घर परिवार- 32
परिवार के तीन स्तंभ होते हैं, भौतिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक। परिवार के भौतिक स्तंभ में पति और पत्नी भावनात्मक एवं आध्यात्मिक स्तंभ हैं।
भौतिक स्तंभ जहां परिवार का ढांचा है, वहीं भावनात्मक एवं आध्यात्मिक स्तंभ परिवार की जान हैं। अगर किसी परिवार में मोहब्बत और माफ़ करने की विशेषता नहीं होगी तो वह ऐसा ही है जैसे बिना आत्मा के शरीर। ऐसा परिवार ख़ुशहाल नहीं हो सकता। मोहब्बत और भावना से इंसान दिखावटी मोहब्बत से बच जाता है। दो लोगों का प्यार एक दूसरे के प्रति ज़िम्मेदार बनाता है।
हमने कहा था कि जबसे इंटरनेट और तकनीक ने इंसान के जीवन में क़दम रखा है, इसके कई लाभ और नुक़सान सामने आ चुके हैं। हालांकि इसी के साथ परिवारों में इसे लेकर चिंताएं भी पाई जाती हैं। अब मां-बाप और बच्चे एक दूसरे के साथ घंटों ख़ामोश बैठे रहते हैं, बल्कि अब ऐसे परिवार कम ही हैं, जहां परिवार के सदस्य एक साथ मिलकर बैठते हैं और विभिन्न विषयों पर बातचीत करते हैं।
इंटरनेट ने परिवारों में अनैतिकता के लिए भूमि प्रशस्त की है। इंटरनेट पर परोसी जाने वाली सामग्री के कारण, इंटरनेट युफ़र्स उसके नाकारात्मक आयामों से भी प्रभावित हो रहे हैं और कुछ चीज़ों को वास्तविकता से हटकर देखते हैं। इससे सर्फ़र्स का जीवन काफ़ी हद तक प्रभावित हुआ है। विशेषज्ञों का मानना है कि हद से ज़्यादा सोशल मीडिया का इस्तेमाल, परिवार में भावनात्मक रिश्तों में कमी लाता है और इससे परिजनों की 15 मिनट की आपसी बातचीत का समय और भी अधिक घट जाता है।
इसके अलावा, इसके ग़लत इस्तेमाल से तो कभी कभी पति-पत्नी के बीच जुदाई भी हो जाती है। पति-पत्नी में से किसी एक का किसी अजनबी से संपर्क होने से एक दूसरे से भरोसा उठ जाता है, जिसके कारण परिवार को गंभीर नुक़सान पहुंचता है।
दूसरी ओर, इंटरनेट पर अनैतिकता का भी प्रचार प्रसार किया जाता है, युफ़र्स की अनैतिक फ़िल्मों और पोर्नोग्राफ़ी तक पहुंच बहुत आसान है। बहुत ही कम ख़र्च के साथ इंटरनेट ने आध्यात्मिक बंकरों को काफ़ी कमज़ोर कर दिया है। इससे युवाओं को सही रास्ते से हटाया जा रहा है। यह स्पष्ट है कि इंटरनेट पर पश्चिमी मूल्यों का आधिपत्य है। इसी कारण युफ़र्स की जीवन शैली असानी से बदल जाती है और उनके विश्वासों में परिवर्तन आ जाता है। अनुचित गेम बहुत ही आसानी से और वह भी फ़्री, बच्चों और बड़ों की पहुंच में होते हैं।
इंटरनेट का एक नुक़सान, उसकी लत लगना या उसका नशा है। परिवार के सदस्यों का एक दूसरे की ओर ध्यान न देने का एक महत्वपूर्ण कारण भी यही है। इंटरनेट का नशा एक प्रकार का मानसिक एवं सामाजिक डिसऑर्डर है। इसमें इंटरनेट पर निर्भरता बढ़ जाती है और व्यक्ति इंटरनेट के प्रति काफ़ी संवेदनशील हो जाता है। विशेषज्ञों का मानना है कि इंटरनेट से लोगों का सामाजिक जीवन भी काफ़ी प्रभावित होता है और वह अलग थलग पड़ जाते हैं। उदाहरण स्वरूप, फ़िलिप बर्टन ने इंटरनेट के नियम नामक एक शोध में, इसे सामाजिक रिश्तों के लिए एक ख़तरा बताया है।
उन्होंने अमरीका में 256 लोगों पर दो साल तक इंटरनेट के दुष्परिणामों का अध्ययन किया। उसके परिणामों से पता चलता है कि इंटरनेट की लत से सामाजिक संबंध कमज़ोर हो जाते हैं और लोगों में अकेला रहने की आदत पड़ जाती है और अवसाद उत्पन्न होता है। परिणाम स्वरुप, अकेले रहने वाले सिर्फ़ इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारियों तक सीमित हो जाते हैं। इंटरनेट पर आधारित इन लोगों का सामाजिक संबंध भी सामान्य सामाजिक संबंध से अलग होता है।
