इस्लाम में बाल अधिकार- 11
पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों और वैज्ञानिकों की नज़र में गर्भधारण के समय बच्चे पर शारीरिक व मानसिक दृष्टि से बहुत ज़्यादा असर पड़ता है और भ्रूण पर मां के व्यवहार का भी असर पड़ता है।
एक और विषय जिस पर इस्लाम ने गर्भाधारण के समय बच्चे के अधिकार की रक्षा की दृष्टि से बल दिया है वह गर्भवती महिला से कुछ ज़िम्मेदारियों का ख़त्म होना है। इस्लामी धर्मशास्त्र में एक अनिवार्य कर्म जिस पर सभी मुसलमान एकमत हैं, पवित्र रमज़ान में रोज़ा रखना है। धर्मशास्त्र की दृष्टि से अगर रोज़ा रखना गर्भवती महिला या गर्भ में पल रहे बच्चे के लिए नुक़सानदेह हो तो गर्भवती महिला से रोज़े की अनिवार्यता ख़त्म हो जाती है। शिया वरिष्ठ धर्मगुरुओं की नज़र में अगर पेट में पल रहे बच्चे को नुक़सान पहुंचने का ख़तरा हो तो रोज़े की अनिवार्यता ख़त्म हो जाती है। इस बारे में अल्लामा हिल्ली कहते हैः "कुछ वरिष्ठ धर्मगुरुओं ने इस ओर इशारा किया है कि भ्रूण को नुक़सान पहुंचने के ख़तरे के बावजूद रोज़ा रख ले और उसे नुक़सान पहुंचे या गर्भपात हो जाए तो रोज़ा टूट जाता है और अगर गर्भपात रोज़ा रखने की वजह से हो तो भ्रूण का हर्जाना देना ज़रूरी है।"
इसी तरह गर्भधारण के समय मां कोई अपराध करती है और उसे दंडित करने की वजह से बच्चे के स्वास्थ्य को नुक़सान पहुंच सकता है तो मां को दंडित करना विलंबित हो जाएगा यहां तक कि कुछ स्थिति में बच्चे की पैदाइश के कुछ समय बाद तक के लिए भी विलंबित हो जाएगा चाहे महिला अवैध तरीक़े से गर्भवती हुयी हो। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम और हज़रत अली अलैहिस्सलाम के आचरण से इस बात की पुष्टि होती है।
वरिष्ठ शिया धर्मगुरुओं ने बदला लेने के संबंध में मौत की सज़ा जैसे दंड के बारे में कहा है कि गर्भवती औरत को मौत की सज़ा बच्चे की पैदाइश तक विलंबित रहेगी बल्कि मां को बच्चे को दूध पिलाने की मुद्दत तक का अवसर दिया जाता है। इसी तरह कुछ वरिष्ठ धर्मगुरुओं का मानना है कि अगर नवजात की सरपरस्ती के लिए कोई न मिल रहा हो तो मां को दंडित करने की प्रक्रिया विलंबित हो जाएगी क्योंकि इस विलंब का कारण नवजात की रक्षा करना है।
इस बात का उल्लेख भी ज़रूरी है कि जब बदला लेने की प्रक्रिया बच्चे की रक्षा के लिए विलंबित हो जाती है तो हल्के दंड भी विलंबित हो जाएंगे अगर दंड देने से मां के पेट में पल रहे बच्चे पर असर पड़े।
अधिकार से संबंधित इस्लाम की व्यवस्था में भ्रूण के लिए नागरिक अधिकार को भी दृष्टिगत रखा गया है अगर बच्चा जीवित दुनिया में आए। परिणामस्वरूप गर्भाधारण के समय भ्रूण, पैदा हुए बच्चे की तरह नागरिक अधिकार से संपन्न होने के योग्य है। पेट में पल रहे बच्चे को अपने वारिस से मीरास मिलती है। इसी तरह उसके हित में वसीयत भी की जा सकती है। साथ ही बच्चे की रक्षा के लिए इस्लाम ने शौहर से बीवी के अलग होने के बावजूद भी बच्चे की पैदाइश तक औरत को दूसरी शादी से मना किया है। संगीत
इस्लाम की अधिकार से संबंधित व्यवस्था सहित, अधिकार से संबंधित ज़्यादातर व्यवस्थाओं के अनुसार, मां के पेट में बच्चे के ठहरने के समय से भ्रूण नागरिक अधिकारों से संपन्न होता है और इन अधिकारों में मीरास का हक़ ही शामिल है। मूरिस से मीरास पाने की शर्त यह है कि मूरिस की मौत के समय वह जीवित हो और भ्रूण के जीवित होने का मानदंड यह है कि कम से कम मूरिस की मौत के समय पेट में बच्चा आ गया हो। बहरहाल चूंकि हमारा लक्ष्य भ्रूण के के लिए अधिकार को सुनिश्चित करना है इसलिए उसके वजूद का साबित होना ज़रूरी है। अलबत्ता आज के मेडिकल साइंस की वजह से इसे साबित करना आसान हो गया है।
