Nov १९, २०२० १५:३६ Asia/Kolkata
  • पानी का संकट,  अगर अभी नहीं जागे तो देर हो जाएगी

पानी के भंडारों का सही प्रयोग  विश्व में जल संकट के निवारण और स्थाई विकास का एक प्रभावी समाधान है।

इस दिशा में विश्व समुदाय को पानी तक पहुंच को इन्सानों के मूल अधिकारों में शामिल करना चाहिए। इस तरह से पानी तक पहुंच के मुद्दे पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाएगा और दुनिया के करोड़ों लोगों का भला होगा। 

 

यह बहुत आश्चर्य की बात है कि विश्व समुदाय ने पानी को एक लाभदायक आर्थिक साधन के रूप में औपचारिकता देने के लिए सन 1992 तक इंंतेज़ार किया। इन हालात में यह बिल्कुल स्पष्ट सी बात है कि पानी भी अन्य विलुप्त होने वाले भंडारों की तरह है और इसी वजह से उस पर विशेष रूप से ध्यान देने और उसके प्रयोग के लिए योजना और कार्यक्रम बनाने की ज़रूरत है ताकि पानी की उपलब्धता और प्रयोग में तालमेल पैदा हो और किसी प्रकार का संकट न हो। पानी के कार्यक्रम बनाने की प्रक्रिया में सब से पहले हमें पानी को एक एसी चीज़ के रूप में मान्यता देना चाहिए जो मानवाधिकारों में शामिल है। 

पानी के सही प्रयोग के बहुत से तरीक़े हैं लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि हमें पहले यह मानना होगा कि पानी की उपलब्धता और उसके प्रयोग के कार्यक्रम अलग अलग होने चाहिए। हम सब को यह बात पता है कि पानी की उपलब्धता एक ही तरह की है इस लिए हमें उस तक पहुंच बनाने, उसे सुरक्षित रखने और हर इन्सान के लिए पानी को उपलब्ध कराने के सिलसिले में प्रभावशाली कार्यक्रम की ज़रूरत है। इसके लिए सब से पहले तो पानी के भंडारण की व्यवस्था को बेहतर बनाना होगा और बारिश के पानी के भडांरण के लिए सही योजना बनानी होगी इसके साथ ही पानी की बर्बादी को हर हाल मे रोकना होगा लेकिन इन सब के साथ यह भी ज़रूरी है कि पानी के प्रदूषण के कारणों का पूरी तरह से अंत किया जाए अन्यथा सुरक्षित और उपलब्ध पानी भी बेकार हो जाएगा। पानी के प्रदूषण से बचाने की वजह  से रोग कम होंगे जिससे स्वास्थ्य सेवा पर खर्चा भी कम आएगा। इसी तरह नदियों के पानी से सही रूप से लाभ उठाया जा सकता है और ज़रूरत पड़ने पर समुद्र के खारे पानी को मीठा भी बनाया जा सकता है। 

 

स्थाई विकास के लिए पानी के सही प्रयोग के बहुत से लाभ हैं। इस तरह से पानी हमेशा किसानों और खेती बाड़ी के लिए उपलब्ध रहता है और किसान, पानी की तरफ से किसी प्रकार की चिंता किये बिना खेती बाड़ी में व्यस्त रहते हैं जो निश्चित रूप से किसी भी देश के विकास में महत्वपूर्ण है। इसी तरह पानी के लिए सही कार्यक्रम और योजना बनाने से, नगरों में निकासी के पानी का प्रदूषण कम होता है और इस तरह से महानगरों के आस पास के इलाक़ों में पानी की सुरक्षा होती है क्योंकि गंदा पानी उन्ही इलाक़ों में जाता है। वैसे इस प्रकार का पानी बड़े बड़े नगरों के आस पास होने वाली खेती के लिए अच्छा होता है लेकिन इसके लिए भी सही योजना और उसे सही रूप से लागू किये जाने की ज़रूरत है। 

इस सिलसिले में यह भी कहना चाहिए कि पानी की मांग को भी संतुलन में रखना और सही करना एक बड़ा काम है जो सीधे रूप से स्थाई विकास से जुड़ा हुआ है। पानी के सही प्रयोग के  लिए एक सटीक कार्यक्रम की ज़रूरत होती है जिसके तहत पानी का इस्तेमाल करने वाले सभी लोगों को पानी के महत्व से पूरी तरह अवगत कराना होता है लेकिन इस पूरी प्रक्रिया में केवल व्यवहारिक राहों पर ही ध्यान दिया जाना चाहिए और महत्वकांक्षी और काल्पनिक समाधानों से बचना चाहिए। सही तरीका यह है कि बेहद साधारण और सादे रूप में पानी का महत्व और समाज के लिए उसकी उपयोगिता से लोगों को अवगत कराया जाए ।

 

इस के लिए दो तरीक़े प्रायः प्रभावी समझे जाते हैं। एक तो यह कि पानी का इस्तेमाल करने वालों को, पानी के सही प्रयोग  पर प्रोत्साहित किया जाए और दूसरा तरीक़ा यह है कि जहां पानी कम प्रयोग होता है वहां से उन जगहों पर पानी अधिक उपलब्ध कराया जाए जहां उसकी अधिक ज़रूरत और उपयोगिता हो। पानी के सही प्रयोग से, उत्पादन बढ़ता है और उत्पादन बढ़ने से समृद्धता आती है।  पानी की बर्बादी को रोकना भी बहुत अहम है। पाइप लाइनों में रिसाव से बहुत बड़ी मात्रा में पानी की बर्बादी होती है इस लिए इस दिशा में ध्यान देना बहुत  ज़रूरी है। अगर शहरों में पानी के सही प्रयोग पर ध्यान दिया जाए और इसी तरह सिंचाई की आधुनिक शैली अपनाई जाए तो इससे पानी की  काफी बचत हो सकती है। 

