Oct १०, २०१८ १५:४४ Asia/Kolkata

संयुक्त राष्ट्रसंघ की महासभा के वार्षिक अधिवेशन में प्रतिवर्ष बहुत से देशों के राष्ट्राध्यक्ष भाषण देते हैं जिनमें अमरीका भी शामिल है।

सुरक्षा परिषद की वर्तमान अध्यक्षता अमरीका के पास है।  अमरीकी राष्ट्रपति ने महासभा की बैठक में अपने भाषण से पहले एलान किया था कि महासभा की बैठक की कार्यसूचि में ईरान का विषय शामिल है।

ट्रम्प ने अमरीका का राष्ट्रपति बनने से पहले अपने चुनावी अभियान के दौरान और अमरीकी राष्ट्रपति बनने के बाद सदैव ही परमाणु समझौते की आलोचना की है।  ट्रम्प ने परमाणु समझौते या जेसीपीओए को हमेशा ही एक ख़राब समझौता बताया है।  परमाणु समझौता ईरान तथा गुट पांच धन एक के बीच हुआ जिसमें अमरीका भी शामिल था अर्थात यह एक अन्तर्राष्ट्रीय समझौता है।  8 मई सन 2018 में अमरीका एकपक्षीय रूप में परमाणु समझौते से निकल गया।  परमाणु समझौते से निकलते समय डोनल्ड ट्रम्प ने घोषणा की थी कि नवंबर 2018 से ईरान के ख़िलाफ़ प्रतिबंध कड़े किये जाएंगे।

26 सितंबर 2018 को अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने सुरक्षा परिषद में अपने भाषण में ईरान के विरुद्ध अपने आरोपों को पुनः दोहराया।  ट्रम्प ने ईरान पर हिंसा फैलाने, आतंकवाद का समर्थन करने और परमाणु कार्यक्रम को गोपनीय ढंग से आगे बढ़ाने का आरोप लगाया।  ट्रम्प ने दावा किया कि अमरीका के जेसीपीओए से निकलने का मुख्य कारण यह है कि ईरान, परमाणु समझौते का दुरुपयोग कर रहा है।

ट्रम्प ने कहा कि नवंबर 2018 के पहले सप्ताह से ईरान की परमाणु गतिविधियों के बारे में अमरीकी प्रतिबंध लागू हो जाएंगे।  उन्होंने कहा कि इसके बाद अमरीका उसपर अधिक प्रतिबंध लगाएगा।  एसे प्रतिबंध जो हर समय के प्रतिबंधों से कड़े होंगे जो ईरान को प्रभावित करेंगे।  ट्रम्प ने कहा कि जो भी इन प्रतिबंधों में हमारा साथ नहीं देगा उसको दुषपरिणाम भुगतने होंगे।  अमरीकी राष्ट्रपति ने सुरक्षा परिषद के समस्त सदस्यों से मांग की है कि वे अमरीका का सहयोग करते हुए इस बात को सुनिश्चित बनाए कि ईरान कभी भी परमाणु बम बनाने की क्षमता पैदा न कर पाए।

इसके बाद डोनाल्ड ट्रम्प ने संयुक्त राष्ट्रसंघ के मुख्यालय में एक संवाददाता सम्मेलन में धमकी देते हुए कहा कि कंपनियों को अमरीका या ईरान में से किसी एक को चुनना होगा।  ईरान के संदर्भ में ट्रम्प ने दावा किया कि यह कोई महत्व नहीं रखता कि संसार के देशों के राष्ट्राध्यक्ष ईरान के बारे में क्या सोचते हैं।  उन्होंने कहा कि ईरानी मेरे पास आएंगे और समझौता करेंगे।  मैं सोचता हूं कि एसा ही होगा और सोचता हूं कि शायद एसा न भी हो। ट्रम्प ने आगे दावा किया कि अंततः ईरान, हमसे वार्ता के लिए विवश होगा।  ट्रम्प के इन बयानों की आलोचना ख़ुद अमरीका में की जा रही है।

