Dec ०९, २०२० १६:१५ Asia/Kolkata
  • जल प्रदूषण एक एसी समस्या है जिसने पूरी दुनिया को अपने घेरे में ले रखा है

वास्तव में धरती, जलवायु, पर्यावरण और मनुष्य, यह सब एक-दूसरे से इस तरह से जुड़े हुए हैं कि इनमें से किसी एक के दूसरे से अलग होने की स्थिति में धरती पर मानव जीवन के लिए समस्याएं पैदा हो सकती हैं जैसाकि हम आजकल देख ही रहे हैं।

वर्तमान समय में मानवजाति, पर्यावरण के जिस संकट का सामना कर रही है वह प्रकृति में मनुष्य के अनुचित हस्तक्षेप का ही परिणाम है।  प्रदूषण का मुद्दा, इस समय मानवजाति के लिए ज्वलंत मुद्दों में परिवर्तित हो चुका है।

पर्यावरण में प्रदूषण के कारण धरती से लेकर आसमान तक मानव जीवन के लिए ख़तरे पैदा हो गए हैं।  अलग-अलग लोगों के निकट प्रदूषण की अलग-अलग परिभाषाएं हो सकती हैं।   आम इंसान, पानी से होने वाली आखों की जलन या दूषित जल और गैस को प्रदूषण कह सकता है।  हालांकि प्रदूषण की व्यापक परिभाषा यह हो सकती है कि मूल रूप से प्रकृति के संतुलन में दोष पैदा होना ही प्रदूषण हो सकता है।  प्रदूषण कई प्रकार के होते हैं जिनमें से वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण और घ्वनि प्रदूषण अधिक मश्हूर हैं।  दूसरे शब्दों में जब भी पर्यावरण में बाहर से कोई तत्व आकर मिलता है तो उसको प्रदूषण कहा जाता है।

जल प्रदूषण एक एसी समस्या है जिसने पूरी दुनिया को अपने घेरे में ले रखा है।  जल प्रदूषण के कारण पूरी दुनिया में हर साल हज़ारों लोग काल के गाल में समा जाते हैं।  हमें यह बात समझनी चाहिए कि जल प्रदूषण जैसे मुद्दे से व्यक्ति अकेले नहीं निबट सकता बल्कि इसके लिए सबको सहयोग करना होगा।  सर्वेक्षणों के अनुसार प्रतिदिन 14 हज़ार से अधिक लोग प्रदूषण के कारण दुनियाभर में अपनी जान गंवाते हैं।  भारत में जल प्रदूषण के कारण रोज़ाना सैकड़ों बच्चे अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं।  चीन में लगभग 90 प्रतिशत नागरिक, विभिन्न स्तरों पर जल प्रदूषण से पीड़ित हैं।

 

इस हिसाब से कहा जा सकता है कि जल प्रदूषण, इस समय मानव जाति की सबसे ज्वलंत समस्या है।  वायु प्रदूषण को बड़ी सरलता से पहचाना जा सकता है।  जब पानी से कोई द्रव्य मिलता है तो उसका स्वाद बदल जाता है और कभी-कभी उससे दुर्गंध भी आने लगती है।  तालाबों, नहरों, नदियों या समुद्र का जल भी विभिन्न कारकों से दूषित हो सकता है जिससे लोगों को तरह-तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।  कभी-कभी पानी कुछ अज्ञात कारणों से भी प्रदूषित हो जाता है।  पानी में घुला हुआ आक्सीजन, प्रणियों के जीवित रहने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।  पानी में इसकी मौजूदगी ज़रूरी है।

पानी उस समय दूषित होता है जब उसमें पाई जाने वाली आक्सीजन की घुलनशीलता, उसके प्राकृतिक अस्तित्व के आवश्यक स्तर से नीचे गिर जाती है।  पानी के भीतर उन सूक्ष्म जीवों को बहा ले जाने की क्षमता पाई जाती है जो स्वास्थ्य और जीवन को ख़तरे में डाल सकते हैं। रोगजनक कीटाणु, पानी के भीतर पहुंचकर आंतों को संक्रमित करते हुए कई प्रकार की बीमारियों को जन्म दे सकते हैं जैसे हैज़ा, पेचिश और टाइफाइड आदि।  जल प्रदूषण को नियंत्रित करने का सबसे पहला मार्ग यह है कि पहले पानी से होने वाली बीमारियों को रोका जाए।  प्रदूषित जल से मनुष्य को जो बीमारियां हो सकती हैं उनमें हैज़ा, बुख़ार, वायरल रोग और पेट में पड़ने वाले कीड़े आदि हैं।

 

खेद की बात है कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद से पूरी दुनिया में जल में रासायनिक पदार्थों के घोल की मात्रा में बहुत तेज़ी से वृद्धि हुई है।  इस समय मनुष्य द्वारा प्रयोग किये जाने वाले पानी के भीतर प्लास्टिक, फैब्रिक, डिटरजेंट, रंग, दवाएं और रासायनिक पदार्थ पाए जाते  हैं जिनमें डिटर्जेंट और कीटनाशक ज़्यादा ख़तरनाक हैं।  इसके अतिरिक्त जल को प्रदूषित करने में खनिज लवण और खनिज एसिड के साथ ही धातुओं के मिश्रण की भी भूमिका है।  पानी के भीतर इन पदार्थों की मौजूदगी अम्लता, लवणता और विषाक्तता का कारण बनती है।  अम्लता बढ़ाने में अम्लीय वर्षा का विशेष महत्व बताया जाता है।

