Apr १६, २०१९ १६:३७ Asia/Kolkata

हममें हर एक से जीवन में कुछ न कुछ गलतियां और भूल ज़रूर हुई है।

महत्वपूर्ण यह है कि हम यह समझें कि हमसे क्या ग़लती और क्या भूल हुई है और हम उसकी पुनरावृत्ति न करें।

पति-पत्नी से भी संयुक्त जीवन में बहुत सी गलतियां किये होती हैं। वास्तव में कभी हमारी गलतियां हमारे संयुक्त जीवन के स्तंभों को हिला देती हैं। जब ये गलतियां होती हैं तो हो सकता है कि जब हम इन गलतियों को कहते हैं तो हमारे कहने के अंदाज़ से स्थिति और विषम व जटिल हो जाये किन्तु गलती वह चीज है जिसे स्वीकार करना चाहिये। विशेषज्ञों का कहना है कि जब पति या पत्नी में से किसी एक से ग़लती हो जाये तो सच्चे दिल से उसे स्वीकार करना चाहिये और इस बात को ध्यान में रखना चाहिये कि इससे दूसरे की भावनाओं को ठेस न पहुंचे। दूसरे शब्दों में सच्चाई से अपनी गलती को स्वीकार कर लेना और उस पर शर्मिन्दगी व्यक्त करना इस मामले का बेहतरीन समाधान है। क्योंकि गलती के स्वीकार न करने से मतभेद और अधिक हो जाते हैं और जब तक हम अपनी ग़लती स्वीकार न करें और सच्चे दिल से अपने जीवन साथी से माफी न मांगे तो हमारा दांपत्य जीवन अच्छा नहीं हो पाता है।

कार्यक्रम के इस भाग में हम आपका ध्यान उन बिन्दुओं की ओर आकृष्ट करना चाहते हैं जो संयुक्त जीवन को मधुर व मज़बूत बनाते हैं। परिवार समाज की महत्वपूर्ण इकाई होते हैं और परिवार विभिन्न  प्रकार की संस्कृतियों के संगम होते हैं यहां तक कि यही संस्कृतियां समाजों के कल्याण या उनकी गुमराही का कारण भी बनती हैं। समाज के स्वस्थ होने की पहली शर्त परिवार का अच्छा होना है। आज मानव समाज ने ज्ञान- विज्ञान और संस्कृति आदि के क्षेत्र में जो भी उपलब्धियां अर्जित की हैं वे सब एक स्वस्थ व मज़बूत परिवार की छत्रछाया में ही हासिल हुई हैं। परिवार के लक्ष्य और उसके नियोजन की मांग यह है कि पति-पत्नी इसे मज़बूत करने के लिए प्रयास करें और जिन कारणों से परिवार की बुनियाद रखी है उन कारणों के जारी रहने पर आग्रह करें ताकि अंत तक इसकी मज़बूती की रक्षा हो सके।

 

परिवार के स्वस्थ होने और उसकी मज़बूती का एक कारण वित्तीय विषय है। परिवार के स्तंभों को मज़बूती प्रदान करने के लिए हलाल व वैध आजीविका के लिए प्रयास करने की महत्वपूर्ण भूमिका है। स्वस्थ परिवार स्वस्थ समाज की भूमिका है। अगर परिवार आध्यात्मिक और भौतिक दृष्टि से स्वस्थ नहीं होगा तो समाज पर भी उसका प्रभाव पड़ेगा। ईश्वरीय धर्म इस्लाम में हलाल आजीविका कमाने की दिशा में कार्य व प्रयास की बहुत प्रशंसा की गयी है और उसे परिवार की मज़बूती का रहस्य बताया गया है इस प्रकार से कि पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों के कथनों में इस बात पर बारमबार बल दिया गया है। व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में आजीविका का महत्व इसलिए है क्योंकि आरंभ में इंसान उसके माध्यम से विकास करता है और जीवन के अंत तक इंसान का उससे संबंध रहता है और वह बहुत महत्वपूर्ण एवं उसके बहुत सारे लाभ हैं। आजीविका का एक लाभ यह है कि इंसान जो कमाता है उससे उसको और उसके परिवार को शांति मिलती है और यही नहीं आजीविका परिवार को बहुत से लड़ाई झगड़ों से रोकता है।

