Jan २७, २०१९ १४:०४ Asia/Kolkata

विभिन्न शोधों से पता चलता है कि विवाह के शरीर के विभिन्न अंगों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं।

शारीरिक और मानसिक दृष्टि से विवाह स्वास्थ्य व लंबी उम्र का कारण बनता है। वर्ष 2011 में होने वाले शोध से पता चलता है कि विवाह से जल्दी मरने का ख़तरा 15 प्रतिशत कम हो जाता है और अलज़ायमर की बीमारी का ख़तरा कम हो जाता है, रक्त में शर्करा की मात्रा संतुलित हो जाती है। वह रोगी जो अस्पताल में भर्ती होते हैं, वह शादीशुदा लोगों से जल्दी ठीक होते हैं।

एक अन्य रिपोर्ट में आया है कि स्वयं विवाह का कुछ अलग ही मज़ा है। शोधकर्ताओं और वैज्ञानिकों ने 3682 दिल के मरीज़ों पर लगभग दस साल तक शोध किया और वह इस परिणाम पर पहुंचे कि दिल और गुर्दे के मरीज़ और इसी प्रकार बूढ़ापन, मोटापा, धूम्रपान, रक्तचाप और मधुमेह जैसी घातक बीमारियों में भी ग्रस्त हैं यदि वह वैवाहिक हैं तो उनकी मौत का दर अविवाहित लोगों की तुलना में 46 प्रतिशत कम होता है।

कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि संयुक्त जीवन का प्रभाव केवल शारीरिक सुरक्षा तक ही सीमित नहीं होती। मानसिक सुरक्षा, इसमें सबसे अधिक प्रभावी और महत्वपूर्ण होती है। शादीशुदा पुरुष, ग़ैर शादीशुदा पुरुष की तुलना में बहुत कम ही अववाद का शिकार होते हैं और सेवानिवृत्त होने के बाद वह अपने जीवन से अधिक राज़ी होते हैं। महिलाएं भी मानसिक व भावनात्मक दृष्टि से विवाह से भरपूर आनंद उठाती हैं विशेषकर उस समय जब दंपति में बहुत ही घनिष्ठ संबंध हों और वह एक दूसरे के साथ रहते हों।

 

हसन और नरगिस अपनी दो संतानों के साथ एक अपार्टमेंट के ग्राउंड फ़्लोर पर रहते हैं। हसन के माता पिता भी उनके साथ रहते हैं। हसन के माता पिता के पास बहुत बड़ा घर था जिसमें बड़ा सा आंगन और सुन्दर फ़ुलवारियां भी थीं। हसन के अन्य भाई दीवालिया हो गये हैं और वह घर बेचने पर मजबूर हो गये।

शाम के समय हसन की पत्नी नरगिस बालकोनी में चटाई बिछाती है और सुगंधित और मज़ेदार चाय तैयार करती है। उसका मानना है कि एक दूसरे के साथ उठना बैठक और मनोरंजन करने, संयुक्त गतिविधियां करने तथा एक दूसरे की ख़ुशी और दुख में शामिल होने से परिवार एक दूसरे से निकट होते हैं। सब एक साथ बैठ जाते हैं। हसन के माता पिता को याद आता है कि वह अपने घर के बड़े से आंगन में गमलों और क्यारियों को हमेशा पानी दिया करते थे और परिवार के दूसरे सदस्य भी वहां आकर बैठते थे और अच्छी अच्छी बातें हुआ करती थीं। बच्चे भी आपस में खेलते थे और बढ़े बूढ़े भी आपस में बैठ पर गपशप किया करते थे। वह अभी यह सोच ही रही थीं कि घर के दरवाज़े की बेल बजी, नरगिस की दो बहनें घर में प्रविष्ट हुईं। वह मुस्कुराती हुई आकर लोगों के बीच में बैठ गयीं । नरगिस ने अपनी बहनों के सामने गर्मा गर्म चाय रखी और वह सब मिलकर एक दूसरे से बातें करने लगे।

एक दूसरे से मिलना जुलना या एक दूसरे के घर आना जाना, प्राचीन काल की बहुत ही मूल्यवान और महत्वपूर्ण प्रथा थी जो अब धीरे धीरे दम तोड़ रही है किन्तु यह प्रथा अब भी ईरानी समाज में अपने पुराने रंग में बाक़ी है और ईरानी समाज में इसको बहुत अधिक महत्व दिया जाता है। एक दूसरे से मिलने जुलने और उनका हालचाल पूछने का कम से कम यह प्रभाव है कि उनके बीच प्रेम और मुहब्बत बढ़ती है। शोधकर्ताओं का यह मानना है कि विभिन्न जातियों या समुदाय के लोगों का एक दूसरे के यहां आने जाने के कारण मनुष्य ख़ुशहाल रहते हैं और उनमें अधिक ऊर्जा पैदा होती है क्योंकि अकेलेपन में नकारात्मक बुराईयों के हमले तेज़ होते हैं और उनकी क़ीमत भी चुकानी पड़ती है। दूसरे शब्दों में हमारे पास अपनी समस्याओं के बारे में सोचने का समय ही नहीं होता। दूसरे शब्दों में जब हम अपने परिवार के सदस्यों और दोस्तों से मिलते हैं तो उससे मन का मैलापन दूर होता है और हमारे संबंध मज़बूत और रिश्ते सुदृढ़ होते हैं।

