Jul २६, २०२३ ०८:२६ Asia/Kolkata
  • सातवीं मोहर्रम का विशेष कार्यक्रम 1402

हबीब बिन मज़ाहिर कौन थे? इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने उनके बारे में क्या कहा है?

दोस्तो मोहर्रम का महीना जारी है और आज मोहर्रम की सात तारीख हो गयी और लोग इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके वफादार साथियों का शोक मना रहे हैं। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के वफादार साथियों में से एक हबीब इब्ने मज़ाहिर हैं जिन्होंने कर्बला में अपनी जान इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम पर कुर्बान कर दी।

बहुत से इतिहासकार हबीब इब्ने मज़ाहिर को पैग़म्बरे इस्लाम का सहाबी मानते हैं। उनका संबंध भी मुस्लिम बिन औसजा की भांति बनी असद कबीले से था और पैग़म्बरे इस्लाम की पैग़म्बरी की घोषणा से एक साल पहले उनका जन्म हुआ था। उनका बचपन एसे समय में गुज़रा है जब पैग़म्बरे इस्लाम पवित्र नगर मक्का में लोगों को इस्लाम धर्म का निमंत्रण देते थे और जवानी में हबीब बिन मज़ाहिर पैग़म्बरे इस्लाम के अनुयाइयों में शामिल हो गये। पैग़म्बरे इस्लाम के स्वर्गवास के बाद हबीब इब्ने मज़ाहिर ने हज़रत अलैहिस्सलाम की बैअत की और उनके अनुयाई बन गये।

हबीब इब्ने मज़ाहिर ने बारमबार पैग़म्बरे इस्लाम से सुना था कि मैं ज्ञान का शहर हूं और अली उसके दरवाज़े हैं जो ज्ञान चाहता है उसे दरवाज़े पर आना चाहिये। पैग़म्बरे इस्लाम की इस हदीस पर अमल करते हुए हबीब इब्ने मज़ाहिर हज़रत अली अलैहिस्सलाम के विशेष शिष्यों में शामिल हो गये और उनके ज्ञान के अथाह सागर से लाभ उठाया। हबीब इब्ने मज़ाहिर के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने हज़रत अली अलैहिस्सलाम के ज्ञान के अथाह सागर से इतना लाभ उठाया कि उनके बारे में कहा जाने लगा कि वह भविष्य में होने वाली बहुत सी घटनाओं से भी अवगत थे।

जीवनी लिखने वालों ने लिखा है कि हबीब इब्ने मज़ाहिर के हवाले से लिखा है कि मीसमे तम्मार किस प्रकार शहीद किये जायेंगे। मीसमे तम्मार हज़रत अली अलैहिस्सलाम के निष्ठावान साथियों में से हैं। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कर्बला में हबीब इब्ने मज़ाहिर के नाम जो पत्र लिखा है उसमें हबीब इब्ने मज़ाहिर को फकीह करके संबोधित किया है। यह कोई सामान्य बात है कि समय का इमाम हबीब इब्ने मज़ाहिर को फ़क़ीह की उपाधि से संबोधित कर रहा है। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने हबीब इब्ने मज़ाहिर के नाम जो पत्र लिखा है उसमें इमाम ने लिखा है कि तुम एक आज़ाद और स्वाभिमानी इंसान हो।

जब हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने कूफा को अपनी सरकार की राजधानी के रूप में चुना तो हबीब इब्ने मज़ाहिर वहां चले गये ताकि अपने मौला की सेवा में रह सकें और हज़रत अली अलैहिस्सलाम के शासनकाल में सिफ्फीन, नहरवान और जमल नाम की जो लड़ाइयां हुई हैं उन सब में वह मौजूद थे। मोआविया बिन अबू सुफयान के मर जाने के बाद उसका बेटा यज़ीद शासक बन बैठा।

हबीब इब्ने मज़ाहिर उन पहले लोगों में से हैं जिन्होंने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को पत्र लिखा था और उस पत्र में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का आह्वान किया था कि वे आंदोलन करें। जब जनाब मुस्लिम बिन अक़ील कूफा पहुंचे तो उन्होंने उनकी बैअत की और कूफा में उनका जो प्रभाव था उसके दृष्टिगत उन्होंने इस बात का पूरा प्रयास किया कि अधिक से अधिक लोग इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के प्रतिनिधि व दूत जनाब मुस्लिम बिन अक़ील की बैअत करें।

