Apr २९, २०१९ १४:०८ Asia/Kolkata

बच्चों को समाज का सबसे कमज़ोर या निर्बल वर्ग माना जाता है।

बच्चों को अपने जीवन में कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।  बच्चों को अपने बचपन में जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है उनमें से अधिक मेहनत वाले काम, शारीरिक हिंसा, मानसिक प्रताड़ना, उनका यौन उत्पीड़न और शिक्षा से वंचित रहने जैसी बातों का उल्लेख किया जा सकता है।  बच्चों का समर्थन पहले चरण में तो माता-पिता का और अभिभावको का दायित्व है और उसके बाद सरकारों की ज़िम्मेदारी है कि वे बच्चों का किसी भी प्रकार के दुरूपयोग या शोषण न होने दें।

यह बात सही है कि सही जीवन व्यतीत करने के लिए बच्चों को किशोरावस्था से ही कामों से अवगत होना चाहिए ताकि वे उस काम में आगे चलकर दक्ष हो सकें।  यह हर बच्चे का अधिकार है।  दूसरी ओर बच्चों को कठिन कामों के लिए प्रेरित करना मना है क्योंकि इससे उनके शरीर और उनकी आत्मा को नुक़सान पहुंचता है।  बाल अधिकारों के कन्वेंशन के अनुसार बच्चों को काम कराने के लिए बाध्य करना किसी भी स्थिति में स्वीकार्य नहीं है।

बाल मज़दूर, उन बच्चों को कहा जाता है जिनसे ज़बरदस्ती काम लिया जाता है।  यह काम बच्चों को शिक्षा से रोकता ही नहीं बल्कि उनको इससे वंचित कर देता है।  ऐसे बच्चे बचपन का आनंद नहीं उठा पाते।  संसार के बहुत से देश और बहुत सी संस्थाएं, बाल मज़दूरी को अतिक्रमण जैसा मानती हैं।  इसके बावजूद वर्तमान समय में संसार के विभिन्न क्षेत्रों में बाल मज़दूरी जैसा अभिशाप पाया जाता है।  बाल मज़दूरी को विभिन्न रूपों में देखा जा सकता है जैसे दुकानों और कारख़ानों में काम करना, खेतों में काम करना, घरों के निर्माण में मज़दूरी करना या व्यक्तिगत रूप में कुछ बेचना आदि।  इस प्रकार के बच्चे, अपने मूलभूत अधिकारों से वंचित रहते हैं।  बच्चों को सैनिकों के रूप में प्रयोग करना और उनको बेचना ऐसा काम है जिसे किसी भी रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता।

बाल मज़दूरी का इतिहास बहुत पुराना है।  बहुत पहले से यह काम होता आ रहा है किंतु निरक्षरता के आम होने और शिक्षा के सार्वजिनक होने के बाद जो परिस्थितियां बनीं उनके कारण इस बारे में गंभीरता से विचार होने लगा।  हालांकि अभी भी बहुत से स्थानों पर एसे बच्चों से काम करवाया जाता है जो उनके स्कूल जाने की आयु है।

 

बाल मज़दूर बहुत ही कठिन एवं विषम परिस्थितियों में काम करते हैं।  इन बच्चों से बहुत ही कठिन और ख़तरनाक काम कराए जाते हैं।  बाल मज़ूदर अधिकतर तस्करों के हत्थे चढ़ जाते हैं जो उनसे मादक पदार्थों की तस्करी करवाते हैं या उनको दूसरों के हाथों बेच देते हैं।  इस प्रकार के बच्चों की भावनात्मक स्थिति बहुत ही दयनीय होती है।  वे अपनी आयु के अन्य बच्चों की तुलना में बहुत अधिक संवेदनशील होते हैं।  ऐसे बच्चों की भावनाओं को अनदेखा करने से उनके भीतर एक प्रकार का द्वेष उत्पन्न हो जाता है जो उनके बड़े होने की स्थिति में समाज में बहुत ही बुराइयों का कारण बनता है।

