Apr २२, २०१९ १६:१८ Asia/Kolkata

हमने ईरान की सरायों के बारे में चर्चा की थी और आपको इन प्राचीन इमारतों की वास्तुकला के बारे में बताया था।

सराएं वह इमारतें हैं जहां पुराने ज़माने में काफ़िले आकर ठहरा करते थे। इसके बीच में बड़ा सा प्रांगड़ होता था। इसका प्रवेश द्वार काफ़ी बड़ा और चौड़ा होता था तथा बहुत सादगी से बना दिया जाता था। प्रवेश द्वार और प्रांगड़ के बीच में एक दालान बनाई जाती थी जिसमें धनुषाकार बड़े बड़े ताक़ बने होते थे। अतीत में सरायों में ढेर सारे कमरे होते थे जहां यात्री विश्राम करते थे, अपने जानवरों को विश्राम करवाते थे। सौदागरों के सामान रखने के लिए गोदाम बने होते थे। इन सरायों में काफ़िले कुछ घंटों से लेकर कुछ दिनों तक ठहरा करते थे। फ़ारसी भाषा में सराय के लिए कई शब्द प्रयोग होते हैं। इसका कारण यह है कि सरायें कई प्रकार की होती थीं और उनका निर्माण अलग अलग रूपों में किया जाता था। सबके अलग अलग नाम होते थे जैसे कारबात, रबात, साबात, ख़ान आदि।

साबात का मतलब होता है विश्राम की जगह मगर साबात उन सरायों को कहा जाता था जो विश्राम के लिए बनाई जाती थीं। इनका आकार छोटा होता था। इनका निर्माण शहर के भीतर और बाहर किया जाता था। साबात में कई छोटे कमरे होते थे, एक बड़ा हाल होता था और एक गोदाम होता था। साबात वह सराय थी जहां कम समय के लिए क़ाफ़िले ठहरते थे। साबात की इमारत में छह से सात प्रवेश द्वार होते थे और उसके बाहरी भाग में तख़्त और बेंच रखी थी जहां मुसाफ़िर थोड़ी देर बैठ कर सुस्ता लिया करते थे।

एक अन्य प्रकार की सराय को रबात कहा जाता था। यह इमारत आम तौर पर रास्ते के किनारे विशेष रूप से आबादी से बाहर बने रास्तों के किनारे बनी होती थी। यह इमारत काफ़ी बड़ी होती थी और इसमें कई कमरे बने होते थे। रबात में मुसाफ़िर आम तौर पर एक दिन से ज़्यादा ठहरते थे। रबात कही जाने वाली सरायों में यात्रियों के लिए काफ़ी सुविधाएं दी जाती थीं। इसमें बड़ा हौज़ होता था, बहुत हरा भरा प्रांगड़ होता था, जहां लोग बैठते और अपनी थकन दूर करते थे और वहां के दृष्य यात्रियों के लिए वहां बिताया गया समय यादगार बना देते थे। वहां कई पहरेदार होते थे और ऊंचे खंभे बने होते थे जहां पहरेदार खड़े होकर दूर तक नज़र रखते थे। रबात की इमारत की छत ढलवां होती थी इसे ईंटों और मज़बूत मसालों से बनाया जाता था। फ़्रांस के विख्या सैलानी आंद्रे गुदार रबात के बारे में लिखते हैं कि यह एक प्रकार का दुर्ग होता था जिसे इस्लामी इलाक़ों में सीमा वर्ती क्षेत्रों में बनाया जाता था और इसे सैनिक इमारतों में गिना जाता  था। बाद में धीरे धीरे इन इमारतों में क़ाफ़िले ठहरने लगे और आस पास के इलाक़ों के लोग ख़तरे का आभास होने पर इन इमारतों में आकर पनाह लेते थे।

बड़े रबातों को कारवांसरा कहा जाता था। लारोस के इंसाइक्लोपीडिया में इसके बारे में बताया गया है कि मध्यपूर्व के इलाक़े में कुछ मेहमान ख़ाने हैं जहां यात्री और विदेशी पर्यटक बड़े समूहों के रूप में ठहरते थे और रात गुज़ारते थे।

