घर परिवार- 18
सबसे पहले हम आपको यह बताना चाहते हैं कि अध्ययन से पता चला है कि जो पति- पत्नी अपने संयुक्त जीवन में मैं के बजाये हम शब्द का अधिक प्रयोग करते हैं वे जीवन में अधिक सफल रहते हैं।
जो पति- पत्नी अपने संयुक्त जीवन में हम शब्द का प्रयोग अधिक करते हैं वे संयुक्त जीवन के प्रति अधिक सकारात्मक दृष्टिकोण रखते हैं। ऐसे में पति- पत्नी सदैव स्वयं को एक दूसरे के साथ समझते हैं। ये लोग अपने जीवन से अधिक राज़ी व प्रसन्न होते हैं और कम ही तनाव व अवसाद का शिकार होते हैं। यह चीज़ बड़ी उम्र के लोगों के संयुक्त जीवन में अधिक सुरक्षा का आभास कराती है। इसके मुकाबले में वे पति- पत्नी हैं जो अपने संयुक्त जीवन में मैं या तुम शब्द का अधिक प्रयोग करते हैं और वे स्वयं को अपने जीवन साथी से अलग समझते। इस प्रकार के लोग अपनी ज़िन्दगी से कम प्रसन्न होते हैं। इस प्रकार के लोग कठिनाइयों के मुकाबले में स्वयं को अकेला पाते हैं। वे अधिकांशतः किसी बात या समस्या के संबंध में अकेले फैसला लेते हैं और दोनों के मध्य कम ही समन्वय होता है परंतु जो पति- पत्नी मैं या तुम शब्द के बजाये हम शब्द का प्रयोग अधिक करते हैं उनके मध्य अगर किसी बात को लेकर विवाद हो जाता है तो शीघ्र ही दोनों के मध्य समन्वय हो जाता है।
ईरानी परिवार की एक विशेषता परिवार के सदस्यों के मध्य संबंधों की रक्षा है। वास्तव में यद्यपि आज इंटरनेट जैसी बहुत सी चीज़ें अस्तित्व में आ गयी हैं और हम देख रहे हैं कि परिवार के सदस्य एक दूसरे के साथ बैठने के बजाये घंटों अकेले बैठकर नेट चलाते और एक दूसरे से बात करते हैं परंतु यह चीज़ ईरानी समाज के बिखरने का कारण न बन सकी और परिवार के सदस्यों के मध्य जो मतभेद होते हैं वे तनाव और सहमति न बनने का कारण न बन सके। बहुत सी चीज़ें मौजूद हैं जो इस बात की सूचक हैं कि ईरानी परिवार सबसे अधिक निवेश अपने जीवन साथी और बच्चों पर करते हैं और परिवार के सदस्य विशेषकर पति- पत्नी एक दूसरे के प्रति ज़िम्मेदारियों का आभास करते हैं।
ईरानी समाजशास्त्री और तेहरान विश्व विद्यालय की प्रोफेसर डाक्टर महबूबा बाबाई कहती हैं” ईरान में महिलाओं के लिए पारिवारिक मूल्य व्यक्तिगत मूल्य से अधिक महत्वपूर्ण हैं। पति और बच्चों का ध्यान रखना उनके लिए सबसे अधिक नैतिक मूल्य समझा जाता है। अधिकांश महिलाएं बच्चों की देखभाल को स्वयं की देखभाल से अधिक महत्वपूर्ण समझती हैं। खाली समय और दिनों में महिलाएं स्वयं को बच्चों और परिवार की देखभाल के लिए समर्पित कर देती हैं। परिवार के दो सदस्यों यानी पति- पत्नी को एक दूसरे के साथ सहकारिता व सहयोग के लिए प्रोत्साहित करना ईरानी परिवार की एक अन्य विशेषता है। यह वह चीज़ है जो पति- पत्नी के बीच मतभेदों को कम व दूर करती है और यह पारिवारिक मामलों में निर्णय लेने में मज़बूती का कारण बनती है।
