अल्लाह के ख़ास बन्दे- 48
हमने कहा था कि हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम का बाकी रहने वाला सबसे महत्वपूर्ण कार्य वह शिक्षाकेन्द्र था जिसमें हज़ारों लोगों ने शिक्षा ग्रहण की थी।
इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने महत्वपूर्ण व्यक्तियों का प्रशिक्षण करके इस्लाम की विशुद्ध शिक्षाओं को इस्लामी क्षेत्रों में विस्तृत किया। आपने इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के पावन जीवन में आरंभ हुए सांस्कृतिक आंदोलन को परिपूर्णता के शिखर बिन्दु पर पहुंचाया। इस संबंध में इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम को जो सफलतायें प्राप्त हुई थीं उन्होंने न केवल शिया विद्वानों, विचारकों और बुद्धिजीवियों के ध्यान को आकर्षित किया बल्कि सुन्नी विद्वानों के ध्यान को भी आकर्षित किया और उनकी सराहना करने पर बाध्य कर दिया। जिन सुन्नी विद्वानों ने हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम की सराहना व प्रशंसा की है उनमें से हम कुछ के नामों की चर्चा कर रहे हैं।
मिस्र की राजधानी काहेरा में विदेशी भाषा विभाग के प्रोफेसर और अरबी भाषा के साहित्यकार डाक्टर हामिद कहते हैं कि 20 वर्ष से अधिक समय से मैं धर्मशास्त्र और विभिन्न इस्लामी ज्ञानों के इतिहास के बारे में अध्ययन कर रहा हूं। इस अवधि में पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम से अधिक किसी हस्ती ने मेरे ध्यान को आकर्षित नहीं किया और मेरा विचार है कि वे इस्लामी ज्ञानों के सबसे बड़े विद्वान और विचारक हैं जिन्होंने शीया और सुन्नी समस्त विद्वानों के ध्यान को अपनी ओर आकृष्ट किया है।
सुन्नी मुसलमानों के मध्य प्रसिद्ध हदीस बयान करने वाले मालिक बिन अनस कहते हैं" मैंने उपासना और ज्ञान की दृष्टि से जाफर बिन मोहम्मद सादिक से बेहतर व योग्य किसी को नहीं देखा।"
हनफ़ी संप्रदाय की बुनियाद रखने वाले सुन्नी मुसलमानों के प्रसिद्ध विद्वान अबू हनीफ़ा नोअमान बिन साबित हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम के बारे में कहते हैं" मैंने जाफर बिन मोहम्मद से अधिक धर्मशास्त्री किसी को नहीं देखा। अब्बासी ख़लीफा मंसूर के कहने पर एक दिन मैंने धर्मशास्त्र के कठिन से कठिन 40 प्रश्नों को तैयार किया ताकि खलीफा और दूसरे विद्वानों की उपस्थिति में उन्हें पेश करूं। मैंने इन प्रश्नों व समस्याओं को पेश किया और हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने उनका उत्तर इस प्रकार दिया कि सबने स्वीकार किया कि इमाम सादिक से बढ़कर कोई इस्लामी ज्ञानों का विद्वान व ज्ञाता नहीं है।
ध्यान योग्य बिन्दु यह है कि अधिकांश अत्याचारी शासक लेशमात्र भी ज्ञान में रूचि नहीं रखते थे। अगर कभी उनके दरबार में विद्वान और विचारक दिखाई पड़े हैं तो उनका प्रयोग वे हथकंडे के रूप में करके स्वयं को ज्ञान का प्रेमी दर्शाना चाहते थे या वे विद्वानों के शैक्षिक स्थान पर प्रश्न चिन्ह लगाना चाहते थे। अब्बासी खलीफा मंसूर ने इसी लक्ष्य के अन्तर्गत अबू हनीफा से कहा था कि वह धर्मशास्त्र के 40 कठिन प्रश्नों को तैयार करे और सबकी मौजूदगी में उन्हें इमाम सादिक अलैहिस्सलाम से पूछा जाये। वह यह सोच रहा था कि इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम इन प्रश्नों का उत्तर नहीं दे पायेंगे तो सबके सामने उनके ज्ञान का बोलबाला कम हो जायेगा परंतु उसकी शैतानी चालों के विपरीत हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने इन प्रश्नों का एसा जवाब किया कि सब हतप्रभ रह गये और सबने इमाम की प्रशंसा की। पवित्र कुरआन के अनुसार सत्य के विरोधी उसे पराजित करने के लिए चालें चलते हैं परंतु उन्हें इस बात का ज्ञान नहीं है कि ईश्वर बेहतरीन युक्ति करने वाला है।
