Jul ०४, २०२० १४:४१ Asia/Kolkata

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाह उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई ने पश्चिमी जीवन शैली की आलोचना करते हुए कहा है कि यह शैली, विचारों को भौतकवादी बना रही है।

उन्होंने कहा कि पश्चिमी जीवन शैली ने पैसे को जीवन का लक्ष्य बनाते हुए आध्यात्म को जीवन से बाहर कर दिया है। यह पापों को सुन्दर रूप में पेश करके उन्हें आम कर ही है और इसके कारण परिवार टूट रहे हैं।

हालिया कुछ दशको के दौरान पूंजीवादी व्यवस्था में उपभोग और उपभोगतावाद के परिणामों ने समाजशास्त्र, मानवशास्त्र, संस्कृति , अर्थव्यवस्था और मनोविज्ञान जैसे विषयों में इसपर चर्चा के लिए प्रेरित किया है।

उपभोगतावाद से विश्व को होने वाले नुक़सान और इस बारे में लेख, आलेख, भाषण, समाचार और सर्वेक्षणों के बावजूद लोग अब भी उपभोगतावादी जीवनशैली पर ही चल रहे हैं। वे इस ओर कोई ध्यान नहीं देते और अपनी जीवनशैली को नहीं बदलते। वे उपभोगतावाद से होने वाली क्षति के बारे में सुनते तो हैं किंतु उस ओर कोई ध्यान दिये बिना अपनी दिनचर्चा को जारी रखते हैं।

यदि उपभोग की दृष्टि से संसार के विभिन्न देशों की आपस में तुलना की जाए तो यह पता चलेगा कि पश्चिमी जीवनशैली सबसे अधिक ख़र्चीली है। रिपोर्ट से यह पता चलता है कि अमरीकी, ज़्यादा फ़ुज़ूलख़र्च हैं। उनकी इस फ़ुज़ूलख़र्ची का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि वे विश्व की जनसंख्या का मात्र पांच प्रतिशत हैं किंतु संसार के कुल पेट्रोलियम उत्पादों का प्रयोग अमरीकी करते हैं।

विकासित देशों में संसार की एक चौथाई आबादी वास करती है जबकि विश्व के कुलज संसाधनों का उपभोग यही लोग करते हैं।

अमरीका की सबसे बड़ी रिटेल कंपनी वालमार्ट है उसकी आय ४६९ अरब डालर है। पूरी दुनिया में वालमार्ट के ११७१८ स्टोर्स हैं। यह दुनिया की सबसे बड़ी रिटेल कंपनी है। सन २०१२ में Royal Cutch Shell और Exxon Mobil कंपनियों के बाद Walmart संसार की तीसरी सबसे बड़ी कंपनी थी। इन बातों से पता चलता है कि संसार की बड़ी कंपनियां, किस तरह से उपभतगताओं को अपनी ओर आकर्षित करके अकूत धन कमाती हैं।

एक फ़्रांसीसी विचारक " जीन बाड्रीलैण्ड" कहते हैं कि शीशे के शोकेसों के पीछे रखी हुई चीज़ें भी उत्पादन की शैली को स्वरूप देती हैं। वे कहते हैं कि आज लोग अपनी पहचान को ख़रीदी जाने वाली वस्तुओं के हिसाब से बनाते हैं। इस समय स्थिति यह हो गई है कि समाज में रहने वाले ब्रांडेड चीज़ों ख़रीदकर यह दिखाना चाहते हैं कि उनकी क्रय शक्ति क्या  और उनका रहने- सहने का स्तर क्या है। ईरान के एक जानेमाने समाजशास्त्री डाक्टर मुर्तुज़ा क़लीच कहते हैं कि वे लोग जो उपभोगतावाद का शिकार हैं और अपनी प्रतिष्ठा या सोशल स्टेटस के लिए ब्रांडेड चीज़ें ख़रीदते हैं वे एक प्रकार से पूंजीवादी व्यवस्था का शिकार हैं।

विकसित देशों में ख़ुशहाली का अर्थ होता है वस्तुओं का अधिक से अधिक प्रयोग। आधुनिक मनुष्य उपभोगतावाद का केन्द्र बनकर रह गया है। पूंजीवादी व्यवस्था में प्रगति का मतलब होता है वस्तुओं से अधिक से अधिक लाभान्वित होना। विशेष बात यह है कि उपभोगतावादी संस्कृति में विलासितापूर्ण जीवन व्यतीत करने वाले हर प्रकार के साधन सपंन्न होने के बावजूद संतुष्ट या सुखी नहीं है। इस आधुनिक संस्कृति का शिकार लोग, लगातार मानसिक तनाव का शिकार होते जा रहे हैं। दावा यह किया जा रहा है कि आधुनिक युग ने मनुष्य को रोज़ी – रोटी के झंझट से मुक्ति दिला दी है।

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