Jul ३१, २०१९ १६:४० Asia/Kolkata

हमने बताया था कि इस्लाम में प्रजनन या नस्ल बढ़ाने को परिवार की मज़बूती का आधार बताया गया है।

अच्छी संतान का स्वामी होना और एक अच्छी व चरित्रवान नस्ल को बाद के लिए छोड़ जाना हर मुसलमान के लिए शुभ माना गया है और इस काम की बड़ी प्रशंसा की गयी है। इस्लाम में निःसंतान रहने से मना किया गया है। पवित्र क़ुरआन में अच्छी संतान की तारीफ़ की गयी है। जैसा कि पवित्र क़ुरआन में आया हैः धन व संतान सांसारिक जीवन की शोभा हैं और बाक़ी रहने वाली भलाई ही तुम्हारे पालनहार के यहां परिणाम की दृष्टि से उत्तम और आशा की दृष्टि से भी उत्तम है।

बच्चे पैदा करना या नस्ल बढ़ाना, परिवार में ख़ुशी व सुकून लाने वाले सबसे अहम तत्वों में शामिल है। "धर्म और मनोविज्ञान" नामक किताब के लेखक माइकल अर्गाइल कहते हैः "बच्चों का वजूद परिवार के लिए बहुत लाभकारी है। उनके वजूद से परिवार में बहुत ज़्यादा ख़ुशी व आनंद आता है। ख़ुशी व आनंद बच्चों के वजूद के फ़ायदों में से एक फ़ायदा है।" अमरीका की ब्रिगम यंग यूनिवर्सिटी ने दुनिया के 86 देशों के 2 लाख से ज़्यादा परिवारों पर शोध किया और शोध के परिणाम में जो बात सामने आयी वह यह कि संतान का वजूद मां-बाप के ब्लड प्रेशर को कम करता है, उनमें सीखने का रुझान बढ़ता है, मां-बाप सोच विचार की क्षमता का अधिक इस्तेमाल करते हैं, उनमें आत्मविश्वास व सौंदर्य बोध बढ़ता है, छोटे छोटे कर्मों में अधिक सूक्ष्मता का प्रदर्शन करते और अधिक ख़ुश रहते हैं।

पश्चिमी समीक्षक बच्चे पैदा करने और उनके सही प्रशिक्षण पर बहुत बल देते हैं। उनका मानना है कि अगर जनसंख्या में वृद्धि ज़रूरी संख्या में न हो तो लोग ख़ुद ही उत्पादक, ख़ुद ही उपभोक्ता और निरंतर काम में व्यस्त रहेंगे। शारीरिक व मानसिक थकन की वजह से लोगों को जीवन नीरस लगेगा और इसका प्रभाव समाज पर भी पड़ेगा और अंततः एक राष्ट्र धीरे-धीरे विलुप्त हो जाएगा।

मुसलमान विद्वान व धर्मगुरु अल्लामा तबातबाई ने अनेकेश्वरवाद के जड़ से सफ़ाए के लिए मुसलमान के लिए नस्ल में वृद्धि को धर्म का उद्देश्य बताया है। वह कहते हैः "इस्लाम की नज़र में सबसे बड़ा उद्देश्य मुसलमानों की नस्ल बढ़ना और उनके ज़रिए ज़मीन का आबाद होना है। ऐसी आबादी जो अनेकेश्वरवाद व भ्रष्टाचार का जड़ से सफ़ाया कर सके।" इसीलिए वह संतान की पैदाइश और उसके प्रशिक्षण को विवाह की मुख्य वजह मानते हैं। वह कहते हैः "निकाह और शादी का कारण संतान की पैदाइश और उसके प्रशिक्षण में निहित है। वासना की तृप्ति या काम काज, खाना, पानी और घरेलू संसाधनों को मुहैया करने और उनके संचालन जैसे जीवन के संयुक्त कर्म इंसान की पैदाइश और प्रवृत्ति के दायरे से बाहर है। ये सिर्फ़ आरंभिक अहमियत रखते हैं। या दूसरे फ़ायदे जो उसके मुख्य लक्ष्य से अलग हैं।"