“क़ामूसुल आलाम” नाम की एक किताब है जिसे ख़ैरुद्दीन ज़िरक्ली ने लिखा है। वह इस किताब में हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम के बारे में कहते हैं कि वह अपने समय में ज्ञान और सदगुणों में सर्वश्रेष्ठ थे और अबू हनीफा ज्ञान की उनकी सभाओं में हाज़िर होते थे और उन्होंने इमाम सादिक अलैहिस्सलाम के विदित व निहित ज्ञानों से लाभ उठाया है। इमाम सादिक अलैहिस्सलाम रासायनिक विज्ञान सहित दूसरे समस्त ज्ञानों में दक्ष थे। जिन लोगों ने इमाम सादिक अलैहिस्सलाम के ज्ञान से लाभ उठाया है उनमें से एक रासायनिक विज्ञान के जनक जाबिर बिन हय्यान थे।
हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ज्ञान में अनुदाहरणीय होने के अलावा उपासना, तक़वा अर्थात ईश्वरीय भय और साधारण जीवन व्यतीत करने में उनका कोई उदाहरण नहीं था। वह समस्त नैतिक सदगुणों से सुसज्जित थे। इस प्रकार से कि उनमें सबसे प्रसिद्ध नैतिक गुण यह था कि उन्हें सादिक़ अर्थात सच बोलने वाला कहा जाता था। मिस्र के प्रसिद्ध लेखक डाक्टर अहमद अमीन कहते हैं” इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम शीया ही नहीं बल्कि विभिन्न कालों में भी सबसे बड़े धर्मशास्त्री थे।
“दायरतुल मआरिफ अलकर्नल इशरीन” नामक इंसाइक्लोपीडिया के लेखक फरीद वजदी कहते हैं कि इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम का जो शिक्षाकेन्द्र था हज़ारों विद्वान और छात्र उसमें प्रतिदिन आते थे और हदीस, अर्थात कथन, तफसीर अर्थात पवित्र कुरआन की व्याख्या और दर्शन शास्त्र के प्यासे विद्वान इमाम सादिक अलैहिस्सलाम की ज्ञान की सभाओं में भाग लेते थे। अधिकांश अवसरों पर दो हज़ार और कभी- कभी चार हज़ार प्रसिद्ध विद्वान उनकी ज्ञान की सभाओं में भाग लेते थे।
हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम की महान हस्ती इस प्रकार की थी कि केवल शीया विद्वान ही नहीं बल्कि सुन्नी विद्वान, सूफी, अध्ययनकर्ता, धर्मशास्त्री, साहित्यकार यहां तक कि ईश्वर और प्रलय के दिन का इंकार करने वाले भी आपके ज्ञान की सभाओं में भाग लेने के लिए आतुर रहते थे।
प्रसिद्ध मिस्री लेखक, शायर और साहित्यकार अब्दुर्रहमान अश्ररक़ावी इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम के बारे में लिखते हैं” हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम के समय के लोग उनसे दोस्ती और प्रेम करने पर एकमत थे क्योंकि उनकी सोच बहुत ऊंची थी वे खुला हुआ दिल, चेहरे पर मुस्कान, मृदुभाषी और भले कार्य अंजाम देने में सबसे आगे रहते थे। समस्त दबावों और सीमाओं के बावजूद लोगों को एकेश्वरवाद और अच्छी नसीहतों के साथ इस्लाम को स्वीकार करने के लिए आमंत्रित करते थे।
इस्लामी जगत के एक विद्वान मोहम्मद बिन तलहा शाफेई हैं। उन्होंने "मतालिबुस्सूऊल फी मनाकिबे आले अर्रसूल" नाम की एक किताब लिखी है। वह इस किताब में हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम की महत्वपूर्ण विशेषताओं के बारे में लिखते हैं" जाफ़र बिन मोहम्मद अहले बैत के महान विद्वान हैं वह बहुत से ज्ञानों में दक्ष थे, वह बहुत उपासना करते थे और वह सदैव ईश्वर का गुणगान किया करते थे, कुरआन की तिलावत बहुत अधिक करते थे और उसके अर्थों के बारे में बहुत चिंतन- मनन करते थे, ईश्वरीय किताब के समुद्र से वह अनमोल मोतियां निकालते थे। उसमें आश्चर्य चकित करने वाली बातों को वह स्पष्ट करते थे। अपने समय को विभिन्न उपासनों में बांट रखा था। उनका प्रकाशमयी व तेजस्वी चेहरा लोगों को परलोक की याद में डाल देता था। उनकी बातों को सुन कर लोग दुनिया और उससे संबंधित चीज़ों से विरक्त हो जाते थे। उनका अनुसरण स्वर्ग में जाने का कारण बनता। उनके तेजस्वी चेहरे से यह बात स्पष्ट थी कि वह पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र हैं। उनकी विशेषताओं और सदगुणों की गणना नहीं की जा सकती। उनके हवाले से बहुत अधिक रवायतें और हदीसें आयी हैं और इस्लामी जगत के बहुत से विद्वानों ने उनके ज्ञान के सागर से अपनी प्यास बुझाई है।