परिवार वास्तव में ईश्वरीयबोध, प्रेम, अध्यात्म और निष्ठा का केन्द्र होता है। पति- पत्नी को चाहिये कि उच्च मार्ग तय करने में एक दूसरे की सहायता करें। जब महान ईश्वर पर आस्था रखने वाले दो इंसान एक दूसरे से विवाह करते हैं और दोनों एक दूसरे की शारीरिक और मानसिक ज़रूरतों को पूरा करते हैं तो उन्हें शांति प्राप्त होती है और इस शांति के माध्यम से वे अपने, जीवन साथी और इसी तरह अपने बच्चों के लिए आध्यात्मिक शांति प्राप्त कर सकते हैं। आध्यात्मिक मामलों में पति- पत्नी का एक दूसरे का साथ देना उन बातों में से है जिसकी दांपत्य जीवन में बुनियादी भूमिका है। ईमान और तक़वा अर्थात महान ईश्वर से भय में एक दूसरे को प्रोत्साहित करना, उपासना के कार्यों में एक दूसरे का साथ देना और जीवन के कार्यों को उद्देश्यपूर्ण दिशा प्रदान करना उन चीज़ों में से है जिसमें दांपत्य जीवन की बुनियादी भूमिका है।

ईश्वरीय धर्म इस्लाम की दृष्टि से हर इंसान परिवार के प्रति ज़िम्मेदार है। उसे चाहिये कि वह परिवार में आध्यात्मिक व अच्छा वातावारण उत्पन्न करने के लिए प्रयास करे और परिवार के सदस्यों को गुमराही से बचाये। इस प्रकार ज़िन्दगी करने की सोच जीवन को अर्थपूर्ण बनाती है।
शहीद मोहम्मद इब्राहीम एक जाने- माने ईरानी कमांडर थे जो रणक्षेत्र में बड़ी बहादुरी से लड़ते थे। वह लेशमात्र भी नहीं डरते थे और बड़े शूरवीर और साहसी जवान थे परंतु जब वह घर में आते थे तो अपनी पत्नी और बच्चों के साथ बहुत प्रेमपूर्ण व्यवहार करते थे। उनकी पत्नी उनके जीवन के कुछ व्यवहार का चित्रण इस प्रकार करती है” जब वह घर आते थे तो मुझे काम नहीं करने देते थे। बच्चे का कपड़ा बदलते थे, उसके लिए दूध बनाते थे। खाने के लिए दस्तरखान बिछाते और लपटते थे। मेरे पास बैठते थे। कपड़े धुलते थे, उसे फैलाते थे, सुखाते थे और सूख जाने के बाद उसे एकत्रित करते थे। वह इतना प्रेम करते थे कि मैं हमेशा उनसे कहती थी कि ठीक है कि आप घर कम आते हैं परंतु आप जो प्रेम देते हैं उसे एकत्रित करने में मुझे एक महीने का समय लगेगा। वह मुझे देखते और कहते थे। तुम्हारा इससे ज्यादा अधिकार मुझ पर है। एक बार उन्होंने कहा मैं युद्ध समाप्त होने से पहले समाप्त हो जाऊंगा अन्यथा युद्ध के बाद तुम्हें दिखाता कि किस तरह इन दिनों का बदला चुकाता।
शहीद मोहम्मद इब्राहीम हिम्मत एक सम्मानीय हस्ती थे। इसके अलावा वह एक मृदुभाषी व्यक्ति थे और दूसरों के प्रेम और उनके दिलों को अपनी ओर आकर्षित कर लेते थे। पहली ही मुलाकात में उन्होंने मेरे पारिजनों के दिल में जगह बना ली थी। जब निकाह से पहले हम दोनों ने एक दूसरे से बात करना चाहा तो उन्होंने मुझे शपथ दी और कहा मैं चाहता हैं कि मेरा पूरा जीवन ईश्वर के लिए हो। तुम्हें भी ईश्वर की सौगन्ध अगर तुम मुझसे विवाह करना चाहती हो तो तुमसे बात करूं!
