इस्लामी क्रांति और समाज- 22
ईरान की इस्लामी क्रांति के बारे में हम एक ईरानी विद्वान दिवंगत "हमीद इनायत" के विचारों पर चर्चा करेंगे।
उन्होंने इस्लामी क्रांति के बारे में गहन शोध किया है। वे आरंभ से ही इस्लामी क्रांति से प्रभावित रहे हैं। हमीद इनायत पहले तो "तूदे" नामक दल में सक्रिय थे। बाद में वे सोशलिस्टों के समर्थक बन गए। इसके बाद वे राष्ट्रवादियों और धार्मिक लोगों से प्रभावित हुए। इसी दौरान हमीद इनायत ने अपनी पढ़ाई का क्रम जारी रखा और लंदन स्कूल आफ इक्नोमिक्स से डाक्टरेट की। वे तेहरान विश्व विद्यालय में पढ़ाते थे। सन 1359 हिजरी शमसी में हमीद इनायत ब्रिटेन गए और "सेंट एन्टोनीज़ कालेज" आक्सफोर्ड में एसिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हो गए। उन्होंने वहां पर "वर्तमान इस्लाम में राजनीति" नामक अपनी किताब पूरी की। हमीद इनायत ने अपनी इस किताब को शहीद मुरतज़ा मुत्तहहरी को समर्पित किया था।
डाक्टर हमीद इनायत ने एक अन्य किताब भी लिखी है जिसका नाम है "तीसरी दुनिया में क्रांति"। इस किताब में उनके कुछ लेख भी शामिल हैं। इस किताब में उन्होंने ईरान के वामपंथियों के विचारों की कड़ी आलोचना की है क्योंकि इन लोगों ने ईरान की इस्लामी क्रांति जैसी महान घटना को बहुत घटाकर पेश किया है। उन्होंने इस क्रांति को साधारण से सत्ता स्थानांतरण के रूप में दर्शाने का प्रयास किया। डाक्टर हमीद इनायत का मानना है कि ईरान की इस्लामी क्रांति कोई सामान्य घटना नहीं थी क्योंकि इसने राजनीति, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक स्तर पर पूरे देश में व्यापक परिवर्तन किये।
हमीद इनायत का मानना है कि ईरान का इन्क़ेलाब, इस्लामी क्रांति के विचार की पुष्टि करने वाला है। अन्य क्रांतियों की भांति यह न केवल सामाजिक एवं आर्थिक समस्याओं का समाधान करने वाला है बल्कि यह समाज में बहुत बड़े सामाजिक एवं आर्थिक परिवर्तन का कारण बना है। वे यह भी कहते हैं कि जैसाकि कुछ विचारक मानते हैं कि समाज के मध्यवर्ग का विकास या ग्रामीणों का नगरों की ओर पलायन जैसे विषय भी क्रांति के प्रमुख कारक होते हैं किंतु हमीद इनायत कहते हैं कि यह किसी भी क्रांति के मूल तत्व नहीं हो सकते।
डाक्टर हमीद इनायत कहते हैं कि संसार की क्रांतियों की तुलना में ईरान की इस्लामी क्रांति के कारक भिन्न हैं। वे धर्म की भूमिका को ईरान की इस्लामी क्रांति का सबसे महत्वपूर्ण कारक मानते हैं। उनका कहना है कि इस्लामी क्रांति में आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनैतिक कारकों का प्रभाव धर्म के बाद है और इसमें धर्म का प्रभाव सर्वोपरि है। इस बारे में हमीद इनायत लिखते हैं कि मैं ईरान की इस्लामी क्रांति में धर्म की भूमिका को सबसे प्रभावी भूमिका मानता हूं। यह क्रांति लोगों में धार्मिक जागरूकता को विस्तृत करने के उद्देश्य से आई। ईरान की इस्लामी क्रांति ने शिया मुसलमानों की विचारधारा को अपना आधार बनाया। वे कहते हैं कि शिया विचारधारा के ही कारण इस क्रांति ने कुछ ऐसी विशेषताएं प्राप्त कीं जो समकालीन क्रांतियों में नहीं पाई जातीं।
इस प्रकार कहा जा सकता है कि दिवंगत डाक्टर हमीद इनायत की रचनाओं में जहां-जहां इस्लामी क्रांति का उल्लेख मिलता है वहां पर धर्म को क्रांति के मुख्य कारक के रूप में पेश किया गया है। उनका मानना है कि ईरान के पिछले 100 वर्षों के इतिहास से यह पता चलता है कि इस दौरान ईरान की जनता ने बड़ी-बड़ी घटनाओं में केवल धर्मगुरूओं का ही अनुसरण किया है।