पारिवारिक मामलों की एक विशेषज्ञ श्रीमती ज़हरा मिर्ज़ाई कहती हैं जो वैध व हलाल माल पर विश्वास रखते हैं वे अवैध माल के मुकाबले में वैध माल के थोड़ा होने को भी प्राथमिकता देते हैं जो लोग हलाल माल पर प्रसन्न होते हैं वे अपने जीवन के खर्चे को कम करते हैं और जीवन में शांति का आभास करते हैं। जो परिवार हलाल की रोटी खाते हैं वे अपने परलोक को दुनिया से नहीं बेचते और जीवन में कंजूसी करने, ईर्ष्या करने और बेकार के खर्चों से बचते हैं। ऐसे लोग अपनी आर्थिक स्थिति का सही संचालन करके परिवार की मज़बूती में सहायता करते हैं।

इसी प्रकार श्रीमती ज़हरा मिर्ज़ाइ का मानना है कि परिवार की मज़बूती का सीधा संबंध उसकी अच्छी आर्थिक स्थिति से है इंसान का माल जितना अधिक वैध और हलाल होगा उतना अधिक उसमें बरकत भी होगी।

अलबत्ता इस बात को ध्यान में रखना चाहिये कि पवित्र कुरआन ने उन अनुकंपाओं से अनदेखी का आदेश नहीं दिया है जिन्हें महान ईश्वर ने हलाल किया है। इसी तरह ईश्वर निर्धनता को मूल्यवान नहीं समझा बल्कि उसने सदैव इंसान का आह्वान कार्य व प्रयास के लिए किया है ताकि हलाल आजीविका के माध्यम से उसका जीवन आराम व कल्याणमय हो। महान ईश्वर पवित्र कुरआन के सूरे बकरा की 162वीं आयत के एक भाग में कहता है” हे लोगो जो कुछ ज़मीन में हलाल व पाक है उसे खाओ।“  

प्रतिष्ठित जीवन बिताने के लिए ज़रूरी है कि इंसान प्रतिष्ठित रोज़गार का चयन करे और उसके माध्यम से अपनी आजीविका कमाये। क्योंकि बेकारी, अच्छे कार्य का न होना और समय बर्बाद करने का परिणाम यह होता है कि स्वयं   इंसान और उसका परिवार दूसरों का बोझ बन जाता है। इस प्रकार का व्यक्ति महान ईश्वर की दयादृष्टि से दूर हो जाता है। पैग़म्बरे इस्लाम फरमाते हैं” जो अपनी मेहनत व कमाई की रोटी खाये ईश्वर उस पर कृपा दृष्टि करेगा और उस पर प्रकोप नहीं करेगा।

इस्लाम ने परिवार के आराम के लिए बहुत सिफारिश की है। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम इस संबंध में फरमाते हैं” अगर मैं बाज़ार में दाखिल हूं और मेरे पास पैसा रहे तो मैं उस पैसे से अपने परिवार के लिए मांस का प्रबंध करूंगा, यह कार्य मेरे लिए ईश्वर की राह में बंदा आज़ाद करने से अधिक प्रिय है।“

जो लोग माली हालत के अच्छी होने के बावजूद अपने परिवार से कड़ाई से पेश आते हैं पैग़म्बरे इस्लाम एसे लोगों के बारे में फरमाते हैं” जिसकी माली दशा अच्छी हो परंतु वह परिवार से कड़ाई से पेश आता है और वह अपने परिजनों को आराम से वंचित रखता है तो एसा व्यक्ति मुझसे नहीं है।

