Sep २९, २०१८ १४:२७ Asia/Kolkata

अधिकांश लोगों के जीवन में बहुत से मूल और संयुक्त सवाल होते हैं।

साधारण लोगों से लेकर विशेष लोग और बुद्धिजीवी तक अपने जीवन के किसी न किसी चरण में सवालों का सामना करते हैं और कई बार उन सवालों की अनदेखी के बाद भी कभी न कभी उन सवालों के जवाब के बारे में उन्हें सोचना पड़ता है। इस सृष्टि की रचना, उसके रचयिता, और यह कि क्या इस रचना में रचयिता के चिन्ह हैं जैसे सवालों के बारे में ज़रूर सोचते हैं। इन सवालों को मनुष्य के मन में पैदा होने वाले मूल प्रश्नों में शामिल समझा जाता है। दुनिया के विभिन्न मतों और धर्मों में इन्सानों के इन बुनियादी सवालों के जवाब दिये गये हैं । यहां पर यह बात भी विचार योग्य है कि इ्स्लाम धर्म ने सभी को सृष्टि में विचार व चिंतन करने का निमत्रंण दिया है और स्वंय भी सृष्टि के बारे में  विचारधारा पेश की है जिस पर चिंतन किया जा सकता है। इस्लामी बुद्धिजीवियों ने , इस्लामी शिक्षाओं, कुरआने मजीद की आयतों और हदीसों के आधार पर इस सृष्टि पर चिंतन किया और इन सवालों का उत्तर खोजने का प्रयास किया कि हमारे आस पास की चीज़ें किस हद तक रचयिता के अस्तित्व का पता देते हैं।

 

पिछली चर्चाओं में हमने बताया था कि  ईश्वरीय रचनाओं के बारे में चिंतन , ईश्वर की पहचान का एक मार्ग है । इन्सान इस दुनिया की विभिन्न चीज़ों को देख कर और उन पर विचार करके निश्चित रूप से ईश्वर तक पहुंच सकता है हालांकि लोग अपने आस पास मौजूद चीज़ों पर विचार नहीं करते और वह सब उनके लिए सामान्य सी चीज़ हो जाती है जबकि उन सब में ईश्वर के चिन्ह मौजूद होते हैं। उदाहरण स्वरूप हम सब एक ही आकाश के नीचे रहते हैं और हम सब एक ही सूरज से रौशनी लेते हैं, हम जब भी चांद की बात करते हैं तो चांद अपने विशेष रूप के साथ हमारी नज़रों के सामने घूम जाता है । हम सब, सर्दी, गर्मी, बसन्त जैसे मौसमों का अनुभव प्राप्त करते रहते हैं लेकिन क्या हम सब इन सारी चीज़ों की रचना के बारे में भी सोचते हैं? क्या हम सब यह जानने की कोशिश करते हैं कि यह सारी चीज़ें कैसे अस्तित्व में आईं? और उन्हें किस ने बनाया है? क्या कभी हम ने सोचा है कि चांद व सूरज के होने या न होने का हमारे जीवन पर क्या प्रभाव पड़ सकता है? यह बदलते मौसम क्या कहते हैं?

यदि हम अपने सिर के ऊपर देखें और आकाश पर नज़र दौड़ाएं तो एक रोचक चीज़ हमें जो दिखायी देती है वह आकाश का रंग है। यह जो आसमान का रंग होता है वह आंखों की रौशनी के लिए सब से अच्छा रंग है। यहां तक कि बहुत से डॅाक्टरों का कहना है कि आंखों की रौशनी बढ़ाने के लिए आकाश को देखना चाहिए। हमें सोचना चाहिए कि ईश्वर ने किस प्रकार इस रंग में आकाश को बनाया? हमें अच्छी तरह से मालूम है कि रौशनी या सफेद रंग को लगातार देखने से आंखों की रौशनी पर असर पड़ता है इसी लिए ईश्वर ने आकाश को एेसे रंग में बनाया है जो इन्सान की आंखों के लिए हानिकारक नहीं बल्कि लाभदायक है क्योंकि आकाश हमेशा इन्सान के ऊपर रहता है अब अगर किसी एेसे रंग में होता जो उसकी आंखों के लिए हानिकारक होता तो क्या होता?

