इस्लाम में बाल अधिकार- 15
हमने बताया था कि दुनिया के हर इंसान की भांति बच्चों के भी आरंभिक और व्यक्तिगत अधिकार होते हैं।
बच्चों के सामाजिक, राजनैतिक और सांस्कृतिक अधिकार भी होते हैं जिनकी बहुत से अंतर्राष्ट्रीय दस्तावेज़ पुष्टि भी करते हैं और धार्मिक शिक्षाओं में भी इस बात पर बल दिया गया है। इन अधिकारों में बच्चों की स्वतंत्रता, उनकी नागरिकता और पहचान सहित विभिन्न अधिकार शामिल हैं।
नागरिकता और राष्ट्रीयता के अधिकार से संपन्न होने के बारे में बच्चों के अधिकारों के कन्वनेश्न के सातवें और आठवें अनुच्छेद को इसी विषय से विशेष किया गया है। बच्चों के अधिकारों के कन्वेन्शन के सातवें और आठवें अनुच्छेद में स्पष्ट रूप से अपनी पहचान बनाने, राष्ट्रीयता और नागरिकता से संपन्न होने के अधिकारों की ओर संकेत किया गया है। बच्चों के अधिकारों, उनकी नागरिकता और पहचान का विषय कठिन और चर्चा योग्य है। नागरिकता और राष्ट्रीयता के अधिकार के बारे में समस्त राष्ट्रों की संवेदनशीलता, किस प्रकार नागरिकता हासिल की जाए, इस बारे में विभिन्न क़ानूनी और धार्मिक दायित्वों और इस बारे में पाई जाने वाली चिंताओं के विषय की ओर बच्चों के कन्वेन्शन के सातवें और आठवें अनुच्छेद में स्पष्ट रूप से कहा गया है। यही कारण है कि इस कन्वेन्शन के दूसरे और सातवें अनुच्छेद में सरकार को इस बात का ज़िम्मेदार क़रार दिया गया है कि वह हर बच्चे को इस अधिकार से संपन्न करने के लिए उचित कार्य और उपाय करें।
मनुष्य की अपने जीवन में कुछ प्राइवेसी होती है जिसके बारे में कुछ ख़ास लोग ही जानते हैं। यह प्राइवेसियां, लिंग, जाति और संस्कृति के लेहाज़ से विभिन्न लोगों में अलग अलग होती हैं, इसके साथ ही अलग अलग लोगों में इन प्राइवेसियों के अपने अपने क्षेत्र होते हैं। कुछ लोगों का मानना है कि प्राइवेसी एक काल्पनिक बुलबुले की भांति होती है जिसमें हर किसी को प्रविष्ट होने की अनुमति नहीं होती और जब प्राइवेसी में अलग अलग तरह के लोग प्रविष्ट हो जाते हैं तो वह बुलबुले फटने लगते हैं और फिर प्राइवेसी का अर्थ ही ख़त्म हो जाता है। साहस के साथ यह कहा जा सकता है कि दुनिया के हर समाज में प्राइवेसी का बहुत अधिक महत्व होता है और दुनिया के विभिन्न देशों के क़ानूनों में बारंबार प्राइवेसी के विषय के महत्व की ओर संकेत किया गया है।
प्राइवेसी का विषय इतना अधिक महत्वपूर्ण होता है कि एक इसके लिए किसी का फ़ैसला, केवल और केवल उसी के लिए होता है किन्तु बच्चों की प्राइवेसी के विषय और उनका इस बात से अवगत न होना कि प्राइवेसी कितने प्रकार की होती है और दूसरे लोगों द्वारा इस प्राइवेसी की रक्षा का उनका फ़ैसला न समझ पाना, ध्यान दिए जाने का विषय है। सबसे पहले माता पिता को यह करना चाहिए कि वह अपने बच्चों की प्राइसेवी का सम्मान करें और उसके बाद इस विषय को उस समय तक बच्चों को सिखाए जब वह सीख सकता हो। बच्चों की प्राइवेसी के संबंध में बच्चों के अधिकार कनवेन्शन के अनुच्छेद 16 में आया है कि प्राइवेसी के बारे में, पारिवारिक रूप से या वैचारिक रूप से कोई भी बच्चा अकाराण या ग़ैर क़ानूनी ढंग से हस्तक्षेप नहीं कर सकता या उसका अपमान नही कर सकता और इसके मुक़ाबले में बच्चे को भी इस प्रकार के हस्तक्षेप और अपमान के मुक़ाबले में क़ानूनी समर्थन प्राप्त है।
ऊपर बयान किया गया अनुच्छेद, प्राइवेसी, पारिवारिक, घर तथा वैचारिक मामलों में किसी भी प्रकार के अकारण हस्तक्षेप और ग़ैर क़ानूनी कार्यवाहियों के मुक़ाबले में बच्चे का समर्थन करता है और इसी प्रकार यह क़ानून उसकी इज़्ज़त पर हमले के समय उसका समर्थन करता है। इसके अलावा यह विषय, सातवीं धारा की दूसरी उपधारा तथा 40वें कन्वेन्शन के दूसरे अनुच्छेद में शामिल है जिसमें कहा गया है कि यदि कोई बच्चा आरोपी या संदिग्ध रूप से क़ानून के उल्लंघन की सज़ा काट रहा हो।
