IRGC पर प्रतिबंध- 2
अमरीका ने मध्यपूर्व में कई स्थानों पर अपनी नीतियों को लागू करने में असमर्थ रहने के कारण ही ईरान के आईआरजीसी या इस्लामी क्रांति के संरक्षक बल को विदेशी आतंकवादी दल घोषित किया है।
ईरान, मध्यपूर्व में एक के बाद एक कई अमरीकी योजनाओं पर पानी फेर चुका है जैसे सीरिया और इराक़ में खुली पराजय, डील आफ द सेंचुरी को लागू करने में बाधाएं, फ़िलिस्तीनी गुटों के प्रतिरोध को रोकने में विफलता और दाइश, अलक़ाएदा एवं नुस्रा फ्रंट के समर्थन आदि जैसे कुछ विषय।
मध्यपूर्व में अमरीकी लक्ष्यों की प्राप्ति में सबसे बड़ी बाधा आईआरजीसी का क़ुद्स ब्रिगेड रहा है। इसके अतिरिक्त भी कई अन्य एसे कारण हैं जिनकी वजह से अमरीका ने सिपाहे पासदारान को आतंकवादी गुट घोषित किया है। इस प्रकार की कार्यवाही का एक अन्य उद्देश्य, ईरान के विरुद्ध अधिक से अधिक आर्थिक दबाव बनाना है। वैसे ट्रम्प ने परमाणु समझौते से एकपक्षीय रूप में निकलने के बाद से ही ईरान पर आर्थिक दबाव बढ़ाने के लिए कार्यवाही आरंभ कर दी थीं जो अब भी जारी हैं।
सिपाहे पासदारान या आईआरजीसी पर प्रतिबंध लगाने से पहले अमरीका का वित्त मंत्रालय आईआरजीसी की क़ुद्स ब्रिगेड को प्रतिबंधित कर चुका है और इससे संबन्धित कंपनियों को भी ब्लैक लिस्टेड किया है। अब अमरीकी अधिकारियों का दावा है कि आईआरजीसी को पूर्ण से रूप से प्रतिबंधित करने से ईरान पर अधिक दबाव बढ़ेगा। अमरीकी कांग्रेस ने अगस्त 2017 को Countring Americas Adversery through Sanction Act अर्थात "कास्ता" क़ानून पारित कराया। इसके माध्यम से ईरान, रूस और उत्तरी कोरिया को लक्ष्य बनाया गया था। ट्रम्प के हस्ताक्षर के बाद 2 अगस्त 2017 को इसे क़ानून का रूप दे दिया गया। कास्ता क़ानून संयुक्त राज्य अमरीका के राष्ट्रपति को यह अधिकार देता है कि वह आईआरजीसी और उससे संबन्धित लोगों को प्रतिबंधित कर दे।
अमरीकी अधिकारियों का मानना है कि इस प्रकार की कार्यवाहियों से इस्लामी गणतंत्र ईरान को कमज़ोर करके इस व्यवस्था को गिराया जा सकता है। अमरीकी राष्ट्रपति कहते हैं कि ईरान की आर्थिक गतिविधियों में सिपाह की महत्वूपर्ण भूमिका है और वह हमास एवं हिज़बुल्लाह की भी सहायता करता है।
ट्रम्प की ओर से आईआरजीसी को प्रतिबंधित करने का एक अन्य कारण इस्राईल के आम चुनाव हैं। अमरीकी राष्ट्रपति ज़ायोनी शासन के प्रधानमंत्री नेतनयाहू का खुलकर समर्थन करते हैं। बैतुल मुक़द्दस को आधिकारिक रूप में ज़ायोनी शासन की राजधानी के रूप में स्वीकार करना और सीरिया की गोलान हाइट्स पर इस्राईल के अवैध अधिकार को वैध मानने जैसे कामों को इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है। यही कारण है कि इस्राईल के आम चुनावों से ठीक एक दिन पहले ट्रम्प ने आईआरजीसी को प्रतिबंधित करने का एलान किया। यह वही काम है जो लंबे समय से नेतनयाहू की अभिलाषा थी। नेतनयाहू ने इस मुद्दे को इस्राईल के चुनाव में प्रयोग किया है। ट्रम्प की विस्तृत सहायता के कारण ही नेतनयाहू ने अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन में आम चुनाव में विजय प्राप्त की।
