पैग़म्बरे इस्लाम स. की पैग़म्बरी की घोषणा के शुभ अवसर पर विशेष कार्यक्रम
दोस्तो पैग़म्बरे इस्लाम द्वारा पैग़म्बरी की घोषणा किये हुए शताब्दियों का समय बीत रहा है तब से लेकर आजतक न जाने कितनी घटनायें घट चुकी हैं और जितना अधिक समय बीतता जा रहा है उतना ही पैग़म्बरे इस्लाम द्वारा लाई गयी जीवनदायक शिक्षाओं का महत्व अधिक स्पष्ट होता जा होता रहा है और यह सच्चाई दिन प्रतिदिन अधिक स्पष्ट होती जा रही है कि पैग़म्बरे इस्लाम जिन शिक्षाओं को लेकर आये थे उनका आधार सदव्यवहार, शालीनता, न्याय, बराबरी और बंधुत्व है और इन शिक्षाओं का पालन करके इंसान लोक- परलोक दोनों में अपने जीवन को सफल
महान ईश्वर ने पैग़म्बरे इस्लाम को उस समय अरब समाज में भेजा जब नाना प्रकार की बुराइयां आम थीं। लोग निर्जीव और बेजान मूर्तियों की पूजा करते थे। महान ईश्वर ने पैग़म्बरे इस्लाम को अज्ञानता के अंधकार में डूबे समाज में भेजकर पूरी मानवता को मुक्ति व कल्याण का रास्ता दिखाया। पैग़म्बरे इस्लाम जो शिक्षायें लाये हैं उसने इंसान को मूर्ति की पूजा करने के बजाये अपने पालनहार से जोड़ दिया है। पैग़म्बरे इस्लाम ने पैग़म्बरी की घोषणा के बाद समाज का शुद्धिकरण किया और उसे किताब और तत्वदर्शिता की शिक्षा दी।
दोस्तो जैसाकि आप जानते हैं कि हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा स. महान ईश्वर के अंतिम और सबसे अफज़ल पैग़म्बर हैं। रिवायत में है कि हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा स. थोड़ी देर रात को सोने व विश्राम करने के बाद ग़ारे हेरा अर्थात हेरा नामक गुफा की ओर चले गये। उस समय ठंडी हवा चल रही थी। लगभग आधी रात हो गयी थी। हज़रत मोहम्मद स. ने आसमान की ओर सिर उठाया। उजाली रात थी आसमान में चांद अपने प्रकाश को बिखेर रहा था। कुछ समय के पश्चात आसमान से एक प्रकाश चमका और उसने हज़रत मोहम्मद स. के पूरे अस्तित्व को प्रकाशित कर दिया। उस वक्त पैग़म्बरे इस्लाम ने अपने पावन अस्तित्व में एक अलग ही चीज़ का एहसास किया। महान ईश्वर के विशेष व करीबी फरिश्ते हज़रत जिब्ररईल प्रकट हुए और कहा हे मोहम्मद अपने पालनहार के नाम से पढ़ो जिसने तुम्हें पैदा किया है और क़लम के माध्यम से सिखाया और इंसान को वह सिखाया जो वह नहीं जानता था।
यह वह समय था मानो हेरा पर्वत और समस्त पत्थर की चट्टानें भी बात करने लगी थीं और सब पैग़म्बरे इस्लाम को ईश्वरीय दूत कह कर सलाम कर रही थीं। 27 रजब की तारीख थी पैग़म्बरे इस्लाम स. पर ईश्वरीय संदेश उतरने का क्रम आरंभ हो गया। यह वह समय था जब पैग़म्बरे इस्लाम स. चालिस साल के हो गये थे। पैग़म्बरे इस्लाम को मानवता के मार्गदर्शन की ज़िम्मेदारी उस समय दी गयी जब पूरे अरब समाज में अनैतिकता व्याप्त थी। इस प्रकार के समाज में पैग़म्बरे इस्लाम का पथप्रदर्शन रात के अंधरे में सूरज निकलने के समान था। जिस तरह जब सूरज निकलता जाता है और उसकी किरणें दुनिया में पड़ती व फैलती जाती हैं उसी हिसाब से अंधकार मिटता जाता है ठीक उसी तरह जैसे- जैसे पैग़म्बरे इस्लाम के मार्गदर्शन का प्रकाश फैलता जा रहा है लोग अज्ञानता के अंधकार से बाहर निकलते जा रहे हैं और 1444 साल पहले अरब प्रायद्वीप में मार्गदर्शन के जिस सूरज का उदय हुआ था उसकी किरणें आज भी लोगों को अज्ञानता के अंधकार से निकाल रही हैं और प्रलय तक यह सिलसिला जारी रहेगा।