डाक्टर हमीद इनायत इस प्रश्न को पेश करते हैं कि शिया विचारधारा किस प्रकार से ईरान की इस्लामी क्रांति की आइडियालोजी बन गई? इस संबन्ध में वे ईरान में पिछली एक शताब्दी के दौरान घटने वाली कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं का उल्लेख करते हैं। इस संदर्भ में वे तंबाकू आन्दोलन, संविधान क्रांति, तेल का राष्ट्रीयकरण तथा 15 ख़ुरदाद आन्दोलन आदि का उल्लेख करते हैं। वे कहते हैं कि इन सभी महत्वूपर्ण एवं ऐतिहासिक घटनाओं में धर्मगुरूओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और जनता ने उनका अनुसरण किया। इस प्रकार कहा जा सकता है कि ईरान में 1979 की इस्लामी क्रांति की सफलता में भी धर्म की ही केन्द्रीय भूमिका रही है। उनके अनुसार पिछली घटनाओं में अगर धर्म की भूमिका नहीं होती तो फिर इस्लामी क्रांति में भी उसकी भूमिका शायद नहीं दिखाई देती। यही कारण है कि डाक्टर इनायत "निकी कैडी" जैसे विचारकों की इस विचारधारा से सहमत नहीं हैं कि ईरान की इस्लामी क्रांति का मुख्य कारक धर्म नहीं था। उनका कहना है कि धर्म ने ही ईरानी जनता को उनके वैध अधिकार दिलाने में सहायता की है।
डाक्टर इनायत कहते हैं कि स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी ने क्रांति के दौरान शाही व्यवस्था के अत्याचारों से लोगों को जागरूक करने के लिए धर्म का सहारा लिया था। इस बारे में वे लिखत हैं कि अन्य धार्मिक नेताओं की तुलना में इमाम ख़ुमैनी ने क्रांति के दौरान करबला की घटना को बहुत ही प्रभावी ढंग से पेश किया। वे लिखते हैं कि उन्होंने अपने दूरदर्शी नेतृत्व से इस्लामी क्रांति के दौरान हिंसा को उसके सबसे निचले स्तर तक पहुंचाया। इमाम खुमैनी की एक विशेषता यह भी थी कि उन्होंने धर्म के साथ ही विभिन्न विचारधाराओं और राजनैतिक गुटों को एक प्लेटफार्म पर एकत्रित किया। उन्होंने क्रांति, स्वतंत्रता और इस्लामी लोकतंत्र जैसे नारों से जनता को एकजुट कर दिया।
इन बातों के साथ ही डाक्टर हमीद इनायत के दृष्टिकोण में कुछ ऐसी बातें भी हैं जो विचार योगय हैं। उनका मानना है कि शिया विचारधारा में इन्तेज़ार, ग़ैबत, करबला और इसी प्रकार के कुछ शब्द मिलते हैं जिनका विशेष महत्व है। करबला की घटना अत्याचार के मुक़ाबले में धैर्य का पाठ देती है। ग़ैबत से हमको मोक्षदाता की प्रतीक्षा की सीख मिलती है। करबला की घटना मनुष्य में एक प्रकार की क्रांति और जोश भरती है। ईरान की इस्लामी क्रांति, करबला की घटना से अस्तित्व में आई है। वे लिखते हैं कि पिछले 100 वर्षों के दौरान शिया संप्रदाय की सोच इस शब्द से धीरे-धीरे बदलती गई है। इसका मुख्य भाव या अर्थ अत्याचार से दूरी और उससे घृणा है। हमीद इनायत लिखते हैं कि निश्चित रूप में इस सोच के बिना वो सब नहीं किया जा सकता था जो ईरानी जनता ने 1979 की क्रांति के दौरान कर दिखाया। डाक्टर हमीद इनायत के कुछ विचार इसाई धर्म के प्रोटेस्टेंटनिज़्म से प्रभावित रहे हैं क्योंकि इन्तेज़ार, ग़ैबत और करबला जैसे शब्दों में आरंभ से ही क्रांति की भावना निहित रही है। यही भावना ईरान की इस्लामी क्रांति के दौरान क्रांतिकारियों में देखी गई जिसे स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी ने उनके भीतर पैदा किया। इन्तेज़ार, ग़ैबत और करबला जैसे शब्दों में शुरू से ही क्रांति और जोश की भावना निहित थी किंतु बीच में कुछ अवसरवादी शासकों ने अपने हितों की पूर्ति के लिए इन शब्दों का दुरूपयोग किया। इन शब्दों ने ईरान की इस्लामी क्रांति में पुनः अपने वास्तविक अर्थ प्राप्त हुआ।