Jan २९, २०१९ १७:०९ Asia/Kolkata

इस्लाम के सच्चे मार्ग दर्शक और अल्लाह के ख़ास बंदों की जीवन शैली बयान करने से हमारा उद्देश्य यह था कि आपको उनके जीवन के उतार- चढ़ाव से परिचित करायें और साथ ही आपको उन शैलियों से अवगत करायें जो उन्होंने अपनाई थीं।

इसी तरह उनके जीवन के उतार- चढ़ाव बयान करने से हमारा उद्देश्य यह था कि हम उन्हें अपना आदर्श बनायें ताकि ईश्वर के सीधे रास्ते पर चलें और गुमराह होने से बचें। उदाहरण के तौर पर इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम ने अपने समय के क्रूर व अत्याचारी शासक मुतवक्किल के मुकाबले में जो स्पष्ट व पारदर्शी नीति अपनाई थी उससे हम सीख ले सकते हैं। मुतवक्किल वह अत्याचारी शासक था जिसने अपने समय में पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों के संबंध में बहुत अधिक शत्रुतापूर्ण नीति अपना रखी थी। वह बहुत शराब पीता था, वह शराब और सत्ता के नशे में इतना चूर था कि उसने  इमाम इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम से भी शराब पीने के लिए कहा। इमाम ने बड़ी दृढ़ता के साथ उसे रद्द कर दिया। उसके बाद उसने इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम से शेर पढ़ने के लिए कहा। इमाम ने जो शेर पढ़ा वह इस बात का सूचक था कि शीघ्र ही उसकी खोखली सत्ता का अंत हो जायेगा।

इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम की सबसे प्रसिद्ध उपाधि हादी थी। इमाम के दृष्टिकोण व पावन जीवन शैली से हमें यह सीख मिलती है कि हमें सत्ता में धोखे में नहीं आना चाहिये। साथ ही हमें यह सीख मिलती है कि ईश्वर की इच्छा से कुछ ही दिनों व समय में सत्ता का अंत हो जाता है और बाद में सत्ता की केवल बुरी यादें रह जाती हैं। पवित्र कुरआन की विभिन्न आयतों में तानाशाहों और अत्याचारी शासकों के इतिहास और उनके अंत की ओर संकेत किया गया है। सुरे शोअरा की 227वीं आयत में महान ईश्वर कहता है” जिन्होंने अत्याचार किया शीघ्र ही उन्हें पता चल जायेगा कि उनका क्या अंजाम होगा” इसी तरह महान ईश्वर पवित्र कुरआन की दूसरी आयत में कहता है” ज़मीन में चलो फिरो और देखो कि जिन्होंने अत्याचार किया और मेरी आयतों व निशानियों को झुठलाया उनका अंजाम क्या हुआ?

इसी आधार पर ईश्वर के सच्चे व अच्छे बंदों ने अत्याचारी सरकारों के प्रति न तो लेशमात्र रुचि दिखाई और न ही भयभीत हुए और कठिन से कठिन स्थिति में भी ईश्वरीय दायित्व का निर्वाह किया और समस्त चुनौतियों को अवसर में बदल दिया। इमाम हादी अलैहिस्सलाम ने समस्त कठिनाइयों, दबावों और सीमाओं के बावजूद इस्लाम की विशुद्ध शिक्षाओं के प्रचार- प्रसार के लिए बहुत से शिष्यों का प्रशिक्षण किया। ऐतिहासिक दस्तावेज़ों के अनुसार इमाम ने लगभग 185 शिष्यों का प्रशिक्षण किया जिनमें से हम कुछ की समीक्षा करने जा रहे हैं।

 

इमाम हादी अलैहिस्सलाम ने जिन शिष्यों का प्रशिक्षण किया उनमें से  एक हज़रत अब्दुल अज़ीम हसनी हैं जो बहुत बड़े विद्वान थे और उनका बहुत ऊंचा स्थान है। छठें इमाम हज़रत इमाम जाफ़र सादिक अलैहिस्लाम के कुछ शिष्य ऐसे थे जिन्हें आठवें इमाम यानी इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के ज्ञान से भी लाभ उठाने का अवसर प्राप्त था और स्वयं उसकी गणना नवें और दसवें इमाम के शिष्यों में होती है। अबु जमाद राज़ी नामक इमाम के शिष्य कहते हैं” मैं इमाम हादी अलैहिस्सलाम की सेवा में पहुंचा और मैंने उनसे वे बातें पूछीं जो नहीं जानता था। इमाम ने उन सबका जवाब दिया। उसके बाद जब मैंने इमाम से विदा लेना चाहा तो इमाम ने फरमाया जब भी तुम्हें कोई चीज़ पूछनी हो तो अब्दुल अज़ीम हसनी से पूछा करो और मेरा सलाम भी उन्हें कह देना।“

शीया धर्म के एक साहित्यकार व शायर साहेब बिन एबाद भी लिखते हैं” अब्दुल अज़ीम हसनी धार्मिक मामलों में जानकार और धार्मिक विषयों एवं कुरआन के आदेशों से पूर्णरूप से अवगत थे। वास्तविकता यह है कि अब्दुल अज़ीम हसनी ईमान व ज्ञान में उस स्थान पर पहुंचे थे कि इमाम हादी अलैहिस्सलाम ने उनके बारे में फरमाया था” तुम हमारे सच्चे मित्रों में से हो”