ईरान में भी एक जवान समाज के दृष्टिगत इंटरनेट का इस्तेमाल और उसकी लोकप्रियता काफ़ी बढ़ रही है। इस समस्या का समाधान इसलिए किया जाना चाहिए, क्योंकि इंटरनेट के नशे का शिक्षा, व्यवहार और नैतिकता पर काफ़ी प्रभाव पड़ता है। ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता का इस संदर्भ में कहना है, जब पर्यावरण दूषित हो जाता है तो सभी ख़तरे का एहसास करते हैं और चेतावनी देते हुए कहते हैं, तेहरान या किसी अन्य शहर में प्रदूषण का स्तर अधिक हो गया है। यह प्रदूषण हानिकारक है और इस वातावरण में सांस लेने से शरीर को नुक़सान पहुंचेगा, यह बात ठीक है, लेकिन सांस्कृतिक पर्यावरण का क्या होगा? क्या सांस्कृतिक पर्यावरण का कोई महत्व है। मुसलमान युवा का पालन पोषण अगर ऐसे पर्यावरण में हो कि जहां तरह तरह की कामुकता, भ्रष्टाचार, अश्लीलता, मादक पदार्थों के सेवन के लिए प्रोत्साहन और राजीनीतिक एवं सांस्कृतिक निर्भरता के लिए भूमि प्रशस्त हो तो क्या यह वातावरण उस व्यक्ति के लिए हानिकारक नहीं है, जो इस सांस्कृतिक वातावरण में सांस ले रहा है।
विशेषज्ञों का मानना है कि परिवार की परोक्ष रूप से निगरानी करने और परिवार के सदस्यों को आपसी संपर्क और बातचीत के लिए प्रोत्साहित करने से किसी हद तक इंटरनेट व साइबर स्पेस की चुनौतियों का सामना किया जा सकता है और उन्हें अवसर में बदला जा सकता है। इसके अलावा युवाओं को प्रशिक्षण देकर और उन्हें साइबर स्पेस के ख़तरों से अवगत करके भी इस तरह की समस्याओं से मुक्ति हासिल की जा सकती है।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस आधुनिक तकनीक के लोगों के जीवन में आने के कारण मूल्यों के आदर्शों में जो परिवर्तन हो रहा है, उसके दृष्टिगत इन परिवर्तनों के कारणों का जानना ज़रूरी है। परिजनों के बीच बातचीत से अनुभव और संस्कृति बच्चों तक पहुंचती है और उनके बीच भावनात्मक रिश्ता मज़बूत होता है। फिर वह ख़ुद को अकेला नहीं समझते हैं। परिवार में एकजुटता और भरोसा मज़बूत होता है। यह सही है कि विगत की तुलना में बातचीत के ज़रिए संपर्क किसी हद तक कम हुआ है, लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि अब परिवार के सदस्यों के बीच संपर्क बहुत ही कम हो गया है। प्राचीन समय में आमने सामने होकर ही संपर्क स्थापित किया जाता था और सांस्कृतिक मूल्य एक नस्ल से दूसरी नस्ल तक स्थानांतरित होते थे। इसीलिए बातचीत के ज़रिए संपर्क की संस्कृति और उसके परिणामों की उपेक्षा नहीं की जा सकती। जिस तरह से कि आज के समय में सार्थक साइबर स्पेस के लाभ को भी नज़र अंदाज़ नहीं किया जा सकता।
आधुनिक दुनिया ने अब तक पारिवारिक संबंधों को मज़बूत बनाने के लिए कोई गंभीर समाधान पेश नहीं किया है, हालांकि इसके लिए प्रयासों का जारी रहना ही ख़ुद में एक अच्छा क़दम है। इस संदर्भ में बलज़ाक का कहना है कि घर बसाने के इच्छुक लोगों को अपने हाथ में कम्पास और साथ में गाइड रखना चाहिए। परिवारों की मज़बूती से समाज वांछित लक्ष्य की ओर बढ़ता है, इसलिए युवाओं को शादी के लिए प्रोत्साहित करके उन्हें वैवाहिक जीवन के नियम भी सिखाए जाने चाहिएं।
स्वस्थ संबंध, रिश्तों में गर्मी पैदा करना और आपसी समझ परिवार के समस्त सदस्यों विशेष रूप से पति और पत्नी की ज़िम्मेदारी है। वैवाहिक जीवन की समीक्षा करते समय पति और पत्नी को यह समझना होगा कि वे एक दूसरे से सबसे अधिक निकट हैं। इसलिए अपने जीवन साथी को अपने शरीर के आधे भाग के रूप में देखना चाहिए और उसे ख़ुश रखने का प्रयास करना चाहिए। हालांकि इसके लिए भी महारत की ज़रूरत है, अर्थात एक अच्छा जीवन साथी साबित होने के लिए विशेष ज्ञान और महारत की ज़रूरत होती है। शादी के बाद अगर पति या पत्नी में से किसी को उसके मानकों के अनुसार जीवन साथी नहीं मिले, इसके बावजूद अगर वह परिवार की ख़ातिर शादी को मज़बूत बनाए रखे तो ईश्वर उसके लिए अपने नेमतों के द्वार खोल देगा।
क़ुरान में उल्लेख है कि अगर तुम उन्हें नापसंद करते हो, तो तुरंत अलग होने का फ़ैसला न करो, क्योंकि हो सकता है कि तुम्हारे लिए इसमें कोई भलाई हो और ईश्वर ने इसमें तुम्हारे लिए भलाई रखी हो। क़ुरान की इस सिफ़ारिश का वैवाहिक जीवन पर हमेशा अच्छा असर होता है और इससे मतभेदों के समाधान में मदद मिलती है। इसलिए अलग होने में जल्दबाज़ी नहीं करनी चाहिए, बल्कि आपस में शांति व सुलह के लिए कोशिशें की जानी चाहिएं।