Dec २५, २०१८ १२:०७ Asia/Kolkata

लोगों को मुक्ति दिलाने व समाज पर गहरे प्रभाव डालने वाले पुरुषों और महिलाओं के जीवन पर जब ध्यान देते हैं तो पाते हैं कि इस तरह की हस्तियों की परवरिश सदाचारी मां-बाप की छत्रछाया में हुयी।

इस बात से परिवार की अहमियत पहले से ज़्यादा स्पष्ट हो जाती है।

इस्लाम में परिवार के गठन पर मनुष्य की प्रवृत्ति की वजह से बल दिया गया है। इस्लाम की यह विशेषता है कि उसके नियम इंसान की प्रवृत्ति पर आधारित हैं। कुछ लोग यह समझते हैं कि हर दौर में समाज का स्वभाव व प्रवृत्ति बदल जाती है लेकिन सच्चाई यह है कि इक्कीसवीं सदी का इंसान भी स्वभाव व प्रवृत्ति की दृष्टि से पिछली शताब्दियों के इंसान जैसा ही है। आज के दौर और पिछली शताब्दियों का इंसान, इंसानियत और भावनात्मक दृष्टि से एक ही है। उनकी प्रवृत्ति में कोई बदलाव नहीं आया है।

जब इंसान परिवार के गठन और सामाजिक जीवन से दूरी अख़्तियार करता है तो वास्तव में वह सृष्टि के क़ानून से दूरी अख़्तियार करता और कड़ी नकारात्मक प्रतिक्रिया का शिकार हो जाता है क्योंकि वैराग्य इंसान के स्वभाव के विपरीत है और इसकी वजह से बहुत सी बुराइयां जन्म लेती हैं। इस्लाम ने समाज के स्वास्थ्य के लिए, परिवार को मानव समाज में ईश्वर की निशानियों में से एक निशानी के रूप में पहचनवाया है।

परिवार का गठन और उसकी अहमियत इतनी ज़्यादा है कि पवित्र क़ुरआन ने आम लोगों के ऐसे बहानों को अस्वीकार किया है जो विवाह व परिवार के गठन से बचने के लिए पेश करते हैं। ख़ास तौर पर निर्धनता व वित्तीय संसाधन के अभाव की बात को रद्द करते हुए ईश्वर पवित्र क़ुरआन के नूर नामक सूरे की आयत 32 में फ़रमाता हैः"तुम में जो लोग अविवाहित हैं और तुम्हारे दासों और दासियों में जो सदाचारी हों, उनके निकाह कर दो। अगर वे निर्धन हैं तो ईश्वर अपनी कृपा से उन्हें आवश्यकतामुक्त बना देगा, वह सर्वज्ञानी और उसकी उदारता अनन्य है।"            

कार्यक्रम के इस भाग में एक ईरानी परिवार में निकाह व विवाह समारोह के बारे में आपको बताने जा रहे हैं। जी हां इस परिवार में शादी के लिए सब कुछ तय्यार है। सब लोग एक दूसरे के हाथ में हाथ डाले दो जवान लड़के लड़की के रिश्ते के बंधन में जुड़ने की पृष्ठिभूमि बना रहे हैं। यह ईरानी मां बाप के लिए जीवन का बेहतरीन क्षण है। जब उनसे उनके जीवन की सबसे बड़ी कामना पूछी जाए तो वे अपना संतान की शादी को बताएंगे। उन्होंने बड़े उत्साह से निकाह व शादी के लिए ज़रूरी चीज़ों की तय्यारी की है और अब उनके शादी के बंधन में बंधने का इंतेज़ार कर रहे हैं।

निकाह के समय एक दस्तरख़ान बिछता है जिस पर कुछ चीज़ें विशेष नियत के साथ रखी जाती हैं। आपको इस दस्तरख़ान पर रखी जाने वाली चीज़ों से परिचित कराते हैं।

आइना और शमादानः निकाह के दस्तरख़ान की ज़रूरतों में है। आइने को दस्तरख़ान पर इस तरह रखते हैं कि दूल्हा दुल्हन एक दूसरे को आइने में देखें ताकि उनका मन एक दूसरे के प्रति आइने की तरह साफ़ हो। आइने के दोनों तरफ़ शमादान रखते हैं। इन शमादानों में जलती हुयी मोमबत्ती दूल्हा-दुल्हन के बीच वैवाहिक संबंध से पैदा हुए भावनात्मक लगाव को दर्शाती है।

दस्तरख़ान पर पवित्र क़ुरआन और जानमाज़ अर्थात नमाज़ पढ़ने की विशेष दरी इस विवाह की ईश्वर की ओर से पुष्टि की प्रतीक है जिसने परिवार के गठन को पुरुष महिला के लिए सुकून का माध्यम बनाया। इसी तरह ये दोनों चीज़ें दूल्हा दुल्हन के धार्मिक सिद्धांतों के पाबंद होने को दर्शाती है।

दस्तरख़ान पर मिस्री की मौजूदगी जीवन में मिठास का प्रतीक है। दस्तरख़ान में मिस्री को एक बर्तन में बहुत ही सुंदर ढंग से जाया जाता है और उस पर जालीदार कपड़ा रख देते हैं।

दस्तरख़ान पर रोटी, पनीर और सब्ज़ी, जीवन में बर्कत की निशानी के तौर पर रखी जाती है। रोटी और पनीर रोज़ी में बर्कत और सब्ज़ी स्वास्थ्य की निशानी है। आज के दौर में इसे छोटे छोटे लुक़्मे की शक्ल में रखते हैं।

