नर्म युद्ध और वर्चस्ववाद-2
नर्म युद्ध के लक्ष्यों की समीक्षा करते हुए हमने बताया था कि नर्म युद्ध का मूल लक्ष्य वही है जो हथियारों के युद्ध का लक्ष्य है अर्थात एक राजनैतिक व्यवस्था को नियंत्रित करना और उसको उखाड़ फेंकना किन्तु सत्ता को उखाड़ फेंकने की यह शैलियां और साधन भिन्न है।
यदि सख़्त जंग या हथियारों वाले युद्ध में धरती पर क़ब्ज़ा कर लिया जाता है किन्तु इसका परिणाम एक राजनैतिक व्यवस्था को उखाड़ फेंकने के रूप में सामने आता है और एक देश का सुरक्षा और प्रतिरक्षा सिस्टम चरमरा जाता है, नर्म युद्ध में यह प्रयास किया जाता है कि एक राष्ट्र की आस्थाओं और उसके मूल्यों को प्रभावित करके एक देश के विचारों और आदर्शों के लिए जो एक राजनैतिक व्यवस्था को पहचान प्रदान करने वाला है, चुनौती खड़ी कर दी जाए।
जब शत्रु अपने लक्ष्य में सफल हो जाए, इस स्थिति में वास्तव में राजनैतिक व्यवस्था से जनता के विश्वास को समाप्त करके तख़्ता पलट की योजना का परिणाम सामने आएगा। इस युद्ध का का मुख्य हथियार नर्म शक्ति विशेषकर उनको विश्वास में लेने और उनको अपने साथ करने की शक्ति है जिसके लिए सामान्य रूप से संपर्क, मीडिया और मनोवैज्ञानिक तकनीक जैसा हथियार प्रयोग करने का प्रयास किया जाता है और समाज की पहचान में शंका पैदा कर दी जाती है। इस युद्ध का रणक्षेत्र, जिस समाज को लक्ष्य बनाना है उसकी विचारधारा, आस्था, विश्वास, मूल्य, रूचियां और रुझहान है जिसके अतिग्रहण के लिए हमलावर ने कार्यक्रम बनाया है और अंततः उस देश के लोगों की बुद्धि और उनके दिल पर क़ब्ज़ा कर लिया जाता है जिसको लक्ष्य बनाया गया है और इस प्रकार से ढांचे में परिवर्तन में सफलता प्राप्त की जा सकती है। दूसरे शब्दों में नर्म युद्ध, माडल को ख़राब करने का युद्ध है। इस युद्ध में हमलावर, एक राजनैतिक व्यवस्था के मूल आधारों और मूल्यों में संदेह पैदा करके, विभिन्न सामाजिक मंचों पर एक व्यवस्था के माडल को अनुपयोगी कर देता है।
विशेषज्ञों ने नर्म युद्ध के विभिन्न आयाम बयान किए हैं किन्तु उन्होंने सबसे महत्वपूर्ण तीन मंच बयान किए हैं। सांस्कृतिक आयाम, राजनैतिक आयाम और सामाजिक आयाम। उनकी नज़र में राजनैतिक मंच पर नर्म युद्ध की भूमिका अर्थात मौजूद राजनैतिक व्यवस्था के माडल को अनुपयोगी बनाना, एक समाज की सांस्कृतिक पहचान पर सांस्कृतिक हमले करना है। इस आधार पर नर्म युद्ध में सबसे महत्वपूर्ण युद्ध सांस्कृतिक युद्ध होता है क्योंकि इस युद्ध को छेड़ने वाले समाज के सांस्कृतिक आधारों और शैलियों को निशाना बनाते हैं अर्थात ईश्वरीय केन्द्रियता, दुश्मनों से दुश्मनी, न्याय प्रेम, आत्म विश्वास और मूल विचार अर्थात विदेशियों के बारे में विचार करना, इस बारे में सोचना कि सरकार किस प्रकार की होगी और किस प्रकार के सामाजिक संबंध होने वाले, सभी को परिवर्तित किया जाता है। सांस्कृतिक नर्म युद्ध का परिणाम, संस्कृतिक को तबाह और पहचान को बदल देना है।
राजनैतिक आयाम में नर्म युद्ध छेड़ने वाले, एक समाज की सरकार और उसकी राजनैतिक संस्था के मुक़ाबले में उस समाज के नागरिकों के विचारों, दृष्टिकोणों और प्रतिक्रियाओं को परिवर्तित करने का प्रयास करते हैं और उन को हड़तालों, प्रदर्शनों और रैलियों जैसे माध्यमों से अपनी आपत्ति दर्ज कराने पर विवश करते हैं। दूसरे शब्दों में नर्म युद्ध के कारक नागरिकों को सरकार के विरुद्ध नागरिक अवज्ञा पर विवश करते हैं। इस प्रक्रिया में लक्षित देश में मौजूद राजनैतिक व्यवस्था के लिए चुनौतियां खड़ी हो जाती हैं। जब नर्म युद्ध आरंभ होता है तो उस समय देश में मौजूद भीतरी विरोधाभास और अधिक उभर कर सामने आते हैं। दूसरे शब्दों में नर्म युद्ध का मुख्य केन्द्र, सामाजिक व राजनैतिक शक्तियों का मार्गदर्शन करना है जो एक दूसरे से वैचारिक, समीक्षात्मक और आडिलोजिक विरोधाभास रखते हैं।