अलबत्ता जब उबैदुल्लाह बिन ज़ियाद कूफे पहुंचा और उसने जनाब मुस्लिम बिन अकील को शहीद कर दिया तो हबीब इब्ने मज़ाहिर विवश होकर छिप गये और कुछ समय तक अपने कबीले में रहे। हबीब इब्ने मज़ाहिर की काफी उम्र हो गयी थी और जब कर्बला की सरज़मीन पर इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कहा था कि है कोई जो मेरी मदद करे तो हबीब इब्ने मज़ाहिर के पास बेहतरीन बहाना था और वह यह कह सकते थे कि अब तलवार चलाने की ताकत नहीं है परंतु जैसे ही उन्हें यह खबर मिली कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम कर्बला में हैं तो तुरंत उनकी मदद के लिए निकल पड़े।

जब हबीब इब्ने मज़ाहिर कर्बला पहुंच गये और इमाम हुसैन की काफिले से जा मिले तो दुश्मनों ने कहा अगर इमाम हुसैन के साथी ज़िन्दा रहना चाहते हैं तो उन्हें चाहिये कि वे इमाम हुसैन से दूर व अलग हो जायें और अपनी जान की सुरक्षा के लिए पत्र लेना पड़ेगा। हबीब इब्ने मज़ाहिर और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के दूसरे साथियों ने दुश्मन के सुझाव को स्वीकार नहीं किया। हबीब इब्ने मज़ाहिर ने जब कर्बला में देखा कि यज़ीद की भारी सेना के मुकाबले में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के चाहने वालों की संख्या बहुत कम है तो इमाम से अनुमति लेने के बाद वह अपने कबीले पास लौट आये और उन सबसे कर्बला में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के काफिले से जुड़ जाने के लिए कहा।

हबीब इब्ने मज़ाहिर की बातों ने लोगों पर असर डाला और लगभग 70 लोगों ने हबीब इब्ने मज़ाहिर के साथ कर्बला जाने का फैसला किया परंतु कूफा में दुश्मन के जासूसों और उबैदुल्लाह बिन ज़ियाद की सेना की वजह से ये लोग इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की सेना से न मिल सके और इन लोगों के रास्तों को बंद कर दिया परंतु हबीब इब्ने मज़ाहिर दोबारा कर्बला पहुंचने में कामयाब हो गये।

आशूर यानी दसवीं मोहर्रम का दिन है। हबीब इब्ने मज़ाहिर पूरी बहादुरी के साथ उमर बिन साद की भारी सेना के मुकाबले में खड़े हो गये और उन सबको नसीहत की। हबीब इब्ने मज़ाहिर ने जो नसीहत की उसके कुछ भाग इस प्रकार हैं। कल प्रलय के दिन महान ईश्वर के निकट सबसे बदतरीन वे क़ौम व लोग हैं जिन्होंने अपने पैग़म्बर के बेटे की, उसके परिजनों और नगर के नेक बंदों की हत्या करेंगे जबकि ये लोग अपने पालनहार की उपासना के लिए रातों को जागकर बहुत अधिक उसका गुणगान करते हैं।

इसी प्रकार आशूरा के दिन एक समय जब इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम यज़ीद के राक्षसी सैनिकों को नसीहत कर रहे थे तो उस समय शिम्र बिन ज़िलजौशन इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का इस प्रकार अपमान करता है। वह यानी इमाम हुसैन नहीं जानते हैं कि वह क्या कह रहे हैं। उसकी इस बात पर इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के वफादार साथियों को बहुत क्रोध आया और हबीब इब्ने मज़ाहिर से बर्दाश्त न हुआ तो उन्होंने शिम्र को संबोधित करके कहा कि तू सही कह रहा है कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की बातों को तू नहीं समझ रहा है क्योंकि ईश्वर ने तेरे दिल पर मुहर लगा दी है।