दूसरी शर्त नवजात का जीवित पैदा होना है। इस शर्त का यह अर्थ नहीं है कि बच्चा जीवित होने के समय से इस अधिकार का स्वामी हुआ है बल्कि इस अर्थ में है कि पेट में ठहरने के समय से वह इस अधिकार का स्वामी है। इस विषय के मद्देनज़र गर्भ में पलने वाले शिशु का जीवित पैदा होना, बाद की शर्त है जिससे पता चलता है कि मूरिस की संपत्ति के स्वामित्व का हस्तांतरण मूरिस के मरने के बाद हुआ है। अलबत्ता नवजात का जीवित पैदा होने का अर्थ यह है कि वह जीवित पैदा हो चाहे वह उसके बाद मर जाए। इसी तरह पेट में मौजूद बच्चे का एक अधिकार यह भी है कि उसके हित में रिश्तेदार व ग़ैर रिश्तेदार वसीयत कर सकते हैं।
बच्चे के जीवित पैदा होने के बाद बाल अधिकार की बात सामने आती है। बच्चा भ्रूण का चरण गुज़ारने के बाद दुनिया में आता है और उसके वजूद से परिवार पूरा होता है। बच्चे को विभिन्न आयामों से देखभाल व मदद की ज़रूरत होती है क्योंकि शारीरिक व मानसिक दृष्टि से विकास व स्वाधीनता के चरण तक पहुंचने में अक्षम होने की वजह से मां बाप पर निर्भर होता है।
बच्चे की पैदाइश के बाद पहला बहुत अहम विषय उसकी पैदाइश का पंजीकरण है। क्योंकि पैदाइश का पंजीकरण सरकार की ओर से बच्चे के वजूद को आधिकारिक रूप से पहचानने के अर्थ में है। दूसरे यह कि पैदाइश के पंजीकरण को सरकारों की ओर से बच्चों के लिए विशेष योजनाओं का मूल तत्व समझा जाता है। तीसरे यह कि पैदाइश का पंजीकरण बच्चे के अन्य अधिकारों की पूर्ति का एक साधन है जैसे जंग के समय, परिवार को छोड़ने और अपहरण के समय उसकी पहचान है ख़ास तौर पर उन बच्चों के लिए जो अवैध रूप से पैदा होते हैं। बाल अधिकार कन्वेन्शन की सातवीं धारा में आया है कि बच्चे की पैदाइश उसके पैदा होते ही तुरंत पंजीकृत होनी चाहिए।
बच्चे की पैदाइश के पंजीकरण के बाद, बच्चे की पहचान के लिए ज़रूरी है कि उसका कोई नाम रखा जाए। यह विषय बच्चे के भविष्य और उसके सामाजिक जीवन के लिए बहुत अहमियत रखता है। इस दृष्टि से दो बिन्दु अहम हैं। एक बच्चे का नाम होना चाहिए और दूसरे यह कि नाम अच्छा होना चाहिए। सभी बच्चों का नाम रखना मूल अधिकार है जिस पर किसी बहस की ज़रूरत नहीं है क्योंकि इस तरह बच्चे के लिए सामाजिक जीवन में अधिकार से लाभान्वित होने की पृष्ठिभूमि मुहैया होती है। अलबत्ता नाम के साथ साथ उपनाम या कुलनाम की भी ज़रूरत होती है जिस पर सभी देशों में बल दिया जाता है।
इस्लामी शिक्षाओं में बच्चे के लिए उचित नाम के चयन पर बहुत बल दिया गया है। पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों के कथनों पर आधारित स्रोतों में बच्चे के नाम के चयन से संबंधित एक विशेष अध्याय है। जैसा कि इस बारे में पैग़म्बरे इस्लाम का एक स्वर्ण कथन है जिसमें आपने हज़रत अली अलैहिस्सलाम को वसीयत करते हुए फ़रमायाः "बच्चे का बाप पर यह अधिकार है कि बाप उसका अच्छा नाम रखे।"
अलबत्ता इस्लाम में बच्चे की पैदाइश से पहले भी उसके लिए कुछ विशिष्टताएं मद्देनज़र रखी गयी हैं। कुछ रवायतों में है कि जब बच्चा मां के पेट में हो उसी समय उसके लिए नाम का चयन करना चाहिए। रवायतों में बल दिया गया है कि बच्चों का बेहतरीन नाम रखा जाए और ऐसे नाम से बचा जाए जिससे उनका मज़ाक़ बने।
अंतर्राष्ट्रीय दस्तावेज़ों में भी बच्चे की पैदाइश के तुरंत बाद उसका नाम रखने पर बल दिया गया है। इस अधिकार का बाल अधिकार कन्वेन्शन के सातवें अनुच्छेद में स्पष्ट रूप से उल्लेख है। इस कन्वेन्शन का आठवां अनुच्छेद बच्चे के पहचान के अधिकार के बारे में है। इसी तरह सरकारों को चाहिए कि लावारिस बच्चों के भी नाम हों। मानवाधिकार समिति के अनुसार, बच्चा अगर अवैध भी हो तब भी नाम रखने का अधिकार विशेष अहमियत रखता है।
अलबत्ता विगत में बाल अधिकार विश्व घोषणापत्र और नागरिक व सामाजिक संधिपत्र में भी बच्चे के इस मूल अधिकार का उल्लेख किया गया है। उक्त संधिपत्र के दूसरे अनुच्छेद में आया हैः "बच्चे की पैदाइश के तुरंत बाद उसका नाम रखा जाए और उसकी पैदाइश पंजीकृत हो।" इसलिए ईरान सहित कुछ देश बच्चे के लिए उचित नाम के चयन को बच्चे के मूल अधिकार में मानते हैं।