पोलैण्ड में अमरीका के राजदूत डैनियल फ्राईड ने इस बारे में कहा है कि संयुक्त राष्ट्रसंघ में ट्रम्प का भाषण, इस बात पर बल था कि अमरीका, अपने मार्ग पर आगे बढ़ता रहेगा चाहे उसे अपने घटकों से संबन्ध विच्छेद करने ही क्यों न पड़ें।  इस संबन्ध में रूस के अधिकारियों ने कहा है कि संसार के बहुत से देश अमरीकी नीतियों के कड़े विरोधी हैं।  एसे में ट्रम्प ईरान के विरुद्ध संसार के देशों को एकजुट नहीं कर सकेंगे।  ट्रम्प के दावे और उनका व्यवहार यह बताता है कि ट्रम्प सरकार का मुख्य लक्ष्य ईरान की इस्लामी सरकार को गिराना है।

ईरान के राष्ट्रपति डाक्टर हसन रूहानी ने राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद में अपने भाषण में कहा है कि वे काम जो ट्रम्प की सरकार कर रही है, उन्हें इस बात के लिए आशवस्त कर दिया है कि वाशिग्टन, ईरान में सत्ता परिवर्तन कराना चाहता है।  उन्होंने कहा कि यह कितना हास्यास्पद है कि अमरीकी सरकार उस सरकार को गिराने की योजना को छिपा नहीं रही है जिसको उसने स्वयं की वार्ता का निमंत्रण दिया था।

अमरीकी राष्ट्रपति की अपेक्षा के विपरीत संयुक्त राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद के स्थाई और अस्थाई सदस्यों ने जेसीपीओए या परमाणु समझौते के संदर्भ में अमरीकी इच्छा के विरुद्ध परमाणु समझौते को सुरक्षित रखने का निर्णय लिया है।  वे सब इसे अन्तर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा में सहायक मान रहे हैं।  सुरक्षा परिषद की बैठक में कुछ देशों को छोड़कर अधिकांश देशों ने जेसीपीओए के बाक़ी रहने पर बल दिया।  वास्तव में यह सहमति, वाशिग्टन के लिए बहुत बड़ी शर्मिंदगी है।  क्या यह अपमान जनक नहीं है कि ट्रम्प की उपस्थिति में सुरक्षा परिषद की बैठक में बहुत से देशों ने ट्रम्प की इच्छा के विरुद्ध निर्णय लेते हुए परमाणु समझौते को बाक़ी रखने का फैसला किया? उन्होंने जेसीपीओए को अन्तर्राष्ट्रीय समझौतों का प्रतीक बताया।  सुरक्षा परिषद के चार स्थाई सदस्यों ने परमाणु समझौते का समर्थन करते हुए ईरान के विरुद्ध दबाव का विरोध किया।

फ़्रांस के राष्ट्रपति मैक्रां ने जेसीपीओए के प्रति ईरान की कटिबद्धता की ओर संकेत करते हुए कहा कि उनका देश परमाणु समझौते के बारे में अमरीकी व्यवहार का विरोधी है।  उन्होंने कहा कि इस अन्तर्राष्ट्रीय समझौते के बारे में मतभेद वाले विषयों पर चर्चा की जानी चाहिए।  फ़्रांसीसी राष्ट्रपति ने स्पष्ट किया कि एसा नहीं हो सकता कि पहले चरण में प्रतिबंधों को अपनाया जाए।  उन्होंने कहा कि हमें एसे वातावरण की आवश्यकता है जिसमें वार्ता भी संभव हो।  मैंक्रां ने आगे कहा कि अमरीका की ओर से प्रतिबंधों के कारण अब अविश्वास का संकट उत्पन्न हो गया है।  उन्होंने कहा कि ईरान अब भी परमाणु समझौते के प्रति वचनबद्ध है।

