Jul १७, २०१९ १७:२७ Asia/Kolkata

क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-751

وَلَقَدْ آَتَيْنَا لُقْمَانَ الْحِكْمَةَ أَنِ اشْكُرْ لِلَّهِ وَمَنْ يَشْكُرْ فَإِنَّمَا يَشْكُرُ لِنَفْسِهِ وَمَنْ كَفَرَ فَإِنَّ اللَّهَ غَنِيٌّ حَمِيدٌ (12)

 

निश्चय ही हमने लुकमान को तत्वदर्शिता प्रदान की कि ईश्वर की कृतज्ञता प्रकट करो और जो कोई कृतज्ञ रहे वह अपने ही हित में कृतज्ञता दिखाता है। और जो भी अकृतज्ञ रहे (तो इससे ईश्वर को क्षति नहीं पहुंचेगी क्योंकि) निश्चय ही ईश्वर आवश्यकतामुक्त व प्रशंसनीय है। (31:12)

 

 

وَإِذْ قَالَ لُقْمَانُ لِابْنِهِ وَهُوَ يَعِظُهُ يَا بُنَيَّ لَا تُشْرِكْ بِاللَّهِ إِنَّ الشِّرْكَ لَظُلْمٌ عَظِيمٌ (13)

 

और (याद करो उस समय को) जब लुक़मान ने अपने बेटे से, उसे नसीहत करते हुए कहाः "हे मेरे बेटे! किसी को ईश्वर का समकक्ष न ठहराना कि निश्चय ही अनेकेश्वरवाद बहुत बड़ा अत्याचार है।" (31:13)

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