इस्लामी शिक्षाओं में जिन बातों पर बल दिया गया है वह यह कि संतान का वजूद परिवार में बर्कत लाता है। विपुलता, चलह पहल, संपन्न व सौभाग्य बर्कत में शामिल है। इस परिभाषा के तहत बर्कत भावनाओं, रोमांच और व्यवहार पर आधारित ऐसा समूह है जिसका परिवार के शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य से संबंध है। इसलिए बहुत से मुसलमान परिवार इस आस्था के साथ सामूहिक जीवन की मिठास का आभास करते हैं।             

इस्लाम में संतान पैदा करने के साथ साथ एक और अहम बात जिस पर बहुत अधिक बल दिया गया है वह संतान का उचित प्रशिक्षण है। संतान वह फूल की तरह है और मां-बाप पर एक बाग़बान की तरह उसकी देखरेख का कर्तव्य है ताकि वह अपने वजूद से परिवार और समाज को सुगन्धित करे।

इस्लामी संस्कृति में बल दिया गया है संतान को जो इंसान के जीवन का फल व वास्तविक प्रतिनिधि है, विशेषताओं से सुशोभित करे और उस समय यह उद्देश्य हासिल होगा जब संतान का सही प्रशिक्षण हो। जैसा कि संतान के प्रशिक्षण के संबंध में पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम ने फ़रमाया हैः अपनी संतान का सम्मान करो और उनका अच्छी तरह प्रशिक्षण करो ताकि तुम्हारी क्षमा हो सके।

बच्चे में जीवन के पहले साल में किसी भी चीज़ की समझ नहीं होती लेकिन उसमें भावना पूरी होती है। जैसा कि ईश्वर पवित्र क़ुरआन के नहल नामक सूरे की आयत नंबर 78 में इस बिन्दु की ओर संकेत करता हैः "ईश्वर ने तुम्हें माओं के पेट से इस हालत में निकाला कि तुम कुछ नहीं जानते थे।" बच्चा धीरे धीरे विकास करता है, उसका मन आस-पास के माहौल की समझ और उसकी जानकारी हासिल करता है। बच्चे का मन आइने की तरह साफ़ होता है कि जिसमें हर तरह की नियत प्रतिबिंबित होती है। बच्चे की क्षमता के अनुसार जो चीज़ उसे समझायी जाए वह तेज़ी से सीखता है।

इसलिए मां-बाप के लिए पहले प्रशिक्षक के रूप में ज़रूरी है कि वह इस ओर से सावधान रहें कि वह अपनी संतान को क्या सिखा रहे हैं। उसे सही शिक्षा देकर समाज में मौजूद बुराइयों से सुरक्षित रखें। मनोचिकित्सक के अनुसार, बच्चे संपर्क, नैतिकता, आस-पास के महौल और दुनिया के साथ व्यवहार का तरीक़ा अपने मां-बाप से सीखते हैं। यहां तक कि बहुत से बच्चे अपने मां-बाप का अनुसरण करते हैं। वास्तव में मां-बाप होना ही हर व्यक्ति के जीवन का सबसे बड़ी चुनौती वाला काम है। यह ऐसी हालत में है कि ज़्यादातर मां-बाप काम या पारिवारिक गतिविधियों की वजह से या बच्चों को उच्च स्तरीय शिक्षा का अवसर मुहैया कराके यह समझते हैं कि उन्होंने अपना कर्तव्य पूरा कर दिया। बच्चों का पालन पोषण उनकी भौतिक ज़रूरत को पूरा करने से ऊपर की चीज़ है जिसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। इस बात पर भी ध्यान देने की ज़रूरत है कि बच्चे जो कुछ घर में सीखते हैं उसे कभी नहीं भूलते।

