Oct २४, २०२० १६:३२ Asia/Kolkata

ईरान की धरती के कुछ भाग के शुष्क और अर्ध शुष्क भौगोलिक माहौल के दृष्टिगत, इस देश की वास्तुकला में बहुत अधिक विविधता पायी जाती है।

ईरान में तुलनात्मक रूप से कम बारिश होने के दृष्टिगत, प्राचीन काल से ही व्यापक स्तर पर मरुस्थल पाए जाते हैं और पानी तक पहुंचने के लिए बहुत अधिक प्रयास किए जाते हैं और ईरानियों ने अपनी क्षमताओ को प्रयोग करके दसियों किलोमीटर तक क़नातें अर्थात छोटी नहरें खोदीं। उन्होंने छोटी नहरें और बांध बनाने के साथ साथ बारिश के मौसम में प्राप्त पानी को भंडार करने के लिए इनसे भरपूर ढंग से लाभ उठाया।

कारेज़, कारीज़ या क़नात शुष्क या अर्ध-शुष्क और गरम इलाक़ों में नियमित रूप से लगातार पानी उपलब्ध कराने की एक व्यवस्था है। कारीज़ या कहरीज़ फ़ारसी भाषा का शब्द है।  इसका अर्थ होता है धरती के भीतर मौजूद पानी।  कारीज़ वास्तव में ईरानियों की खोज है।  कहते हैं कि इसकी प्राचीनता, ईरान की सभ्यता से जुड़ी है।  ईरान के अधिकांश क्षेत्रों में क़नातें मौजूद हैं।  वर्तमान समय में भी क़नातें पाई जाती हैं।  ईरान के गर्म और शुष्क क्षेत्रों की जनता के जीवन का आधार क़नातें बताई जाती हैं।  क़नात या भूमिगत जल स्रोतों का आरंभिक स्रोत, गहरे कुओं का आरंभिक बिंदु होता है।  इसी स्थान से पानी उबलकर बाहर आता है। भंडार के पानी, लोगों की दिनचर्या में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने के अतिरिक्त, ईरान की संस्कृति और परंपरा में विशेष स्थान रखती है। इस्लाम के बाद के काल में ईरान में पानी और धार्मिक परम्पराओं के बीच संबंध बहुत अधिक बढ़ गये थे और सफ़ाई सुथराई तथा वज़ू इत्याद के लिए स्वच्छ जल बहुत ही आवश्यक थे।

मरुस्थलीय क्षेत्र के आसपास बनने गांवों में पानी के भंडार, बहुत सी आबादियों और मोहल्लों का केन्द्र रहे हैं और बहुत से मोहल्लों में यह बहुत बड़ी वास्तुकला या वास्तुकला का अद्भुत नमूना समझा जाता है। पानी भंडार के निर्माण की शैली बहुत ही महत्वपूर्ण होती है क्योंकि इस इकाई के निर्माणकर्ता बहुत ही सूक्ष्मता से पानी के दबाव स्तर, इमारत के भीतर पानी को जारी रखने, ठंडा, स्वच्छ बनाने, फ़िल्टर करने तथा पानी को प्रदूषित करने से रोकने  की जाने वाली कार्यवाहियों पर पूर्ण रूप से ध्यान दिया जाता है।

पानी के इस भंडार के बाहरी भाग की सुन्दरता विशेषकर प्रवेश द्वार और उसके आसपास के हिस्से, प्रवेश द्वार पर बने शिला लेख के लिए सुन्दर और चयनित शेरों का चयन, इस बात का सूचक है कि यह इमारत बहुत सारी विशेषताओं और इसके आसपास रहने वालों से कितना निकट और उनसे कितनी जुड़ी हुई है।

पानी के भंडार, हौज़ या स्विमिंग पुल ढके हुए होते थे और पानी के भंडारण के लिए सामान्य रूप से भूमिगत बनाए जाते थे। कम पानी या मरुस्थल वाले क्षेत्रों में पानी का भंडार, बारिश के पानी या मौसमी बारिश के पानी से भरे जाते हैं। सामान्य रूप से ठंडक के मौसम में पानी का भंडारण होता है और गर्मियों में प्रयोग होता है।