अब्दुल अज़ीम हसनी का जो विश्वास था उसके सही होने के प्रति संतोष हासिल करने के लिए वह इमाम हादी अलैहिस्सलाम की सेवा में हाज़िर हुए और उनका जो विश्वास था उसे इमाम के सामने बयान किया और उसके बाद उन्होंने एक- एक इमाम का नाम लिया कहा कि मैं सब पर ईमान रखता हूं। इसके बाद उन्होंने कहा कि मैं इस बात का रखता हूं कि जो उनका दोस्त होगा वह ईश्वर का दोस्त होगा और उनका दुश्मन ईश्वर का दुश्मन होगा और उनका अनुपालन ईश्वर का अनुपालन होगा और उनकी अवज्ञा ईश्वर की अवज्ञा होगी। इसी तरह उन्होंने अपनी बात जारी रखी और कहा कि मैं पैग़म्बर की मेराज पर ईमान रखता हूं, मैं इस बात पर विश्वास रखता हूं कि क़ब्र में सवाल- जवाब किया जायेगा, स्वर्ग व नरक हैं, पुले सेरात है, प्रलय है, हिसाब- किताब है और इन चीज़ों में किसी प्रकार का संदेह नहीं है और ईश्वर समस्त मुर्दों को ज़िन्दा करेगा ताकि उनका हिसाब- किताब किया जाये। इन समस्त बातों को सुनने के बाद इमाम हादी अलैहिस्सलाम ने फरमायाः हे अबुल क़ासिम ईश्वर की सौगंद यह वही धर्म है जिसे ईश्वर ने अपने बंदों के लिए पसंद किया है उस पर बने रहो ताकि जिन चीज़ों का तुमने नाम है ईश्वर लोक- परलोक में उस पर तुम्हें कायेम रखे।

 

इमाम हादी अलैहिस्सलाम के ज्ञान के अथाह सागर से लाभ उठाने वाले एक हुसैन बिन सईद अहवाज़ी हैं। उन्होंने इमाम रज़ा और इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्लाम से भी ज्ञान अर्जित किया था और तीनों इमामों के हवाले से वे उन हदीसों को बयान करते थे जिनमें इस्लाम की विशुद्ध शिक्षाएं होती थीं। हुसैन बिन सईद अहवाज़ी ने धर्मशास्त्र और नैतिक विषयों के बारे में तीस पुस्तकें यादगार के रूप में छोड़ी हैं और प्रसिद्ध धर्मगुरूओं एवं विद्वानों ने पुष्टि की है और लिखा है कि वे महान एवं विश्वसीय विद्वान थे। इस्लामी जगत के एक प्रसिद्ध विद्वान दिवंगत शैख तूसी लिखते हैं” हुसैन बिन सईद एक महान शैक्षिक हस्ती होने के अतिरिक्त लोगों यहां तक कि जानी मानी हस्तियों के मार्गदर्शन में ध्यान योग्य भूमिका निभाई है और उन्होंने इन लोगों को धार्मिक और सांस्कृतिक शिक्षा दी जिसकी वजह से ये लोग इस्लाम की महान हस्ती बने।

इमाम हादी अलैहिस्सलाम के ज्ञान से लाभ उठाने वालों में फज़्ल बिन शाज़ान नीशापुरी भी हैं। वह अपने समय के महान धर्मशास्त्री और दक्ष मुतकल्लिम अर्थात आस्था के संबंध में महान विद्वान थे। कहा जाता है कि उन्होंने बहुत पुस्तकें लिखी हैं जो किताबें उन्होंने लिखी हैं उनकी संख्या 180 बताई जाती है। उनकी  एक किताब का नाम “अलईज़ाह” है। यह किताब इल्मे कलाम अर्थात धार्मिक आस्था और हदीस बयान करने वाले रावियों की आस्था के बारे में है। फज़्ल बिन शाज़ान नीशापुरी की किताबों से विद्वानों और धर्मगुरूओं ने लाभ उठाया है और हदीस स्वीकार करने या न करने के लिए रावी उन्हें मापदंड करार देते थे। शैख़ कुलैनी, शैख सदूक़ और शैख तूसी जैसे इस्लामी जगत के जाने- माने विद्वान अपनी रचनाओं में उनके कथनों    एवं दृष्टिकोणों पर ध्यान देते थे। जामेउर्रवात جامع الرواه  नामक पुस्तक के लेखक मोहम्मद बिन अली अर्दबेली, फज़्ल बिन शाज़ान नीशापुरी के बारे में लिखते हैं” वह हम शीयों के प्रमुख और महान हस्ती हैं और इससे महत्वपूर्ण यह है कि हम उनके बारे में बात करें। उनकी किताओं पर पुष्टि की मुहर इमाम हादी अलैहिस्सलाम ने लगाई है। कहा जाता है कि जब फज़्ल बिन शाज़ान नीशापुरी की الیوم و اللیله  नामक पुस्तक ग्यारहवें इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के सामने पेश की गयी तो उन्होंने फज़्ल बिन शाज़ान नीशापुरी पर तीन बार दुरूद भेजा और फरमाया” वह शिक्षा और व्यवहार में आदर्श के लाएक हैं”