दस्तरख़ान पर शहद इसलिए रखी जाती है कि निकाह होने के बाद दूल्हा और दुल्हन एक दूसरे के मुंह को मीठा करें। वास्तव में यह दूल्हा दुल्हन एक दूसरे को वादा देते हैं कि भविष्य में एक दूसरे के साथ मीठे बोल बोलेंगे।

दस्तरख़ान पर मुर्ग़ी के अंडे, नस्ल के जारी रहने की प्रतीक है। इन अंडों को रंग सहित विभिन्न चीज़ों से सजाया जाता है।

दस्तरख़ान पर सिक्का दूल्हा दुल्हन की रोज़ी में वृद्धि का प्रतीक है। अख़रोट, बादाम और हेज़ल नट से भरे बर्तन, दस्तरख़ान के विशाल होने का प्रतीक हैं। कुछ लोगों का मानना है कि ये चीज़ें छिलके के साथ हों ताकि दूल्हा दुल्हन के जीवन में किसी तरह की दूरी पैदा न हो।

दस्तरख़ान पर सेब और अनार इस बात का प्रतीक हैं कि दूल्हा दुल्हन ईश्वर की रंगारंग प्राकृतिक अनुकंपाओं से समृद्ध हैं लेकिन जो चीज़ निकाह के दस्तरख़ान की शोभा में चार चांद लगाती है वह सुंदर फूलों की मौजूदगी है जो जीवन में प्रफुल्लता का चिन्ह है। ज़्यादातर लोग इस दस्तरख़ान को लाल रंग के गुलाब से सजाते हैं जो प्रेम व मोहब्बत का प्रतीक है।

दस्तरख़ान पर इस्पंद से भरा रंगीन बर्तन होता है। सबसे पहले इस्पंद की धूनी देते हैं ताकि दूल्हा दुल्हन ईर्ष्यालू लोगों की ईर्ष्या से सुरक्षित रहें। जब तक निकाह पढ़ा जाता है उस समय तक इस्पंद की धूनी दी जाती है।

निकाह के दस्तरख़ान पर हंस का एक जोड़ा भी दिखाई देता है। हंस एकमात्र परिंदा है जो हमेशा अपने जोड़े के साथ रहता है और उसके मरने के बाद किसी दूसरे जोड़े की तलाश नहीं करता।        

मियां बीवी का एक दूसरे से प्रेम ईश्वर की पवित्र निशानियों में है और इसका संबंध व्यक्ति की गहरी आस्था से है।

पारिवारिक माहौल को जो चीज़ ख़ुशहाल बनाती है वह मियां बीवी की एक दूसरे से बात करने की शैली है। यद्यपि बातचीत संपर्क की सबसे सादा शैली है लेकिन सबसे ज़्यादा इसी का असर भी होता है। मियां बीवी का एक दूसरे से सम्मानजनक स्वर में बात करना, मीठे बोल की मिसाल है।

मियां बीवी का आपस में अच्छे स्वर में बातचीत का वैवाहिक संबंध को मज़बूत बनाने में बहुत बड़ा रोल है। धार्मिक शिक्षाओं में बल दिया गया है कि मियां बीवी आपसी रिश्तों में सम्मान, मुस्कुराहट, मोहब्बत से भरी निगाह, उदारता, तोहफ़ा देने, साफ़ सफ़ाई का ख़्याल रखें और एक दूसरे के प्रति प्रेम का इज़्हार करे ताकि आपस में मोहब्बत गहरी हो। धार्मिक शिक्षाओं में इन सब बिन्दुओं पर बल दिया गया है।

इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैः "जान लो कि औरतें कई प्रकार की होती हैं। इनमें से एक प्रकार की आरतें ख़ज़ाने की तरह मूल्यवान होती हैं। इस गुट में शामिल औरत अपने पति से अगाध प्रेम करती है।"

पैग़म्बरे इस्लाम फ़रमाते हैः "ईश्वर मियां के अपनी बीवी के पास बैठने को मेरी मस्जिद में एतेकाफ़ से ज़्यादा पसंद करता है।"

हज़रत अली अलैहिस्सलाम और हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की जीवन शैली उनके बीच प्रेम व मोहब्बत के चरम को दर्शाती है। हज़रत फ़ातेमा ज़हरा अपने पति हज़रत अली अलैहिस्सलाम से कहती थीः "प्रिय अली! मेरी जान आप पर क़ुर्बान हो। आप पर आने वाली बला मुझ पर आ जाए। हे अबुल हसन! अच्छे हालात और कठिन से कठिन हालात में मैं आपके साथ रहूंगी।"

जिस समय हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा शहीद हुयीं, हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने उनकी शान में जो शेर कहे हैं उन शेरों से हज़रत अली अलैहिस्सलाम के मन में हज़रत फ़ातेमा ज़हरा के प्रति अगाध प्रेम का पता चलता है। आपके शेर का अनुवाद हैः "हे फ़ातेमा आपकी दूरी मेरे लिए सबसे बड़ा सद्मा है। उस प्रिय के लिए रोऊंगा जिसने सर्वश्रेष्ठ मार्ग पर क़दम बढ़ाया। मेरा दुख हमेशा बाक़ी रहने वाला है और मैं हमेशा अपने साथी के लिए रोऊंगा।"

इन दोनों हस्तियों ने अपने ख़ुशहाल परिवार में ऐसी संतान का प्रशिक्षण कर समाज को दिया कि उनमें से हर एक ने अपने वजूद से दुनिया को बदला और उनका वजूद इतिहास में अमर हो गया।