Apr २९, २०१९ १२:२७ Asia/Kolkata

आपको याद होगा कि पिछले कार्यक्रम में हमने बच्चे की शिक्षा और इस संबंध में मां-बाप की ज़िम्मेदारियों के बारे में बताया था।

बच्चे की शिक्षा के साथ-साथ उसकी परवरिश व प्रशिक्षण भी बहुत अहमियत रखता है। प्रशिक्षण शब्द का अर्थ मानवीय क्षमताओं को विकसित करना है। हम प्रशिक्षण के अधिकार के विषय की चर्चा करेंगे न कि शिक्षा के विषय की। प्रशिक्षण की अनेक परिभाषाए हैं हम केवल एक परिभाषा पेश करेंगे। प्रशिक्षण का अर्थ एक व्यक्ति के कर्मों का दूसरे इंसान पर पड़ने वाला प्रभाव, ख़ास तौर पर एक व्यस्क व अनुभवी व्यक्ति के कर्म का बच्चे और नौजवान पर पड़ने वाला असर है ताकि उसमें नैतिक व व्यवहारिक विशेषता पैदा हो जाए। शायद इससे भी कम शब्दों में यह कह सकते हैं कि प्रशिक्षण से मुराद मन व शरीर में उचित बदलाव लाना है। प्रशिक्षण की परिभाषा के मद्देनज़र इसके अहम तत्व उस व्यक्ति की पहचान है जिसका प्रशिक्षण करना और साथ ही प्रशिक्षण की शैली व नियम का ज्ञान होना है।

प्रशिक्षण परिवार और समाज के स्तर पर मां-बाप और क़ानूनी सरपरस्त की विशेष ज़िम्मेदारी है। बच्चे के संबंध में मां-बाप की सबसे अहम ज़िम्मेदारी उसका प्रशिक्षण है क्योंकि बच्चे का भविष्य मां-बाप के सही व्यवहार और विभिन्न अवसरों पर उनके ओर से व्यक्त होने वाली उचित प्रतिक्रिया पर निर्भर है। ईश्वर पवित्र क़ुरआन के तहरीम नामक सूरे की आयत नंबर-6 में फ़रमाता हैः "हे ईश्वर पर आस्था रखने वालो! अपने और अपने परिवार को उस आग से बचाओ जिसका ईंधन इंसान और पत्थर हैं।"

 

इस आयत की व्याख्या में एक अहम बिन्दु जिसका पवित्र क़ुरआन के ज़्यादातार व्याख्याकारों ने उल्लेख किया है वह शिष्टाचार व प्रशिक्षण से जुड़े मामले हैं। अर्थात ईश्वर ने इस आयत में पैग़म्बरे इस्लाम की कुछ बीवियों को चेतावनी देते हुए सभी आस्था रखने वालों को संबोधित किया है और जीवन साथी, संतान व परिवार के प्रशिक्षण के बारे में उन्हें आदेश दिया है।

इसी तरह ईश्वर पवित्र क़ुरआन में बच्चों के प्रशिक्षण के बारे में अपने कुछ चुने हुए बंदों की व्यवहारिक शैली को बयान करता है। जैसे हज़रत लुक़मान की अपने बेटे को नसीहत धार्मिक प्रशिक्षण के संबंध में पूरी तरह समर्पण का प्रतीक बन सकती है। ईश्वर ने हज़रत लुक़मान की अपने बेटे को नसीहत का लुक़मान नामक सूरे की आयत नंबर 13 में यूं वर्णन किया हैः "उस समय को याद करो जब लुक़मान ने अपने बेटे को नसीहत करते हुए कहाः किसी चीज़ को ईश्वर का शरीक मत बनाओ कि यह बहुत घोर अत्याचार है।"

रिवायत में बच्चे के जिस एक अधिकार का बारंबार वर्णन हुआ है वह उसे शिष्टाचार सिखाने का अधिकार है। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम को वसीयत में फ़रमायाः "हे अली! बेटे का बाप पर यह अधिकार है कि वह उसका अच्छा नाम रखे, उसे अच्छी तरह शिष्टाचार सिखाए और उसे भले आचरण का बनाए।" बच्चे के प्रशिक्षण के बारे में हज़रत अली अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैः "किसी पिता ने संतान को शिष्टाचार से अधिक क़ीमती कोई चीज़ उपहार में नहीं दी।"