पानी को फ़िल्टर करने के लिए भौतिक व रासायनिक शैली का प्रयोग किया जाता है। फ़ालतू पदार्थों को तह में बिठाने, पानी को अलग करने के लिए उसमें निर्धारत स्तर पर नमक मिलाना, जीवाणु को ख़त्म करना, गंध दूर करने के लिए चूना कली मिश्रण और कोयले की थैलियां प्रयोग करना, इन्हीं शैलियों में से है।

पानी के भंडार को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है। मोहल्लों, कारवां सरायों, गांवों या कारवां के रास्ते में स्थित सभी के लिए उपलब्ध पानी के भंडार और दूसरा घरों के भीतर बना पानी का व्यक्तिगत भंडार। सामान्य रूप से सार्वजनिक भंडार बनाने वाले पूंजीपति, अधिकारी या भले लोग हुआ करते थे जो राजकोष से या अपने व्यक्ति माल से पानी के भंडार के निर्माण पर लगने वाली लागत दिया करते थे।

शहरों के मोहल्लों में पानी के भंडार केन्द्र, धार्मिक, शिक्षण, कल्याणकारी और व्यापारिक स्थानों के पास बने हुए होते थे। बाक़ी बचे नमूनों से पता चलता है कि सार्वजनिक पानी के भंडार, दूसरे भंडारों की तुलान में अधिक क्षमताओं से संपन्न हुआ करते थे और लंबे समय तक शहर की बड़ी आपत्ति की आवश्यकताओं को पूरा करते थे।  

शहरों या गांवों के घरों में बने पानी के व्यक्तिगत भंडार सामान्य रूप से इमारतों के नीचे या प्रागड़ के नीचे बने होते थे। इस भंडार की गुंजाइश लंबे समय तक एक घर की पानी की आवश्यकता को पूरा करने के लिए होती थी।

 

क़नात या भूमिगत पानी के नालों में पानी की गतिशीलता एसी है जिसे देखने से लगता है कि पानी अपनी जगह पर स्थिर है हांलाकि वास्तविकता यह है कि पानी बहुत ही हल्की गति में गतिशील है। पानी के एक भंडार की इमारत मुख्य रूप से इस प्रकार होती है, पानी के भंडारण का स्रोत, स्रोत की कवरेज, एक्ज़ास, सीढ़ियां, स्प्लैश या पतली सुरंग और सुन्दर प्रवेश द्वार।

चौकोर, अष्टकोण, आयाताकार या अंडाकार रूप में जलस्रोत या पानी के भंडार बने हुए होते हैं और इनमें से सभी या कुछ भूमिगत हुआ करते थे। इन जलस्रोतों में से कुछ अंडाकार होते हैं और उसकी गुंजाइश तीन हज़ार वर्गमीटर तक होती है। इसी प्रकार दूसरे भंडार भी अधिक क्षमताओं के साथ एक लाख वर्गकिलोमीटर का बनाया गया जिसके स्तंभ छत की रक्षा के लिए उसके भीतर बनाए गये थे।  

शंखुआकार, गुंबदाकार, पालनाकार या समतल जल भंडारों को ढांकने के लिए छत या छज्जा बनाया जाता है। पानी को ठंडा रखने के लिए, हवा की निकासी का रास्ता बनाया जाता था ताकि हवा की आवाजाही बाक़ी रहे।  बादगीर यानी हवा पकड़ने वाले ये ढांचे चिमनी जैसे हैं, जो यज़्द और ईरान के रेगिस्तानी शहरों की पुरानी इमारतों के ऊपर दिखते हैं। ये ठंडी हवा को पकड़ कर इमारत में नीचे की तरफ़ ले जाने का काम करते हैं। इनकी मदद से मकानों को भी ठंडा किया जाता है और उन चीज़ों को बचाने का काम भी होता है, जो गर्मी में ख़राब हो सकती हैं। तमाम रिसर्च से साबित हुआ है कि बादगीर की मदद से तापमान को दस डिग्री सेल्सियस तक घटाया जा सकता है।