 

कुछ लोग यह सोचते हैं कि वह एक टेलीफ़ोन से अपने माता पिता के संबंध में अपनी ज़िम्मेदारियों पर अमल कर लेते हैं और अपने साथियों को ख़ुश कर लेते हैं जबकि यदि देखा जाए तो कोई भी चीज़ मिलने जुलने या आने जाने का स्थान नहीं ले सकती। एक शोध के परिणाम से पता चलता है कि परिवार या दोस्तों के साथ चेहरे से चेहरे का संपर्क या दूसरे शब्दों में फ़ेस टू फ़ेस मुलाक़ात, मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत अच्छा प्रभाव डालती है और इस संबंध को ईमेल, टेलीफ़ोनी वार्ता और मैसेज के स्थान पर लाना, दो गुना अवसाद के ख़तरे का कारण बन सकता है।

परिवार के सदस्यों से मुलाक़ात और उनसे मिलना जुलना और पारिवारिक फ़ोटोज़ देखने से दिमाग़ का वह भाग जो स्वास्थ्यवर्धक और सकारात्मक भावनाओं को बयान करने वाले होते हैं, जीवित होता है। वास्तव में हम सब यही चाहते हैं कि हम ऐसे लोगों के साथ उठे बैठें जो हमारी ही तरह हों, जो हमारे हम विचार हों और हमारे ही तरह सकारात्मक सोच रखने वाले हों। वास्तव में परिवारिक चर्चा और परिवार के सदस्यों से मिलने जुलने से कई घंटे की परेशान करने वाली चीज़ों से मुक्ति मिलती है।

पिछले वर्षों के दौरान कुछ लोगों पर एक शोध किया गया जिनमें से कुछ व्यक्तिगत जीवन व्यतीत करते थे जबकि कुछ सामूहिक जीवन जीते थे।  इस सर्वे में यह परिणाम निकला कि जो लोग सामूहिक जीवन में विश्वास रखते हैं और सामूहिक लोगों के समर्थन का भावना उनमें पायी जाती है वह उन लोगों की तुलना में जो व्यक्ति जीवन व्यतीत करते हैं और तनहाई में रहते हैं, अधिक उम्र पाते हैं और बहुत कम बीमार भी होते हैं।

डाक्टर अब्दुल्लाह मोतमेदी शलमज़ारी का मानना है कि पारिवारिक मुलाक़ातें और एक दूसरे से मिलना जुलना, मनुष्य में संबंध और जुड़ाव की भावना के मज़बूत होने का कारण बनता है और व्यक्ति में चाहत की भावना मज़बूत होती है। समाज शास्त्र के यह प्रोफ़ेसर कहते हैं कि मनुष्य को अच्छा लता है कि वह चाहे और उसे ही चाहा जाए और इसीलिए एक दूसरे से मिलने जुलना मानसिक व मनोवैज्ञानिक दृष्टि से चाहने या चाहे जाने का कारण बनता है।

वह इसी प्रकार कहते हैं कि मनुष्य, अपनी सूचनाओं के आदान प्रदान और उनको पूरा करने के लिए एक स्वच्छ और सार्थक संबंधों की आवश्यकता होती है। यह ऐसी हालत में है कि यदि यात्रा के लिए हालात पैदा न हों या ताज़ी हवा के लिए मन न कर रहा हो तो यही आवाजाही, चाहे जितनी संक्षिप्त और साधारण हो, मानसिक व आत्मिक स्थिति को बेहतर करने के लिए बेहतरीन चीज़ है।

 

आज हमारे समाज की अधिकतर महिलाएं घर से बाहर काम करती हैं और जब वह घर लौटती हैं तो वह घर का काम करने में व्यस्त हो जाती हैं और घर तथा बाहर के काम तथा थकन की वजह से वह अपनी बाहरी बनावट व रंग रूप पर ध्यान नहीं देती और वह बन ठनकर तथा शिष्टाचार के साथ थके मांदे अपने पति का स्वागत नहीं करतीं। कभी कभी वह महिला जो बाहर काम भी नहीं करती, घर के भीतर ही कामों में इतना अधिक व्यस्त होती है कि अपनी विदित बनावट व साज सज्जा पर ध्यान ही नहीं दे पाती।

जबकि साज व सज्जा चाहे वह पुरुष हो या महिला दोनों के लिए आवश्यक है इससे दोनों के बीच प्रेम और मुहब्बत में वृद्धि होती है। धार्मिक कथनों में महिलाओं और पुरुषों दोनों का अह्वान किया गया है कि वह अपने जीवन साथी के लिए बने संवरें, यहां तक कि पतियों से कहा गया है कि पत्नियों को अनुमति दें कि वह उनके लिए कपड़े पसंद करे ताकि पति , महिला की पसंद का कपड़ा पहने, इसी प्रकार पत्नियों की भी ज़िम्मेदारी है कि वह अपने पति के लिए सजे संवरे, ख़ुशबू लगाए और साज सज्जा करे।

पैग़म्बरे इस्लाम (स) का कथन है कि बेहतरीन महिला वह है कि जब उसका पति उसकी ओर देखे तो ख़ुश हो। हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम भी महिलाओं के ज़ेवर से यहां कि एक हार से ही सुसज्जित रहने पर बल देते हैं। (AK)

 

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