अच्छा व वैध कार्य न होने का परिणाम दिल का सख्त हो जाना है। इंसान जो खाना खाता है अगर वह हलाल नहीं होता है तो वह दिल को कठोर करता है। इस स्थिति में उससे भलाई की आशा नहीं की जा सकती और नसीहत व उपदेश उसमें असर नहीं करते हैं। इसी प्रकार हृदय विदारक दृश्यों को भी देखकर वह प्रभावित नहीं होता है। कर्बला में जब इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने यज़ीद के राक्षसी सैनिकों को बहुत उपदेश दिये परंतु वे टस से मस नहीं हुए तो इमाम ने कहा तुम मेरी अवज्ञा कर रहे हो और मेरी बातों को नहीं सुन रहे हो तो उसकी वजह यह है कि तुम्हारे पेट हराम से भरे हुए हैं और तुम्हारे दिलों पर मुहर लग गयी है अब तुम सत्य को स्वीकार नहीं करोगे।“

इस बात में कोई संदेह नहीं है कि जो आजीविका के हलाल होने पर ध्यान नहीं देगा तो उसका नकारात्मक प्रभाव इंसान के वंश पर  पड़ेगा। आमदनी के वैध न होने का प्रभाव इंसान की संतान पर पड़ेगा और परिवार के सदस्यों का रुजहान पापों की ओर अधिक होगा। अतः उनका प्रशिक्षण और कठिन हो जायेगा। हराम नेवाला बच्चे की जान और उसकी आत्मा में इस प्रकार असर करता है कि आसानी से वह कल्याण का मार्ग ही नहीं ढूंढ़ सकता। इसलिए हलाल आजीविका कमाने और उसे परिवार को देना परिवार की मज़बूती का एक महत्वपूर्ण कारण है। जो इंसान सदैव अपने परिवार की सेवा में रहता है और इस संबंध में वह किसी प्रकार के प्रयास में संकोच से काम नहीं लेता है इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम इस प्रकार के व्यक्ति के बारे में फरमाते हैं जो इंसान ईश्वर की कृपा पर भरोसा करके हलाल आजीविका प्राप्त करने का प्रयास करता है उसका प्रतिदान ईश्वर के मार्ग में जेहाद करने वाले व्यक्ति से अधिक है।“

यहां हम पवित्र कुरआन की उस आयत का उल्लेख करते हैं जिसमें महान ईश्वर परिवार के बारे में कुछ बिन्दुओं को बयान करते हुए कहता है” हे ईमान लाने वालो अपने को और अपने परिवार को उस आग से बचाओ जिसके ईंधन लोग और पत्थर होंगे।

यहां सवाल यह पैदा होता है कि इंसान किस प्रकार स्वयं को बचाये? धार्मिक मामलों के विशेषज्ञों का मानना है कि पापों को न करना और अपनी ग़लत इच्छाओं के सामने नतमस्तक न होना स्वयं और अपने परिवार के बचाने का कारण है। इसी प्रकार इन विशेषज्ञों का कहना है कि अच्छे कार्यों का आदेश देना और बुरे कार्यों से रोकना और गलत माहौल से दूरी स्वयं को और अपने परिवार को बचाने का मार्ग है। यह वह चीज़ें हैं जिनका ध्यान उसे रखना चाहिये जब विवाह की आधार मिला रखी जाये और पहली संतान पैदा हो तो जीवन के समस्त चरणों में उसका ध्यान रखा जाना चाहिये। दूसरे शब्दों में पत्नी और संतान का अधिकार केवल यह नहीं है कि उनके खाने, पीने और कपड़े तथा मकान का प्रबंध कर दिया जाये बल्कि उससे भी महत्वपूर्ण यह है कि उनकी आत्मा के भोजन का प्रबंध किया जाये और इस्लामी सिद्धांतों के अनुसार उनका सही प्रशिक्षण किया जाये।

 

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