ाइनों और उनमें समानता की ओर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया जाता और इसके साथ ही डिज़ाइन का परिदृश्य सादा होता है यानी सादे कालीन पर बीच- बीच में डिज़ाइने बनी होती हैं और यही विशेषता इस प्रकार के कालीनों की सुन्दरता का राज़ है।
इस तरह के ज्योमितिय डिज़ाइनों वाले क़ालीनों के लिए कश्क़ाई, शाहसवन और बलोच बंजारों को काफी ख्याति प्राप्त है हालांकि तुर्कमन कबीलों में बुने जाने वाले क़ालीनों को भी इसी प्रकार के कालीनों में गिना जाता है।
ईरानी कालीनों के डिज़ाइनों की बात करें तो यह हो नहीं सकता कि उसमें हम मेहराब की डिज़ाइन का उल्लेख न करें। मेहराब मस्जिद में उस जगह को कहते हैं जहां खड़ा होकर इमाम नमाज़ पढ़ाता है और यह वास्तव में काबे की दिशा भी बताता है। इस्लामी शिल्पकला में मेहराब का विशेष स्थान है और मस्जिद के अलावा भी अन्य इमारतों में मेहराबी या मेहराब की भांति नज़र आने वाली आकृति प्रयोग की जाती है। भारत में मुगलों के दौर में बनायी जाने वाली अधिकांश इमारतों में मेहराब की आकृति जगह जगह नज़र आती है ।
मेहराब की शकल दरवाज़े की तरह नज़र आती है जिसका ऊपरी हिस्सा गोल या धनुषाकार होता है। जैसे भारत में ताजमहल का लगभग हर दरवाज़ा और हर खिड़की मेहराबी शक्ल की है।
यह मेहराबी शक्ल ईरानी कालीनों की डिज़ाइनों में बहुत खूबसूरती से इस्तेमाल की जाती है। इसके लिए कलाकार, कालीनों पर मेहराब की भांति डिज़ाइन बनाता है और मस्जिद में बने मेहराब की ही भांति उसे सजाता है और कभी कभी मेहराब के दोनों ओर खंबे का डिज़ाइन बनाता है जो वास्तव में मस्जिदों में छत को रोकने के लिए होता है। इसके अलावा मेहराब की फूल पत्तियों और गुलदानों से सजावट को भी कालीन के डिज़ाइनों में प्रयोग किया जाता है।
कालीनों की बुनाई में मेहराबी डिज़ाइन प्रयोग किया जाता है तो उसमें मुसलमानों के पवित्र ग्रंथ, क़ुरआने मजीद की आयतें भी ज़रूर लिखी जाती हैं क्योंकि मस्जिद के मेहराब में धनुषाकार के ऊपर भी आयतें लिखी होती हैं इस लिए जब कालीनों में यह डिज़ाइन प्रयोग होता है तो उसमें भी मेहराबी डिज़ाइन के ऊपर कुरआने मजीद की आयते लिखी जाती हैं किंतु इस में परेशानी यह है कि इस प्रकार के कालीनों को सजावट के लिए फ्रेम आदि में लगा कर ही प्रयोग किया जाता है और कुरआने मजीद की आयतें लिखे होने की वजह से उसे बिछाना संभव नहीं होता। इस लिए इस प्रकार के कालीन प्रायः छोटी साइज़ के बुने जाते हैं।
किसी भी देश की कलाकृतियों को उस देश की कला और संस्कृति का दर्पण भी कहा जाता है। इस लिए कालीन भी ईरानी सभ्यता का आइना है और ज़ाहिर सी बात है शिकार ईरानी सभ्यता व संस्कृति का एक एसा अंश है जिसकी झलक ईरानी संस्कृति के हर रूप में नज़र आती है।
शिकार से ईरानियों की रूचि का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि ईरानियों ने खेती बाड़ी जैसे बुनियादी कामों की तरह शिकार के इतिहास को भी खंगालने का प्रयास किया है और शिकार आरंभ करने वाले तक का उल्लेख किया है। इस विचारधारा के अनुसार प्राचीन काल में ईरानियों का यह मानना था कि क्यूमर्स वह पहला आदमी है जिसे जानवरों से लगाव हुआ था और उसकी सेना में भेड़िये, शेर, चीने और बाघ जैसे जंगली जानवर मौजूद थे और युद्धों में वह इन जानवरों को इस्तेमाल करता था।
विश्व विख्यात काव्य रचना शाहनामा की रचना करने वाले महान ईरानी कवि फिरदौसी ने, ईरानियों में शिकार की रूचि के पुख्ता सूबूत पेश किये हैं क्योंकि इस काव्य रचना की विभिन्न रोचक कहानियों में शिकार के तरीकों और उसकी शैलियों और हथियारों और सामानों का विस्तार से उल्लेख किया गया है जिन्हें पढ़ कर इतना समझा जा सकता है कि शिकार ईरानी राजाओं के लिए गौरव की बात थी और फिरदौसी के अनुसार तो शिकार, राजाओं की शोभा है और उन्हें अपना सिंहासन बचाने के लिए शिकार और कुश्ती जैसी कलाओं का सहारा लेकर अपनी शक्ति का लोहा मनवाना पड़ता है।
