May ०१, २०१९ १३:१० Asia/Kolkata

दूसरों विशेषकर उन देशों के खिलाफ प्रतिबंध लगाना अमेरिकी सरकार की विदेश नीति का एक सिद्धांत हैं जो अमेरिका की वर्चस्ववादी नीतियों को स्वीकार नहीं करते हैं।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के सत्ताकाल में इस नीति में गति आ गयी है। ईरान के साथ होने वाले परमाणु समझौते से अमेरिका 8 मई 2018 को एकपक्षीय रूप से निकल गया और उसके बाद ईरान के खिलाफ स्थगित प्रतिबंधों को दोबारा लागू कर दिया गया जिसे चीज़ को अमेरिकी विदेश नीति के परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने बारमबार परमाणु समझौते की आलोचना की थी और बल देकर कहा था कि ईरान पर प्रतिबंधों को बहाल और उसे कड़ा करके तेहरान को वाशिंग्टन की मांगों को मानने पर बाध्य कर देंगे। अमेरिका ने ईरान के खिलाफ जो प्रतिबंध लगाये हैं वे एक पक्षीय हैं। यह प्रतिबंध सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव नंबर 2231 सहित अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन हैं। इसके बावजूद ट्रंप सरकार ने ईरान के खिलाफ प्रतिबंधों को दो चरणों में लागू कर दिया। पहला चरण अगस्त 2018 में जबकि दूसरे चरण को 5 नवंबर 2018 को लागू किया गया। ईरान के खिलाफ अमेरिका के नये प्रतिबंधों और पहले के प्रतिबंधों का बहाल किया जाना तेहरान के विरुद्ध अमेरिका की नई शत्रुता व दबाव के जारी रहने का सूचक है।

ईरान के खिलाफ अमेरिका के नये प्रतिबंधों का एक पहलु ईरान के तेल पर प्रतिबंध लगाना था। वाशिंग्टन ने पहले घोषणा की थी कि उसका लक्ष्य 5 नवंबर से ईरानी तेल के निर्यात को पूरी तरह बंद करना है परंतु इस प्रतिबंध को लागू होने से कई दिन पहले वाशिंग्टन ने घोषणा की कि वह कुछ देशों को माफी देगा यानी कुछ देश ईरान से तेल खरीद सकते हैं। इस संबंध में ट्रंप सरकार चीन, भारत, जापान, दक्षिण कोरिया, तुर्की, इटली, यूनान और इसी तरह ताइवान को 6 महीने तक माफी देने पर बाध्य हुई। ट्रम्प ने कहा कि ये देश ईरान से तेल का आयत कर सकते हैं। वास्तव में ईरान से तेल खरीदने पर प्रतिबंध और अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में तेल की कमी का परिणाम यह हुआ कि स्वयं अमेरिका के भीतर तेल के मूल्यों में वृद्धि हो गयी जिसकी वजह से अमेरिकी सरकार ईरान से तेल खरीदने पर 8 देशों को 6 महीने तक माफी देने पर बाध्य हो गयी।

अमेरिकी सरकार खुल्लम- खुल्ला जो पीछे हट गयी उस पर संचार माध्यमों और विश्लेषकों ने भारी प्रतिक्रिया जताई और ईरान के खिलाफ ट्रंप सरकार की धमकियों को खोखला बताया। इस खुली पराजय को ध्यान में रखते हुए ट्रंप ने उसका औचित्य दर्शाना चाहा और नवंबर 2018 के मध्य में एक प्रेस कांफ्रेन्स में उन्होंने कहा कि मैं नहीं चाहता कि तेल का मूल्य अधिक हो और इसी कारण हमने आठ देशों को माफी दी किंतु समय बीतने के साथ प्रतिबंधों को कड़ा किया जायेगा।“

ट्रंप की यह स्वीकारोक्ति दो चीजों की सूचक है। पहली यह कि अमेरिका में जो नीति निर्धारक हैं जब उन्होंने ईरान से तेल खरीदने पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया तो उसके दुष्प्रभावों पर ध्यान नहीं दिया और बाद में उनका ध्यान तेल के मूल्यों में वृद्धि की ओर गया और उनकी समझ में आया कि यह ट्रंप सरकार की बहुत बड़ी ग़लती है।

दूसरे अमेरिकी सरकार की स्वीकारोक्ति इस बात की सूचक है कि वह अंतरराट्रीय प्रतिरोध के सामने पीछे हट गयी। जिन देशों ने अमेरिका की ज़ोर -ज़बरदस्ती और एक पक्षीय नीति के मुकाबले में प्रतिरोध किया उनका मानना है कि अमेरिका की यह नीति उनके राष्ट्रीय हितों के खिलाफ है इसी कारण उन्होंने ईरान के खिलाफ अमेरिकी प्रतिबंधों को स्वीकार नहीं किया। तुर्की के राष्ट्रपति रजब तय्यब अर्दोग़ान ने स्पष्ट रूप से कहा था कि अंकारा ईरान के खिलाफ वाशिंग्टन की नीति का अनुसरण नहीं करेगा।