यह शक्तियां टकराव की स्थिति में अपनी दुश्मनी को राजनैतिक सांचे में ढाल देती हैं और इस प्रकार से ढांचे का भीतरी मतभेद भी और अधिक हो जाता है और इसके परिणाम में सरकार का व्यवहार, यहां तक कि सरकार का प्रकार, धीरे धीरे परिवर्तित होने लगता है और मौजूद राजनैतिक माडल की वैधता, लोकप्रियता और उपयोगिता में शंका पैदा हो जाता है। यही कारण है कि कुछ लोग रंगीन क्रांतियों को नर्म राजनैतिक युद्ध की श्रेणी में समझते हैं।
हालिया दिनों में यूक्रेन में घटने वाली घटनाएं इसका स्पष्ट उदाहरण हैं। बहुत से राजनैतिक टीकाकारों का कहना है कि अमरीका की उप विदेशमंत्री का बयान, अमरीका की ओर से इस देश में नर्म युद्ध को अस्तित्व में लाने की पुष्टि है। उन्होंने सीएनएन से वार्ता करते हुए कहा कि यूक्रेन के कुछ राजनैतिक व सामाजिक धड़ों को वाशिंग्टन ने अरबों डालर की सहायता की स्वीकारोक्ति की थी। उनका कहना था कि उनके देश ने यूक्रेन को 5 अरब डालर की सहायता दी जिसे उन्होंने मज़बूत व लोकतांत्रिक सरकार रखने के लिए यूक्रेन की जनता के समर्थन का नाम दिया। इससे पहले भी यूक्रेन के बारे में इस प्रकार की रिपोर्टें सामने आयी थीं। इन बयानों के आधार पर, यह सहायताएं सोवियत संघ के विघटन के साथ आरंभ हुईं और यह पश्चिम के निकट सामाजिक व राजनैतिक धड़ों को दी जाती थीं । समाचारों के आधार पर नैटों ने पिछले दस वर्ष के दौरान यूक्रेन के सैन्य अधिकारियों को प्रशिक्षित करने के लिए बहुत अधिक पैसे ख़र्च किए और यही कारण था कि यूक्रेन की सेना ने कभी भी नैटो के विरुद्ध प्रदर्शन नहीं किया।
नर्म युद्ध का तीसरा आयाम है सामाजिक आयाम। नर्म युद्ध के सामाजिक आयाम में सामाजिक क्रियाकलाप, संपर्क, लेनदेन, संस्कार, आदर सत्कार और सामूहिक व्यवहार इत्यादि शामिल हैं। नर्म युद्ध छेड़ने वाले समाज के लोगों की पहचान पर वर्चस्व जमा कर, सामाजिक एकता , राष्ट्रीय आत्मा, सामाजिक पूंजी, आदर्श व्यवहार और राष्ट्रीय एकजुटता को प्रभावित करने का प्रयास करते हैं। इस प्रकार से ऐसी स्थिति में जब सामाजिक व्यवस्था, शक्ति के पतन के साथ पहचान खोने लगती है। स्वभाविक रूप से वह शक्ति जो बिखरी हुई पहचान को व्यवस्थित करता है और सभी से महत्वपूर्ण यह कि वह शक्ति जो समाज की आस्था को एक धागे में बांध दे, पायी ही नहीं जाती और स्वाभाविक रूप से सुरक्षा का विषय जो हर सरकार की विदेश नीति का मुख्य लक्ष्य होता है, कमज़ोर हो जाता है क्योंकि सामाजिक एकता, सुरक्षा उत्पन्न करने के लिए आवश्यक गुटों की भागीदारी और सहयोग के लिए आवश्यक भूमिका प्रशस्त करती है।
नर्म युद्ध के छेड़ने वाले इस बात के प्रयास में रहते हैं कि वह दीर्घावधि में अपने संबोधकों के व्यवहार और उनके विचारों को प्रभावित कर सके क्योंकि नर्म युद्ध की रणनीति का नियम यह होता है कि लक्षित देश की जनता, दुश्मनों के लक्ष्यों को व्यवहारिक बनाती है और इसके लिए ज़रूरी है कि लोगों के दिलो दिमाग़ पर नियंत्रण किया जाए, क्योंकि जिनका दिल और मन दूसरे के नियंत्रण में रहता है वह अपने शत्रुओं के लक्ष्यों को व्यवहारिक बनाने का काम करता है। नर्म युद्ध के कारक, जनता के इरादे और उद्देश्य को छीन कर उनके साथ मौजूद लोगों को निश्चेत कर देते हैं और उनको विरोधी जनसंख्या में बदल कर उनको नागरिक अवज्ञा के लिए उकसाने का प्रयास करते हैं और इस प्रकार से लोगों में मतभेद के बीज बो जाते हैं। इस स्तर पर नर्म युद्ध जनता द्वारा व्यवस्था की नीतियों का समर्थन करके प्रभावी हो सकता है।
अब यह प्रश्न उठता है कि लोगों को किस प्रकार से अपने नियंत्रण में किया जा है कि वह शत्रुओं के इशारों पर नाचते हैं और उनके लक्ष्य व्यवहारिक करते हैं?
