Oct १०, २०१८ १२:४७ Asia/Kolkata

ज़्यादातर लोग अपने जीवन में कुछ सवालों का जवाब चाहते हैं।

इसमें साधारण लोगों से लेकर विचारक भी शामिल हैं। लोगों को अपने जीवन के विभिन्न चरणों में कुछ ऐसे सवालों का सामना होता है कि अगर उन्होंने उसकी अनेक बार अनदेखी की हो लेकिन अंत में उसके बारे में सोचने पर मजबूर हो जाते हैं। जैसे सृष्टि और सृष्टि के रचयिता के बारे में यह सवाल ज़्यादातर लोगों के मन में उठता है कि क्या इस सृष्टि में किसी रचयता की मौजूदगी के चिन्ह हैं। ये इंसान के मूल सवालों में शामिल है। दार्शनिक मत, इब्राहीमी और ग़ैर इब्राहीमी धर्मों ने भी इस तरह के सवालों के जवाब दिए हैं।

इस्लाम ने सभी को सृष्टि के बारे में चिंतन मनन करने के लिए प्रेरित किया है और सृष्टि के बारे में दृष्टिकोण पेश किया है।

सृष्टि की सच्चाई के बारे में जो बातें हम आपको बताने जा रहे हैं उसमें वरिष्ठ धर्मगुरुओं के विचारों व बयानों के ज़रिए आपको सृष्टि के बारे में दोबारा सोचने के लिए प्रेरित करेंगे और इस सवाल का जवाब देने की कोशिश करेंगे कि हमारे आस-पास मौजूद चीज़ें एक रचयिता के वजूद का पता देती हैं।

हम अपने आस-पास की चीज़ों के बारे में जिनसे हमारा हमेशा सरोकार रहता है, बहुत कम ध्यान देते हैं। हमे अपने आस-पास की चीज़ों के बारे में अधिक ध्यान देना चाहिए। हम आपका ध्यान उस हवा की ओर खींचना चाहते हैं जिनमें हम सांस लेते हैं। आप गर्मी और सर्दी की कल्पना करें और इसके तापमान में होने वाले धीरे धीरे बदलाव के बारे में सोचिए। हमारी यह कोशिश होगी कि हम और आप अपने जीवन की सामान्य प्रक्रिया के दौरान सृष्टि की जिन आश्चर्यचकित करने वाली चीज़ों की अनदेखी करते हैं, उनके बारे में आपके दृष्टिकोण को बदलें और उनके बारे में सोचें। प्राकृतिक घटनाओं व आपदाओं के संदेश को समझें और उनके पीछे जो चीज़ मौजूद है उससे संपर्क बनाएं।

एक ऐसी हालत जिसे हम सब हमेशा महसूस करते हैं वह तापमान का बढ़ना और घटना है। गर्मी और सर्दी और उनके तापमान में अंतर की प्रक्रिया पूरी पृथ्वी पर महसूस की जा सकती है। इसी अंतर की वजह से ठंडे, गर्म और भूमध्यरेखीय क्षेत्र वजूद में आए हैं। दोनों तापमान में कमी, बढ़ोतरी और संतुलन की वजह से साल में विभिन्न प्रकार के मौसम वजूद में आए जो इंसान और प्रकृति के लिए बहुत लाभदायक हैं।                   

