Apr १२, २०२३ १४:४० Asia/Kolkata
  • आज न्याय का सूर्यास्त हो गया, हज़रत अली की शहादत पर विशेष

19 रमज़ान की सुबह वह है जिसमें हज़रत अली अलैहिस्सलाम के सिर पर तलवार का वार किया गया और 21 रमज़ान को हज़रत अली अलैहिस्सलाम शहीद हो गये। 

हम रमजान के आखिरी दशक में पहुंच गए हैं। ये दिन न्याय के सूर्यास्त यानी हज़रत अली अलैहिस्सलाम की याद दिलाते हैं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम का पूरा जीवन इस्लाम, इस्लामी दुनिया और मुसलमानों की सेवा करने में बीता। वह अपनी ज़िदगी की आखिरी रात अपनी बेटी उम्मे कुलसूम के मेहमान थे, लेकिन उनकी हालत बहुत ख़राब दी और वह पहले से कहीं ज़्यादा बेचैन नज़र आ रहे थे। इफ़्तार के समय उन्होंने अपना रोज़ा थोड़ी सी रोटी और नमक से खोला, वह अक्सर कमरे से बाहर निकलकर आंगन में आते और आसमान की ओर देख कर कहते थे कि मैं ईश्वर की क़सम खाता हूं, मैं झूठ नहीं बोलता और मुझसे झूठ नहीं बोला गया, यह वही रात है जिसकी रात मुझे शहादत का वचन दिया गया था।

उस रात, वह भोर तक इबादत करते रहे, सिर झुकाकर ईश्वर की बारगाह में गिड़गिड़ा रहे थे, वह ईश्वर से प्रेम के सागर में डूबे हुए उसके सामने एक तुच्छ बंदे की तरह आंसू बहा रहे थे, जैसे कि वह कुछ भी न तो सुन रहे हैं और न कुछ देख रहे हैं। भोर के समय, वह धीरे धीरे और नपे-तुले क़दमों से मस्जिद की ओर चल पड़े, कुछ देर बाद हज़रत अली की नमाज और दुआओं की आवाज़ मस्जिद में गूंजने लगी। लोग मस्जिद की ओर चल पड़े और इबादत व नमाज़ के लिए उनके पीछे खड़े हो गए। जब ​​उन्होंने पहली रकअत में अपना सिर झुकाया तो घृणा और अज्ञानता की तलवार उनके सिर पर गिरी और उनको गहरा ज़ख़्म पहुंचाया और उनकी दाढ़ी उनके ख़ून से रंगीन हो गयी। उन्होंने आसमान की ओर मुंह करके कहा, काबे के रब की क़सम अली कामयाब हो गया, ठीक उसी समय जिब्राईल अमीन की आवाज आकाश और पृथ्वी के बीच गूंज उठी ईश्वर की सौगंध, मार्गदर्शन के स्तंभ टूट गए थे, पैग़म्बरे इस्लाम के के ज्ञान के सितारे डूब गये और धर्मपरायणता के इशारे ख़त्म हो गए थे, और ईश्वर का विश्वास टूट गया।

 

हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि जब सूरए अनकबूत की दूसरी आयत नाज़िल हुई कि क्या लोगों ने यह समझ रखा है कि उनके ज़बानी कहने से कि हम ईमान ले आए हैं, छोड़ दिए जाएंगे और उनकी आज़माइश नहीं की जाएगी? तो आज़माइश या परीक्षा के बारे में बहस शुरू हो गई। मैं समझ गया कि जब तक पैग़म्बर हमारे बीच हैं उस वक़्त तक यह परीक्षा नहीं होगी। यह परीक्षा पैग़म्बर के बाद होगी। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने पैग़म्बर से पूछा कि हे अल्लाह के पैग़म्बर क्या आपको याद नहीं है कि ओहोद की जंग में जब हज़रत हमज़ा शहीद हो गए, हमारे क़रीबी साथी शहीद हो गए मगर मैं बहुत सारे जख़्म खाने के बाद भी शहीद न हुआ और मुझे इस बात पर दुख था कि मैं पीछे रह जाउंगा और शहादत से महरूम रह जाउंगा तो उस वक़्त आप मुतवज्जे हो गए और आपने मुझसे कहा था कि अली तुम्हारे लिए ख़ुशख़बरी है, तुम भी शहीद होगे!