समाजिक मनोचिकत्सकों के अनुसार, यह रास्ता बहुत साधारण और साथ ही बहुत कठिन है। यही कारण है कि नर्म युद्ध को छेड़ने वाले लोगों के दिलो व दिमाग़ को प्रभावित करने के लिए, भावनात्मक व पहचान के क्षेत्र में काम शुरु करते हैं। वह मन पर नियंत्रण करने के लिए संतुष्टि, सोच बदलने, ब्रेन वाशिंग जैसी मनोवैज्ञानिक शैलियों का सहारा लेते हैं ताकि अपने संबोधकों के विचारों, सोच, मन और पहचान की व्यवस्था को प्रभावित कर सके। भावनात्मक उत्साहिक आयाम में लक्ष्य दिल पर नियंत्रण करना तथा विशेष कार्य के लिए लोगों को उकसाना है। नर्म युद्ध के कारक संबोधक की भावनात्मक व्यवस्था और उसके विचारों को प्रभावित करने का प्रयास करते हैं।
उदाहरण स्वरूप वह सरकार के संबंध में अपने संबोधकों की घृणा को भड़काना चाहते हैं और उनके प्रेम और उनकी रुचि को अपनी ओर मोड़ने का प्रयास करते हैं। लोगों के दिलों पर नियंत्रण दो तरीक़े से हो सकता है एक उनको राज़ी करके और दूसरा उनको भड़का कर। लोगों को राज़ी करना, उनके दिलों पर नियंत्रण का कारण बनता है और वह समाज को भड़काने के लिए मानिसक शैलियों का प्रयोग करते हैं।
अबलबत्ता यह बात ध्यान रखना चाहिए कि नर्म युद्ध में केवल देश की जनता को ही निशाना बनाना पर्याप्त नहीं होता बल्कि नेताओं और बुद्धिजीवियों को भी निशाना बनाया जाता है। नर्म युद्ध का यह स्तर, देश का रणनैतिक स्तर है और यह देश के नेताओं तथा बुद्धिजीवियों के राजनैतिक व सामाजिक स्तर की ओर पलटता है, यह स्तर नर्म युद्ध का सबसे सर्वोच्च स्तर समझा जाता है। इस स्तर का मुख्य लक्ष्य, आंतरिक और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बुद्धिजीवियों की प्रभावी शक्ति को कम और कमज़ोर करना है। इस स्तर पर काम करने वाले जितना अधिक बुद्धिजीवियों के प्रभाव कम करने और उनको अपना बनाने में सफल होते हैं, उनकी सफलता की संभावना उतनी ही अधिक होती है। नर्म युद्ध के इस स्तर पर बुद्धिजीवियों की समझ बूझ को अपने रंग में ढाल कर, बुद्धिजीवियों की पहचान और उनकी सफलताओं पर हाथ साफ़ करते हैं, या उन पर मनोवैज्ञानिक कार्यवाही करके उनके संकल्प को डावांडोल कर दिया जाता है। इस क्षेत्र में नर्म युद्ध के छेड़ने वाले अच्छी समझ बूझ रखते हैं और इस शैली में लक्षित देश के लोगों और बुद्धिजीवियों को मामले पर संतुष्ट किया जाता है और उन्हें विशेष सूचनाएं दी जाती हैं ताकि उनके दिमाग़ पर वर्चस्व की भूमिका प्रशस्त हो।
हालिया दशकों में नर्म युद्ध के छेड़ने वालों के क्रियाकलापों पर नज़र डालने से यह पता चलता है कि यद्यपि नर्म युद्ध की प्रक्रिया, पूर्वी यूरोपीय देशों, मध्य एशिया, काकेशिया और मध्यपूर्व के देशों में भिन्न है किन्तु इन सब में यह विशेषता पायी जाती है कि लोगों की उत्तेजित भावनाओं की प्रक्रिया में सामाजिक गुटों को इनसे जो अपेक्षाएं हैं उनसे लाभ उठाकर यह लोगों को अपनी मनचाही राजनैतिक दिशा में मोड़ दें।