घर परिवार - 11
जोड़ा होना सभी के लिए है चाहे वह पत्थर हो, सब्ज़ियां हों, जानवर हों या इन्सान।
अर्थात समस्त अस्तित्व में एक सामान्य क़ानून जोड़ा होना है जिनमें से एक इन्सान है। पवित्र क़ुरआन के सूरए ज़ारिआत की आयत संख्या 49 में ईश्वर कहता है कि और हर वस्तु में से हमने जोड़ा बनाया है शायद तुम नसीहत हासिल कर सको। सूरए शूरा की आयत संख्या 11 में एक अन्य स्थान पर ईश्वर कहता है कि वह आकाशों और धरती को पैदा करने वाला है उसने हमारी आत्मा में से भी जोड़ा बनाया है और जानवरों में भी जोड़े बनाए हैं वह तुम को इसी जोड़े द्वारा दुनिया में फैला रहा है और उसका जैसा कोई नहीं है वह सबकी सुनने वाला और हर चीज़ का देखने वाला है। पवित्र क़ुरआन इस प्रकार से मनुष्य में मुख्य जोड़े की ओर ध्यान दिलाता है और महिला और पुरुष के लिए विवाह और दामपत्य को मनुष्य की प्राकृतिक आवश्यकता क़रार दिया है। इसके बाद पवित्र क़ुरआन इसके कारण की ओर संकेत करता है। इसी संबंध में सूरए रूम की आयत संख्या 21 में इशारा किया गया हैः और उसकी निशानियों में से यह भी है कि उसने तुम्हारा जोड़ा तुम में से ही पैदा किया है ताकि तुम्हें उससे सूकून हासिल हो और फिर तुम्हारे बीच प्रेम और कृपा क़रार दी है कि इसमें विचारकों के लिए बहुत सी निशानियां पायी जाती हैं।
दुनिया के हर देश में विवाह की अलग अलग रसमें हैं और विभिन्न प्रकार की परंपराएं पायी जाती हैं। इन परंपराओं में कुछ धार्मिक आस्थाएं शामिल हो गयी हैं या किसी विशेष संस्कृति का रंग रूप उस पर चढ़ जाता है। यह विषय इतना अधिक महत्व है कि प्रतिदिन इस बारे में दसियों लेख लिखे जाते हैं किन्तु उसके बावजूद इसमें अब भी कुछ बिन्दु ऐसे हैं जो लेखकों की नज़रों से छिपे रहे। यह संस्कार और कार्यक्रम एक केक या वैवाहिक कार्यक्रम के आयोजन से समाप्त नहीं होते। समाजशास्त्रियों के अनुसार, एक समाज में प्रचलित परंपराएं, उसकी संस्कृति और सभ्यता की गाथा सुनाती है।
एक सफल वैवाहिक जीवन के लिए दोनों पक्षों को एक दूसरे से पूर्णरूप से अवगत होना आवश्यक है। मंगनी कार्यक्रम एक बेहतरीन अवसर है ताकि लड़का और लड़की एक दूसरे से बातचीत करें और एक दूसरे की आदतों से अवगत हों।
ईरान में इस तरह का प्रचलन है कि लड़के की मां या बहन, लड़के के लिए उचित लड़की का चयन करती हैं। उसके बाद उससे उसकी राय ली जाती है और यदि उसने हामी भर दी तो सगाई की रस्म होती है। सगाई की रस्म में सामान्य रूप से कुछ महिलाएं लड़के की ओर से लड़की के घर जाती हैं ताकि उसे निकट से देख सकें। लड़की, लड़के के घर वालों का भव्य स्वागत करती है और उनके सवालों का जवाब देती है । उसके बाद चाय और नाश्ते का दौर चलता है और यदि लड़के के घर वाले लड़की को पसंद कर लेते हैं तो फिर असल मुद्दे पर बातचीत होती है और यदि लड़के के घर वालों को लड़की पसंद नहीं आती तो कुछ देर बातचीत के बाद वह लोग घर से चले जाते हैं।
