Oct १०, २०१८ १६:५० Asia/Kolkata

जैसाकि आप जानते हैं कि इस कार्यक्रम श्रंखला में हम मस्जिद के महत्व की चर्चा करते आ रहे हैं। 

हम यह बता चुके हैं कि सामाजिक सुधार की दृष्टि से लोगों के मार्गदर्शन के लिए मस्जिद बहुत ही उपयुक्त स्थल है।  मस्जिद की एक विशेषता यह भी है कि यहां पर महिला और पुरूष सब ही उपासना कर सकते हैं।  इस्लाम के आरंभिक काल में महिलाएं मस्जिद जाया करती थीं।  पैग़म्बरे इस्लाम (स) मस्जिद से ही मुसलमानों को संदेश देते।  वे महिलाओं के प्रश्नों के उत्तर देते और उनकी समस्याओं के समाधान पेश करते।  इन बातों से पता चलता है कि मस्जिद में मुसलमान महिलाएं और पुरूष सब ही ईश्वर की उपासना कर सकते हैं।

वर्तमान समय में बहुत से स्थानों पर एसी मस्जिदें बनाई गई हैं जिनमें महिलाओं की उपासना के लिए विशेष स्थान निर्धारित किया जाता है।  कुछ मस्जिदों में शिक्षित महिलाएं दूसरी महिलाओं को धार्मिक शिक्षाएं देती हैं।  यह शिक्षित महिलाएं धार्मिक शिक्षाओं के अतिरिक्त मस्जिद में विभिन्न प्रकार की सामाजिक सेवाएं भी प्रदान करती हैं।  इस समय कुछ ग़ैर इस्लामी देशों में एसी मस्जिदें मौजूद हैं जहां महिलाएं हिजाब में रहकर महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभा रही हैं।

ग़ैर इस्लामी देशों में लोगों के बीच संपर्क के लिए मस्जिदों की विशेष भूमिका है।  वहां पर मस्जिदों में सामाजिक कार्यक्रम भी आयोजित किये जाते हैं।  इन्ही में से एक, ग़ैर मुसलमानों से मुसलमानों का परिचय भी शामिल है।  यह इस अर्थ में है कि बहुत से ग़ैर मुसलमान इन मस्जिदों के माध्यम से इस्लामी शिक्षाओं से अवगत होकर मुसलमन हो जाते हैं।  इस प्रकार कहा जा सकता है कि मस्जिदें न केवल मुसलमानों बल्कि ग़ैर मुसलमानों के लिए भी ज्ञान प्राप्ति और जानकारिया हासिल करने का माध्यम हैं।  ग़ैर इस्लामी देशों की कुछ मस्जिदों में नए मुसलमानों के लिए इस्लामी शिक्षाओं को समझाने के उद्देश्य से क्लासें रखी जाती हैं।  इन मस्जिदों में रमज़ान में इफ़तारी, ईद के अवसर पर आयोजन, निकाह और इसी प्रकार के धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं।

संयुक्त राज्य अमरीका में, "फेथ मैटर" के नाम का एक अध्ययन केन्द्र सक्रिय है।  यह केन्द्र विभिन्न धर्मों की आस्थाओं की समीक्षा करता है।  यह केन्द्र या संस्था इसी आधार पर उनको वर्गीकृत करती है।  इस अमरीकी केन्द्र ने सन 2001 में एक अध्ययन करने के बाद ब्रिटेन की 100 ऐसी मस्जिदों की सूचि तैयार की जहां पर महिलाएं भी सक्रिय हैं।  इस संस्था ने ब्रिटेन के विभिन्न नगरों में स्थित लगभग 500 मस्जिदों का अध्ययन किया जिनमें से एसी 50 मस्जिदों को सराहा गया जहां पर महिलाओं की सक्रियता अधिक थी।

