Oct २०, २०१९ १७:४१ Asia/Kolkata

पैग़म्बरे इस्लाम ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम से जो वसीयतें की हैं उनमें से एक ईश्वरीय भय से रोना है।

रोना एक ऐसी हालत है जो इंसान के अंदर क्रिया- प्रतिक्रिया का परिणाम है। ज़ोर डालकर रोना संभव नहीं है। अगर हम यह मान लें कि रोना आंतरिक क्रिया- प्रतिक्रिया का परिणाम नहीं है तो इस प्रकार के रोने का कोई लाभ नहीं है।

अगर यह सोचकर रोना आये कि ईश्वर महान है और उसकी महानता के सामने हम कुछ भी नहीं हैं तो इस प्रकार का रोना महत्वपूर्ण है और उससे इंसान के अंदर निष्ठा पैदा होगी और यह इंसान के अंदर हार्दिक परिवर्तन का कारण है और उसका रास्ता यही है कि इंसान यह सोचे कि वह महान व सर्वसमर्थ ईश्वर के सामने हैं। अगर यह भावना और एहसास इंसान के अंदर पैदा हो जाये तो नमाज़ और प्रार्थना में उसकी आंखों से आंसू जारी हो जायेंगे और यह एहसास इंसान को परिवर्तित कर देगा कि वह महान ईश्वर के समक्ष है और नमाज़ में हुज़ुरे क़ल्ब का अर्थ यही है।

अलबत्ता नमाज़ में हुज़ूरे क़ल्ब का यह अर्थ नहीं है कि इंसान अपने दिमाग़ में नमाज़ के शब्दों का अनुवाद करे बल्कि वह यह आभास करे कि महान ईश्वर के सामने खड़ा है और उससे बात कर रहा है। यह वह एहसास है जो इंसान के अंदर नमाज़ में निष्ठा पैदा करता है। महान हस्तियों ने सिफारिश की है कि इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि नमाज़ में ज़ेहन कहीं न जाने पाये। हां कभी एसा भी होता है कि नमाज़ पढ़ते- पढ़ते स्वाभाविक रूप से इंसान का दिमाग़ नमाज़ से बाहर आ जाता है और यह चीज़ इंसान के बस में नहीं है।

अलबत्ता जब हम यह समझ जायें कि हमारा दिमाग़ नमाज़ से भटक कर कहीं और चला गया है तो उसे वापस नमाज़ में लाना चाहिये। बहरहाल अगर नमाज़ में इंसान को इस बात का आभास हो जाये कि वह महान ईश्वर के समक्ष खड़ा है और उससे बात कर रहा है तो नमाज़ में उसके अंदर रोने की हालत भी पैदा हो सकती है।

पैग़म्बरे इस्लाम ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम से जिन चीज़ों की सिफ़ारिश की है उनमें से एक तक़वा अर्थात ईश्वरीय भय है। तक़वे का आधार पापों से परहेज़ है। जो रहस्यवादी और आध्यात्मिक हस्तियां हैं वे सबसे इसी बात की सिफारिश करती हैं कि पहले चरण में इंसान को पापों से परहेज़ व दूरी करना चाहिये अन्यथा जो इंसान पाप करता और उसके साथ अनिवार्य और ग़ैर अनिवार्य धार्मिक दायित्वों का निर्वाह भी करता है तो उसका कोई विशेष लाभ नहीं है। जो चीज़ इंसान के सुकर्मों को नष्ट होने से बचाती है वह पापों से दूरी है। एक स्थान पर पैग़म्बरे इस्लाम फरमाते हैं" बेहतरीन अमल हराम कार्यों से दूरी है।" इसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम फरमाते हैं" कभी भी विश्वासघात न करो" पैग़म्बरे इस्लाम की बात से यह ज्ञात होता है कि वरअ का अर्थ विश्वासघात करने और धोखा देने से परहेज़ करना है। धोखा देना या विश्वासघात करना केवल माल में नहीं होता है बल्कि ग़ैर माल में भी धोखा व विश्वासघात हो सकता है। हमारे पास जो कुछ भी है वह महान ईश्वर की अमानत है। ज़बान, हाथ और नियत से धोखा व विश्वासघात किया जा सकता है। यह समस्त चीज़ें धोखा और विश्वासघात हैं। अगर इंसान में ईश्वरीय भय हो तो वह कभी भी न तो धोखा देगा और न ही विश्वासघात करेगा।

 

टैग्स