एक राजनैतिक टीकाकार हसन आबेदीनी का कहना है कि ट्रम्प द्वारा अमरीकी दूतावास को तेलअवीव से बैतुल मुक़द्दस स्थानांतरित करने, सीरिया की गोलान हाइट्स को अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन का भाग मानने और आईआरजीसी के विरुद्ध कार्यवाही का मुख्य उद्देश्य यहूदी लाबी का अधिक से अधिक समर्थन हासिल करना रहा है।
अमरीका की ओर से इस्लामी क्रांति के संरक्षक बलों को प्रतिबंधित करने की कार्यवाही की समीक्षा दो आयामों से की जा सकती है। ट्रम्प सरकार का दावा है कि हर वह कंपनी, बैंक एवं सरकारी संस्था को जो सिपाहे पासदारान को साथ वित्तीय सहयोग करेगी आतंकवादी संगठन के साथ व्यापार करने के आरोप में दंडित किया जाएगा। इस प्रकार ट्रम्प, सिपाह के आर्थिक स्रोतों और आय से वंचित करना चाहते हैं। ट्रम्प का दावा है कि इस प्रकार से सिपाह की ओर से हिज़बुल्लाह और हमास का समर्थन भी बंद हो जाएगा। अमरीकी विदेशमंत्रालय में ईरान एक्शन ग्रुप के प्रमुख ब्रायन हुक ने स्पष्ट रूप से कहा है कि आईआरजीसी को प्रतिबंधित करने का एक लक्ष्य, ईरान के आर्थिक स्रोतों को बंद करना और उसपर आर्थिक दबाव डालना है। वाइट हाउस के अधिकारियों का दावा है कि सिपाह पर प्रतिबंध, इस संगठन को कमज़ोर करेगी जिसके परिणाम स्वरूप उसकी विदेशी गतिविधियां बंद हो जाएंगी।
अमरीका की ओर से इस्लामी क्रांति के संरक्षक बलों को प्रतिबंधित करने की कार्यवाही का दूसरा आयाम इसके सुरक्षा संबन्धी दुष्परिणाम हैं। इस समय फ़ार्स की खाड़ी में ईरान और अमरीका के सैनिक आमने सामने हैं। अब जबकि ट्रम्प की ओर से आईआरजीसी को एक आंतकवादी संगठन घोषित किया गया तो स्वभाविक रूप में अमरीकी सैनिक उनके मुक़ाबले में आएंगे। दूसरी ओर ईरान की राष्ट्रीय सुरक्षा की उच्च परिषद ने CENTCOM अर्थात United States Central Command में भी अमरीकी सैनिकों को आतंकवादी माना है। इस प्रकार ईरान और अमरीका के बीच सैन्य झड़पों की संभावना बढ गई है। इस संदर्भ में इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता के सैन्य सलाहकार मेजर जरनल सैयद यहया सफ़वी ने कहा है कि अमरीकी सैनिक ईरान और सिपाहे पासदारान की शक्ति से भलिभांति अवगत हैं। उन्होंने कहा कि यदि ईरान के बारे में कोई भी ग़लती की गई तो उसका मुंहतोड़ उत्तर दिया जाएगा।
इसी संदर्भ में ईरान के विदेश उपमंत्री सैयद अब्बास इराक़ची ने अमरीका की ओर से इस्लामी क्रांति के संरक्षक बलों को प्रतिबंधित करने के निर्णय को तेहरान और वाशिग्टन के बीच बहुत ही गंभीर परिवर्तन बताया है। उन्होंने फ़ार्स की खाड़ी में अमरीकी सैनिकों की गतिविधियों की ओर संकेत करते हुए कहा कि फ़ार्स की खाड़ी की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी सिपाहे पासदारान या आईआरजीसी के कांधो पर है। इराक़ची के अनुसार एसे में नई घटनाएं घट सकती हैं। उन्होंने कहा कि अमरीका ने आईआरजीसी को प्रतिबंधित करके इस्लामी गणतंत्र ईरान की लाल रेखा का उल्लंघन किया है। आईआरजीसी के संबन्ध में ट्रम्प के हालिया निर्णय के बाद अमरीकी सैनिकों को क्षेत्र में सैनिक न समझकर आतंकवादी समझा जाएगा।
