पश्चिमी जीवन की सच्चाई- 13
"अमरीका में जब गर्मी आती है तो कुछ लोग गर्मी से मर जाते हैं।
गर्मी से कोई अपने घर में तो नहीं मरता, इसका मतलब है बेघर होना, या इसी तरह जब सर्दियां आती हैं और बड़ी संख्या में लोग ठंडक से मर जाते हैं, जिनकी संख्या कभी तो लीक हो जाती है और उसे सार्वजनिक कर दिया जाता है और अधिकतर अवसरों पर तो बताया ही नहीं जाता तो इसका मतलब भी बेघर होना ही है। इतनी अधिक दौलत वाले देश में, क्योंकि अमरीका एक धनवान देश है, इसका मतलब यह है कि वहां बहुत सी चोटियां हैं लेकिन उन्हीं चोटियों के पास ग़रीबी, अभाव और दरिद्रता की घाटियां भी हैं।"
दोस्तो हमने कार्यक्रम पश्चिमी जीवन की सच्चाई की यह कड़ी इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई के एक कथन से किया है जिसमें उन्होंने लोगों के बेघर होने को पश्चिमी देशों विशेष कर अमरीका की एक अहम सामाजिक समस्या बताया है। अत्यधिक धन से संपन्न विकसित देशों में बेघर लोगों का अस्तित्व और बड़ी संख्या में उनका मरना, वास्तव में सोचने का विषय है। कार्यक्रम में हमारे साथ रहिए ताकि पश्चिम समाज के अंदर दृष्टि डाल कर इन देशों की उस सच्चाई से अवत हो सकें जो आम तौर पर बयान नहीं की जाती।
बेघरों की समस्या, एक ऐसी सामाजिक समस्या है जो दुनिया के अधिकतर बड़े शहरों में दिखाई देती है। यह समाज के किसी ख़ास वर्ग से भी संबंधित नहीं है और समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों को बेघरों में देखा जा सकता है। वृद्ध, अधेड़, युवा, किशोर, बच्चे, पुरुष, महिला, शिक्षित, अशिक्षित, स्वस्थ, रोगी और अपंग, ग़रीब और धनवान घराने वालों, कुल मिला कर यह कि हर तरह के लोगों को बेघरों के बीच देखा जा सकता है। बेघरों में अधिकतर लोग नशे की लत, मदिरापान, मानसिक रोग, घरानों के बिखराव, शारीरिक रोग और कुपोषण जैसी समस्याओं में ग्रस्त होते हैं। यह स्वयं ही समाज के विकारों की एक परत को दर्शाता है जिसमें बेघरों का अस्तित्व है।
ग़रीबी और सामाजिक वंचितता, विकसित देशों में लोगों के बेघर होने के मुख्य कारणों में शामिल है। जनाधारित संस्थाओं की अंतिम रिपोर्टों से पता चलता है कि यूरोपीय देशों में लोगों के बेघर होने की प्रक्रिया में वृद्धि हुई है और इसने मुख्य रूप से उन लोगों को अपनी चपेट में लिया है जो बेरोज़गार हो गए हैं। हालिया बरसों में यूरोप में अभूतपूर्व ढंग से लोग बेघर हुए हैं। यूरोप महाद्वीप के बहुत से देशों में पिछले कुछ बरसों में बेघर होने वालों की संख्या में डेढ़ सौ प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है।
सरकारी और ग़ैर सरकारी संस्थाओं की रिपोर्टों के अनुसार अतीत के विपरीत आज यूरोप में सिर्फ़ शराबी, नशेड़ी और जुआरी बेघर नहीं हो रहे हैं बल्कि जिन लोगों के पास पहले घर और रोज़गार थ, वे भी यूरोपीय संघ की आर्थिक समस्याओं के चलते बेघरों में शामिल हो रहे हैं। इनमें से बहुत से लोग अपने छोटे छोटे बच्चों के साथ बेघर हो गए हैं। बेघर लोगों के संबंध में काम करने वाली संस्थाओं के यूरोपीय फ़ेडरेशन ने, जिसका मुख्यालय ब्रसेल्ज़ में है, मार्च 2019 में अपनी एक रिपोर्ट में आवास की समस्या को, यूरोप के सामने एक बड़ी चुनौती बताया था। यूरो न्यूज़ ने इस रिपोर्ट के आधार पर बताया है कि घरों के बेतहाशा बढ़ते ख़र्च के परिणाम स्वरूप यूरोप में बेघरों और दरिद्रों की समस्या को, यूरोप के सामने मुंह बाए खड़ी एक बड़ी समस्या बताया है।