बच्चे के शिष्टाचारिक प्रशिक्षण में दूसरा अहम विषय उसकी आज़ादी का विषय है। हर बच्चे के उसके उम्र के तक़ाज़े हमें इस बात की इजाज़त नहीं देते कि उसकी आज़ादी के अधिकार के मद्देनज़र, ख़तरे की स्थिति में उसे छोड़ दे लेकिन साथ ही इसका यह भी अर्थ नहीं है कि उसके सभी अधिकार के आयाम पर ध्यान न दें। बच्चे के प्रशिक्षण के लिए बेहतरीन शैली अपनानी चाहिए। आदर्श पेश करके प्रशिक्षण, अपने व्यवहार व कर्म से प्रशिक्षण, नसीहत के ज़रिए प्रशिक्षण और अंत में बच्चे के सही प्रशिक्षण के तत्वों की देखभाल के ज़रिए।

प्रशिक्षण व परवरिश ऐसा विषय है जिसका अंतर्राष्ट्रीय दस्तावेज़ों में भी ध्यान दिया गया है। बाल अधिकार कन्वेन्शन के 18वें अनुच्छेद में आया हैः "कन्वेन्शन के सदस्य देश इस नियम को कि मां बाप की बच्चे के विकास व तरक़्क़ी के लिए संयुक्त ज़िम्मेदारी है, आधिकारिक रूप से मनवाने के लिए पूरी कोशिश करेंगे। मां-बाप या क़ानूनी सरपरस्त बच्चे के विकास व प्रगति के लिए मुख्य रूप से ज़िम्मेदार हैं। इसी तरह कन्वेन्शन के सदस्य देश इस कन्वेन्शन में वर्णित अधिकारों को व्यवहारिक बनाने के लिए मां बाप और क़ानूनी सरपरस्त के साथ ज़रूरी सहयोग करेंगे ताकि वे बच्चे के प्रशिक्षण की ज़िम्मेदारी निभाएं और बच्चों की देखभाल को संस्थाओं की स्थापना के ज़रिए सुनिश्चित बनाएंगे।"

यह अनुच्छेद मां-बाप और क़ानूनी सरपरस्त की ज़िम्मेदारी को दर्शाता है जो बच्चे के संबंध में सबसे अहम लोग होते हैं। क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दस्तावेज़ों में भी इस अहम विषय की समीक्षा की गयी है जैसे आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक अधिकार कन्वेन्शन के दसवें अनुच्छेद, नागरिक व सामाजिक अधिकार कन्वेन्शन के 23वें और 24वें अनुच्छेद में और इस्लाम में बाल अधिकार प्रतिज्ञापत्र में इस ज़िम्मेदारी का उल्लेख किया गया है।

एक अहम बिन्दु यह है कि इस संबंध में सरकार को भी ज़िम्मेदारी निभानी चाहिए। एक ओर इस कर्तव्य के लिए क़ानून पारित कराए और दूसरी तरफ़ बच्चे के प्रशिक्षण जैसी अहम ज़िम्मेदारी के बारे में मां-बाप को शिक्षित करने के कार्यक्रम बनाए। मिसाल के तौर पर इंडोनेशिया की सरकार ने एक कार्यक्रम चलाया ताकि मां बाप में पहले से महारत आ जाए कि उनमें से हर एक नवजात से 3 साल की उम्र तक के बच्चे के साथ पारस्परिक संबंध क़ायम कर सकें।

इस कार्यक्रम में 18500 गावों की लगभग 1300000 माओं ने भाग लिया। परिवार से जुड़ी एक अहम समस्या बच्चे के प्रशिक्षण के लिए मां बाप में से किसी एक का होना है इसमें भी परिवार के सरपरस्त के रूप में मांओं की संख्या अधिक है। उन्हें सरकार की ओर से विशेष मदद की ज़रूरत है ताकि जीवन के ख़र्च की आपूर्ति के ज़रिए अपने बच्चे का अच्छी तरह प्रशिक्षण कर सकें।

कुछ देशों के क़ानून के मद्देनज़र बच्चे के प्रशिक्षण में ख़ास तौर पर जब वह छोटा हो सिर्फ़ माओं पर ज़िम्मेदारी न हो बल्कि बाप भी बच्चों के संबंध में ज़िम्मेदारी निभाए। इस बात का कन्वेन्शन के 18वें अनुच्छेद में स्पष्ट रूप से वर्णन है कि सभी देश इस बात को मानें कि बच्चे के प्रशिक्षण की मां-बाप दोनों की ज़िम्मेदारी है। कुछ देशों में मांओं को बच्चे की पैदाइश के समय छुट्टी दिए जाने के साथ साथ पिता को भी छुट्टी लेने का अधिकार दिया गया है। यहां पर इस बारे में कुछ देशों के उदाहरण आपकी सेवा में पेश करते हैं।