जब ईरान की संस्कृति व सभ्यता में शिकार का इतना महत्व है तो फिर ईरानी संस्कृति का अभिन्न अंग समझे जाने वाले क़ालीन इससे कैसे अछूते रह सकते थे और शायद यही वजह है कि ईरानी कालीनों का एक अत्याधिक लोकप्रिय डिज़ाइन शिकारगाह है। यदि इतिहास पर नज़र दौड़ाई जाए तो कालीनों पर शिकारगाह के दृश्यों का प्रयोग हख़ामनशी साम्राज्य में आरंभ हुआ जो पांच सौ साल ईसापूर्व में था मतलब ईरानी कालीनों पर शिकारगाह के डिज़ाइनों का प्रयोग आज से ढाई हज़ार वर्ष पहले से आरंभ हुआ। इस प्रकार की डिज़ाइनों में कालीन पर शिकारगाह का चित्रण किया जाता और उसमें पेड़ पौधे, जानवर जैसी वह सारी चीज़ें देखी जा सकती हैं जो जंगल में शिकार के लिए उपयुक्त जगहों पर होती हैं। हख़ामनशी काल में बुने गये एसे कालीन और दरी मिलती है जिस पर शिकार गाह का चित्र है। यही नहीं पत्थरों पर भी शिकारगाह के डिज़ाइन मिलते हैं जो इसी काल से संबंधित हैं।
शिकारगाह के शुद्ध और प्राचीन ईरानी डिज़ाइनों में शिकार का चित्रण इस प्रकार से किया जाता था कि उसमें राजा को शिकार करते दिखाया जाता था। अलबत्ता वह इस अवस्था में भी ताज और तरह तरह के आभूषण पहने रहता। राजा के साथ दूसरे शिकार, सेवक यहां तक कि उसकी दासियों और रानियों को भी देखा जा सकता है। इस प्रकार के डिज़ाइनों में अधिकांश घने जंगल या मैदानी इलाके दिखाए जाते हैं किंतु कुछ डिज़ाइनों में पहाड़ी इलाकों का भी चित्रण किया गया है। इसी प्रकार बहुत से डिज़ाइनों में शेर को गाय और भैंस शिकार करते हुए भी दिखाया गया है। इस प्रकार के डिज़ाइनों में पेर्सपोलिस और ईरान के अन्य प्राचीन अवशेषों में देखा जा सकता है किंतु बाद में इस प्रकार के डिज़ाइनों में बाघ या शेर के हमले का चित्रण किया गया है।
शिकारगाह के प्राचीन डिज़ाइनों में एक व्यक्ति को जो वास्तव में राजा होता है शिकार करते दिखाया जाता था और अगर शिकारियों की संख्या एक से अधिक होती थी तो उन सब को शाही पोशाक और ताज के साथ दिखाया जाता था किंतु बीच में एक व्यक्ति ज़्यादा शान्दार पोशाक और आभूषणों के साथ नज़र आता था जिससे यह पता चलता था कि वह राजा या युवराज है।
सीरूस परहाम ईरानी शोधकर्ता हैं और ईरानी कालीनों में उनका बड़ा नाम है। उन्होंने ईरानी क़ालीनों के बारे में कई किताबें और आलेख लिखे हैं। उन्होंने बहुत से तथ्यों और दस्तावेजों तथा नमूनों से यह साबित किया है कि ईरानी क़ालीनों के अधिकांश डिज़ाइन काल्पनिक और सजावटी आयाम रखने के बावजूद एक संस्कृति और विशेष प्रकार की विचारधारा को दर्शाते हैं। वह कहते हैं कि ईरान में इस्लाम के प्रवेश के साथ ही यह विचाराधारा अधिक प्रतीकात्मक बन गयी और इसके परिणाम में डिज़ाइन की जटिल रेखाएं और आकृतियां कभी न ख़त्म होने वाली महसूस होती हैं किंतु यह जटिलता और अत्याधिकता वास्तव में एक भीतरी व्यवस्था व शैली पर आधारित होती है और दार्शनिकों के शब्दों में विविधता के मार्ग से एकता तक पहुंचने का तरीका है।
सीरूस परहाम अपने इस दृष्टिकोण को साबित करने के लिए ईरानी कला के विश्व विख्यात विशेषज्ञ रिचर्ड एटिंग्हावसेन के विचार को आधार बनाते हैं और कहते हैं कि ईरानी कालीन का डिज़ाइन, रंगों के प्रयोग, कल्पना शक्ति तथा आदर्शवाद जैसे तीन तत्वों पर आधारित है। वह ईरानी क़ालीनों के डिज़ाइनों में पेड़ पौधों और फूल पत्तियों की बहुतायत को उन लोगों की महत्वकांक्षा समझते हैं जिनके आस पास बंजर और सूखी ज़मीनें ज़्यादा होती हैं और इसी लिए कहा जाता है कि ईरानी क़ालीनों के डिज़ाइन, दर अस्ल हरियाली से भरे वसन्त ऋतु के कुछ दिनों को रंगों की सहायता से कालीनों पर हमेशा के लिए सुरक्षित कर लें।