ब्रिटेन ने जो अमरीका का एक विश्वसनीय घटक है, ट्रम्प की नीतियों के विरूद्ध दृष्टिकोण अपनाया है।  ब्रिटेन की प्रधानमंत्री टेरेज़ा-मे ने ईरानकी ओर से परमाणु समझौते की पाबंदी का उल्लेख करते हुए कहा है कि हम उस अन्तर्राष्ट्रीय फ्रेम से बाहर नहीं जा सकते जिसने हमारी सुरक्षा को सुनिश्चित बनाया है।

चीन और रूस ने भी परमाणु समझौते का खुलकर समर्थन करते हुए ईरान के विरुद्ध दबाव की निंदा की है।  रूस के विदेशमंत्री सरगेई लावरोफ ने ईरान पर लगे प्रतिबंधों की ओर संकेत किया।  उन्होंने कहा कि रूस हर स्थिति में जेसीपीओए को सुरक्षित रखना चाहता है।  लावरोफ ने कहा कि जेसीपीओए का निरस्त होना विश्व की सुरक्षा के लिए गंभीर ख़तरा है।  चीन भी परमाणु समझौते का आरंभ से समर्थन करता आया है।  बीजिंग इस अन्तर्राष्ट्रीय समझौते को सुरक्षित रखने के साथ ही संसार के साथ ईरान के आर्थिक संबन्धों पर बल देता है।  चीन के विदेशमंत्री वांग यी ने अमरीका की ओर से ईरान के साथ आर्थिक संबन्ध तोड़ने के लिए डाले जा रहे दबाव का विरोध किया।

महासभा की बैठक के दौरान जब आलोचनाओं का क्रम आरंभ हुआ तो इनसे बचने के लिए अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प बैठक को अधूरा छोड़कर चले गए और संयुक्त राष्ट्रसंघ में अमरीकी प्रतिनिधि निकी हेली को इसकी ज़िम्मेदारी सौंप गए।  निकी हेली भी सदस्य देशों की कड़ी आलोचनाओं का सामना नहीं कर सकीं।  मीडिया ने इसे ट्रम्प के अलग-थलग होने की संज्ञा दी है।

वाल स्ट्रीट जरनल ने इस बारे में लिखा है कि ट्रम्प को सुरक्षा परिषद में इसके सदस्य देशों की ओर से परमाणु समझौते के समर्थन का सामना करना पड़ा।  यदि हम ग़ौर करें तो पता चलेगा कि सुरक्षा परिषद की बैठक, अमरीका के अलग-थलग होने तथा उसकी एकपक्षीय नीतियों की खुली पराजय सिद्ध हुई।  विशेषज्ञों का कहना है कि सुरक्षा परिषद की बैठक ने यह दर्शा दिया कि ईरान पर दबाव डालने की ट्रम्प की नीति को बहुत सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।  परमाणु शस्त्रों को नियंत्रित करने वाली संस्था के कार्यकारी अधिकारी कहते हैं कि मुझको इस बात का विश्वास हो चुका है कि ईरान विशेषकर परमाणु समझौते के संबन्ध में ट्रम्प की सरकार अलग-थलग होती जा रही है।

पश्चिमी टीकाकारों का कहना है कि ईरान के बारे में ट्रम्प की अतिवादी नीतियां संभवतः अमरीका को विश्व पटल पर अलग-थलग कर देंगी।  यूएसटूडे ने अपनी वेबसाइट पर लिखा है कि अमरीकी राष्ट्रपति चाहते हैं कि वे संयुक्त राष्ट्रसंघ को एसी स्थिति में छोड़ें कि जब ईरान को अलग-थलग करने की उनकी नीति को वैश्विक समर्थन मिल चुका हो।  टीकाकार चेतावनी देते हैं कि अमरीकी कार्यवाहियां, स्वयं उसके अलग-थलग होने का कारण बनेंगी।  फ़्रांस, ब्रिटेन और कई अन्य अमरीकी घटक देश यह सिद्ध कर चुके हैं कि वे किसी भी स्थिति में परमाणु समझौता छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं।  एसे में ट्रम्प और उनके सलाहकारों के भड़काऊ बयान, ईरान के बारे में मतभेद को अधिक बढ़ाएंगे।  सुरक्षा परिषद की बैठक में अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प को जो सुनने को मिला निश्चित रूप में उसकी आशा उनको थी ही नहीं।  संभवतः यही कारण है कि वे सुरक्षा परिषद की बैठक को अधूरा छोडकर ही बीच से उठकर चले गए।  यह बात मशहूर है कि ट्रम्प को अपनी आलोचना सहन करना बिल्कुल भी पसंद नहीं है।