कन्वेनश्न के 16वें अनुच्छेद में दो विषय पर चर्चा की जा सकती है। पहला बच्चों की प्राइवेसी में माता, पिता और परिवार के सदस्यों का अकारण हस्तक्षेप और दूसरा बच्चों की प्राइवेसी में दूसरों का हस्तक्षेप। पहले के विषय के बारे में ऐसा प्रतीत होता है कि दुनिया के अधिकतर देशों का क़ानून, परिवार के सदस्यों के मुक़ाबले में बच्चे की प्राइवेसी का समर्थन नहीं कर सकता। इसका कारण यह है परिवार की इज़्ज़त इतनी अधिक होती है कि उसमें हस्तक्षेप करने का अर्थ, माता पिता और बच्चे के संबंध तथा बहुत से मामलों में उनकी भूमिकाओं को सीमित करना विशेषकर बच्चों के संबंध में बड़ों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका का सीमित करना हैं।
उदाहरण स्वरूप फ़िन्लैंड में बच्चों के कन्वेन्शन को लागू करने की प्रस्तावना में बयान किया गया है कि बच्चों पर नज़र रखने के लिए उनके पत्रों को चेक करने और उनकी टेलीफ़ोनी वार्ता सुनने के बारे में माता पिता के अधिकार के विषय पर फिनलैंड में अधिक चर्चा ही नहीं होती किन्तु शिक्षा के विषय पर क़ानून के अनुसार यह सुझाव दिया गया है कि बच्चों को अच्छी से अच्छी शिक्षा दी जाए।
बच्चों की प्राइवेसी के बारे में माता पिता का जानना, बच्चों की प्राइवेसी में हस्तक्षेप के अर्थ में नहीं है बल्कि फ़ैसला लेने और कोई काम करने में उनकी मदद करने और उनकी रक्षा के अर्थ में है। बच्चे अपने काम में स्वाधीन न होने के कारण सही फ़ैसला करने में सक्षम नहीं होते और उनको एक भले और अच्छे समर्थक की आवश्यकता होती है ताकि वे उसके बारे में सही और सटीक फ़ैसला कर सकें, अलबत्ता यह कहा जाता है कि मां, पिता से अधिक अपने बच्चों से प्रेम करती है। इसीलिए इस्लाम की दृष्टि में बच्चे के जन्म के बाद उसकी देखभाल की ज़िम्मेदारी पहले अपनी मां पर होती है और उसके बाद बाप की ज़िम्मेदारी होती है।
यहां पर यह बात कहना बहुत आवश्यक है कि कुछ विशेष स्थानों पर माता पिता बच्चों की पिटाई करते हैं इसीलिए बच्चों का क़ानूनी ढंग से समर्थन किया जाना चाहिए। बच्चों के अधिकारों के घोषणापत्र में, बड़ों से बच्चों को अलग करने के क़ानून में ग़लती हो सकती है किन्तु हम उसी समय इसको सही ठहरा सकते हैं जब यह काम बच्चों के अधिक से अधिक हितों की रक्षा कर सके।
यदि दूसरी बात पर नज़र डाली जाए तो पता चलता है कि बच्चों की प्राइवेसी, समाज के अन्य लोगों के हमलों से सुरक्षित रहनी चाहिए और इसकी रक्षा के लिए सरकार को समाज में उचित क़ानून बनाना चाहिए, उचित संस्कृति प्रचलित करना चाहिए और शिक्षा और दिक्षा द्वारा इस बात को सुनिश्चित बनाना चाहिए। इसी प्रकार बच्चों की प्राइवेसी को समाज के समस्त लोग स्वीकार करें और देश की विभिन्न संस्थाएं व संगठन उसकी रक्षा करें और उसमें हस्तक्षेप करने से परहेज़ करें।
बच्चों का एक अन्य अधिकार, शिक्षा और प्रशिक्षण से सुसज्जित होना है। शिक्षा और प्रशिक्षण दो शब्द हैं जिनको हमेशा एक साथ प्रयोग किया जाता है, इनको कभी भी अलग नहीं किया जा सकता। शिक्षा प्राप्त करना बच्चे का मौलिक अधिकार है। इस प्रकार से आज दुनिया के हर समाज और हर स्थान पर बच्चों की शिक्षा के विषय पर बहुत अधिक ज़ोर दिया जा रहा है। धार्मिक नियम और इस्लामी शिक्षाएं भी बच्चों को बचपने से ही बढ़ाने और उनको शिक्षा के आभूषण से सजाने व संवारने पर बल देती रही हैं। पैग़म्बरे इस्लाम (स) का एक प्रसिद्ध कथन है कि पालने से लेकर क़ब्र तक ज्ञान प्राप्त करे। उनका कहना था कि लिखना और पढ़ना सिखाना, बच्चों पर माता पिता के अधिकारों में से है। वास्तव में माता पिता उसी समय अपने बच्चों का सम्मान करते हैं जब वह पढ़ा लिखा और समाजिक संस्कारों से सुसज्जित होता है। इसी आधार पर बच्चों के अधिकार के 28वें अनुच्छेद में बल दिया है कि शिक्षा व प्रशिक्षण के सबंध में बच्चों के अधिकारों को औपचारिकता दी गयी है और धीरे धीरे इस हक़ तक पहुंचने तथा ज़ोर ज़बरदस्ती, फ़्रि की पढ़ाई के अवसर उपलब्ध कराने, विभिन्न माध्यमों द्वारा शिक्षा की ओर बच्चों को प्रोत्साहित करने तथा हर एक के लिए शिक्षा अनिवार्य करने जैसे कार्यवाहियों को अपनाया जाए।
हज़रत अली अलैहिसस्लाम का कहना है कि बचपन में ज्ञान प्राप्त करना, वैसा है जैसा कि पत्थर पर लकीर बनाना या रेखा खींचना। पवित्र क़ुरआन ने भी शिक्षा प्राप्ति के लिए लोगों का ध्यान अपनी ओर विभिन्न आयतों में आकर्षित किया है। (AK)