इस्लामी दौर में शासकों के लिए रबात के निर्माण का बहुत महत्व था। ख़ुरासान का विशाल इलाक़ा पूर्वी ईरान के इलाक़े के व्यापारिक मार्ग और सिल्क रोड पर स्थित होने की वजह से यात्रा से संबंधित कई इमारतों से सजा हुआ है। ख़ुरासान की सरायों की संख्या 40 बताई गई है। इनमें से कुछ इमारतें गिर गईं जिनकी बाद में मरम्मत की गई। माही रबात, शरफ़ रबात, ज़ाफ़रानिया रबात, मज़ीनान रबात, शाह अब्बास रबात, क़दमगाह रबात इस इलाक़े की मशहूर सरायें हैं।

शरफ़ रबात पूर्वोत्तरी ईरान में मशहद सरख्स मार्ग पर एक अर्ध मरुस्थलीय इलाक़े में स्थित है। इस इमारत में मौजूद शिलालेख के अनुसार इसका निर्माण सलजूक़ी काल में वर्ष 1114 ईसवी में किया गया।

शरफ़ रबात एक बड़ी सराय है जिसकी लंबाई 109 मीटर और चौड़ाई 63 मीटर है। इसमें दो बड़े प्रांगड़ और एक बड़ा और ऊंचा हाल है। नमाज़ख़ाना, पहरेदारों के कमरे, कोठरियां, अनके बड़े कमरे यह बताते हैं कि वास्तुकारों ने इसके निर्माण में कितनी मेहनत की और बड़ी दक्षता के साथ इसका निर्माण किया। इमारत में ईंटों का प्रयोग वास्तुकला के नियमों का पालन, टाइलों का इस्तेमाल, हालों और गुंबदों पर लगी टाइलें, इस इमारत की महत्वपूर्ण विशेषताएं हैं। हाल और कमरों की भीतरी छत पर किया गया पीओपी का काम और पीओपी पर बनाई जाने वाली डिज़ाइनें, नमाज़ख़ाने की सुंदर मेहराब वह सुंदरताएं और विशेषताएं हैं जिन्होंने इस सराय को सलजूक़ी काल की सुंदर इमारतों में शामिल कर दिया है।

सफ़वी काल में बड़ी संख्या में सैलानी और पर्यटक ईरान आते थे जिन्होंने ईरान की सरायों के बारे में अपने यात्रा वृतांतों में विस्तार से बताया है। फ़्रांसीसी पर्यटक तावरनिए ने जो 17वीं शताब्दी में कई बार ईरान आए थे सरायों के बारे में बड़ी रोचक जानकारियां दी हैं। उन्होंने एक जगह लिखा है कि आम तौर पर तबरेज़ से इसफ़हान के सफ़र में 24 दिन लगते हैं। पहले दिन हम दुर्गम पहाड़ों से गुज़रे तो एक शानदार सराय में पहुंचे जिसका निर्माण शाह सफ़ी द्वारा कराया गया था। मैंने इतनी अच्छी सराय इससे पहले कभी नहीं देखी थी। उनका कहना है कि दूसरे देशों में भी मैनें बहुत सी सराएं देखी हैं मगर इतनी सुंदर सराय दूसरे देशों में मुझे नज़र नहीं आई वैसे यह सराए उसमानी सलतनत की आरामदेह सरायों की भांति है मगर इसकी सुंदरता ज़्यादा है।

ब्रिटेन के संग्रहालय में सरायों के बारे में कई दस्तावेज़ हैं जिनमें ईरान की सरायों के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई हैं। इन दस्तावेज़ों में इसफ़हान शहर के नक़्शे जहान सर्कल के आस पास की चालीस सरायों का उल्लेख है। दक्षिणी ईरान के बराज़जान शहर के केन्द्र में मुशीरुल ममालिक नामक सराय है। इसका निर्माण वर्ष 1834 ईसवी में किया गया इसमें बड़ा मज़बूत मसाला प्रयोग किया गया है। इसके फ़र्श पर पत्थर के तराशे हुए बड़े बड़े टुकड़े बिछाए गए हैं। इसकी छत पर भी चौड़े चौड़े पत्थर बिछाए गए हैं। बारिश होती है तो पत्थर की नालियों से पानी छत से नीचे गिरता है। इस सराय के आंगन के प्रवेश द्वार पर लकड़ी का बड़ा दरवाज़ा लगाया गया है जिसके ऊपरी भाग में बड़े सुंदर डिज़ाइन बनाए गए हैं। इस सराय के दूसरे फ़्लोर को पीओपी से बड़ी सुंदरता के साथ सजाया गया है। इस भाग में आम तौर पर अमीर यात्री रुका करते थे। इसे शाह नशीन कहा जाता था और बड़े हाले के बाहर एक बड़ी सी छत थी जो आंगन का रूप पेश करती थी।