 

हमने कहा था कि इस्लाम की विशुद्ध शिक्षाओं के प्रचार- प्रसार के लिए इस्लामी मार्गदर्शकों की एक शैली तत्वदर्शी पथप्रदर्शन था और इस मार्ग से वे समस्त क्षेत्रों में इस्लाम की विशुद्ध शिक्षाओं एवं अपने दृष्टिकोणों को बयान करते और समाज की दिशा निर्धारित करते थे। इमाम हादी अलैहिस्सलाम ने भी इसी शैली को अपनाते हुए महत्वपूर्ण बातें पेशकी। उदाहरण के तौर पर एकेश्वरवाद के संबंध में इमाम हादी अलैहिस्सलाम के मूल्यवान कथन हैं। इमाम फरमाते हैं” जो ईश्वर से डरे लोग उससे डरेंगे और जो ईश्वर का अनुपालन करेगा लोग उसका अनुपालन करेंगे और जो ब्रह्मांड के रचयिता का अनुपालन करेगा वह लोगों के क्रोध से नहीं डरेगा और जो ईश्वर को क्रोधित करेगा निःसंदेह वह लोगों के क्रोध का पात्र बनेगा।“

अतः महान ईश्वर के सिद्धातों पर कटिबद्ध रहने का प्रतिफल स्वयं इंसान को मिलता है जैसाकि दसवें इमाम हादी अलैहिस्सलाम फरमाते हैं” ईश्वरीय सीमा की सुरक्षा, उसकी अवज्ञा से डरना या ब्रह्मांड के रचयिता के आदेशों के अनुपालन की भावना इस बात का कारण बनती है कि दूसरे हमारा सम्मान करें और हमारे आदेशों का पालन करें और चूंकि हमने ईश्वर की प्रसन्नता के मार्ग में कदम बढ़ाया है इसलिए हम न केवल दूसरों के क्रोध और घृणा के पात्र नहीं बने हैं               बल्कि दूसरे हमसे प्रेम करते हैं।

एक बार जब इमाम हादी अलैहिस्सलाम और अत्याचारी शासक मुतवक्किल के बीच कुछ बहस हो गयी तो इमाम ने फरमाया जिसके प्रति तेरे दिल में द्वेष है उससे मित्रता की अपेक्षा मत रख और जिसके साथ तूने विश्वासघात किया है, वचन तोड़ा है   उससे वफादारी की उम्मीद मत रख और जिसके संबंध में तू बुरा विचार रखता है उसके हितैषी होने और उससे शुभ चिंता की अपेक्षा मत रख क्योंकि तेरे प्रति दूसरों की दिल की हालत वही है जो दूसरों के प्रति तेरे दिल की हालत है।“

यद्यपि इमाम का यह नैतिक मार्गदर्शन सार्वजनिक है परंतु समय के तानाशाह मुतवक्किल अब्बासी के सामने पारदर्शी और ठोस जवाब है और इमाम उसे यह समझाना चाहते थे कि तेरे दिल में मेरे प्रति     द्वेष है, तूने वचन को तोड़ा है, तेरे दिल में भ्रांति है इस प्रकार की स्थिति में तू किस प्रकार यह अपेक्षा रखता है कि मैं तुझसे प्रेम करुं जबकि तूने वचन को तोड़ दिया है और द्वेष के कारण सदैव मेरे खिलाफ षडयंत्र करता रहता है। इसी तरह इमाम जब समस्त इंसानों के जीवन के अंत का चित्रण करते हैं तो फरमाते हैं” उस समय को याद कर जब तू अपने परिजनों, दोस्तों और निकट संबंधियों के सामने मौत के बिस्तर पर पड़ा होगा वैद्य भी तेरा उपचार नहीं कर सकेगा और कोई दूसरा भी तुझे मौत के चंगुल से मुक्ति नहीं दिला सकेगा। इस आधार पर जो चीज़ इंसान के लिए लाभदायक होगी और वह इंसान का साथ नहीं छोड़ेगी वह इंसान का अमल है। मौत के समय न ताक़त और न पैसे से कुछ होने वाला है और मौत के बाद इंसान के कर्मों के अलावा कोई भी उसका साथ नहीं देगा और इमाम हादी अलैहिस्सलाम दुनिया के जीवन का बड़ा अच्छा चित्रण करते हुए कहते हैं” दुनिया         बाज़ार और व्यापार की जगह की तरह है कि कुछ लोग उसमें फायदा करते हैं और कुछ घाटा उठाते हैं। जैसाकि ईश्वर सूरे अस्र में फरमाता है” ज़माने की क़सम निः संदेह इंसान घाटे में है किन्तु वे लोग जो ईमान लाये और अच्छा अमल अंजाम दिये और एक दूसरे को सत्य और धैर्य की सिफारिश की।

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