इस बारे में पेंटागन पहले ही ट्रम्प को चेतावनी दे चुका है। अब सवाल यह उठता है कि अपने हालिया फैसले से ट्रम्प क्या ईरान के साथ सीधा सैन्य टकराव चाहते हैं जो अवैध ज़ायोनी शासन की हार्दिक इच्छा है? इसका जवाब तो वक़्त ही देगा। यहां यह बात पूरे विश्वास के साथ कही जा सकती है कि ट्रम्प सरकार में ईरान के विरुद्ध हमला करने की हिम्मत नहीं है। इससे पहले फ़ार्स की खाड़ी में अमरीका के नौसैनिकों के अतिक्रमण के बाद ईरान की प्रतिक्रिया ने अमरीका को लज्जित कर दिया था। वह घटना अमरीकियों को अब भी याद होगी। वास्तव में अमरीकी सैनिकों के भीतर जो ईरान की दृष्टि में अब आतंकवादी बन चुके हैं भय पाया जाता है। शायद यही वजह है कि ईरान के इस फैसले के बाद इराक़ में अमरीकी सैन्य अडडों की सुरक्षा बढ़ा दी गई है। पेंटागन के प्रवक्ता रिबेका रेबारिच ने कहा है कि अमरीकी रक्षामंत्रालय अपने सैनिकों की सुरक्षा के स्तर को सार्वजनिक नहीं करेगा किंतु उनकी अधिक से अधिक सुरक्षा के प्रयास जारी रखेगा। यह बातें सिपाहे पासदारान से अमरीकी सैनिकों के भय को दर्शाती हैं।
अमरीकी विदेशमंत्रालय में ईरान एक्शन ग्रुप के प्रमुख ब्रायन हुक ने स्पष्ट रूप से कहा है कि अमरीका की नीति, ईरान के साथ युद्ध से बचने पर आधारित है। उन्होंने कहा कि अमरीका, ईरान के खिलाफ युद्ध नहीं चाहता। ब्रायन हुक ने यह भी कहा कि आईआरजीसी को आतंकवादी घोषित करने का उद्देश्य ईरान को अपना व्यवहार बदलने पर मजबूर करना है न कि उससे युद्ध करना। वास्तव में अमरीका के इस क़दम का उद्देश्य, ईरान को अपनी नीतियां बदलने पर मजबूर करना है किंतु उसकी नीति में युद्ध का कहीं निशान नहीं मिलता।
एक अमरीकी अधिकारी ने रोएटर्ज़ को अपना नाम गुप्त रखने की शर्त पर बताया है कि ईरान की इस्लामी क्रांति के सुरक्षाबलों को आतंकवादी गुटों की सूचि में शामिल करने का अर्थ यह नहीं है कि अमरीका, ईरान के साथ युद्ध चाहता है। उन्होंने कहा कि एसा नहीं है कि अमरीकी सेना दाइश या अलक़ाएदा की भांति आईआरजीसी के विरुद्ध कोई कार्यवाही करेगी। इस अमरीकी अधिकारी ने बताया कि सेना को इस प्रकार का कोई भी आदेश नहीं मिला है। उन्होंने कहा कि ईरान के साथ युद्ध जैसा कोई भी विषय हमारे सामने नहीं है।
अमरीकी अधिकारियों की लीचीली नीति दर्शाती है कि आईआरजीसी को आतंकवादी गुट घोषित करने से ट्रम्प का मुख्य लक्ष्य चुनाव के समय नेतनयाहू का साथ देना था। दूसरी ओर ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता, इस्लामी शासन व्यवस्था और ईरानी जनता की ओर से सिपाहे पासदारान के समर्थन ने ईरान की राष्ट्रीय एकता को सिद्ध कर दिया है जिसके कारण अमरीकी अधिकारियों में भय व्याप्त है। इसी के साथ उन्हें यह भी पता है कि ईरान के साथ युद्ध की उन्हें कितनी भारी क़ीमत चुकानी होगी।