विशेषज्ञों के अनुसार इस प्रकार का तरीका विकासशील देशों के लिए काफी उपयोगी हो सकता है क्योंकि यह देश, कृषि पर बहुत अधिक निर्भर होते हैं लेकिन खेती के लिए आधुनिक साधनों का इस्तेमाल कम करते हैं। सिंचाई के लिए आधुनिक तरीक़ों के इस्तेमाल से पानी की बर्बादी को काफी हद तक बचाया जा सकता है। सही तरीके से सिंचाई करने से न केवल यह कि पानी की बचत होती है बल्कि इससे उत्पादन भी बढ़ता है। 

सच्चाई यह है कि पानी के विषय में सारी जटिलता इस लिए है कि पानी की उपलब्धता प्रकृति करती है लेकिन उसका इस्तेमाल इन्सान करते हैं और उसकी उपलब्धता हर जगह समान रूप से नहीं है और इसी तरह उसका प्रयोग भी हर जगह  सही तरीके से नहीं किया जाता। इस आधार पर पानी के संदर्भ में बनायी जाने वाली नीति को एसा होना चाहिए जिससे इस तरह की चुनौती का सामना करना संभव हो। इसके अलावा यह भी ज़रूरी है कि पानी के संदर्भ में बनायी जाने वाली नीतियों में सामूहिकता पर ध्यान दिया जाए और किसी विशेष क्षेत्र, राज्य और देश को ही ध्यान में न रखा जाए। इस लिए इस क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय सहयोग भी बेहद ज़रूरी है। 

यही वजह है कि स्वच्छ पानी तक पहुंच को विश्व बैंक की विकास योजना में शामिल किया गया है और इसे सहस्त्राब्दी की प्राथमिकताओं  में रखा गया है लेकिन यह भी सच्चाई है कि अंतरराष्ट्रीय मदद, स्थानीय लोगों के सहयोग के बिना प्रभावी नहीं हो सकती। यहां पर समस्या केवल विकासशील देशों की मदद तक ही सीमित नहीं है बल्कि समस्या पूरी दुनिया में पानी को लेकेर बनायी जाने वाली नीतियों में हैं। बड़े अफसोस की बात यह है कि दुनिया के नेताओं के लिए पानी और उसकी सुरक्षा में कोई आकर्षण नहीं है क्योंकि पानी के बारे में बनाए जाने वाली नीतियों का संबंध दीर्घकालिक योजनाओं  से है और यहीं से समस्या शुरु  होती है। पहली समस्या यह है कि दीर्घकालिक योजनाओं का चुनावी लाभ नहीं मिल पाता इस लिए राजनेताओं को उनमें दिलचस्पी नहीं होती। उसके बाद नंबर आता है वोटरों का वह भी पानी के वैश्विक मुद्दे पर ध्यान नहीं देते बल्कि उनके लिए प्रायः स्थानीय मुद्दे ही महत्व रखते हैं। 

एक रुकावट यह भी है कि पानी की सुरक्षा के लिए प्रायः जिन क्षेत्रों में काम किये जाते हैं और मूल भूत ढांचा बनाया जाता है वह नज़रों में नहीं रहता और इसी लिए राजनेता उस पर ध्यान ही नहीं देते। इस प्रकार के मूल भूत ढांचे पर जो लागत आती है उसकी तुलना में उससे जो राजनीतिक लाभ मिलता है वह बहुत कम होता है इस लिए इस समस्या के निवारण में नेताओं में रूचि नहीं होती और यह एक बहुत बड़ी समस्या है। 

पानी स्थायी विकास की कुंजी है यह हम पहले  भी बता चुके हैं  लेकिन विकासशील देशों में यह समस्या अधिक नज़र आती है जबकि इन्ही देशों में खेती बाड़ी अधिक होती है। पानी आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होने के अलावा राजनीतिक दृष्टि से भी महत्व रखता है और उसके समाजिक पहलुओं का भी कोई इन्कार नहीं कर सकता। पानी पर नियंत्रण की वजह  से बहुत  से देश, पानी से वंचित देशों को अपनी शर्तें मानने पर मजबूर करते हैं। इसी तरह देशों के अलावा क्षेत्रों और राज्यों में भी यह स्थिति नज़र आती है और एक ही देश के विभिन्न राज्य और क्षेत्र पानी पर क़ब्ज़े की लड़ाई में व्यस्त नज़र आते हैं। यही नहीं गांव और क्षेत्र के स्तर पर भी पानी और तालाब पर नियंत्रण एक तरह से शक्ति का प्रतीक होता है और धनी व निर्धन की पहचान भी बन जाता है। 

इस प्रकार की असंख्य चुनौतियों से मुकाबले के लिए समाधान भी बहुआयामी होना चाहिए। इस प्रकार की समस्याओं  के निवारण के लिए ठोस कार्यक्रम और योजनाओं को लागू किया जाना चाहिए लेकिन यह एक ठोस सच्चाई है कि कोई भी योजना और कार्यक्रम स्थानीय लोगों के सहयोग के बिना संभव नहीं है। हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि पानी के बारे में बनायी जाने वाली नीतियों को असरदार और ज़रूरतों को पूरा करने वाला होना चाहिए। इस तरह से यदि सारे पहलुओं को ध्यान में रख कर पानी के प्रयोग और सुरक्षा की नीतियां बनायी जाएंगी तो उससे न केवल यह कि पानी की सुरक्षा होगी, बल्कि स्थाई विकास की प्रक्रिया आगे बढ़ेगी और निर्धनता में कमी भी होगी। 

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