 

तेहरान के खिलाफ अमेरिकी व्यवहार के परिप्रेक्ष्य में वाशिंग्टन ने अंततः ईरान से तेल खरीदने वालों को माफी न देने का फैसला लिया है। पहले चरण में वाशिंग्टन ने 22 अप्रैल को एक विज्ञप्ति में घोषणा की है कि ईरान से तेल खरीदने वाले देशों को माफी देने का समय मई 2019 में समाप्त हो जायेगा और डोनल्ड ट्रंप ने उसकी अवधि में वृद्धि न करने का फैसला किया है। वाइट हाउस के दावे के आधार पर रियाज़ और अबूज़बी ने इस बात पर सहमति की है कि वे अंतरराष्ट्रीय मंडी में तेल की ज़रूरत को पूरा करेंगे और उनका लक्ष्य ईरानी तेल के निर्यात को शून्य तक पहुंचाना है ताकि ईरान तेल से होने वाली आमदनी से वंचित हो जाये। वाइट हाउस ने घोषणा की है कि वाशिंग्टन और उसके घटक ईरान पर अधिक से अधिक आर्थिक दबाव डालने का यथासंभव प्रयास करेंगे।

अमेरिकी विदेशमंत्री माइक पोम्पियो ने 22 अप्रैल को घोषणा की है कि ईरान से तेल खरीदने वाले देशों को कोई माफी नहीं दी जायेगी। उन्होंने कहा कि वाशिंग्टन 2 मई वर्ष 2019 से ईरान से तेल खरीदने वाले 8 देशों को माफी नहीं देगा और इसकी निगरानी भी हम करेगें। संयुक्त - अरब इमारात और सऊदी अरब ने अमेरिका को आश्वासन दिया है कि वे अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में तेल की कोई समस्या नहीं उत्पन्न होने देंगे। अमेरिकी विदेशमंत्री ने एक बार फिर पिछले वर्ष निर्धारित 12 शर्तों के लागू करने पर बल दिया और दावा किया कि कुछ अरब देशों और इस्राईल की सम्मिलित से ईरान के खिलाफ एक बड़ा गठबंधन तैयार हो गया है।

ईरानी तेल पर प्रतिबंध की घोषणा और अंतरराष्ट्रीय मंडी में तेल की कमी की आशंका के कारण तेल के मूल्यों में वृद्धि हो रही है। 22 अप्रैल को तेल की अंतरराष्ट्रीय मंडी में तेल की कीमतों में तीन प्रतिशत की वृद्धि हुई और प्रति बैरेल कच्चे तेल की कीमत 74 डालर से अधिक हो गयी जो जारी वर्ष में अब तक कि सबसे अधिक कीमत है। इसका तत्काल प्रभाव अमेरिका में पेट्रोल की कीमत बढ़ जाने का कारण बनेगा जो निश्चित रूप से ट्रंप सरकार से अप्रसन्नता में वृद्धि का कारण बनेगा। परमाणु समझौते से अमेरिका के निकलने से पहले ईरान प्रतिदिन 23 लाख से अधिक बैरेल कच्चे तेल का निर्यात करता था जबकि वर्ष 2019 में उसका तेल निर्यात कम होकर लगभग 13 लाख बैरेल रह गया है। इसके बाद जो चीज़ महत्वपूर्ण है वह यह है कि ट्रंप सरकार शायद ईरानी तेल के निर्यात को सीमित कर सके परंतु वह शून्य तक नहीं पहुंचा सकती। तेल विशेषज्ञ BJORNAR TONHAUGEN ( ब्योरनर टॉनहागेन) कहते हैं कि इस बात की संभावना बहुत कम है कि ईरानी तेल का निर्यात शून्य तक पहुंच जाये।

