Oct ०७, २०१८ १५:४२ Asia/Kolkata

हम मस्जिद के महत्व पर चर्चा करते आए हैं।

हम पहले भी बता चुके हैं कि अपने आरंभ से ही मस्जिद, उपासना स्थल के अतिरिक्त मुसलमानों की अन्य गतिविधियों का भी केन्द्र रही है।  पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (स) अपने काल में ईश्वरीय आदेशों के अतिरिक्त मस्जिद में सामाजिक और शैक्षिक गतिविधियां भी अंजाम देते थे।  सरकार के संचालन तथा शत्रुओं से युद्ध की योजना भी मस्जिद में ही बनाई जाती थी।  वास्तव में इस्लाम के आरंभिक काल में मस्जिदें सास्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, ज्ञान और न्याय संबन्धि गतिविधियों का केन्द्र रही हैं।

वर्तमान समय में पूरी दुनिया में मस्जिदें, इस्लाम के वास्तविक चेहरे को प्रतिबिंबित करने के लिए आध्यात्मिक केन्द्रों के रूप में सक्रिय हैं।  मस्जिद वास्तव में आध्यात्म की प्राप्ति के लिए सीढ़ी की हैसियत रखती है।  यह मनुष्य की आध्यात्मिक आवश्यकताओं को पूरा करती है।  मस्जिद की जो विशेषताए हैं वह वास्तव में आध्यात्मिक प्रशिक्षण का उपयुक्त स्थल है।  यहां पर ईश्वर से निःस्वार्थ भाव से संपर्क स्थापित किया जा सकता है।  वास्तविक इस्लाम का प्रचार भी यहीं से हुआ है।  मनुष्य को उच्चता के शिखर तक पहुंचाने में मस्जिद का बहुत महत्व है।  यहीं से व्यक्ति और समाज दोनों का आध्यात्मिक प्रशिक्षण ही किया जाता है।

मस्जिद की इन तमाम विशेषताओं के बावजूद यूरोपीय देशों में मस्जिद के विरुद्ध दुश्मनी बहुत बढ़ी है।  जैसे-जैसे वहां पर तेज़ी से इस्लाम फैल रहा है उसी अनुपात में मस्जिदों की संख्या में भी वृद्धि हो रही है।  यूरोप में कुछ स्थानों पर लोग मस्जिद के निर्माण का भी विरोध करने लगे हैं।  विरोधी की आस्था के सम्मान के साथ विभिन्न संस्कृतियों का सम्मान का परिणाम यह है कि मस्जिद जैसे धार्मिक स्थल भी अपनी गतिविधियां अंजाम देते रहें।  यह धार्मिक संस्कारों के साथ ही धर्मों के बीच संवाद और संस्कृतियों को समझाने का उपयुक्त स्थल भी है।  ग़ैर मुसलमानों को चाहिए कि वे इस्लामोफ़ोबिया के प्रचार से बचते हुए उनसे निकट हों और उनकी आस्था एवं उपासना से निकट से अवगत हों।  वे लोग मुसलमानों से उनकी आस्था के बारे में विचार-विमर्श भी कर सकते हैं।

पेरिस की जामा मस्जिद, फ़्रांस की सबसे महत्वपूर्ण मस्जिद है।  यह यूरोप की तीसरी सबसे बड़ी मस्जिद है।  पेरिस की जामा मस्जिद को उन मुसलमानों की याद में बनाया गया है जिन्होंने प्रथम विश्व युद्ध में फ़्रांस की जनता की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहूति दी थी।

सन 1895 ईसवी में पहली बार पेरिस में जामा मस्जिद बनाने का प्रस्ताव पेश किया गया था।  इस प्रस्ताव का उल्लेख फ्रांस में रहने वाले वाले अफ्रीक़ियों के आयोग में किया गया।  पैसों की कमी के कारण यह प्रस्ताव रद्द हो गया और व्यवहारिक न हो सका।  प्रथम विश्व युद्ध के बाद मोरक्को के एक मुसलमान "सैयद कद्दूर बिन क़िबरीत" ने तत्कालीन फ़्रांसीसी सरकार के सामने मस्जिद बनाने का प्रस्ताव पेश किया।  उस समय वे फ़्रांस में वक़्फ़ की सम्पत्ति के ज़िम्मेदार थे।