इस सराय में 68 कमरे हैं और इसके चारों कोनों पर चार स्तंभ बने हैं। यह इमारत पहले तो यात्रियों के विश्राम करने के लिए बनाई गई थी, मगर बाद में इसमें सेना के जवान ठहरने लगे। इस समय इस इमारत की मरम्मत की जा रही है।

 

 

इसफ़हान नगर की वैभवशाली ऐतिहासिक इमारतों में कई मदरसे, बाज़ार, सरायें अब भी हैं जो चार बाग़ सड़क के किनारे बनी हैं। यह इमारतें इस पूरे इलाक़े की सुंदरता में चार चांद लगाती हैं। यह सारी इमारतें शाह सुलतान हुसैन सफ़वी के आदेश पर बनाई गईं और इनके निर्माण में 16 साल का समय लगा। इन इमारतों को उन्होंने अपनी मांता को उपहार के रूप में दिया था। इसी लिए इसे मादर शाह मदरसा और मादरशाह सराय कहा जाता है। सराय के निर्माण का उद्देश्य यह था कि उसकी आमदनी से मदरसा चलता रहेगा।

मादरशाह सराय को इस तरह बनाया गया है कि इसके बीच में वर्गाकार प्रांगड़ है जिसकी लंबाई और चौड़ाई 80 मीटर है। प्रांगड़ के चारों ओर एक दालान बनी है जिसके किनारे दो मंज़िला कमरे बने हैं। यह बहुत विशाल जगह है जिसकी मरम्मत की गई है और इसे होटल बना दिया गया है। इस सराय का नाम अब अब्बासी होटल रखा गया है जो दुनिया के अति प्राचीन होटलों में है। इस होटल के दो भाग आधुनिक और पारम्परिक हैं और इसमें 600 यात्रियों की गुंजाइश है। इसका भीतरी भाग, अंदर और बाहर की सजावट, इसकी डिज़ाइन ऐसी है कि यह दूसरे सभी होटलों से अलग दिखाई देता है। इसके बीचों बीच बड़े प्रांगड़ में चार बाग़ हैं और हर बाग़ में सुंदर फ़ौवारे लगे हैं। एक छोटी नहर इस सराय से गुज़रती है जिसने बाग़ की सुदंरता और भी बढ़ा दी है। यह होटल ईरानी कलाकारों की कला और दक्षता का दर्पण है। इसके हर कोने पर ईरानी कला अपने पूरे वैभव के साथ नज़र आती है। इसके दरवाज़े और खिड़कियां रंगारंग शीशों से सजी हुई हैं। पूरा दृष्य हर दर्शक को मंत्रमुग्ध कर देता है। इसकी चित्रकारी काजारिया और सफ़वी दौर की शैली में की गई है। यहां पीओपी और आइने का काम बिल्कुल अदभुत रूप का है। इस होटल का कोई भी कोना एसा नहीं है जहां कला की सुंदरता न हो।

इस होटल में अब सारी आधुनिक सुविधाएं हैं। व्यायाम के लिए बड़ा हाल, कान्फ़्रेन्स हाल, समारोह हाल, हस्तलिखित क़ुरआन का संग्रहालय, अनेक रेस्टोरेंट,  इसी तरह दूसरी भी बहुत सी सुविधाएं इस होटल में मौजूद हैं। पूरे साल इस होटल में ईरानी और विदेशी यात्री आकर ठहतरे हैं।

 

 

 

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