यदि दोनों पक्ष राज़ी हो जाते हैं तो उसके बाद सगाई की रस्म होती है जिसमें लड़का भी शामिल होता है। इस कार्यक्रम में लड़का और लड़की आपस में बातचीत करते हैं ताकि अधिक से अधिक एक दूसरे से परिचित हो सकें। कार्यक्रम के बाद यदि लड़के और लड़की ने एक दूसरे को पसंद कर लिया तो लड़की को एक उपहार दिया जाता है और उसके बाद शगून की मिठाई दी जाती है और एक दूसरे का मुंह मीठा किया जाता है।
यदि लड़का और लड़की कई बार एक दूसरे से बातचीत करते हैं और एक दूसरे को पसंद कर लेते हैं तो उसके बाद एक कार्यक्रम होता हो जिसका नाम बले ब्रून होता है। अर्थात हामी की रस्म। इस कार्यक्रम में परिवार के बड़े बुज़ुर्ग लोग एक साथ जमा होते हैं और विवाह के कार्यक्रम और मेहर की राशि के बारेमें एक दूसरे से बातचीत करते हैं। दूसरी ओर लड़के के घर वाले एक अंगूठी, एक अबा, एक जोड़ा कपड़ा और शाल या स्कार्फ़, मिठाई के एक डिब्बे और गुलदस्ते के साथ लड़की को पेश करते हैं। उसके बाद जो बातचीत होती है उसको संक्षेप में एक काग़ज़ पर उतारा जाता है और दोनों पक्ष उस प्रतिबद्धता पर हस्ताक्षर करते हैं और फिर उसके बाद परिवार के लोग सगाई की रस्म में फिर एक बार जमा होते हैं और एक दूसरे को बधाई देते हैं और खुशिया मनाते हैं।
आजकल कुछ परिवार प्राचीन परंपराओं से दूर होकर आधुनिक चकाचौंध में डूब गये हैं जिसकी वजह से उनके बीच सगाई की रस्म ने आधुनिक रंग व रूप धारण कर लिया है। इन हालात में लड़का और लड़की के परिवार की भूमिका बहुत कम हो गयी और वह केवल सगाई की रस्म और कार्यमों में केवल उपस्थिति तक सीमित हो गयी क्योंकि इस कार्यक्रम के आयोजन और परिवार के एक दूसरे से परिचित होने से पूर्व ही लड़का और लड़की, घर से बाहर कार्यालय या काम के स्थान पर एक दूसरे से परिचित हो चुके होते हैं और कई बार आपस में बातचीत करके ही फ़ैसला कर लेते हैं और इसके परिणाम में जीवन साथी के चयन में परिवार की भूमिका कम हो गयी है। चूंकि इस महत्वपूर्ण चुनव में युवा बिना अनुभव के अपनी भावनाओं के रेले में बहकर फ़ैसला करता है, कभी कभी वैवाहिक बंधन टूट जाता है।
प्रोफ़ेसर शहीद मुतह्हरी इस संबंध में कुछ बिन्दुओं की ओर संकेत करते हैं जो ध्यान योग्य है। वह कहते हैं कि प्राचीन काल में पुरुष जब सगाई के लिए महिलाओं के घर जाया करते थे और उसका हाथ मांगते थे, इसका सबसे बड़ा कारण महिला की हैसियत की रक्षा और उसका सम्मान था। प्रकृति ने पुरुष को हाथ बढ़ाने, प्रेम और मांग के प्रतीक के रूप में पेश किया और महिला को मांगी जाने वाली और चाहने वाली के प्रतीक के रूप में पेश किया है। प्रकृति ने महिला को फूल और पुरुष को बुलबुल, महिला को शमा और पुरुष को परवाना क़रार दिया है। यह सृष्टि का एक शाहकार और ईश्वर की युक्ति है कि उसने मनुष्य के भीतर आवश्यक और मांग जबकि महिला के भीतर नाज़ और नख़रा पैदा किया है। पुरुष के लिए सहन योग्य है कि उस महिला का इनकार भी सुने जिससे शादी की पेशकश की हो और फिर वह दूसरी महिला का हाथ मांग ले किन्तु महिला के लिए जो उसका प्रिय या प्रेमी हो या जिसे वह टूटकर चाहती है, जिस पुरुष के पूर अस्तित्व पर हुकूमत करना चाहती है, असहनीय है कि उसे उस पुरुष की ओर से इनकार सुनने को मिले और दूसरे पुरुष की तलाश में जाए। इसी लिए कहा जता है कि हाथ मांगना या सगाई की रस्म हमेशा पुरुष की ओर से होनी चाहिए। परिवार में दंपति के संबंध में बहुत अधिक चर्चा है जिनकी समीक्षाएं किए जाने की आवश्यक है।