उधर फ़्रांस की सरकार पहले से ही यह चाहती थी कि प्रथम विश्वयुद्ध में जर्मनी के आक्रमण के मुक़ाबले में जिन मुसलमानों ने हमारा साथ दिया था उनका सम्मान करने और वहां पर रहने वाले मुसलमानों को प्रसन्न करने के लिए किसी मस्जिद का निर्माण किया जाए।  इस प्रकार सन 1922 में फ़्रांस की संसद ने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए पांच लाख फ्रांक विशेष किये।  पेरिस की एक संस्था ने वहां के बोटोनिकल पार्क के निकट 7500 स्कवाएर मीटर की ज़मीन, मस्जिद बनाने के उद्देश्य से दे दी।  इस मस्जिद के निर्माण में फ़्रांस सरकार की सहायता के अतिरिक्त वहां के मुसलमानों ने भी खुलकर सहायता की।  यह मुसलमान अधिकतर अल्जीरिया, ट्यूनीशिया और मोरक्को के रहने वाले थे।

 

इस प्रकार 15 जूलाई सन 1926 को फ़्रांस के तत्कालीन राष्ट्रपति Gaston Doumergue के सत्ताकाल में पेरिस की जामा मस्जिद का उद्घाटन हुआ था।  पेरिस की जामा मस्जिद के पहले इमाम, "अहमद अलअलवी" थे।  सन 1957 तक इस मस्जिद की ज़िम्मेदारी फ़्रांसीसियों के हाथों में थी।  इसी साल अल्जीरिया के एक नागरिक "हम्ज़ा अबूबक्र" को पेरिस जामा मस्जिद का प्रभारी नियुक्त किया गया।  अपने रिटायरमेंट के बाद उन्होंने अपनी ज़िम्मेदारी, अल्जीरिया की सरकार के हवाले कर दी।  फ़्रांसीसियों ने इस बात को अपने देश में विदेशी हस्तक्षेप के रूप में मानते हुए इसका खुलकर विरोध किया।  बाद में सन 1992 में एक फ़्रासीसी को पेरिस की जामा मस्जिद का ज़िम्मेदार नियुक्त कर दिया गया।

पेरिस की जामा मस्जिद केवल एक मस्जिद ही नहीं बल्कि एक इस्लामी संस्था के रूप में भी काम कर रही है जो वहां की अन्य मस्जिदों का संचालन करती है।  यहां पर इस्लाम को समझाने के लिए क्लासेज़ लगते हैं।  पेरिस की जामा मस्जिद का "ग़ज़ाली" नामक केन्द्र भी इस्लामी शिक्षाओं का प्रचार व प्रसार करता है।  फ़्रांस की कई मस्जिदों के इमाम इसी इस्लामी शिक्षा केन्द्र से अपनी पढ़ाई पूरी करके अलग-अलग रूप में अपनी इस्लामी ज़िम्मेदारियां निभा रहे हैं।  इस मस्जिद में शिक्षा के अतिरिक्त धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक और अन्य प्रकार की गतिविधियां अंजाम दी जाती हैं।  यहां से निर्धनों की सहायता का काम भी किया जाता है।  बेसहारा लोगों की अलग से सहायता की जाती है।  यहां पर कांफ्रेंसें करवाई जाती हैं तथा ईश्वरीय धर्मों के अनयाइयों के बीच शास्त्रार्थ भी होते हैं।

 

पेरिस की जामा मस्जिद को फ़्रांस के एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक एवं राजनैतिक केन्द्र के रूप में देखा जाता है।  यह मस्जिद विभिन्न देशों के प्रतिनिधियों के हाथ में थी।  इस मस्जिद के दरवाज़े फ़्रांसीसी तथा ग़ैर फ़्रांसीसी लोगों के लिए हमेशा खुले रहते हैं।  अलक़ाएदा के तत्वों की ओर से पेरिस के एक सुपर मार्केट पर हमले की वर्षगांठ पर वास्तविक इस्लाम से अवगत कराने के उद्देश्य से पेरिस की जामा मस्जिद में मुसलमानों और ग़ैर मुसलमानों की वार्ताएं आयोजित कराई गई थीं।