रूसी ड्यूमा के उप संसद सभापति पीटर टालेस्टाय का मानना है कि अमरीका, ईरान के लिए बहुत बड़ी चुनौती है और अमरीकी अधिकारी कई बार ईरान को धमकी दे चुके हैं।  उन्होंने अमरीकी नीतियों की आलोचना करते हुए कहा कि इस बात की अमरीकी नेताओं को किसने अनुमति दे रखी है कि वे संसार के जिस देश को चाहे उसको धमकी दें?

हालांकि अमरीकी अधिकारी आए दिन ईरान को धमकियां देते रहते हैं किंतु इसका कोई भी प्रभाव विश्व स्तर पर नहीं पड़ रहा है।  सुरक्षा परिषद में ईरान के राष्ट्रपति डाक्टर हसन रूहानी के भाषण ने दर्शा दिया है कि अमरीका के निकटवर्ती घटक भी ईरान से दूर रहने या अलग होने की इच्छा को मान नहीं रहे हैं।  इस विषय ने अमरीकी अधिकारियों को बहुत क्रोधित कर दिया है।

इस बारे में ब्रोकिंग्स संस्था के एक विशेषज्ञ विलयम ड्रोज़दियाक ने कहा है कि फ़्रांस, जर्मनी और ब्रिटेन तीनो ही ईरान के विरुद्ध किसी भी प्रकार की अमरीकी सैन्य धमकी के विरुद्ध डटे रहेंगे।  इन देशों ने सरकार परिवर्तन की योजना का ही विरोध किया है।

कुछ टीकाकारों का कहना है कि ट्रम्प की अतिवादी नीतियां और परमाणु समझौते के बारे में वार्ता न करने के कारण उनके वे घटक भी जो यह संभावना व्यक्त करते हैं कि ईरान की गतिविधियां ख़तरा हो सकती हैं, अमरीका से अलग हो गए हैं।  अमरीका की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के प्रमुख जान बोल्टन ने एक बार फिर धमकी देते हुए कहा है कि वाशिग्टन, ईरान के विरुद्ध नए कड़े प्रतिबंध लगाएगा।  यह एसी स्थिति में है कि जब 24 सितंबर को गुट चार धन एक के विदेशमंत्रियों ने राष्ट्रसंघ के मुख्यालय में ईरान के लिए आयात और निर्यात में पेमेंट में सुविधाए के लिए उपायों पर विचार-विमर्श किया।

अमरीकी विदेश मंत्रालय में ईरान एक्शन ग्रुप के प्रमुख ब्रान न हूक ने यह बात निरस्त कर दी है कि ईरान पर आर्थिक दबाव डालने केकारण अमरीका अपने यूरोपीय घटकों से अलग हो रहा है।  हूक ने दावा किया कि हम सबको पता है कि ईरान का मिसाइल कार्यक्रम एक समस्या है।  उन्होंने कहा कि कोई भी यह नहीं कह सकता कि वर्तमान परिस्थतियां, स्वीकार योग्य हैं।  हालांकि उन्होंने अमरीका और यूरोप के संबन्धों को बहुत ही घनिष्ठ एवं मज़बूत बताया किंतु यह सच है कि ट्रम्प की नीतियों के कारण अमरीका और यूरोप में तनाव बढ़ा है।  अब ईरान के विरुद्ध अमरीका की ओर से एकपक्षीय प्रतिबंधों के कारण यह मतभेद और अधिक होंगे जो अमरीका एवं यूरोप के संबन्धों को अधिक ख़राब कर देंगे।