इटली में बाल अधिकार की रिपोर्ट में आया हैः "इटली की संवैधानिक अदालत इस बात पर बल देती है कि बच्चे के भावनात्मक और दूसरों से घुलने मिलने जैसे आयाम से संतुलित विकास के लिए मां बाप दोनों की भागीदारी ज़रूरी है। इसलिए संवैधानिक अदालत निम्नलिखित अधिकार को मां बाप दोनों के लिए ज़रूरी समझती है। पद पर बाक़ी रहने के साथ 6 महीने छुट्टी के अधिकार का इस्तेमाल और एक साल तक सैलरी के साथ साथ 30 फ़ीसद अतिरिक्त सैलरी मिलना। तीन साल के दौरान बच्चे के मरीज़ होने पर कार्यालय से जाने का अधिकार और बच्चे की पैदाइश के बाद एक साल तक बच्चे की देखभाल के लिए हर दिन छुट्टी लेने का अधिकार।"

इसी तरह नॉर्वे की परिचयात्मक रिपोर्ट में आया हैः "हालिया वर्षों में मां बाप द्वारा बच्चे की पैदाइश के अवसर पर छुट्टी लेने की घटनाएं बढ़ी हैं। वर्ष 1986 में वेतन के साथ 18 हफ़्ते की छुट्टी दी जाती थी। वर्ष 1992 में वेतन के साथ 35 हफ़्ते या 42 हफ़्ते 2 दिन 80 फ़ीसद वेतन के साथ छुट्टी मिलती थी। 1 अप्रैल 1993 में 42 हफ़्ते शत प्रतिशत वेतन के साथ या 52 हफ़्ते 80 फ़ीसद वेतन के साथ छुट्टी मिलती थी कि इसमें 3 हफ़्ते मां बाप को पैदाइश से पहले इस्तेमाल करना होता था। इसी तरह जिन औरतों को वेतन के साथ छुट्टी नहीं मिलती अगर उनके यहां पैदाइश होती है तो उन्हें नक़द पैसे दिए जाते हैं। बच्चे की बीमारी की स्थिति में वेतन के साथ छुट्टी मिलती है। जो कर्मचारी 12 साल से कम उम्र के बच्चे की बीमारी की वजह से कार्यालय से जाने के लिए मजबूर होते हैं, साल में दस दिन उन्हें अतिरिक्त वेतन के साथ छुट्टी मिलती है और अगर 3 बच्चे हों तो साल में 15 दिन की छुट्टी मिलती है।"

चूंकि परिवार को बच्चे के विकास का सबसे पहला केन्द्र समझा जाता है जिसका व्यक्ति के जीवन, विचार और आस्था पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है, इसलिए परिवार के सदस्यों का सही व्यवहार, बच्चे की ज़रूरत, रूचि और इच्छा की पहचान बहुत अहमियत रखती है। परिवार की इस स्थिति में प्रशिक्षण के ज़रिए सबसे पहले सुधार हो सकता है।     

इंसान के वजूद में शारीरिक व बौद्धिक दृष्टि से आने वाले बदलाव के मद्देनज़र, उसके प्रशिक्षण के तीन चरण होते हैं। इनमें से हर एक चरण अपनी अपनी विशेषता है।

इस्लाम की नज़र में बच्चा अपने जीवन के आरंभिक 7 साल मालिक की तरह है और पैग़म्बरे इस्लाम के शब्दों में प्रशिक्षण का यह दौर बच्चे की सरदारी का दौर है। दूसरे 7 साल वह ग़ुलाम की तरह है। यह दौर उसकी शिक्षा और आज्ञापालन का है। तीसरे साल वह वज़ीर की तरह है। उससे सलाह मशविरा किया जाए। इस बारे में मनोवैज्ञानिकों का अलग नज़रिया है। वह कहते हैं बच्चे के प्रशिक्षण का पहला दौर 1 से 6 साल है। दूसरा दौर 6 से 12 साल है और तीसरा दौर 12 से 18 साल है।