अगर आप इंटरनेट पर मौजूद स्रोतों के बारे में ढूंढें तो आपको सर्दी के बहुत से लाभ के बारे में जानकारी मिलेगी। मिसाल के तौर पर ठंडे मौसम में इंसान के दिमाग़ बेहतर ढंग से काम करता है। ठंडे मौसम से शरीर में कत्थई रंग की मौजूद वसा की मात्रा बढ़ जाती है। ठंडे मौसम में एलर्जी से पीड़ित लोग राहत महसूस करते हैं। शीत ऋतु में सूजन में कमा आती है। शीत ऋतु की ठंडक त्वचा को जवान रखने में सहायक होती है। इसी तरह ग्रीष्म ऋतु के भी अपने फ़ायदे हैं। गर्मी और सर्दी के मौसम के संबंध में एक बहुत अहम बिन्दु जिसकी ओर आपका ध्यान खींचना चाहते हैं वह यह कि यह दोनों धीरे धीरे एक दूसरे में दाख़िल होते हैं। जब गर्मी धीरे धीरे बढ़ती है तो ठंडक धीरे धीरे कम होती है और जब ठंडक धीरे धीरे बढ़ती है तो गर्मी धीरे धीरे कम होती है यहां तक कि इनमें से हर एक का तापमान बढ़ने और घटने की दृष्टि से अपने अंत तक पहुंच जाता है। अगर यही प्रक्रिया धीरे धीरे होने के बजाए अचानक होती, तो इंसान को नाना प्रकार की बीमारियों का सामना होता। बिल्कुल उसी तरह जैसे कोई इंसान एक गर्म हम्माम से निकल कर किसी ठंडी जगह पर तुरंत चला जाए तो उसे सिर दर्द सहित दूसरी समस्याओं का सामना होगा। सृष्टि के रचयिता ने यह व्यवस्था की है कि गर्मी और ठंडक धीरे धीरे बढ़ें और घटें, इसके पीछे सृष्टि की रक्षा करना उद्देश्य है। अगर इस प्रक्रिया में किसी प्रकार की व्यवस्था नहीं है तो दोनों अचानक क्यों नहीं आ जाते बल्कि धीरे धीरे आते हैं ताकि हर चीज़ सुरक्षित रहे।

हो सकता है कोई यह कहे कि तापमान का धीरे धीरे घटना बढ़ना, ज़मीन की सूरज से दूरी और निकटता की वजह से होता है। यह बात सही है लेकिन एक सवाल और पैदा होता है वह यह कि ज़मीन की परिक्रमा और उसकी दूरी सूरज से क्यों घटती बढ़ती है? जितना भी आप जवाब दें, एक नया सवाल सामने आता है। अंत में हम इस सच्चाई तक पहुंचते हैं कि यह सभी घटनाएं एक सुव्यवस्था के तहत घटती हैं। क्या यह कह सकते हैं कि सृष्टि का यह सूक्ष्म निरर्थिक बना है?    

                 

हमारे आस पास मौजूद हवा के ऐसे असर होते हैं जिनके बारे में ध्यान देने की ज़रूरत है। आवाज़, हवा में कोमल जिस्मों के घर्षण से वजूद में आती है और कानों तक पहुंचती है। लोग इसी आवाज़ की अपनी दिनचर्चा में मदद लेते हैं। लेकिन क्या आज तक आपने यह सोचा कि अगर बातचीत का असर काग़ज़ पर लिखावट की तरह होता तो हवा में क्या होता? अगर ऐसा होता तो पूरी हवा इससे भर जाती जिससे इंसान को हानि पहुंचती। आवाज़ का असर काग़ज़ पर लिखने के असर से ज़्यादा ख़तरनाक होता क्योंकि बातचीत में हम लिखने से ज़्यादा शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन तत्वदर्शी रचयिता ने इस हवा को गुप्त काग़ज़ क़रार दिया जो हमारी आवाज़ को उठाए फिरती है और पूरी दुनिया के इंसान की ज़रूरत को पूरी करती है। ऐसा लगता है मानो उसने हमारी बातों को मिटा दिया हो और फिर स्वच्छ व सफ़ेद काग़ज़ बन गयी हो।