इस बिन्दु का उल्लेख भी ज़रूरी है कि जिन बच्चों का सही तरीक़े से प्रशिक्षण नहीं होता, वह दुनिया के साथ सार्थक व्यवहार, जीवन जीने की शैली और नैतिक मूल्यों को सही तरीक़े से नहीं सीखते कि इसका दुष्परिणाम समाज में व्यापक स्तर पर ज़ाहिर होता है कि जिसके सदस्य अपने जीवन में संतुष्ट नहीं होते। दूसरे शब्दों में अगर बच्चे का सही प्रशिक्षण नहीं होगा तो एक स्वस्थ समाज वजूद में नहीं आएगा।

इसी बात को पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने अपनी दुआ में कहाः हे पालनहार! मेरे बाज़ू को बच्चों के ज़रिए मजबूत कर। मेरी कमर को सीधा कर। मेरी सभा को उनके वजूद से सुशोभित कर। उनके ज़रिए से मेरी इच्छाओं व ज़रूरत को पूरा करने में मदद कर।       

शादी इंसान के जीवन में घटने वाली अहम घटना है जिसका अच्छा अंजाम स्वस्थ व नेक संतान का वजूद है जिससे मां-बाप को संतुष्टि मिलती है। अलबत्ता इसके लिए ज़रूरी है कि जीवन साथी का चयन समझ बूझ कर किया जाए। हालिया दशकों में चिकित्सकों ने रिश्तेदारों में शादी और उसके संतान पर पड़ने वाले दुष्परिणाम के बारे में सचेत किया है। रिश्तेदारों में शादी बहुत पुरानी प्रथा है और ज़्यादातर सभ्यताओं में यह प्रथा पायी जाती है लेकिन मौजूदा दौर में इसके विरोध के कुछ तर्क हैं। बहुत से परिवार रिश्तेदारों में शादी को प्राथमिकता देते हैं और उनका मानना है कि रिश्तेदारों में शादी सफल रहती है।

मनोचिकित्सक व यूनिवर्सिटी में मनोचिकित्सा में प्रोफ़ेसर मोहम्मद रज़ा ख़ुदाई का कहना है कि परिवारों में रिश्तेदारों में शादी करने का रुझान इसलिए होता है कि वे विगत के अनुभव की बुनियाद पर अज्ञात लोगों पर भरोसा नहीं करते। परिवार ऐसे लोगों के साथ रिश्तेदारी क़ायम करना चाहते हैं जिनके बारे में पूरी जानकारी हो। लेकिन खेद की बात है कि बहुत से अवसर पर रिश्तेदारों में शादी के नतीजे में होने वाली संतान जीन की दृष्टि से ऐसी बीमारी में ग्रस्त हो जाती है जिसका एलाज मुमकिन नहीं होता।

जीन से जुड़ी बीमारियों की संख्या लगभग 6000 बतायी गयी है कि इनसे उन बच्चों के ग्रस्त होने की संभावना उन बच्चों की तुलना में अधिक होती है जो रिश्तेदारों में शादी होने से वजूद में आते हैं। दूसरी ओर रिश्तेदारों में शादी बच्चों के वंशानुगत बुराइयों, स्नायुतंत्र और मानसिक बीमारियों के उभरने का कारण बनती है। आंख, कान या पैर से वंचित बच्चे या दूध पीने के दौरान इस दुनिया से चले जाने वाले बच्चे, ये सब मां-बाप की छोटी सी लापरवाही या अज्ञानता का नतीजा होती है जो उन्होंने जीवन साथी के चयन में की है या जीन संबंधी परामर्श को उन्होंने नज़र अंदाज़ किया। मनोचिकित्सकों के अनुसार, रिश्तेदारों में शादी पर रोक लगाकर दुनिया में 50 फ़ीसद विक्लांगता को कम किया जा सकता है।

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