 

आकाश में ही रोज़ उगने और डूबने वाले सूरज पर भी ध्यान दें । अगर  मान लें सूरज निकलना ही बंद हो जाए तो क्या होगा?  दुनिया में जीना मुश्किल हो जाएगा और बहुत सी सुन्दरताओं का निशान भी नज़र नहीं आएगा। रंगों की सारी सुन्दरता , सूरज के प्रकाश से ही है। और यह सब कुछ तो विदित रूप से दिखायी देने वाले फायदे हैं वर्ना, इस धरती पर जीवन के लिए सूर्य और उसकी किरणों की भूमिका बेहद अहम है।

 

ईश्वर ने सूर्यास्त में भी बहुत कुछ रखा है और आप सोचें अगर सूरज डूबे ही न तो धरती पर रहने वाले  रात के सुख से वंचित हो जाएगें और हमेशा सूरज के चमकते रहने से पेड़ पौधों का जीवित रहना कठिन हो जाता और चंद्रमा की उपयोगिता और सुन्दरता किसे नज़र आती? तो इस तरह से हम देखते हैं कि ईश्वर ने किस प्रकार चांद व सूरज को बनाया और धरती के लिए उनमें एक एेसी व्यवस्था रखी जिसके अंतर्गत वह निर्धारित समय पर अपनी जगह बदलते हैं और यह सब कुछ इन्सानों के भले के लिए है।

 

वैसे सूरज की कहानी उगने और डूबने तक ही नहीं है बल्कि उसकी गतिशीलता दिन , हफ्ते , महीने और साल बनाती है और सूरज की गति से ही, इस धरती पर सर्दी, गर्मी और बहार के मौसम आते जाते हैं। सूरज ही अनाज व फल उगाता व पकाता है  और इसी सूरज की मदद से ही इन्सान दिन व महीनों व हिसाब रखता है , अपनी और दूसरो की आयु जोड़ता घटाता है क्योंकि सूरज की गति निर्धारित होती है और उसमें बदलाव नहीं आता तो क्या यह सोचने की बात नहीं है कि इस प्रकार की व्यवस्था उसमें किसने रखी? इस दुनिया में बहुत से लोग हैं जो यह कहते हैं कि यह सब कुछ स्वंय ही अस्तित्व में आ गया है और स्वंय ही इतनी सूक्ष्म व्यवस्था बन गयी है, स्वंय ही रात दिन बदलते हैं सूरज  चांद और सितारों की चाल , बदलते मौसम, अनाज का उगना, फसलें सब  कुछ खु्द ही होता है तो सवाल यह है कि यह लोग, पार्क में लगे फव्वारे के बारे में क्यों इस तरह की बात नहीं करते? यदि हम यह कहें कि पार्कों में पेड़ पौधों को सींचने और उसकी सुन्दरता बढ़ाने वाले फव्वारों को किसी ने नहीं बनाया और पार्कों में पानी पहुंचाने के लिए वह खुद से ही बन गये तो लोग यह बात कहने वालों के बारे में क्या सोचेंगे?

 

जब इस दुनिया की साधारण सी चीज़ के लिए  किसी बनाने वाले की ज़रूरत है तो फिर खुद दुनिया के लिए किसी बनाने वाले की ज़रूरत नहीं है ? इस दुनिया की ऐसी व्यवस्था, इतनी सूक्ष्मता और एेसी बारीकी फिर भी यह सब कुछ खुद से बन गया ? ज़रा सोचें ज़रा सा इस व्यवस्था में गड़बड़ी हो जाए तो क्या हो? मौसम में बदलाव और पर्यावरण जो इन्सानों के हाथ में उसमें ज़रा सा परिवर्तन किस प्रकार से विनाश का कारण बन रहा है ? तो यदि चांद सूरज और तारों की व्यवस्था में गड़बड़ी हो जाए तो क्या होगा ?

 

सच्चाई यह है कि यह सब कुछ एक सर्व सक्षम ईश्वर की शक्ति से चल रहा है यह व्यवस्था यह रचना और दुनिया और सारे प्राणी हर चीज़ उसी ईश्वर की ओर संकेत करती है जिसने उन्हें बनाया, और जो उन्हें चला रहा है यदि वह न होता तो कुछ भी न होता और यदि सब कुछ है तो इसका मतलब यह है कि इस दुनिया का कोई रचयिता है जो बहुत की कृपालु है और उसकी की कृपा से यह व्यवस्था चल रही है और जीव जन्तु और मानव तथा हर प्राणी जीवित है। (Q.A.)

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