जल भंडार के ऊपर हवा की निकासी के लिए विशेष प्रकार की चिमनी जैसे यंत्र अर्थात बादगीर को बनाया जाता है ताकि उस स्थान का वातावरण ठंडा रहे। बादगीर या हवा के आने जाने के लिए बना यंत्र, वह होता है जिसके भीतर हवा होकर गुज़रते हुए सुरंग से होते हुए पानी के भंडार तक पहुंचती है और इसके कारण पानी ठंडा रहता है।  इसी प्रकार ठंडी हवा आसपास बने कमरों की खिड़कियों और रौशनदानों से गुज़रती है। प्राचीनकाल में मरुस्थल के घरों में चारों दिशा में बादगीरी यंत्र या चिमनी बनाई जाती थी ताकि घरों को ठंडा रखा जा सके।

प्रविष्ट द्वारा के बीचो में जल भंडार के साथ जलभंडार की सीढ़ियां होती हैं। यह सीढ़ियां, प्रवेश द्वार से होते हुए जल भंडार तक पहुंचने में मदद करती हैं, इन्हीं रास्तों या स्प्लैश से गुज़रते हुए जल भंडार तक पहुंचते हैं जबकि रास्ते में कभी कभी ढलुआ सीढ़ियां, तेज़ ढलान भी मिलती है किन्तु यह रास्ते काफ़ी चौड़े होते हैं। इस प्रकार की वास्तुकला यह संभावना प्रशस्त करती है कि इंसान बड़ी आसानी से बाल्टी, बर्तन और या झाजर के साथ उसके किनारे से गुज़र सके।

पाशीर के स्थान पर कुछ पानी के पाइप लगे होते हैं, पानी के पाइप, पानी के स्रोत से एक मीटर ऊंचाई पर लगे होते हैं ताकि तलछट में पैठे पदार्थ पानी के साथ न निकल सकें। रोचक बिन्दु यह है कि पानी के कुछ भंडारों में दो सीढ़ियां होती थीं, एक मुसलमानों के लिए और दूसरी दूसरे धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए।

ईरान के बारे में अध्ययन करने वाले फ़्रांस के शोधकर्ता आंद्रे गुदार, जलभंडार के हित के बारे में ईरान नामक पुस्तक में लिखते हैं कि सामान्य रूप से जलभंडार, आसपास मौजूद पत्थरों और कंकड़ों से बनाए जाते हैं और पानी को सूखने से रोकने के लिए जलभंडार का तल सारूज से बनाते थे और ताक़ व उसकी छत बनाने के लिए काले चूने का प्रयोग करते थे और कुछ स्थानों पर लखौरियां प्रयोग करते थे।  

ईरान के प्रसिद्ध वास्तुकार हुसैन मेमारियान ने भी इस संबंध में कहा कि  जलभंडार में प्रयोग के लिए ईंटे, नीबू के रंगी विशेष ईंट होती है जो इन स्थानों के निर्माण के लिए प्रयोग होती हैं। ईंटों को प्रयोग से पहले पानी में भिगोते थे ताकि वह पूरी तरह गीली हो जाए, दीवार बनाने के लिए  इसी को प्रयोग करते हैं, जो रेत, चूने, गीली मिट्टी और सारूज से बनती है।

जलभंडार की सीढ़ियां पत्थर की थीं क्योंकि लोगों की आवाजाही के मुक़ाबले में मज़बूत रहे। जलभंडार का प्रवेश द्वार सुन्दर डिज़ाइनों और ईंटों से सुन्दर ढंग से सजा होता था तथा मुक़र्रनस विभिन्न प्रकार की लिपियों का प्रयोग किया जाए जिससे जलभंडार का प्रवेश द्वार और अधिक सुन्दर लगे। इन शिलालेखों में जलभंडार बनाने वाले के नाम और बनने की तिथि और उसके संस्थापक का नाम लिखा जाए। (AK)

 

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