हालांकि जैसाकि हमने पिछले कार्यक्रमों में संकेत किया था कि ग़ैर इस्लामी देशों की मस्जिदों तथा इस्लामी केन्द्रों में महिलाओं की सकारात्मक भूमिका के बावजूद वहां पर कुछ ऐसी बातें भी हुईं जो इस्लामी शिक्षाओं के अनुकूल नहीं हैं जैसे महिलाओं का मस्जिद आन्दोलन।  वाल स्ट्रीट जनरल की एक पूर्व रिपोर्टर "अस्रा नोमानी" ने मस्जिद में महिलाओं के अधिकारों पर आधारित एक आर्टिकल तैयार किया।  उनका यह लेख मुस्लिम समुदाय के बीच गंभीर मतभेद का कारण बना।  इसमें विभिन्न मुस्लिम समाजों की सांस्कृतिक विविधता की अनदेखी कीयी गया।  लेख में कहा गया है कि मस्जिद में गतिविधियां अंजाम देने वाली महिलाओं के लिए दस नंबर निर्धारित किये जाएं।  इस लेख के अनुसार महिला और पुरूष एक स्थान पर मिलकर नमाज़ पढ़ें।  इसमें यह भी मांग की गई है कि नमाज़ पढ़ाने के लिए महिलाओं को नियुक्त किया जाए।

इस प्रकार की मांगों का संबन्ध पश्चिम समाज की सोच और वहां पर महिलाओं के विरुद्ध किये जाने वाले अत्याचारों से है।  यही कारण है कि उन्होंने इस्लामी शिक्षाओं के अध्य्यन और इस्लाम में महिलाओं के अधिकारों की जानकारी के बिना अपना दृष्टिकोण पेश किया।  हालांकि इस्लाम की एक विशेषता जिसने इसको अन्य धर्मों की तुलना में वरीयता दी है समाज से अन्याय का अंत करना है।  इस्लाम अन्याय के विरुद्ध है।  इस्लाम ने मनुष्य के लिए हर प्रकार की वरीयता को नकारा है चाहे वह जाति या कुल के हिसाब से हो या फिर धन-दौलन के हिसाब से।  इस्लामी शिक्षाओं के हिसाब से महिला और पुरूष सबके सब एक ही पंक्ति में हैं चाहें वे कितने ही धनी, बलवान, सुन्दर या किसी अन्य विशेषताओं के स्वामी हों।  इस ईश्वरीय धर्म ने वरीयता का मानदंड ईश्वरीय भय को बताया है।

सूरे होजोरात की आयत संख्या 13 में ईश्वर कहता है कि हे लोगो, हमने तुमको एक पुरूष और महिला से पैदा किया और तुमको अलग-अलग क़ौमों और क़बीलों में बांटा ताकि तुम एक-दूसरे को पहचान सको।  ईश्वर के निकट तुममे से अधिक महत्वपूर्ण वह है जो तक़वा अर्थोत ईश्वरीय भय रखता हो।  दूसरी ओर (हिदायते तशरीई) आम तथा व्यापक है।  यह किसी गुट विशेष से संबन्धित नहीं है।  इससे हर व्यक्ति लाभ उठाते हुए परिपूर्णता तक पहुंच सकता है।

इसी संदर्भ में ईश्वर सूरे इंसान की आयत संख्या 3 में कहता है कि हमने इंसान को मार्ग दिखा दिया चाहे वह शुक्रगुज़ार हो या नाशुक्रा।  इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि लैंगिक मतभेद, परिपूर्णता के मार्ग की बाधा नहीं हैं।  इसी विषय के संदर्भ में शहीद आयतुल्लाह मुतह्ररी अपनी किताब, "नेज़ामे हुक़ूके ज़न दर इस्लाम" में लिखते हैं कि इस्लाम ने ईश्वर के मार्ग में बढ़ने में महिला और पुरूष के बीच कोई अंतर नहीं माना है।