ब्रिटेन के एक बड़े शहर मेनचेस्टर के केंद्र में एक अंधेरे गलियारे के सिरे पर एक गुप्त भूमिगत गुफा है जिसमें बेघर लोग चूहों के साथ जीवन बिताते हैं। इंडिपेंडेंट समाचारपत्र का कहना है कि अगर विक्टोरिया काल के सामाजिक पर्यवेक्षक आज ज़िंदा होते तो इस गुफा को देख कर आतंकित हो जाते। यह गुप्त गुफा, मेनचेस्टर शहर के केंद्र में अपार्टमेंटों की गगनचुंबी इमारतों और झिलमिलाते शापिंग सेंटरों से कुछ ही मीटर के फ़ासले पर स्थित है। इस गुफा में, जो एक नदी के किनारे स्थित है, खाने के ख़ाली डब्बे, ख़ाली बोतलें और पुराने व फटे पुराने स्लीपिंग बैग भरे हुए हैं। पुराने कपड़े और दरियां और कचरे से बने फ़र्श भी वहां देखे जा सकते हैं। इसके अलावा वहां आपको मादक पदार्थों से दूषित इंजेक्शनों की सूइयां भी मिल जाएंगी।
इस समय ब्रिटेन की सड़कों पर लगभग तीन लाख बीस हज़ार लोग रात गुज़ारते हैं। लंदन में नौ हज़ार बेघर लोग हैं और वर्ष 2010 की तुलना में वर्ष 2019 में यहां बेघरों की संख्या में 165 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। आंकड़ों के अनुसार ब्रिटेन में वर्ष 2017 में लगभग 600 बेघर लोगों ने सड़कों के किनारे या अस्थायी शरण स्थलों में अपनी जान गंवाई है। यह आंकड़े इस बात को सिद्ध करते हैं कि पिछले पांच साल में ब्रिटेन में बेघर लोगों की मौत में 24 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। यह ऐसी स्थिति में है कि जब बेघरों की मदद के लिए चलाई जाने वाली परोपकारी संस्थाओं का कहना है कि ब्रिटेन में बेघर लोगों की मौत के वास्तविक इससे कहीं अधिक हैं।
ब्रिटेन की सरकार ने एक रिपोर्ट में दावा किया है कि पिछले साल यानी सन 2018 में इस देश में सड़कों के किनारे सोने वालों की संख्या में दो प्रतिशत की कमी हुई है लेकिन आलोचकों का कहना है कि ब्रिटेन की सड़कों की सच्चाई कुछ और ही है। उनका कहना है कि ये आंकड़े कई स्थानीय परिषदों के आकलन की शैली में परिवर्तन का नतीजा हैं। यह बात कुछ अधिकारियों के माध्यम से सही सिद्ध हो गई जिन्होंने अपनी रिपोर्टों में पेश किए गए आकलनों को बदल दिया था। गार्डियन समाचारपत्र के अनुसार इन अधिकारियों का कहना है कि आवास मंत्रालय और स्थानीय सरकार की ओर से उनसे कहा गया था कि वे अपनी रिपोर्टों को इस प्रकार तैयार करें। उल्लेखनीय है कि अधिकारियों द्वारा फ़ुटपाथों पर सोने वालों की सही संख्या का आकलन इस वजह से अहम है कि केंद्रीय सरकार को इन आंकड़ों के अनुसार, ब्रिटेन में बेघर लोगों के संकट से निपटने के लिए बजट विशेष करना होता है।