आशूर की सुबह को हबीब बिन मज़ाहिर को इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की छोटी सी सेना के बायीं तरफ की कमान संभालने की ज़िम्मेदारी सौंपी गयीं और ज़ुहैर बिन क़ैन को सेना की दाहिनी कमान का नेतृत्व सौंपा गया और हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम को सेना के केन्द्र में रखा गया।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने आशूर के दिन दिये जाने वाले अपने एक भाषण में पैग़म्बरे इस्लाम की उस हदीस की ओर संकेत किया जिसमें आपने फरमाया था कि हसन और हुसैन जन्नत के जवानों के सरदार हैं। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने फरमाया कि आप लोगों में एसे लोग मौजूद हैं जिन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम से यह हदीस सुनी है।

इस बीच शिम्र ने कहा मैंने संदेह व असमंजस के साथ ईश्वर की उपासना की होगी अगर मैं यह समझ जाऊं कि तुम क्या कह रहे हो? हबीब बिन मज़ाहिर ने उसके जवाब में कहा ईश्वर की क़सम मैं इस प्रकार देख रहा हूं कि तू 70 संदेहों व असमंजस के साथ ईश्वर की उपासना करता है और मैं गवाही देता हूं कि तू सही कह रहा है कि तू नहीं समझ रहा है कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम क्या कह रहे हैं क्योंकि तेरा दिल काला है और उस पर मुहर लग गयी है।

इसी प्रकार आशूर की दोपहर को यज़ीद के एक सैनिक ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को संबोधित करके कहा तुम्हारी नमाज़ कबूल नहीं है। इस पर हबीब इब्ने मज़ाहिर ने शूर वीरता का परिचय देते हुए कहा ईश्वर पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों की नमाज़ कबूल नहीं करेगा तो क्या तेरी नमाज़ कबूल करेगा?  

आशूर की रात को जब हबीब इब्ने मज़ाहिर को यह एहसास हुआ कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की प्राणप्रिय बहन हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा अपने भाई के साथियों की वफादारी की तरफ से चिंचिंत हैं तो उन्होंने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के वफादार साथियों को इकट्ठा किया और सबने हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा के ख़ैमे का रुख किया और सबने कहा कि अगर आप आदेश दें तो हम अपने हाथों से अपनी गर्दनों को उड़ा दें। बहरहाल हबीब इब्ने मज़ाहिर और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के दूसरे वफादार साथियों की बातों से हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा को अपने भाई के साथियों की वफादारी पर पूरा विश्वास हो गया।

बहरहाल सत्य और असत्य के बीच जंग का समय आ गया। हबीब इब्ने मज़ाहिर ने अपनी शूरवीरता का परिचय देते हुए कहा दुश्मन से कहा मैं मज़ाहिर का बेटा हबीब हूं। जब युद्ध आरंभ हो जायेगा तो मैं रणक्षेत्र का एकमात्र शूरवीर सवार हूंगा, यद्यपि संख्या की दृष्टि से तुम हमसे अधिक हो परंतु हम तुमसे अधिक बहादुर और मज़बूत हैं।

इतिहास में है कि हबीब इब्ने मज़ाहिर की उम्र काफी अधिक थी इसके बावजूद वह बड़ी बहादुरी से लड़ रहे थे और यज़ीद की राक्षसी सेना के कई सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। अंततः युद्ध करते- करते वह थक गये और बहुत अधिक प्यास लगी थी इसी बीच बदील बिन मरियम ओक़फानी ने उन पर हमला किया और उसने अपनी तलवार से हबीब बिन मज़ाहिर के सिर पर वार किया और यज़ीदी सेना के एक अन्य सैनिक ने अपने भाले से उन पर हमला किया यहां तक कि हबीब इब्ने मज़ाहिर घोड़े से ज़मीन पर गिर गये और बदील बिन मरियम ने उनके सिर को उनके शरीर से अलग कर दिया।

जब इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को हबीब इब्ने मज़ाहिर की शहादत का पता चला तो बहुत दुःखी हुए और स्वंय को उनके सिरहाने पहुंचाया और फरमाया अपनी और  अपने साथियों की शहादत को अल्लाह के हवाले करता हूं।

हबीब बिन मज़ाहिर का रौज़ा कर्बला में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के पावन रौज़े के समीप ही है। हबीब बिन मज़ाहिर का सिर हज़रत अब्बास और हज़रत अली अकबर अलैहिस्सलाम के साथ इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के पावन रौज़े में दफ्न है। हबीब बिन मज़ाहिर का नाम ज़ियारते रजबिया और ज़ियारते नाहिया सहित विभिन्न ज़ियारतों में आया है। mm

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