हवा के संबंध में एक बहुत ही अहम बिन्दु यह है कि हवा का हम इंसानों के शरीर के जीवित रहने में निर्णायक योगदान है। सांस के ज़रिए हम हवा को अपने शरीर में ले जाते हैं जीवन चलता है। हवा बहुत दूर तक आवाज़ को पहुंचाती है। ख़ुशबू को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाती है। बहने वाली हवा भी हवा की एक क़िस्म है। हवा से शरीर ठंडा रहता है और यह बादलों को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाती है ताकि बादल इकट्ठा होकर बारिश करें जिससे सबका फ़ायदा हो और फिर बारिश के बाद बादल को तितर-बितर कर देती है। हवा ही एक फूल से दूसरे फूल तक पराग ले जाती है, नौकाओं को चलाती है, खाने को नर्म व खाने योग्य बनाती है, पानी को ठंडा और आग को भड़काती है, गीली चीज़ को सुखाती है। कुल मिलाकर यह कि ज़मीन पर मौजूद हर चीज को जीवित करती है। यह कह सकते हैं कि अगर हवा न होती तो उगने वाली चीज़ें मुर्झा जातीं, जानवर कमज़ोर हो जाते और संभव था कि हर चीज़ ख़राब हो जाए। फिर यही सवाल उठता है कि किसने किस ज्ञान के ज़रिए इन सब नेमतों को हमारे आस-पास मुहैया किया है? ये सब आश्चर्यचकित करने वाली चीज़ों का उद्देश्य क्या है? क्या अधिक ग़ौर नहीं करना चाहिए?

हमारे आस-पास सबसे निकट मौजूद एक गोचर वस्तु ज़मीन है। ज़मीन इतनी विराट है जिस पर असंख्य वनस्पतियां, जानवर और इंसान ज़िन्दगी गुज़ारते और उससे लाभान्वित होते हैं। अगर ज़मीन इतनी विशाल न होती तो किस तरह लोगों के घर, खेती, चरागाहें, जंगल, पेड़, औषधियां, असंख्या खदानों को अपने अंदर जगह देती।

ज़मीन का आकार भी ध्यान देने योग्य बिन्दु है। दिखने में लगता है कि ज़मीन नहीं हिल रही है और चीज़ों को स्थिर रखने के लिए बहुत उचित जगह है। लोग बड़ी आसानी से ज़मीन पर अपनी ज़रूरतों को पूरी करने के लिए कोशिश करते, सुकून से बैठते, आराम से सोते हैं और अपने काम के दौरान किसी तरह का कंपन महसूस नहीं करते, हालांकि हम सभी यह बात अच्छी तरह जानते हैं कि ज़मीन परिक्रमा कर रही है। लेकिन इस परिक्रमा से हमें कोई नुक़सान नहीं पहुंचता। ज़मीन गोलाकार होने के बावजूद, अंतरिक्ष में लटकी हुयी है। सर्वशक्तिमान ईश्वर ने गुरुत्वाकर्षण को पैदा किया ताकि हम ज़मीन पर सुकून से खड़े रह सकें हवा में लटके न हों।        

अगर ज़मीन में कंपन होता तो इंसान इमारत  न बना पाता। कोई भी उद्योग वजूद में न आता। अगर हमारे पैरों के नीचे की ज़मीन हिलती रहती, तो हमारे लिए ज़िन्दगी जीना मुश्किल हो जाता। ज़रा भूकंप के बारे में सोचिए। हालांकि भूकंप कुछ सेकन्ड के लिए होता है लेकिन भूकंप के समय लोग अपना घर और कार्यालय छोड़ कर बाहर निकल जाते हैं। अब अगर हमारे पैरों के नीचे ज़मीन हमेशा हिलती रहती तो क्या होता? क्या इंसान यह सवाल नहीं करता कि क्यों सृष्टि के रचयिता ने ज़मीन पर जीवन को इतना कठिन बना दिया है? तो धन्य है वह रचयिता जिसने सृष्टि को हमारे लिए बनाया। वह बहुत ही कृपालु व मेहरबान है। जिसने हमे असंख्य नेमतें दीं जिस पर हम उसका आभार व्यक्त करना चाहिए।

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