पैग़म्बरे इस्लाम के काल में अरबों की जो हालत थी हज़रत अली अलैहिस्सलाम उसे इस प्रकार बयान करते हैं ईश्वर ने पैग़म्बरे इस्लाम को उस वक्त भेजा जब लोग गुमराही की घाटी में भटक रहे थे, आंख बंद करके गलत चीज़ों का अनुसरण करते थे, उनकी गलत इच्छाओं ने उनकी बुद्धि का अपहरण कर लिया था और अहंकार ने उन्हें गुमराह कर रखा था और अज्ञानता ने उन्हें महत्वहीन बना रखा था इस प्रकार की हालत में ईश्वर ने पैग़म्बरे इस्लाम को शुभचिंतक बनाकर भेजा और पैग़म्बरे इस्लाम ने उन्हें अच्छी बातों की तरफ आमंत्रित किया।
पैग़म्बरे इस्लाम स. ने अपने पथप्रदर्शन का आधार पवित्र कुरआन की शिक्षाओं को करार दिया था। पवित्र कुरआन ईश्वरीय शिक्षाओं का वह अथाह सागर है जो कभी भी नहीं सूखेगा। पवित्र कुरआन ने लोगों को महान ईश्वर की उपासना करने का आदेश दिया। लोगों को मूर्तियों की पूजा करने से मना किया। पवित्र कुरआन की एक शिक्षा शराब न पीना है। शराब पीने के बहुत अधिक नुकसान हैं यह बात इतनी स्पष्ट है कि इसे बयान करने की ज़रूरत नहीं है।
पवित्र कुरआन की एक शिक्षा न्याय है। इस्लाम धर्म लोगों से न्याय से काम लेने का आदेश देता है। इस्लाम धर्म की शिक्षाओं के अनुसार इंसान को अपने दुश्मन के साथ भी इंसाफ से काम लेना चाहिये। इस्लाम अन्याय व अत्याचार का घोर विरोधी है। वह अपने अनुयाइयों को कभी भी अपने दुश्मनों यहां तक कि अनेकेश्वरवादियों के साथ भी अन्याय से काम लेने की अनुमति नहीं देता।
पैग़म्बरे इस्लाम स. समस्त सदगुणों की प्रतिमूर्ति थे। उन्होंने लोगों को एक ईश्वर की उपासना करने के लिए आमंत्रित किया। उन्होंने लोगों को महान ईश्वर का शरीक करार देने से मना किया और कहा कि कोई भी महान ईश्वर का शरीक व सहभागी नहीं है। यहां एक सवाल यह उठता है कि पैग़म्बरे इस्लाम स. ने अपने जीवन में सबसे ज्यादा एकेश्वरवाद पर क्यों इतना अधिक ज़ोर दिया? उसका एक जवाब यह है कि एकेश्वरवाद समस्त अच्छाइयों का स्रोत और मुक्ति का मूलमंत्र है। जो इंसान महान ईश्वर को मानता है, उसे प्रलय के दिन पर विश्वास होता है और वह यह मानता है कि महान ईश्वर उसके समस्त कर्मों को देख रहा है तो महान ईश्वर को मानने वाले और न मानने वाले व्यक्ति के अमल और दिनचर्या में बहुत अंतर होता है।
दोस्तो अरब में महान ईश्वर को न मानने वालों का बोलबाला था। महान ईश्वर ने एसे अज्ञानी, नास्तिक और अनेकेश्वरवादी लोगों के मध्य पैग़म्बरे इस्लाम को भेजकर लोगों पर वह एहसान किया जिसकी कल्पना भी लोग नहीं कर सकते। यही नहीं महान ईश्वर ने पैग़म्बरे इस्लाम स. को भेजकर समस्त इंसानों और पूरी मानवता पर एहसान किया और पैग़म्बरे इस्लाम ने लोगों को गुमराही और अज्ञानता के अंधकार से निकालने के लिए अनगिनत कठिनाइयां सहन कीं।
महान ईश्वर की ओर से पैग़म्बरे इस्लाम स. को भेजे जाने का एक उद्देश्य मानवता को चरम शिखर पर पहुंचाना है। खुद पैग़म्बरे इस्लाम फरमाते हैं कि मुझे नैतिकता को शिखर पर पहुंचाने के लिए भेजा गया है। यहां एक गूढ़ व रोचक बिन्दु की ओर ध्यान दिलाना ज़रूरी है और वह यह है कि महान ईश्वर ने जब पैग़म्बरे इस्लाम को मानवता के मार्गदर्शन और मानवता को नैतिकता के शिखर पर पहुंचाने के लिए भेजा है तो जिसे मानवता को शिखर पर पहुंचाने के लिए भेजा गया है उसे स्वंय नैतिकता के शिखर पर होना चाहिये। क्योंकि अगर वही नैतिकता के शिखर पर नहीं होगा तो दूसरों को नैतिकता के शिखर पर कैसे पहुंचायेगा। महान ईश्वर पवित्र कुरआन में कहता है कि हे पैग़म्बर बेशक आप नैतिकता के शिखर पर हैं। यानी महान ईश्वर इस बात की गवाही दे रहा है कि पैग़म्बरे इस्लाम स. नैतिकता के शिखर पर हैं।