पानी में पाए जाने वाले नमक को आसानी से पहचाना नहीं जा सकता वैसे भी दुनिया में पाए जाने वाले पानी का 97 प्रतिशत भाग खारा है।  बाक़ी 3 प्रतिशत जल को ही मीठा पानी कहा जाता है।  पिछले कई वर्षों के दौरान पानी में घुले हुए तत्वों की विषाक्तता का पता लगाया जा चुका है।  इनमें से कुछ एसे तत्व हैं जो हानिकारक नहीं होते और स्वयं ही पैदा होते रहते है जबकि कुछ धातुएं एसी होती हैं जो प्राणियों के शरीर में धीरे-धीरे इकट्ठा होकर बाक़ी रहती हैं।

तलछट को भी एक प्रकार का प्रदूषण बताया गया है जो कुछ अवसरों पर प्राकृतिक रूप में जमा होता रहता है।  यही तलछट, सतह के जल के भीतर व्यापक प्रदूषण का कारण भी बनता है।  पानी के भीतर पाए जाने वाले तलछट से कई प्रकार के नुक़सान हो सकते हैं जैसे नहरों, झरनों, जलाशयों और इस जैसे जलापूर्ति के साधनों में बाधाएं आना।  तलछट उनके प्रवाह को रोकता है।  यह जल में रहने वाले प्राणियों के विनाश का कारण बनता है साथ ही उनके निवास स्थानों तक पानी और रोशनी की पहुंच में रुकावट का भी कारण बनता है।  इस प्रकार से पानी की सफाई पर बहुत अधिक धन लगता है।

जलचरों को हालांकि तलछट से समस्याओं का सामना करना पड़ता है किंतु दूसरे कामों के लिए ठंडे जल के क्लोरीनीकरण से जलीय जीवन को जहां पर ख़तरा उत्पन्न होता है वहीं पर यह काम, जल प्रदूषण को भी बढ़ावा देने वाला है।  हालांकि यह काम बैकटीरिया के प्रभाव को रोकने के उद्देश्य से किया जाता है किंतु क्लोरीन, पर्यावरण में रहने वाले जीवों को प्रभावित करता है और सूक्ष्म जीवों को नष्ट करता है।

जल प्रदूषण के महत्वपूर्ण कारकों में से एक, ख़राब ड्रेनेज सिस्टम और रासायनिक खाद है जिनमें कई प्रकार के प्रदूषित पदार्थ पाए जाते हैं।  इन दूषित पदार्थों के स्तर से अधिक होने के कारण जलचरों में अधिक वृद्धि होती है।  इनकी संख्या में वृद्धि के कारण जलचरों के जीवन में कई प्रकार की समस्याएं आ जाती हैं।  सूक्ष्य जलचरों में अधिक वृद्धि के कारण वे पानी में मिली हुई सारी आक्सीजन का प्रयोग कर लेते हैं।  इस प्रकार से आक्सीजन की कमी पड़ने लगती है जिसके परिणाम स्वरूप जलचरों का जीवन  ख़तरे में पड़ जाता है।

 नदियों, झीलों, नहरों और जलस्रोतों को प्रदूषित करने वाला तलछट जब पानी में रुक जाता है तो इससे पानी में मौजूद मछलियों को सांस लेने में परेशानी होने लगती है और साथ ही पानी की सतह भी कम हो जाती है।  एसे में कम सतह पर रहने वाले जलजीवों की ज़िदंगी गंभीर ख़तरे में पड़ जाती है क्योंकि इनको अपने जीवने के लिए अधिक आक्सीजन की ज़रूरत होती जबकि वहां पर तलछट के कारण आक्सीजन का स्तर बहुत कम हो जाता है। जल प्रदूषण, बहुत सी बीमारियों का कारण बनता है।  यहां तक कि यदि मनुष्य स्वयं दूषित जल का प्रयोग न करे बल्कि वह उन जीवों का प्रयोग करे जिन्होंने दूषित जल का स्वयं प्रयोग किया हो तब भी इससे मनुष्य को बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है।

विशेषज्ञों का कहना है कि जो लोग दूषित जल का प्रयोग नहीं करते और इससे हर प्रकार से बचते रहते हैं इस प्रकार के लोग भी कभी दूषित जल वाली बीमारियों का शिकार हो जाते हैं।  अगर मनुष्य उन मछलियों का सेवन करे जो दूषित जल में रहती हैं तो इन मछलियों के खाने वाले को वे बीमारियां निश्चित रूप से हो सकती हैं जो दूषित जल के प्रयोग से अन्य लोगों को हो जाती हैं।  इससे कैंसर, अवसाद, स्नावयिक रोग, शरीर के विकास में कमी और रोग प्रतिरोधक क्षमता घटने जैसी बीमारियां हो सकती हैं।

यहां पर महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि जल प्रदूषण का विनाशकारी प्रभाव, विकासित देशों की तुलना में विकासशील देशों पर अधिक पड़ रहा है।  विकसित देश धीरे-धीरे उद्योग के क्षेत्र में आगे की ओर बढ़ते जा रहे हैं एसे में उनके पास संभावित प्रदूषण से बचने का अवसर अधिक है।  इसके विपरीत विकासशील देश, उद्योगों को जल्दी में अपने बढ़ा रहे हैं जिसके कारण उनके पास प्रदूषण से बचने और इस समस्या से निबटने के लिए पर्याप्त समय नहीं है।  उनका अधिक ध्यान नए उद्योग लगाकर उनसे लाभ उठाने की ओर है।  इन बातों के दृष्टिगत हमें जल प्रदूषण और उससे होने वाली क्षति के बारे में गंभीरता से ध्यान देने की ज़रूरत है।  अगर हम एसा करने में सफल रहे तो भविष्य में स्वयं को होने वाले अधिक नुक़सान से बचा पाएंगे।

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