Jan ११, २०२१ १६:३० Asia/Kolkata
  • ईरान का सुंदर शहर बाबुल

माज़न्दरान प्रांत का बाबुल शहर नींबू की तरह खट्टे फल नारंज और मिट्टी के सूखे बर्तनों के लिए प्रसिद्ध है। बाबुल माज़न्दरान प्रांत के प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण शहरों में से एक है। प्राचीन काल में इस शहर को मामतीर कहा जाता था और चौदहवीं शताब्दी में यहां के बाज़ारों में भारी रौनक़ और चहलपहल की वजह से यह बिक्री के केन्द्र या होल सेल सेन्टर के नाम से भी प्रसिद्ध था और 1933 में इसका नाम बदलकर बाबुल कर दिया गया।

बाबुल शहर के पश्चिम में एक सुन्दर नदी बहती है। बाबुल शहर के उत्तर में अमीर कला और बाबुल सर, दक्षिण में पूर्वी और पश्चिमी बंदपी तथा पूरब में क़ाएमशहर और किया कला तथा पश्चिम में आमुल पड़ता है। बाबुल शहर अपनी भौगोलिक स्थिति के दृष्टिगत समुद्र के निकट और प्राकृतिक जलवायु से संपन्न है और इसी वजह से हालिया वर्षों में इस क्षेत्र का विकास बहुत तेज़ी से हुआ है।

इस शहर के लिए कई सपंर्क रास्ते हैं तथा इसकी जलवायु संतुलित और इसके दृश्य बहुत ही मनोरम हैं। सुन्दर जंगलों से घिरे पहाड़ और बाबुल की नदी ने इस क्षेत्र की सुन्दरता को चार चांद लगा दिया है। यह शहर और यह क्षेत्र इतना सुन्दर है कि हज़ारों की संख्या में पर्यटक इस प्रांत को देखने आते हैं। चाहे गर्मी का मौसम हो या बहार का मौसम हर साल यह क्षेत्र पर्यटकों से भरा रहता है और जो भी पर्यटक इस प्रांत की यात्रा करता है वह बाबुल शहर को देखने अवश्य जाता है।

दोस्तो जब आप हेराज़ राजमार्ग से ईरान के उत्तरी शहरों की ओर जाते हें तो वहां की पर्वतीय हवाएं, नाचते हुए कोहरे, जंगलों के अनछुए राज़, दूर दूर तक फैले हुए जंगल और मन को छूती हरियाली, नदियों में कल कल बहते पानी की सुन्दर आवाज़, नारंगी के पेड़ों से बिखरती ख़ुश्बू, वहां से गुज़रने वाले हर एक यात्री और पर्यटक के मन को मोह लेती है और उसको ताज़गी प्रदान करती है। यहां की ताज़ा हवाएं और शांत माहौल शहर की चकाचौंध और शोर शराबे वाली ज़िंदगी से आराम पहुंचाती हैं। माज़न्दरान प्रांत में ऐसा जीवन मिलता है जो शहरवासियों को कभी नहीं मिलता है।

बाबुल

 

यद्यपि बाबुल शहर में हरे भरे जंगल, नदियां, अनेक झरने जैसी तरह तरह की प्राकृतिक सुन्दरताएं पायी जाती हैं किन्तु इस प्रांत और शहर में अनेक ऐतिहासिक धरोहरें भी पायी जाती हैं। यहां पर पायी जाने वाली ऐतिहासिक धरोहरों में हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम के पुत्र इमामज़ादा क़ासिम का मज़ार भी है।

इस मज़ार में पैग़म्बरे इस्लाम सलल्लाहो अलैह व आलेही वसल्लम की संतान से दो लोगों की क़ब्रे हैं। यह ऐतिहासिक मक़बरा पंद्रहवीं शताब्दी में बना था और यह बुक़अए आस्ताने के नाम से प्रसिद्ध है। इस इमारत पर बना गुंबद पिरामिड की शक्ल का है। मक़बरे के अंदर लकड़ी के बने दो बक्से पाए जाते हैं जिनका संबंध 888 हिजरी क़मरी से है और इसका निर्माण अहमद नज्जार सारूई ने किया था। वास्तव में इस इमारत में लगे दरवाज़े और इसकी दीवारें ईरानी कला का उत्कृष्ट नमूना है।

बाबुल शहर में अनेक तरह की ऐतिहासिक इमारतें पायी जाती हैं और इन्हीं इमारतों में से एक पुले मुहम्मद हसन ख़ान है जो बाबुल नदी के ऊपर बनाया गया है। इस पुल को 526 से 558 हिजरी क़मरी के बीच कच्ची मिट्टी से बनाया गया था और बारहवीं शताब्दी के दूसरे अर्ध में मुहम्मद हसन ख़ान क़ाजार ने एक आदेश देकर इसकी मरम्मत कराई और इसमें भारी बदलाव करके इस पुल का नाम अपने नाम पर पुले मुहम्मद हसन ख़ान रख दिया।

 

यह पुल नदी से 11 मीटर ऊपर बना है जिसकी लंबाई 140 मीटर और चौड़ाई 6 मीटर है। इस पुल में सात ताक़ या पानी के रास्ते हैं जिनसे पानी निकलता है जबकि दो रास्ते दूसरी तरह से बने हुए हैं। इस राष्ट्रीय धरोहर की महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि इस पुल के माध्यम से बाबुल शहर का पश्चिमी और पूर्वी हिस्सा आपस में मिलता है। यह पुल सफ़वी काल की इमारतों का उत्कृष्ट नमूना है जिसको बहुत ही महत्वपूर्ण ढंग से बनाया गया है।