अब हज़रत अली अलैहिस्सलाम वही बात याद दिला रहे हैं कि अब तो कई साल गुज़र चुके हैं। मैं अब तक क्यों शहीद नहीं हुआ। इसके जवाब में पैग़म्बर ने फ़रमाया कि ऐ अली यह बात सही है कि तुम शहीद होगे। इसके बाद सवाल किया कि जब तुम्हारा अंजाम शहादत है तो तुम इस पर सब्र कैसे करोगे? हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने जवाब दिया कि यह सब्र का मक़ाम नहीं है। सब्र तो कड़वी और दुखद बात पर किया जाता है। जब कोई नापसंदीदा चीज़ सामने हो तब इंसान सब्र करता है। यह तो उन चीज़ों में है जिसके लिए इंसान को ख़ुशी मनाना चाहिए। अल्लाह का शुक्र अदा करना चाहिए। यह शहादत के लिए हज़रत अली अलैहिस्सलाम का शौक़ है। बीती रात वह रात है जिसमें हज़रत अली अपनी इस मंज़िल के क़रीब हुए। नमाज़ की हालत में उनके सिर पर तलवार का वार किया गया जिसके नतीजे में हज़रत अली अलैहिस्सलाम 21 रमज़ान को शहीद हो गए।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनेई कहते हैं कि हमने इस तरह के बहुत से लोगों को देखा है जिन्होंने शहादत के मैदान में हज़रत अली अलैहिस्सलाम का अनुसरण किया। उन्हीं के पदचिन्हों पर चले। वे शहादत के प्यासे थे, शहादत की फ़िक्र में रहते थे, शहादत की आरज़ू रखते थे और अल्लाह ने उनके नसीब में शहादत लिखी। शहीद क़ासिम सुलैमानी को दुश्मनों ने धमकी दी थी कि तुम्हें क़त्ल कर देंगे। शहीद ने अपने दोस्तों के बीच कहा था कि यह लोग मुझे उस अंजाम की धमकी दे रहे हैं जिसकी तलाश में मैं पहाड़ों और बियाबानों की ख़ाक छान रहा हूं।

 

हजरत अली अलैहिस्सलाम का शासनकाल पांच साल से अधिक नहीं था लेकिन यह समय लोगों के लिए सही अर्थों में न्याय का एहसास करने और ईश्वरीय नेताओं तथा महापुरुषों के बीच अंतर का पता लगाने के लिए पर्याप्त था। हज़रत अली अलैहिस्सलाम उन शासकों के विपरीत जो सत्ता के भूखे होते हैं और विभिन्न साधनों से लोगों पर हावी होते हैं, ईश्वर के सेवक के रूप में सेवा के प्रति भावुक थे और इस उद्देश्य के लिए हमेशा लोगों के साथ रहते थे।

ऐसी सरकार जिसकी बुनियाद ईश्वर की सेवा पर आधारित थी और जनता और समाज के नेताओं के बीच की दूरी भी बहुत कम थी क्योंकि दोनों की संरचना एक ही है और एक समान लक्ष्य के लिए हाथ से हाथ मिलाकर काम करते हैं और हर कोई ईश्वर के नियम के लिए समान रूप से ज़िम्मेदार है। यह सरकार दया और कृपा पर निर्भर है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अपने गवर्नर मलिके अश्तर को एक पत्र लिखा और सबसे पहले ख़ुद को ईश्वर का बंदा कहते हैं फिर वह लोगों के शासक के रूप में ख़ुद को याद करते हैं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम लिखते हैं कि लोगों की दया और अच्छे व्यवहार को अपने दिल में रखो और उनके साथ प्यार और अच्छाई से पेश आओ।

