नूरुद्दीन अब्दुर्रहमान जामी- 4
दोस्तो आज के और अगले कुछ कार्यक्रमों में हम ईरान के एक अन्य महान बुद्धिजीवी नुरूद्दीन अब्दुर्रहमान जामी से आपको परिचित करायेंगे।
नुरूद्दीन अब्दुर्रहमान जामी नवीं हिजरी क़मरी अर्थात 15वीं ईसवी शताब्दी के शायर, लेखक, विचारक और अपने समय के विख्यात भाषणकर्ता थे।
दोस्तो जैसाकि हमने कहा कि नुरूद्दीन अब्दुर्रहमान जामी नवीं हिजरी क़मरी अर्थात 15वीं ईसवी शताब्दी के लेखक, शायर और प्रसिद्ध भाषणकर्ता थे। वह 817 हिजरी कमरी बराबर 1414 ईसवी में खुरासान प्रांत के विलायते जामे जम क्षेत्र में पैदा हुए थे। उनके पूर्वज इस्फहान नगर में रहते थे जो इस्फहान से खुरासान चले गये थे और खुरासान प्रांत के ख़रजेर्द जाम क्षेत्र में रहने लगे। नुरूद्दीन अब्दुर्रहमान जामी के पैदा होने से कुछ साल पहले उनके पिता अपने परिवार के साथ हेरात चले गये थे और वहीं बस गये। जामी ने आरंभिक शिक्षा ख़रजेर्द जाम में हासिल की। ख़रजेर्द जाम हेरात प्रांत का एक क्षेत्र था। नुरूद्दीन अब्दुर्रहमान जामी ने फारसी साहित्य और अरबी साहित्य के सर्फ व नह्वो जैसे विषयों का ज्ञान अपने पिता से हासिल किया। इसी प्रकार नुरूद्दीन अब्दुर्रहमान जामी ने हेरात और समरक़न्द के मदरसों में शिक्षा ग्रहण की। हेरात और समरक़न्द अपने समय में शैक्षिक व साहित्यिक केन्द्र समझे जाते थे। नुरूद्दीन अब्दुर्रहमान जामी ने अरबी, फारसी, तर्कशास्त्र, गणित और धार्मिक शिक्षा प्राप्त करके अपने समय के प्रसिद्ध व्यक्ति बन गये। उसके बाद उन्हें परिज्ञान व रहस्यवाद से रुचि हो गयी जिसके बाद वह तरीक़त नक्शबंदियां मत के अनुयाइ बन गये। नुरूद्दीन अब्दुर्रहमान जामी चूंकि अपने समय के महान विद्वान हो गये थे और उनका जो रहस्यवादी व्यवहार था उसके कारण समय के शासकों के निकट भी उनका विशेष स्थान था और अपने शैक्षिक एवं साहित्यिक ज्ञान और आध्यात्म के कारण बुढ़ापा आने से पहले ही उस समय उसमानी साम्राज्य से लेकर भारतीय उपमहाद्वीप के जिन जिन क्षेत्रों में फारसी भाषा बोली जाती थी वहां वह बहुत मशहूर हो गये थे और लोगों में उन्हें विशेष सम्मान प्राप्त था।
नुरूद्दीन अब्दुर्रहमान जामी का 18 मोहर्रम 898 हिजरी क़मरी अर्थात 1492 ईसवी शताब्दी में 81 वर्ष की उम्र में निधन हो गया और उस समय के खुरासान प्रांत के हेरात शहर में उन्हें उनके उस्ताद सादुद्दीन काशग़री की कब्र के बगल में दफ्न कर दिया गया। इस समय हेरात में नुरूद्दीन अब्दुर्रहमान जामी की कब्र तख्त मज़ार के नाम से प्रसिद्ध है।
नुरूद्दीन अब्दुर्रहमान जामी ने अरबी और फारसी में दसियों किताबें और गद्य और पद्य में पुस्तिकायें लिखी हैं और कार्यक्रम के थोड़े से समय में उन सबका परिचय और समीक्षा करना संभव नहीं है। इसलिए हम आज के कार्यक्रम में उनकी कुछ किताबों की समीक्षा और उनका परिचय करा रहे हैं।
नुरूद्दीन अब्दुर्रहमान जामी की एक किताब का नाम बहारिस्तान है। ईरान के विश्व विख्यात शायर शैख सादी ने अपनी किताब “गुलिस्ताने सादी” को जिस शैली में लिखा है उसी शैली में नूरुद्दीन अब्दुर्रहमान जामी ने अपनी किताब बहारिस्तसान को लिखा है। यह किताब गद्य में है और इसमें उन्होंने अरबी और फारसी के शेर भी लिखे हैं।