इसी प्रकार वह मुझे ख़रीद करने की अनुमति नहीं देते थे। इसका कारण वर्चस्व और ज़ोरज़बरदस्ती नहीं था। वह कहते थे कि महिला को कठिन कार्य नहीं करना चाहिये। मैं नाराज़ हो जाती थी। मेरे चेहरे का रंग देखकर वह कहते थे कि यह मत सोचो कि मैं तुम्हें बंदी बनाकर लाया हूं तुम जहां जाना चाहो जा सकती हो। मैं नहीं चाहता कि तुम लोगों में न जाओ किन्तु तुमसे चाहता हूं कि तुम भारी चीज़ मत ख़रीदना वरना थक जाओगी। यह सब छोड़ो मुझे करने दो। अगर मैं दस्तरखान बिछाना चाहती थी कि वह मेरा हाथ पकड़ लेते और कहते थे कि जब मैं आता हूं तो तुम्हें आराम करना चाहिये! मैं तुम्हें आराम में देखना चाहता हूं।

ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामनेई पति -पत्नी के बीच प्रेमपूर्ण संबंध के बारे में कहते हैं” इस्लाम में पति -पत्नी एक हैं। दोनों एक दूसरे के प्रति उत्तरदायी हैं, बच्चों के प्रति ज़िम्मेदार हैं, परिवार के प्रति ज़िम्मेदार हैं, इस्लाम में परिवार इतना मज़बूत होता है कि कभी दो पीढ़ियां भी गुज़र जाती हैं और आप देखते हैं कि एक ही घर में बाप, दादा और पोते एक साथ रहते हैं। दोनों का दिल एक दूसरे से नहीं भरता। दोनों एक दूसरे के साथ बुरा व्यवहार नहीं करते। सब एक दूसरे की मदद करते हैं। यह धर्मपरायणता और धार्मिक होने की विशेषता है।
पति -पत्नी के बीच प्रेम की जो भूमिका है उसका उल्लेख नहीं किया जा सकता। पति -पत्नी के बीच प्रेमपूर्ण संबंध उत्पन्न करने के बहुत से रास्ते हैं उनमें से एक रास्ता यह है कि पति- पत्नी को चाहिये कि वे एक दूसरे को उन नामों से बुलायें जिन्हें वे अधिक पसंद करते और उससे प्रसन्न होते हैं। पति-पत्नी को एक दूसरे की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्रयास करना चाहिये। जब उन दोनों की प्राकृतिक आवश्यकता सही तरह से पूरी हो जायेगी तो दोनों के मध्य स्वतः प्रेम उत्पन्न और प्रेमपूर्ण संबंध स्थापित हो जायेगा।
पति-पत्नी दोनों चाहते हैं कि उनका जीवन साथी उनका सम्मान करे। दोनों की प्राकृतिक एवं मानसिक आवश्यकताएं हैं। दोनों चाहते हैं कि उनसे अच्छे अंदाज़ में बात की जाये। सम्मान करने का एक तरीका अच्छे नाम से पुकारना है। जीवन साथी यह चाहता है कि दूसरों के सामने भी उसका सम्मान किया जाये। अगर प्रेमपूर्ण दृष्टि से जीवन साथी को देखा जाये और सही से उससे बात की जाये तो यह प्रेम उत्पन्न होने का कारण बनेगा। इस प्रकार के व्यवहार पर वह गर्व करेगा परंतु अगर इंसान दूसरों से सही से बात करता है और अपनी पत्नी से सही से बात नहीं करता है तो प्रेम उत्पन्न नहीं होगा।
पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेहि व सल्लम अच्छे नाम से बुलाने के संबंध में फरमाते हैं" तीन चीज़ें हैं जो मुसलमानों की एक दूसरे से दोस्ती को शुद्ध व घनिष्ठ बनाती हैं। प्रथम यह कि जब एक मुसलमान दूसरे को देखे तो खुले मन से उससे मिले। दूसरे यह कि जब वह बैठना चाहे तो उसे जगह दे या उसके लिए जगह बनाये। तीसरे यह कि उसे उस बेहतरीन नाम से बुलाया जाये जिसे वह पसंद करता है।
कुछ लोग कहते हैं कि हमें अपनी पत्नियों से मीठे अंदाज़ में बात करने की आदत नहीं है। एक मनोवैज्ञानिक कहता है कि कम से कम प्रिय, प्रियतम या मेरी प्रिया कहने की तो आदत होनी चाहिये। ईरान की इस्लामी क्रांति के संस्थापक स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी इस शिष्टाचार का पालन करते थे। वह एक पत्र में अपनी पत्नी को अच्छे व सुन्दर शब्दों के साथ याद करते हैं। उस पत्र के एक भाग में आया हैः मैं तुम पर न्यौछावर हो जाऊं, जब से अपनी आंखों की ठंडक और दिल की धड़कन के वियोग में हूं तब से आपकी याद में हूं और आपके सुन्दर चेहरे की छाप मेरे दिल में है। प्रियतम आशा है कि ईश्वर आपको अपनी शरण में सलामत और प्रसन्न रखे। हमारे दिन जैसे भी हैं गुज़र जायेंगे परंतु ईश्वर की कृपा से अब तक जो कुछ भी हुआ वह अच्छे से गुज़र गया और इस समय मैं सुन्दर शहर बैरूत में हूं। वास्तव में आपकी कमी है। शहर और समुद्र का दृश्य बहुत अच्छा है। बड़े अफसोस की बात है कि हमारी धर्मपत्नी हमारे साथ नहीं है कि यह सुन्दर दृश्य अच्छा लगे। आप पर कुर्बान रूहुल्लाह।