शक्ति और साहस, हज़रत अली अलैहिस्सलाम की प्रमुख विशेषताएं हैं। पवित्र क़ुरआन की एक आयत में मोमिनों की तारीफ़ में कहा गया है कि वे काफिरों से उग्र और क्रोधित हैं और वे आपस में सबसे दयालु हैं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम इस ईश्वरीय विशेषता का एक ठोस उदाहरण हैं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम की सरपस्ती में रहने वाले अनाथ और ग़रीब बच्चे हमेशा उन्हें एक दयालु पिता के रूप में देखते थे, लेकिन काफ़िरों और अनेकेश्वरवादियों के साथ युद्ध में न्याय और अधिकारों की रक्षा के मामले में कोई भी हज़रत अली अलैहिस्सलाम से अधिक बहादुर और शक्तिशाली नहीं था।

ख़ैबर की जंग में पैग़म्बरे इस्लाम सलल्लाहो अलैह व आलेही व सल्लम के सैन्य कामन्डर ख़ैबर के क़िले पर नियंत्रण पाने में नाकाम रहे, 39 दिन तक यह मामला चलता रहे, फिर उसके बाद पैगम्बरे इस्लाम ने कहा कि कल में इस्लाम का झंडा उसे दूंगा जो ईश्वर को पंसद करता होगा और ईश्वर और उसका रसूल उसे पसंद करता होगा। दूसरे दिन पैग़म्बरे इस्लाम ने इस्लाम का झंडा हज़रत अली अलैहिस्सलाम के हाथों में दिया और हज़रत अली ने ख़ैबर का दुर्ग जीत लिया।

पैग़म्बरे इस्लाम सलल्लाहो अलैह व आलेही वसल्लम के वसी और उत्तराधिकारी हज़रत अली की शहादत शबे क़द्र में मनाई जाती है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम लोगों के सामने एक आदर्श इंसान की एक स्पष्ट छवि पेश करते हैं ताकि वे उन रातों में उन्हें अपने आदर्श के रूप में इस्तेमाल कर सकें जिनमें वे अच्छे भविष्य के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते हैं। उनके शब्द मानवीय ज़रूरतों के अनुरूप हैं और उनके नैतिक गुण आज मौजूद कई बीमारियों का इलाज हैं जो लोगों विशेषकर शासकों के लिए ख़तरा है।

दोस्तो यहां हम एक बिन्दु को बयान करना ज़रूरी समझते हैं और वह यह है कि इंसान अपनी नीयत को शुद्ध बनाये और अपने आपसे सवाल करे कि जो कार्य उसने अंजाम दिया है या अंजाम देने का इरादा रखता है उसे उसने क्यों अंजाम दिया है? इसे उसने महान ईश्वर की प्रसन्नता प्राप्त करने या दूसरों को खुश करने के लिए अंजाम दिया है। इसका फैसला खुद इंसान बहुत अच्छी तरह कर सकता है। अगर किसी इंसान ने दूसरों की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए कोई कार्य अंजाम दिया है तो उसे जान लेना चाहिये कि उसने अपना समय नष्ट किया है और अगर नमाज़ जैसी किसी उपासना को महान ईश्वर के अलावा किसी और की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए अंजाम दिया है तो वास्तव में उसने शिर्के खफी यानी छिपा शिर्क अंजाम दिया है।

वैसे तो रमज़ान का पवित्र महीना हर प्रकार की आंतरिक गंदगी से स्वच्छ व पवित्र होने का बेहतरीन महीना है परंतु नीयत को विशुद्ध बनाने का सुनहरा व अनमोल मौक़ा है। जिस इंसान की आस्था महान ईश्वर पर जितनी अधिक होगी वह उतना अधिक अपनी नीयत को विशुद्ध बनाने का प्रयास करेगा।

यहां पर कोई यह कह सकता है कि महान ईश्वर को सभी मुसलमान और बहुत से ग़ैर मुसलमान भी मानते हैं तो उस पर आस्था के गहरी होने का क्या अर्थ है? इस सवाल के जवाब में कहा जा सकता है कि महान ईश्वर को बहुत से लोग मानते हैं पर सबकी आस्था समान नहीं होती है। महान ईश्वर को मानने वाले बहुत से लोग गुनाह और उसकी अवज्ञा के बारे में सोचते तक नहीं जैसे पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजन जबकि महान ईश्वर को मानने वाले बहुत से तथाकथित मुसलमान उसकी अवज्ञा करने में संकोच तक नहीं करते हैं।

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