फ़्रान्स भी उन कुछेक यूरोपीय देशों में से है जिनमें पिछले दशक में बेघर होने वालों की संख्या में काफ़ी वृद्धि हुई है। इस प्रकार कि फ़्रान्स की आंकड़ों की राष्ट्रीय संस्था की रिपोर्ट के अनुसार इस समय 12 हज़ार से अधिक लोग देश की सड़कों के किनारे रात गुज़ारते हैं। इन लोगों में अपनी आरंभिक आवश्यकताओं को पूरा करने की भी क्षमता नहीं है और इनमें से अधिकतर ग़रीबी रेखा से नीचे जीवन बिता रहे हैं। ये लोग दूसरों की मदद के सहारे अपना जीवन जारी रखे हुए हैं।
आंकड़ों से पता चलता है कि फ़्रान्स में सड़कों के किनारे सोने वालों में से औसतन हर दिन एक आदमी मर जाता है। फ़्रान्स के राष्ट्रीय स्वास्थ्य संगठन ने वर्ष 2018 में बताया था कि इस देश में सड़कों के किनारे सोने वालों में से 560 लोग उस साल मर गए थे। फ़्रान्स की कुछ परोपकारी संस्थाओं का कहना है कि बेघर होने के कारण मरने वालों की अस्ली संख्या, बताई गई संख्या से छः गुना अधिक है।
पेरिस में जारी वर्ष (2019) में बेघर लोगों की दूसरी जनगणना के अनुसार सड़कों के किनारे और फ़ुटपाथों पर सोने वालों की संख्या में वृद्धि हो रही है। यूरोप के इस मशहूर शहर में मंहगी ज़िंदगी ने समाज के ढांचे पर इतना अधिक दबाव डाल दिया है कि बहुत से लोग एक सादे व छोटे से घर से वंचित हो गए हैं। पेरिस के उपनगरीय इलाक़े और फ़ुटपाथ बेघर और बेसहारा लोगों के जमावड़े का स्थान बन गए हैं। यह समस्या फ़्रान्स में बहुत जटिल होती जा रही है और इसने फ़्रान्स के समाज को अपनी लपेट में ले लिया है।
स्थानीय संस्थाओं और बेघर लोगों के बीच संपर्क की संस्था के प्रमुख का कहना है कि पेरिस में इस समस्या के फैलने का एक अहम कारण हालिया बरसों में बेरोज़गारी की बढ़ती दर है। बेरोज़गार लोग अपनी ज़रूरतें पूरी नहीं कर पा रहे है और सिर छिपाने का कोई ठिकाना न होना, इनकी मुख्य समस्या है। फ़्रान्स के राष्ट्रीय अध्ययन केंद्र का कहना है कि इस देश में साढ़े चार लाख से अधिक लोग ग़रीबी रेखा से नीचे जीवन बिता रहे हैं।
"आपको कोई काम नहीं मिल सकता क्योंकि आप बेघर हैं और आप बेघर हैं इस लिए कि आप काम नहीं कर सकते।" यह वह भ्रामक वाक्य है जो अमरीका में फ़ुटपाथों पर रहने वालों पर बड़ी सरलता से चरितार्थ होता है। पिछले साल जारी होने वाले सरकारी आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2018 में अमरीका में बेघर लोगों की संख्या पांच लाख से अधिक थी। इससे पता चलता है कि विदित रूप से विकसित और धनवान देश अमरीका में कितने बेघर मौजूद हैं।
अमरीका की एक ग़ैर सरकारी संस्था फ़ेमिली प्रॉमिस ने देश में बेघर लोगों की सामाजिक समस्याओं के बारे में एक रिपोर्ट पेश करके कहा है कि सस्ते घरों का अभाव, बेरोज़गारी और ग़रीबी, अमरीका में लोगों के बेघर होन के तीन मुख्य कारण हैं। वर्ष 2018 में 25 लाख से अधिक बच्चों ने बेघर होने की मुसीबत झेली है। अमरीका में हर तीस में से एक बच्चा कभी न कभी बेघर होता है। वर्ष 2014-15 में दस लाख से अधिक विद्यार्थी बेघर थे। बेघर बच्चों में 51 प्रतिशत की आयु पांच साल से कम है और वे स्कूल जाने की आयु तक पहुंचे ही नहीं हैं। अमरीका में बेघर लोग, शरण स्थलों, गाड़ियों और कैम्पों में रहने के कारण लोगों की नज़रों से ओझल रहते हैं।