बाल मज़दूरी का मुख्य कारण तो ग़रीबी ही बताया जाता है किंतु इसके अतिरिक्त भी इसके कई कारण है जैसे निरक्षरता, बच्चे के माता-पिता का मर जाना, बच्चे का लापता हो जाना और पिछड़ापन आदि।  मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट के अनुसार इन सभी कारकों के बावजूद बल मज़दूरी का असली कारण आर्थिक समस्याओं का होना है।  जिन बच्चों से उनकी क्षमता से अधिक काम लिया जाता है उनका कहना है कि वे यह काम वे इसलिए करते हैं क्योंकि या तो उनके घरपर उनका कोई अभिभावक नहीं है, या माता-पिता विकलांग हैं या फिर वे इतने अधिक बीमार हैं कि बिस्तर से उठ ही नहीं सकते या घर के सदस्यों की संख्या का अधिक होना।  जो बच्चे काम करते हैं या बाल मज़दूरी करते हैं वे पढ़ने लिखने से वंचित हैं।  इस प्रकार के बच्चे सामान्यतः शिक्षा और प्रशिक्षण से वंचित रहते हैं।  इन बच्चों के अधिक समय तक मज़दूरी करने या कठिन परिश्रम करने से उनके परिवारों की निर्धन्ता दूर नहीं होती बल्कि वे अधिक निर्धन होते जाते हैं।  इसका एक कारण यह है कि यह बच्चे पढ़ने के अवसरों से वंचित रहते है जिसके कारण उनके पास मज़दूरी के अतिरिक्त कोई अन्य मार्ग नहीं होता है।

 

बाल मज़दूरी करने वाले बच्चे सामान्यतः अपने परिवार की दयनीय आर्थिक स्थिति और कम ज्ञान के कारण बहुत कम वेतन पर कठिन से कठिन काम करने के लिए तैयार हो जाते हैं।  बहुत से स्थानों पर उन्हें घरेलू नौकर के रूप में प्रयोग किया जाता है।  बाल श्रमिकों की स्थिति लगभग ग़ुलामों जैसी होती है।  इन बच्चों को चाय के ढाबों, सड़क किनारे बने खाने के होटलों, छोटी दुकानों, घरों की सफाई करने इसी प्रकार के काम करते देखा जा सकता है।

बाल अधिकार कन्वेंशन के 32वें अनुच्छेद के अनुसार कन्वेंशन के सदस्य देशों का कर्तव्य बनता है कि वे बच्चों के हर प्रकार के षोषण से उन्हें बचाएं।  उनको चाहिए कि वे उनके शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य तथा नैतिक और सामाजिक प्रगति के लिए प्रयास करें।  इसके अनुसार इन देशों को काम करने के लिए बच्चों की एक आयु निर्धारित करनी चाहिए।  उन्हें काम की परिस्थितियों एवं उसकी समय सीमा भी तय करनी चाहिए।  बाल मज़दूरों से संबन्धित नियमों का उल्लंघन करने वालों के लिए दण्ड का भी प्रावधान होना चाहिए।  इन सरकारों को चाहिए कि वे हर उस काम से रुकवाने का प्रयास करें जो बच्चों के लिए हानिकारक हो।

बाल अधिकार कन्वेंशन के 32वें अनुच्छेद के अनुसार 14 वर्षों से कम आयु के बच्चे किसी भी औदयोगिक इकाई में काम नहीं कर सकते।  इसी के संदर्भ में कहा गया है कि आपातकालीन स्थिति में या सार्वजनिक लाभ के दृष्टिगत 16 से 18 वर्ष की आयु के किशोर इन स्थानों पर काम कर सकते हैं।

यदि ग़ौर किया जाए तो यह बात स्पष्ट होगी कि बाल मज़दूरी को रोकने के उद्देश्य से क़ानून मौजूद हैं किंतु आज भी संसार के बहुत से देशों विशेषकर तीसरी दुनिया के अधिकांश देशों में बाल मज़दूरी का क्रम अब भी जारी है जो खेद का विषय है।

 

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