Nov २७, २०१९ १३:४२ Asia/Kolkata

अमरीका में जातिवाद का आरंभ यूरोपियों के इस देश में पलायन के साथ आरंभ हुआ। 

ब्रिटिश, फ़्रांसीसी, स्पेनिश तथा अन्य श्वेतवर्ण के लोगों ने अमरीका पलायन करके वहां पर अपनी श्रेष्ठता को सिद्ध करने के प्रयास आरंभ कर दिये।  इन लोगों ने अमरीका के स्थानीय निवासियों अर्थात रेडइंडियन्स को वहशी या असभ्य बताकर स्वयं को श्रेष्ठ दर्शाने की कोशिश की।  इन्होंने श्वेतों को अश्वेतों पर वरीयता दी।  इस प्रकार अमरीका में जातिवाद का बीज बोया गया।  अमरीका के एक स्वंतत्र देश घोषित होने के समय न केवल यह जातिवाद का वहां से सफाया नहीं हुआ बल्कि सत्रहवीं शताब्दी तक इसका वहां पर बोलबाला रहा।

पलायनकर्ता यूरोपियों ने अमरीका महाद्वीप के मूल नागरिकों अर्थात रेड इन्डियन्स का खुलकर शोषण करने के साथ ही अफ़्रीका से लोगों को दास बनाकर अमरीका लाना शुरू किया ताकि वे उनकी सेवा करते रहें।  सन 1500 से 1800 ईसवी के बीच लगभग डेढ करोड़ अश्वेतों को मज़दूरी के लिए अफ़्रीका महाद्वीप से अमरीका लाया गया।  अमरीका के दक्षिणी राज्य कृषि की दृष्टि से उपयुक्त थे जिसके कारण वहां के ज़मीदारों ने अश्वेतों को नौकर बनाकर उनका खुलकर दोहन किया।  बाद में अमरीका के उत्तरी और दक्षिणी राज्यों में हुए गृहयुद्ध की समाप्ति और दास प्रथा की समाप्ति की घोषणा के साथ अमरीकी समाज नए चरण में प्रविष्ट हुआ।

सन 1865 में अमरीकी संविधान के 13वें अनुच्छेद में सुधार के साथ हालांकि इस देश से दास प्रथा के अंत की घोषणा की गई किंतु आज भी व्यवहारिक रूप में वह दूसरे रूप में मौजूद है।  अमरीका में रहने वाले बहुत से अश्वेत आज भी निर्धन्ता में जीवन गुज़ार रहे हैं।  उनके बच्चों को उन स्कूलों में पढ़ने का अधिकार नहीं है जहां पर श्वेत बच्चे पढ़ते हैं।  अमरीका के अश्वेत आज भी बहुत से सामाजिक अधिकारों से वंचित हैं।  उदाहरण स्वरूप वे अमरीका में बड़े पदों पर आसीन नहीं हो सकते।  अतिवादी श्वेतों की ओर से अश्वेतों पर आक्रमण और उनके विरुद्ध हिंसा, तथा इस संबन्ध में न्याय न मिलने के कारण उनके नागरिक अधिकारों का हनन हो रहा है।  द्वितीय विश्व युद्ध में संगठित मोर्चे के मुक़ाबले में बहुत बड़ी संख्या में अश्वेतों की उपस्थिति से यह आशा जागृत हो गई थी कि अब उन्हें श्वेतों के मुक़ाबले में न्याय मिल जाएगा किंतु यह एक सतना सिद्ध हुआ।  अमरीकी समाज में पाए जाने वाले जातिवाद के चलते अश्वेतों को यह समझ में आ गया है कि इस देश में जातिवाद को समाप्त करने के लिए निरंतर संघर्ष की आवश्यकता है।  यही कारण है कि इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए अमरीका में नागरिक अधिकार आन्दोलन आरंभ हुआ।

सन 1955 से 1968 के काल खण्ड में नागरिक अधिकार आन्दोलन को अमरीका में अश्वेतों के संघर्ष के इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण काल समझा जाता है।  इस आन्दोलन के नेता डाक्टर मार्टिन लूथर किंग थे।  उन्होंने अपने अथक प्रयासों से अमरीका में अश्वेतों को किसी सीमा तक सामाजिक अधिकार दिलाने में सफलता प्राप्त की।  हालांकि अमरीका में अश्वेतों को उनके अधिकार दिलाने के प्रयास किये जाते रहे हैं किंतु वे आज भी जातिवाद की बलि चढ़ते रहते हैं।  सन 1965 में इस आन्दोलन के एक नेता मैल्कम एक्स की गोली मारकर हत्या कर दी गई।  नोबेल पुरस्कार से सम्मानित नागरिक अधिकार आन्दोलन के नेता मार्टिन लूथर की भी 1968 में हत्या कर दी गई।  नागरिक अधिकार आन्दोलन के नेताओं की हत्याओं ने यह सिद्ध कर दिया कि अमरीका के भीतर जातिवाद और नस्लवाद की जड़ें कितनी गहरी हैं।  सन 1964 में नागरिक अधिकार क़ानून में अमरीकी समाज में अल्पसंख्यकों के विरुद्ध भेदभाव को व्यवहारिक रूप से समाप्त किये जाने की घोषणा के बावजूद वहां पर आज भी नस्लवादी हिंसा जारी है।  डोएच एवेले की एक रिपोर्ट के अनुसार सन 1974 से 2018 के बीच अमरीका में रहने वाले ब्लैक या अश्वेत की वार्षिक आय यहां के अल्पसांख्यकों की तुलना में बहुत कम है।