 

बाबुल का संग्राहलय, काबिल के ख़ज़ाने के नाम से प्रसिद्ध है। यह संग्राहलय भी इस शहर की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहरों में गिना जाता है।  रोचक बात यह है कि म्यूज़ियम की इमारत अंग्रेज़ों की हैट की शक्ल की है और इसकी वास्तुकला यूरोपीय वास्तुकला से पूरी तरह प्रभावित है और भूमिगत हिस्से को मिलाकर यह तीन मंज़िला इमारत है।

 

इस इमारत का मुख्य द्वार इमारत के दक्षिणी भाग में बना हुआ है और प्रवेश  द्वारा तथा हाल के दोनों ओर कमरे बने हुए हैं। इमारत के ऊपर जाने के लिए हाल के बीचो बीच एक सीढ़ी नुमा हिस्सा बिना हुआ है। दूसरी मंज़िल का भाग पहली मंज़िल की ही तरह बना हुआ है और छत को ढलवां बनाया गया है और गुंबद में प्रकाश ऊपर से आता है।  यह ढलवां छत के नीचे बनी इमारत के भाग को भी ठंडा रखता है।

इस इमारत को 1995 में सांस्कृतिक कामों के लिए प्रयोग किया जाने लगा और इसको माज़न्दरान की सांस्कृतिक धरोहर में शामिल कर लिया गया और 1996 में इसकी मरम्मत और पुनर्निमाण के बाद इसको बाबुल के ख़ज़ाने का नाम दे दिया गया और चार साल तक यह प्राचीन काल के लोगों के बारे में जानने और लोगों की पहचान के भाग के रूप में काम करता रहा।

 

दोस्तो बाबुल शहर में कई सुन्दर इमारतें भी मौजूद हैं। दक्षिणी बाबुल में एक सुन्दर बाग़ पाया जाता है जहां आजकल माज़न्दरान प्रांत का मेडिकल कालेज खुला हुआ है। बाबुल के राजशाही महल की इमारत भव्य है और बहुत ही सुन्दर ऐतिहासिक इमारत है। यह इमारत पहलवी शासन काल से संबंधित है और इसमें दो मंज़िलें हैं जिसमें अनेक कमरे और हाल मौजूद हैं। दोस्तो आपको यह भी बताते चलें कि इस इमारत के निर्माण में बहुत ख़ास ध्यान दिया गया है।

इस इमारत के निर्माण, इसकी सुन्दरता और इसकी साज व सज्जा देखने के बाद हैरानी होती है, जिसकी बहुत ही सुन्दर तरीक़े से प्लास्टर आफ़ पैरिस से कलाकारों ने डिज़ाइनिंग की है। इस इमारत में प्रयोग होने वाले पत्थर बहुत मंहगे और अजूबे हैं। रोचक बात यह है कि इस इमारत के भीतरी और बाहरी भाग में बनी सुन्दरता को बहुत ही कम इमारतों में देखा जा सकता है।

आपके लिए यह भी जानना बेहतर होगा कि इमारत के पश्चिमी छोर पर और शाही राजमहल से लगी हुई एक और इमारत भी पायी जाती है जिसका नाम बाबुल महल का टावर है। दो मंज़िला इस इमारत में आठ छोर हैं जिसका पहला मंज़िला बड़ा और दूसरा मंज़िला छोटा है।  इस इमारत को 1973 में ईरान के राष्ट्रीय धरोहर की सूची में पंजीकृत किया गया है।

ईरान के अन्य उत्तरी शहरों की तरह बाबुल शहर में भी बहुत से स्थानीय बाज़ार पाए जाते हैं लेकिन इन बाज़ारों में से एक जो चटाई बेचने वालों के केन्द्र में स्थित है, दूसरे बाज़ारों से अलग है। इस बाज़ार को स्थानीय लोग गुरुवार बाज़ार के नाम से जानते हैं। अतीत में यहां पर चटाई बेची जाती थी लेकिन आज इस बाज़ार में आपकी ज़रूरत की हर चीज़, यानी फल से लेकर अचार तक, स्थानीय खाद्य पदार्थ से लेकर हस्तउद्योग की अन्य चीज़ें, सब कुछ यहां मिल सकता है। गुरुवार बाज़ार वह जगह है जहां पर पर्यटक ज़रूर आते हैं और वहां से अपने साथ ले जाने के लिए उपहार और अन्य वस्तुएं ख़रीदते हैं।

दोस्तो बाबुल शहर के आसपास के गांव भी बहुत सुन्दर हैं और वहां अनेक प्रकार के प्राकृतिक आकर्षण पाए जाते हैं और समय की कमी की वजह से हम सबको बयान नहीं कर सकते। इसीलिए हम आपको बाबुल की गर्म पानी की नदी के दर्शन कराते हैं।

बाबुल नदी के गर्म पानी का भाग आरे गांव में है जो दक्षिणपूर्वी बाबुल  से 33 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस गर्म पानी में अनेक प्रकार के रोगों का इलाज छिपा हुआ है। यहां पर चर्मरोगी, कमर दर्द, जोड़ों के दर्द और अनेक प्रकार के मरीज़ इस गर्म पानी में नहाते हैं और अपने दर्द का इलाज पाते हैं।

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