पेरिस की जामा मस्जिद, फ़्रांस की एक महत्वपूर्ण धार्मिक इमारत है।  इस मस्जिद की वास्तुकला को "मुदज्जन" वास्तुकला के नाम से जाना जाता है।  मुदज्जन नाम की वास्तुकला 12वीं ईसवी से 15वीं ईसवी तक यूरोप के पुनरजागरण काल के दौरान स्पेन और पुर्तगाल में प्रचलित थी जिसे मुसलमान वास्तुकार बनाते थे।  पेरिस की जामा मस्जिद में बड़ा हाल, बड़े आंगन और ऊंची मीनारे हैं।  इसके हाल में संगेमरमर के कई स्तंभ हैं।  इसकी दीवारों पर बहुत ही सुन्दर ढंग से प्लास्टर आफ पेरिस से काम किया गया है।  दीवार पर सुन्दर टाइल भी लगे हुए हैं।

 

पेरिस की जामा मस्जिद का हाल काफ़ी बड़ा है।  अधिक नमाज़ी होने के बावजूद यहां पर जगह कम नहीं पड़ती।  इस मस्जिद में मदरसा, पुस्तकालय, और कांफ़्रेस हाल भी है।  इससे लगा हुआ एक रेस्टोरेंट और सुपर मार्केट भी है।  यहां पर पूरे साल इस मस्जिद को देखने के लिए बड़ी संख्या में दर्शक आते हैं।  मस्जिद से लगे हुए रेस्टोरेंट में अल्जीरिया, ट्यूनीशिया और मोरक्को की स्थानीय डिशें भी उपलब्ध हैं।

यहां पर इस बात का उल्लेख आवश्यक है कि फ़्रांस, यूरोप के उन देशों में से है जहां की सरकार मुसलमानों के लिए हर रोज़ सीमितताएं पैदा कर रही है।  यह देश लंबे समय से पश्चिम में इस्लामोफ़ोबिया के मुख्य केन्द्र के रूप में सक्रिय रहा है।  फ़्रांस के विश्वविद्यालयों में हिजाब पर प्रतिबंध तथा पैग़म्बरे इस्लाम (स) के कार्टून का कई फ़्रांसीसी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन वहां की इस्लाम दुश्मनी के अन्य उदाहरण हैं।  विशेष बात यह है कि फ्रांस में गिरजाघरों की तुलना में मस्जिदों की संख्या अधिक बताई जाती है।  फ़्रांस की एक अन्य मस्जिद का नाम है, "मस्जिदे सहाबा"।  यह मस्जिद पेरिस के Creteil क्रेटिल क्षेत्र में स्थित है।  इस मस्जिद के बारे में न्यूयार्क टाइम्स ने अपनी एक रिपोर्ट में लिखा था कि पेरिस के हृदय में एक भव्य इमारत मौजूद है।  यह एसी मस्जिद है जिसे इस्लाम के समर्थकों या प्रशंसकों का केन्द्र भी कहा जा सकता है।  प्रतिवर्ष इस मस्जिद में लगभग एक सौ पचास फ़्रांसीसी, इस्लाम स्वीकार कर रहे हैं।

फ़्रांस की एक अन्य मस्जिद का नाम Givors Mosquee है यह एसी मस्जिद है जो फ़्रांस में शिया एवं सुन्नी मुसलमानों के बीच एकता का प्रतीक है।  कहते हैं कि ईरान की इस्लामी क्रांति की सफतला के आरंभिक वर्षों में मोरक्को के शिया मुसलमानों की पहल पर इस मस्जिद का निर्माण किया गया।  यह मस्जिद फ़्रांस के दक्षिणी क्षेत्र लियोन में बनाई गई है।  इस क्षेत्र में रहने वाले मुसलमानों ने ईरान की इस्लामी क्रांति से प्रभावित होकर इस मस्जिद को बनाया था और यह अब शिया तथा सुन्नी मुसलमानों के बीच एकता के प्रतीक के रूप में प्रसिद्ध हो गई है।

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