पैग़म्बरे इस्लाम का व्यवहार इतना नम्र और शालीन था कि शत्रु भी मित्र हो जाते थे। पैग़म्बरे इस्लाम ने दुश्मनों के अभद्र व असभ्य कार्यों का जवाब कभी भी अभद्रता से नहीं दिया। पैग़म्बरे इस्लाम के व्यवहार में अपनी ओर आकर्षित करने का अद्भुत जादू था। पैग़म्बरे इस्लाम का सद्व्यवहार ही था जिसकी वजह से काफिरों और अनेकेश्वरवादियों ने उन्हें सादिक़ और अमीन की उपाधि थी। इस्लाम में अमानत को सही तरह से वापस करने पर बहुत बल दिया गया है। चौथे इमाम, इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम फरमाते हैं कि अगर शिम्र वह तलवार मेरे पास अमानत के तौर पर रखे जिससे उसने मेरे पिता इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को शहीद किया था तो मैं उसे वही तलवार वापस करूंगा।
अमानत को संभाल कर रखने और उसे उसके स्वामी को वापस किये जाने पर बहुत बल दिया गया है। इस प्रकार से कि अमीन होने को मोमिन की अलामत करार दिया गया है। आज हमारे समाज में बहुत से लोग नमाज़ पढ़ते और रोज़ा रखते हैं परंतु अमानत को सही तरह से साहिबे अमानत को वापस नहीं करते हैं। पैग़म्बरे इस्लाम स. द्वारा मक्का से मदीना पलायन कर जाने के बाद हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने काफिरों की अमानतों को भी वापस किया था। इससे यह शिक्षा मिलती है कि कोई यह न सोचे कि मुसलमानों की अमानत, अमानत होती है और ग़ैर मुसलमानों की अमानत नहीं है बल्कि हर इंसान की अमानत, अमानत होती है चाहे उसका किसी भी धर्म या जाति से संबंध हो।
दोस्तो पैग़म्बरे इस्लाम जब मक्का से मदीना पलायन करके गये तो उनके ईश्वरीय मिशन ने नया रूप धारण किया और उसमें गति आ गयी। पवित्र नगर मदीना में पैग़म्बरे इस्लाम के अनुयाइयों की संख्या दिन- प्रतिदिन तेज़ी से बढ़ती गयी और पैग़म्बरे इस्लाम ने इस्लामी सरकार की आधार शिला पवित्र नगर मदीना में रखी। मुसलमानों और काफिरों व अनेकेश्वरवादियों के मध्य होने वाली पहली जंग का नाम जंगे बद्र है। उस युद्ध में महान ईश्वर की मदद से मुसलमानों की विजय हुई जबकि काफिरों की संख्या और उनकी सैन्य शक्ति व तैयारियां मुसलमानों से लगभग तीन बराबर अधिक थीं। यही नहीं जंग में काफी नामचीन पहलवान मारे गये और बहुत से काफिरों को बंदी भी बना लिया गया परंतु पैग़म्बरे इस्लाम स. ने काफिर बंदियों के साथ भी मानवता से हटकर कोई व्यवहार नहीं किया।
महान व सर्वसमर्थ ईश्वर ने पैग़म्बरे इस्लाम को समस्त विश्व वासियों के लिए रहमत, दया व कृपा बनाकर भेजा था। पैग़म्बरे इस्लाम सबके लिए रहमत थे एसा नहीं है कि वे केवल मुसलमानों के लिए रहमत थे बल्कि वह समूचे विश्व वासियों के लिए रहमत थे। पैग़म्बरे इस्लाम ग़ैर इंसानों के लिए भी रहमत थे। महान ईश्वर ने पवित्र कुरआन में कहा है कि हमने आपको नहीं भेजा है मगर यह कि समूचे विश्व के लिए रहमत। महान ईश्वर ने कहीं भी यही नहीं कहा है कि हमने पैग़म्बरे इस्लाम को केवल इंसानों के लिए रहमत बनाकर भेजा है। विश्व में गैर इंसान भी रहते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि पैग़म्बरे इस्लाम समूचे विश्व वासियों के लिए रहमत हैं चाहे वह इंसान हो या गैर इंसान। मुसलमान हो या गैर मुसलमान।
पैग़म्बरे इस्लाम का शालीन व्यवहार, उनकी शिक्षायें और उनका निमंत्रण वास्तव में समस्त इंसानों की अंतरआत्मा की आवाज़ है और यह इस्लाम धर्म के तेज़ी से प्रचार प्रसार की बहुत बड़ी वजह है। यह पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों का नम्र व सुशील व्यवहार था जिसकी वजह से ईश्वरीय धर्म इस्लाम फैलता चला गया। आज मानवाधिकार, महिलाअधिकार और आज़ादी जैसे विषयों की जो बात की जाती है वह सब पैग़म्बरे इस्लाम द्वारा लाई गयी शिक्षाओं का सुपरिणाम है। mm