ट्रंप सरकार के इस कदम पर विभिन्न प्रतिक्रियायें सामने आयी हैं। ईरान के अंदर यह विचार पाया जाता है कि अमेरिका ईरानी जनता पर अधिक से अधिक मानसिक दबाव डालकर सामाजिक अशांति उत्पन्न करके उसे खराब करना चाहता है और वह अमेरिका की वर्चस्वादी मांगों को स्वीकार करने की भूमि प्रशस्त कर देना चाहता है जबकि ईरानी अधिकारी अमेरिकी प्रतिबंधों के प्रभावहीन होने पर बल दे रहे हैं। इस संबंध में ईरान के तेल मंत्रालय के एक जानकार अधिकारी ने कहा है कि जिस तरह अमेरिका ने दावा किया था कि 5 नवंबर तक ईरानी तेल के निर्यात को शून्य तक पहुंचा देगा जबकि वह अपने इस लक्ष्य तक नहीं पहुंचा उसी तरह न केवल आगामी 10 दिनों बल्कि महीनों और वर्षों में भी वह इस लक्ष्य तक नहीं पहुंच पायेगा। अंतरराष्ट्रीय मंडी को ईरानी तेल की आवश्यकता है और अपने तेल को बेचने के लिए हमारे पास भी विभिन्न रास्ते हैं। ईरान के तेल मंत्रालय ने भी इस संबंध में प्रतिक्रिया दिखाई है। ईरान के विदेशमंत्रालय के प्रवक्ता सैयद अब्बास मूसवी ने कहा है कि अमेरिका ने जो प्रतिबंध लगाया है वह स्वयं गैर कानूनी हैं इस बात के दृष्टिगत ईरान माफी दिये जाने को कोई महत्व नहीं देता है। ईरानी संसद ने भी इस संबंध में प्रतिक्रिया दिखाई है। राष्ट्रीय सुरक्षा आयोग के अध्यक्ष हिश्मतुल्लाह फलाहत पीशे ने बल देकर कहा है कि एक दिन में ईरान के तेल का निर्यात 10 लाख बैरेल से कम कदापि नहीं होगा। उन्होंने ट्वीट करके कहा है कि ईरानी तेल की बिक्री की मात्रा द्विपक्षीय संबंध निर्धारित करेंगे न कि ट्रंप और पोम्पियो के राजनीतिक दावे हमारे तेल की बिक्री एक दिन में 10 लाख बैरेल से कम नहीं होगी।“

अमेरिकी सरकार ने जो यह घोषणा की है कि वह ईरानी तेल के निर्यात को शून्य तक पहुंचा देगी और ईरान से तेल खरीदने वालों को कोई माफी नहीं देगी इस पर दूसरे देशों, संगठन व संस्थाओं और संचार माध्यमों की ओर से काफी प्रतिक्रियाएं सामने आयी हैं। ब्रिटेन के बारक्लेज़ बैंक ने घोषणा की है कि ईरान से तेल खरीदने वालों को माफी न देने की अमेरिकी घोषणा से अंतरराष्ट्रीय मंडी में तेल की कीमतों में असाधारण वृद्धि होगी। इस बैंक ने कहा है कि सऊदी अरब और संयुक्त अरब इमारात उससे भी अधिक धीमी गति से ईरानी तेल से होने वाले शून्य की भरपाई करेंगे जो उन्होंने दावे किये हैं। इसी प्रकार इस बैंक ने दावा किया है कि अमेरिकी फैसले से युद्ध छिड़ने और हुरमुज़ स्ट्रैटे के बंद होने की संभावना में वृद्धि हो गयी है। अलबत्ता चीन और भारत जैसे ईरानी तेल के बड़े खरीदारों की प्रतिक्रिया इस संबंध में महत्वपूर्ण होगी।

अमेरिकी पत्रिका फारेन पालेसी ने “ईरानी तेल पर ट्रंप का बड़ा जुआ” शीर्षक के अंतर्गत लिखा है कि ट्रंप सरकार ने ईरानी तेल के निर्यात को शून्य तक पहुंचाने की जो घोषणा की है उससे उसने एक बड़े आर्थिक खतरे को मोल ले लिया है। इस पत्रिका ने इसी प्रकार लिखा है कि ट्रंप सरकार ने जो यह फैसला लिया है कि वह ईरान से तेल खरीदने वालों को कोई माफी नहीं देगी तो उसके इस फैसले के मुकाबले में ईरान के सामने विभिन्न विकल्प व मार्ग हैं। उदाहरण स्वरूप वह हुरमुज़ स्ट्रैट को बंद करके वाशिंग्टन को कड़ा जवाब दे सकता है। ज्ञात रहे कि प्रतिदिन क्षेत्र के तेल का 30 प्रतिशत भाग हुरमुज़ स्ट्रैट के रास्ते से होकर जाता है। इस पत्रिका के विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप सरकार ने 22 अप्रैल को ईरान से तेल खरीदने वालों को माफी न देने का जो फैसला किया है उससे तेल के मूल्यों में वृद्धि होने के अलावा अमेरिका और उसके उन घटकों के संबंध प्रभावित होंगे जो ऊर्जा की आपूर्ति में ईरान पर निर्भर हैं और साथ ही फार्स की खाड़ी में तनाव में वृद्धि का कारण बनेगा।

पाकिस्तान से प्रकाशित होने वाले समाचार जंग ने भी अपनी रिपोर्ट में ईरान से तेल खरीदने वाले 8 देशों को माफी न देने पर आधारित अमेरिकी फैसले की ओर संकेत करते हुए लिखा है कि अमेरिकी फैसले से एशियाई देशों को बहुत अधिक कठिनाइयों का सामना होगा। माफी न देने के फैसले से सबसे अधिक नुकसान जापान और दक्षिण कोरिया जैसे एशियाई देशों को होगा जबकि चीन और तुर्की ट्रंप सरकार के फैसले को स्वीकार करने के लिए तैयार ही नहीं हैं।