गुलिस्ताने सादी ईरानी समाज में लोकप्रिय व बहुत प्रसिद्ध किताब है और यह लोकप्रियता इस बात का कारण बनी है कि सातवीं हिजरी शताब्दी के बाद उसे स्कूलों और मदरसों में फारसी साहित्य के रूप में पढ़ाया जाता है। इसी प्रकार साहित्य में रुचि रखने वाले बहुत से लोग गुलिस्ताने सादी की किताब का अनुसरण करते और अपनी किताब को उनकी शैली में लिखने का प्रयास करते हैं। “निगारिस्तान मुइनुद्दीन जुवैनी” “ख़ारिस्तान या रौज़ये ख़ुल्द मज्द ख़वाफी” बहारिस्ताने जामी” और परीशाने क़ाआनी” वे किताबें हैं जिन्हें गुलिस्ताने सादी की शैली में लिखा गया है। साहित्यक आलोचकों के अनुसार जो किताबें भी गुलिस्ताने सादी का अनुसरण करके लिखी गयीं हैं उनके लेखक न केवल गुलिस्ताने सादी से आगे नहीं निकल पाये हैं बल्कि वे इस लाएक ही नहीं थे कि उन्हें सादी के बाद का साहित्यकार समझा जा सके। यानी सादी और उनके अंदर साहित्यिक दूरी बहुत अधिक थी। साहित्यिक आलोचकों के अनुसार इसकी वजह यह थी कि गुलिस्ताने सादी की शैली का अनुसरण करने वालों ने अपनी किताबों में अधिकांश ध्यान सादी की किताब के विदित अर्थों यहां तक कि अपनी किताब के नामकरण पर दिया था और उनमें से किसी एक ने भी सादी की भाषा की गहराइयों को समझने की या तो कोशिश नहीं की या वे समझ ही न सके। शैख सादी ने अपनी कला से अपनी किताब को एसा लिखा कि बहुत से ग़ैर ईरानी भी उसे आज फारसी साहित्य की किताब के रूप में पढ़ते हैं।
जिन लोगों ने सादी की शैली का अनुसरण करने का प्रयास किया उन्हें तीन गुटों में बांटा जा सकता है। पहला गुट उन लेखकों का है जिन्होंने खुल्लम- खुल्ला सादी का अनुसरण किया यहां तक कि उन्होंने सादी जैसे वाक्यों और शब्दों का प्रयोग किया। नूरुद्दीन अब्दुर्रहमान जामी की बहारिस्तान किताब को इसी श्रेणी में रखा जा सकता है।
दूसरा गुट उन लेखकों का है जिन्होंने केवल गुलिस्ताने सादी को देखा और उसका अनुसरण किया और अपनी किताबों में शिक्षाप्रद शेरों और कहानियों के समावेश करने का प्रयास किया और स्वयं इन लेखकों ने कहा है कि वे गुलिस्ताने सादी जैसी किताब की रचना करना चाहते थे। तीसरा गुट उन लेखकों का है जो गुलिस्ताने सादी से प्रभावित थे किन्तु इस बात को वे स्वीकार नहीं करते थे और शायद न चाहते हुए भी वे गुलिस्ताने सादी से प्रभावित थे।
जो किताबें गुलिस्ताने सादी की शैली पर लिखी गयी हैं उनमें से एक नूरुद्दीन अब्दुर्रहमान जामी की “बहारिस्तान” है। इस किताब में जामी ने शैख शीराज यानी सादी के मानवीय और भावनात्मक विचारों को बयान किया है और अच्छी व सूक्ष्म मिसालों और तत्वदर्शी गूढ़ बिन्दुओं को मनोहर कहानियों के रूप में बयान किया है। यह कार्य उन्होंने इसलिए किया क्योंकि वह शैख सादी की रचना को सरल भाषा में करना चाहते थे। इसी कारण “बहारिस्तान” किताब का वह भाग भी आशा से अधिक सादा व सरल है जिसमें साहित्यिक आयाम अधिक हैं। नूरुद्दीन अब्दुर्रहमान जामी ने जो सरल भाषा में रचना की है उसका एक कारण यह था कि उन्होंने अपने बेटे को सिखाने के लिए लिखा था। उन्होंने अपनी किताब के आरंभ में लिखा है चूंकि उनका बेटा ज़ियाउद्दीन यूसुफ़ साहित्य की शिक्षा ग्रहण कर रहा था इसलिए उन्होंने अपनी किताब बहारिस्तान को शैख सादी की किताब गुलिस्ताने सादी की शैली में लिखी और समय के शासक सुल्तान हुसैन बायकोरा को भेंट किया। इसी कारण अपेक्षा से अधिक सरल भाषा में उन्होंने अपनी किताब को लिखा है।