ईश्वर की कृपा से हम हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम के जीवन के शैक्षिक, सामाजिक और राजनीतिक पहलुओं पर प्रकाश डाल सके और इस बात को ध्यान में रखते हुए हम कह सकते हैं कि हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम विस्तृत पैमाने पर धार्मिक गतिविधियों के साथ राजनीतिक मंच पर भी सक्रिय थे। हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम की शैली इस बात को स्पष्ट करने वाली है कि इस्लाम का मजबूत धर्मशास्त्र उस समय मानव समाज में प्रभावी भूमिका निभा सकता है जब समस्त क्षेत्रों में उसे व्यवहारिक बनाया जाये और वह हर समय की बुनियादी ज़रूरतों का जवाब दे सके। इस्लामी धर्म शास्त्र को चाहिये कि वह साम्राज्य के मुकाबले में डट जाये, उसकी वास्तविकता को स्पष्ट कर दे और उसके षडयंत्रों को निष्क्रिय कर दे और जनांदोलनों का समर्थन करे।
ईरान की इस्लामी व्यवस्था के संस्थापक स्वर्गीय इमाम खुमैनी ने हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम के सदाचरण की गहराइयों को बहुत अच्छी तरह समझा था। वह कहते हैं" इजतेहाद में समय और स्थान की पहचान दो महत्वपूर्ण चीज़ें हैं। मुजतहिद अर्थात धर्मशास्त्री को अपने समय की समस्याओं का ज्ञान होना चाहिये। उसे इस बात का भी ज्ञान होना चाहिये कि विश्व में जो संस्कृति प्रचलित है उसके संबंध में क्या शैली अपनाई जाये? उसके अंदर दूरदर्शिता होनी चाहिये और राजनीतिक पहचान एक मुजतहिद की विशेषता है। उसके अंदर इस्लामी यहां तक कि ग़ैर इस्लामी समाज के मार्ग दर्शन की भी क्षमता होनी चाहिये और मुजतहिद में निष्ठा और ईश्वरीय भय के अलाव अच्छे प्रबंधन एवं युक्ति की योग्यता भी होनी चाहिये।
इस बात में कोई संदेह नहीं है कि जिस तरह से अब्बासी शासक हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम के धर्मशास्त्र के व्यवहारिक होने से भयभीत थे उसी तरह इस समय की वर्चस्वादी सरकारें भी इस्लाम की विशुद्ध शिक्षाओं एवं धर्मशास्त्र के प्रचार- प्रसार व संचालित होने से भयभीत हैं। वर्चस्ववादी सरकारें धर्मभ्रष्ट वहाबी जैसे सम्प्रदायों का गठन करके, इस्लामी जगत में फूट डालकर, पवित्र कुरआन को जलाकर, पैग़म्बरे इस्लाम की छवि को खराब दिखाकर, निर्दयता के साथ मुसलमानों की हत्या करके न्याय, प्रेम और शांति के ईश्वरीय धर्म की छवि को विश्व में खराब करके पेश करने की चेष्टा में हैं।
हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम फरमाते हैं" इससे पहले कि हमारे दुश्मन तुम्हारी संतान के दिलों को गुमराह करने वाली शिक्षाओं से भर दें हमारी शिक्षाओं से अपनी संतान को अवगत कराओ। हम उन लोगों से प्रेम करते हैं जो समझदार, धार्मिक बोध रखने वाले, सच्चे और वफादार हों। हमारे शीया सही रास्ते पर चलने वाले, ईश्वरीय भय रखने वाले, अच्छा कार्य करने वाले, ईमान वाले और सफलता व मोक्ष प्राप्त करने वाले हैं। सबसे अच्छे मेरे वे भाई हैं जो हमारी कमियों व दोषों को हमें उपहार स्वरूप देते हैं। मंसूर अब्बासी ने इमाम को जो ज़हर दिलवाया था उसके कारण उनकी तबीयत बहुत खराब हो गयी थी और उनके जीवन के अंतिम क्षण थे तो इमाम ने अपने परिजनों को एकत्रित किया और फरमाया" हमारी शफ़ाअत उस व्यक्ति तक नहीं पहुंचेगी जो नमाज़ को हल्का समझेगा।