ब्रिटेन की राजधानी लंदन के उत्तरी क्षेत्र वेस्टमिनिस्टर में एक भव्य मस्जिद बनी हुई है जिसे "लंदन सेंट्रल मास्क" या "रीजेन्ट्स पार्क मास्क" के नाम से जाना जाता है।  इस मस्जिद में 5000 नमाज़ियों की क्षमता है।  इसे पारंपरिक इस्लामी वास्तुकला के आधार पर बनाया गया है।

सन 1940 में ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री विन्सटन चर्चिल ने केन्द्रीय लंदन में एक मस्जिद बनाने की स्वीकृति दी थी।  24 अक्तूबर 1940 को चर्चिल के मंत्रीमण्डल ने इस मस्जिद की ज़मीन की ख़रीदारी के लिए एक हज़ार पौंड विशेष किये थे।  केन्द्रीय लंदन में मस्जिद बनाने की घोषणा से चर्चिल का उद्देश्य जर्मनी के साथ युद्ध के संकटग्रस्त काल में इस्लामी देशों का समर्थन हासिल करना था।

 

सन 1944 में ब्रिटेन के तत्कालीन राजा जार्ज षश्टम के काल में इस मस्जिद का उद्घान किया गया था।  इसको ब्रिटेन के मुस्लिम समाज के लिए एक उपहार के रूप में पेश किया गया।  कहा यह जाता है कि रीजेन्ट पार्क मस्जिद का आधिकारिक उद्घाटन 1978 में हुआ था।  इस मस्जिद के वास्तुकार थे सर "फ्रैडरिक गिरबर्ड"।  इस मस्जिद पर सोने का गुंबद बना हुआ है।  यह वैभवशाली मस्जिद भीतर से बहुत सुन्दर है।

 

मूल रूप से रीजेन्ट पार्क मस्जिद, में दो बड़े हाल हैं जिनमें से एक हाल नमाज़ पढ़ने के लिए है जबकि दूसरे हाल में पुस्तकालय, अध्धयन कक्ष, कार्यालय और सामाजिक गतिविधियों के लिए स्थान है।  वैसे तो मस्जिद के हाल में पांच हज़ार लोगों के नमाज़ पढ़ने की क्षमता है लेकिन व्यवहारिक रूप में यहां पर कम से कम 6000 लोग नमाज़ पढ़ते हैं।  ईद की नमाज़ में यहां पर इतनी बड़ी संख्या में लोग उपस्थित हो जाते हैं कि यहां पर नमाज़ पढ़ने के लिए जगह नहीं होती है और कई बार में नमाज़ पढ़नी पड़ती है।  पिछली ईद में यहां पर साठ हज़ार से अधिक लोग नमाज़ पढ़ने पहुंचे थे जिन्हें क्रमबद्ध ढंग से दस या ग्यारह बार में नमाज़ पढ़ाई गई।  पत्रकारों का कहना है कि ईद के दिन यहां पर ईद की पहली नमाज़ सुबह ठीक सात बजे शुरू हो गई थी लेकिन अधिक भीड़ के कारण यह क्रम दोपहर 12 बजे तक जारी रहा।

ब्रिटेन में मुसलमानों की अधिक संख्या के दृष्टिगत इस देश के मुसलमानों ने लंदन के न्यूमेन क्षेत्र में एक बड़ी मस्जिद बनाने की मांग की थी जिसे स्थानीय प्रशासन की ओर से रद्द कर दिया गया।  स्थानीय प्रशासन से साथ ही यह आदेश भी दिया कि एक अस्थाई मस्जिद बनाने के लिए हमने जो स्थान दिया था उसे तीन महीने के भीतर वापस कर दिया जाए।  जिस मस्जिद के निर्माण की मांग ब्रिटेन के मुसलमानों ने की थी यदि वे मान ली जाती तो कम से कम 9000 मुसलमानों के नमाज़ पढ़ने की जगह का प्रबंध हो जाता।  हालांकि इसका विरोध करने वालों के साथ ही साथ इसके समर्थक भी थे।

 

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