जामी ने अपनी किताब बहारिस्तान को अलग- अलग भागों में लिखा है। बहारिस्तान के कुछ भाग एसे हैं जिनमें अरबी और फारसी भाषा के शेर हैं और फारसी भाषा के शेर अरबी से अधिक हैं। स्वयं जामी के कथनानुसार सभी शेरों को खुद उन्होंने कहा है। बहारिस्तान के शेरों की पंक्ति गुलिस्तान सादी की तरह एक समान नहीं है कहीं छोटी तो कहीं बड़ी है। बहारिस्तान में जो शेर लिखे गये हैं वास्तव में वे उस विषय पर बल दिये जाने के लिए हैं जो उन शेरों से पहले बयान किये गये हैं और चूंकि जामी का उद्देश्य नसीहत था इसलिए उन्होंने बहुत ही अच्छी शैली में वहां पर शेरों का वर्णन किया है। जामी ने अपनी किताब बहारिस्तान में जिन तथ्यों को बयान किया है उनमें भी सादी की किताब गुलिस्ताने सादी का अनुसरण किया है किन्तु गुलिस्ताने सादी के विपरीत उन्होंने अपनी किताब के भागों का नाम रौज़ा रखा है।
जामी ने अपनी किताब बहारिस्तान में जिन व्यक्तियों को नायक के रूप में चुना है उनमें विविधता दिखाई देती है। बहारिस्तान किताब में जिन व्यक्तियों के नामों का प्रयोग किया गया है उनमें से कुछ मशहूर व्यक्तियों के नाम हैं। जैसे बुहलोल, अनोशिरवान और हातम ताई। इसी प्रकार बहारिस्तान किताब का जो आठवां भाग है उनमें जानवरों की कहानियां हैं और इन कहानियों के नायक जानवर हैं। इस भाग में जामी ने बहुत अच्छी तरह जानवरों को नायक के रूप में पेश किया है और हर जानवर को उसकी विशेषता के हिसाब से रोल दिया है जैसे लोमड़ी को मक्कारी का और चूहे को लालच का।
यह बात सही है कि जामी ने अपनी किताब बहारिस्तान को अपने बेटे ज़ियाउद्दीन यूसुफ़ के लिए लिखा था किन्तु उनका उद्देश्य अपने विचारों और विश्वासों को सरल भाषा में बयान करना था और कहानी के रूप में जहां उन्हें बयान किया है वहीं कुछ लोगों के सामाजिक और व्यक्तिगत विचारों व स्वभावों पर टीका- टिप्पणी भी की है।
जामी की जो आइडियालोजी थी वह हनफी नक्शबंदी थी इसलिए वह हनफी नक्शबंदी मत के अनुयाई थे और दूसरे संप्रदायों के विचार व आस्थाएं उन्हें पसंद नहीं थीं और वह उनके विरोधी थे और उनमें और उनके मत के सूफियों में अंतर केवल इतना था कि वह साहित्यकार थे।
जामी की किताब बहारिस्तान के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि जामी बुद्धि और सोच से काम लेने को पसंद करते थे क्योंकि उनकी किताब बहारिस्तान के बहुत से भाग दर्शनशास्त्रियों के बयानों से विशेष हैं। इसी तरह बहारिस्तान किताब के कुछ भाग परिज्ञानियों के कथनों और उनके हालात से विशेष हैं। इस आधार पर बहारिस्तान रहस्यवादी विषयों की किताब है और उसमें नसीहतें और तत्वदर्शी बातें हैं। साथ ही बहारिस्तान में कुछ एसे विषय भी हैं जो मज़ाक से विशेष हैं।
बहरहाल गुलिस्ताने सादी की तुलना में जामी की बहारिस्तान किताब के संबंध में कहा जा सकता है कि जामी ने अपनी किताब बहारिस्तान के तथ्यों को लिखने में बड़ी दक्षता का प्रदर्शन किया है फिर भी वह सादी के स्थान तक न पहुंच सके। दूसरे शब्दों में जामी सादी का पूरी तरह अनुसरण करने में सफल न हो सके। विषयों को लिखने की दृष्टि से भी जामी सादी की शैली से हट गये हैं और उनकी किताब सामाजिक और साहित्यिक होने के बजाये सूफी, परिज्ञानी व शैक्षिक रूप धारण कर गयी है। दोस्तो आज के कार्यक्रम का समय यहीं पर समाप्त होता है। अगले कार्यक्रम तक के लिए हमें अनुमति दें।