अमरीकी जेलों की संस्था की एक रिपोर्ट के अनुसार सन 2011 में अमरीकी जेलों में बंद लगभग 40 प्रतिशत काले हैं जबकि जनसंख्या की दृष्टि से उनका अनुपात मात्र 12 प्रतिशत है।  इसी रिपोर्ट के आधार पर अमरीका में सालाना आमदनी का औसत लगभग 26 हज़ार डालर है जबकि अफ़्रीकी मूल के अश्वेतों की वार्षिक आय लगभग 17 हज़ार डालर ही है।  अमरीका की वर्तमान राजनीतिक, आर्थिक और न्यायिक स्थिति के ही कारण इस देश के अश्वेतों के 50 प्रतशित बच्चे निर्धन्ता में जीवन गुज़ार रहे हैं।  श्वेतों की तुलना में वहां पर अश्वेतों की आय बहुत ही कम है।  बहुत से अवसरों पर श्वेतों की तुलना में अश्वेतों का वेतन आधे से भी कम होता है।

पंडित फैक्ट PUNDIT FACT नाम अमरीकी वेबसाइट की रिपोर्ट के अनुसार सन 2012 में हर 36 घण्टे में एक अश्वेत की हत्या पुलिस के हाथों की गई जबकि सन 2013 में हर 28 घण्टे में एक अश्वेत की हत्या पुलिस के हाथो हुई।  यह रिपोर्ट 26 अगस्त 2014 को Katie Sanders ले प्रकाशित की थी।  इन साक्ष्यों से पता चलता है कि मानवाधिकारों की रक्षा का दावा करने वाले देश अमरीका के भीतर मानवाधिकारों की स्थिति क्या है?

अप्रैल सन 1999 में न्यूजर्सी के पुलिस केन्द्र की रिपोर्ट भी अमरीकी पुलिस की जातिवादी कार्यवाहियों की पुष्टि करती है।  इस रिपोर्ट में बताया गया है कि मादक पदार्थ या स्मगलिंग कह वस्तुएं ले जाने वाले संदिग्ध वाहनों को रोकने के लिए पुलिस सामान्यतः उन ड्राइवरों को अधिक रोकती थी जिनका संबन्ध अश्वेत वर्ण के लोगों से या एशियाई मूल से या लैटिन अमरीका से लोगों से हुआ करता था।  एसी ही एक घटना में सन 1998 में एक बहुत ही ख़तरनाक घटना घटी।  अमरीकी पुलिस ने न्यूजर्सी हाईवे पर बिना किसी चेतावनी के एक एसी गाड़ी पर गोलीबारी की जिसपर दो लोग लैटिन अमरीकी मूल के और एक अश्वेत मूल का था।  यह तीनों पुलिस की गोलीबारी से बुरी तरह से घायल हो गए।  जब बाद में गाड़ी को रोका गया तो पता चला कि यह तीनों लोग, न्यूजर्सी में वास्केटबाल का एक मैच देखने जा रहे थे।  अमरीका में जहां पर पुलिस की हिंसा में निर्दोष लोग मारे जाते हैं वही पर न्यायालयों में अधिकतर इनको क्लीन चिट दे दी जाती है।  यही कारण है कि वहां पर पुलिस के जातिवादी व्यवहार और न्याय पालिका की ओर से उनके समर्थन पर आम लोग विरोध करते हैं।  यदि इसी प्रकार की कोई घटना किसी विकासशील देश में होती है तो अमरीकी संचार माध्यम उसे बहुत ही बढ़ा-चढाकर पेश करते हैं जबकि अपने यहां एसी की घटना को वे अनदेखा करने की कोशिश करते हैं।

सन 1973 में न्यूयार्क पुलिस के अधिकारी थामसशीआ ने दस वर्ष के एक श्वेत बच्चे की हत्या कर दी।  अपना तर्क पेश करते हुए इस अमरीकी अधिकारी ने कहा था कि वह दस साल का ब्लैक बच्चा मुझपर गोली चलाने वाला था।  कितने खेद की बात है कि दस साल के एक निहत्थे बच्चे को अमरीकी पुलिस अधिकारी थामसशीआ ने गोली मारकर ख़त्म कर दिया जबकि इस अमरीकी पुलिस अधिकारी पर इससे पहले 14 वर्ष के एक किशोर की हत्या का आरोप था।  14 वर्ष के किशोर की हत्या से पहले इसी अमरीकी पुलिस अधिकारी पर 22 वर्ष के एक युवा की हत्या का आरोप है जो उसके अनुसार चोरी करने का संदिग्य था।  जब हत्या के यह तीनो मामले न्यायालय गए तो न्यायालय ने तीन हत्या के आरोपी पुलिस अधिकारी को बरी कर दिया।  तीनों मामलों में मारे जाने वाले निहत्थे थे और उनके अपराधी होने का कोई प्रमाण भी नहीं मिल सका।  इन तीनों को अपराधी बताने का दावा केवल इस पुलिस अधिकारी ने किया जिसका कोई गवाह नहीं मिला।  इतनी बातें होने के बावजूद हत्यारे पुलिस अधिकारी को बाइज़्ज़त बरी कर दिया गया।  न्यायाल के इस निर्णय से तो एसा लगता है कि अमरीकी न्यायालयों में इस देश की पुलिस की एसी छवि है कि उसे हर स्थिति में क्षमा कर दिया जाए चाहे उसने हत्या ही क्यों न की हो।

 

 

 

 

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