इस्लाम धर्म में बहुत से ऐसे स्रोत हैं जिनका अध्ययन करने से हमें परिवार में शक्ति के क्रम का पता चलता है। सूरए निसा की आयत संखया 34 में ईश्वर महिलाओं पर पुरुषो की अभिभावकता के विषय पर रोशनी डालते हुए महिलाओं और पुरुषों के व्यक्ति और प्रप्त किए जाने वाले अंतर को बयान करते हुए कहता है कि पुरुष, महिलाओं के अभिभावक और संरक्षक हैं, इन गुणों के आधार पर जो ईश्वर ने कुछ लोगों को अन्य कुछ लोगों पर प्राथमिकता दी है और इस आधार पर कि उन्होंने महिलाओं पर अपनी धन संपत्ति ख़र्च की है। तो फिर नेक पतिथों वही हैं जो अपने महिलाओं का अनुसरण करने वाली और उनकी अनुपस्थिति में उन चीज़ों की रक्षा करने वाली हैं जिनकी ईश्वर ने रक्षा की मांग की है और जिन महिलाओं की अवज्ञा का ख़तरा है उन्हें उपदेश दें। उन्हें सोने के कमरे में अलग कर दें और मारें और फिर अनुसरण करने लगें तो कोई ज़्यादती की राह तलाश न करें कि ईश्वर बहुत महान और सर्वसमर्थ है।
इस आधार पर मनुष्य की यह ज़िम्मेदारी है कि वह घर और परिवार की आवश्यकताओं को पहचानने और उन्हें पूरा करने के लिए भरपूर प्रयास करे जिसे आजीविका के नाम से याद किया गया है। रिवायतों में इस ज़िम्मेदारी पर अमल, नैतिकता का ख़्याल रखते हुए होना चाहिए। अर्थात आजीविका को महिला और उसकी आवश्यकताओं के अनुरूप होना चाहिए। इसका यह अर्थ है कि महिला अपने पति के घर में वंचितता और असमंजस का आभास न करे और पूरी प्रफुल्लता और शांति के साथ घर के घरेलू प्रबंधन की कार्यवाही करे। पवित्र क़ुरआन की आयतों में भी पुरुषों को सलाह दी गयी है कि महिलाओं के कपड़े और खाने का प्रबंधन करने के लिए पूरी नेकी और शालीनता का प्रदर्शन करें।
वास्तव में इस विषय के ध्यान रखने के पीछे यह कारण है कि दामपत्य जीवन और जीवन की सभी सुख चैन, पुरुषों की ओर से बिना किसी रोक टोक के अच्छाई के साथ जारी रहे।
धार्मिक मामलों के विशेषज्ञों के अनुसार इस प्रकार के अंतर जीवन के संयुक्त लक्ष्यों को आगे बढ़ाने में बहुत अधिक प्रभावी रहे हैं और इस सहयोग के परिणाम में पारिवारिक इकाई एक उदाहरणीय इकाई में बदल जाती है क्योंकि पुरुष की व्यक्तिगत विशेषताओं के दृष्टिगत परिवार की अभिभावकता पुरुष के कंधों पर ही है और जब वह अपनी ज़िम्मेदारियों को अच्छी तरह निभाता है तो परिवार, एक सुन्दर और उदाहणरीय परिवार बनकर सामने आता है।
पैग़म्बरे इस्लाम सलल्लाहो अलैह व आलेही व सल्लम से महिलाओं पर पुरुषों की प्राथमिकता के बारे में जब पूछा गया तो उन्होंने कहा कि पुरुषों पर महिलाओं की प्राथमिकता वैसी है जैसे ज़मीन की तुलना में पानी को प्राथमिकता है, पानी से ज़मीन ज़िंदा होती है और पुरुषों से महिलाओं की ज़िंदगी में बहार आ जाती है। (AK)