पवित्र रमज़ान पर विशेष कार्यक्रम-१८
हम ईश्वर का शुक्र अदा करते हैं कि उसने हमें पवित्र महीने रमज़ान का 18वां रोज़ा रखने का अवसर प्रदान किया।
हम ईश्वर का शुक्र अदा करते हैं कि उसने हमें पवित्र महीने रमज़ान का 18वां रोज़ा रखने का अवसर प्रदान किया। हम ईश्वर से दुआ करते हैं कि हमें अपनी अनुकंपाएं प्रदान करे और हमारे दिलों को अपने प्रकाश की किरणों से प्रकाशमयी बनाए।
इस्लाम धर्म में शबे क़द्र पवित्र शबों अर्थात रातों में से एक है। ईश्वर ने क़ुराने मजीद में इसे महान शब क़रार दिया है और उसके नाम पर क़ुरान में एक सूरा, सूरए क़द्र नाज़िल किया है। कोई भी रात शबे क़द्र के समान महत्वपूर्ण नहीं है। इस रात, क़ुरान नाज़िल हुआ और इसी रात में फ़रिश्ते और रूह उतरते हैं। शबे क़द्र में इबादत करना एक हज़ार महीनों से बेहतर है। इस रात में इंसान की एक वर्ष की आजीविका निर्धारित की जाती है, आयु एवं अन्य चीज़ों का निर्धारण भी किया जाता है।
क़द्र का शाब्दिक अर्थ नापतोल करना, निर्धारण करना और किसी चीज़ को निर्धारित संख्या में रखना है। इसी प्रकार, संतुलित करना, निर्धारित मात्रा में रखना, सृष्टि के मामलों को संतुलित बनाना और बुद्धिमत्ता के आधार पर निर्णय लेना है। अतः शबे क़द्र का अर्थ है, इंसान के भाग्य के निर्धारण की रात। इसीलिए इस रात को शबे क़द्र कहा जाता है। इसलिए कि ईश्वर अगले एक वर्ष तक के कामों का निर्धारण करता है, जैसे कि मौत और जीवन, बुराई और भलाई, पाप और पुण्य, कल्याण और विनाश, आर्थिक विकास और मंदी। क़ुराने मजीद के सूरए दुख़ान में स्पष्ट रूप से बयान किया गया है, उस रात में हर चीज़ ईश्वर के आदेशानुसार जुदा की जाती है।
क़ुरान के व्याख्याकारों, विद्वानों और धर्मगुरूओं ने शबे क़द्र के निर्धारण के लिए विभिन्न दृष्टिकोणों का उल्लेख किया है। कुछ लोग, 19वीं रमज़ान की रात, कुछ लोग 21वीं रमज़ान की रात और कुछ लोग 23वीं रमज़ान की रात को शबे क़द्र मानते हैं। मुसलमानों के बीच, अधिकांश सुन्नी मुसलमान 27वीं रमज़ान की रात को शबे क़द्र मानते हैं।
इस रात घटने वाली कुछ घटनाओं के कारण इस शब का महत्व और अधिक हो गया है। हज़रत अली (अ) पवित्र रमज़ान की 19वीं शब को अपनी बेटी उम्मे कुलसूम के घर आमंत्रित थे। इतिहास में है कि हज़रत अली (अ) उस रात बार बार कमरे से निकलते थे और आसमान की ओर निगाह करते और फ़रमाते थे। ईश्वर की सौगंध मैं झूठ नहीं कह रहा हूं और मुझसे झूठ नहीं कहा गया है। यह वही रात है जब मुझे शहादत का वादा दिया गया है। नमाज़े सुबह के समय हज़रत अली (अ) मस्जिदे कूफ़ा गए और सोने वालों को नमाज़े सुबह के लिए जगाया। जो लोग सो रहे थे उनके बीच हज़रत का हत्यारा अब्दुर्रहमान बिन मुलजिम मुरादी भी था, उसे भी नमाज़ के लिए जगाया। उसके बाद, हज़रत अली (अ) नमाज़ के लिए मस्जिद की महराब में गए और नमाज़ पढ़ना शुरू की। जैसे ही हज़रत ने सजदे में सिर रखा, इब्ने मुलजिम ने तलवार से सिर पर हमला कर दिया। इस समय हज़रत अली (अ) ने फ़रमाया काबे के ईश्वर की क़सम मैं सफल हो गया। इस घटना के कारण शीया मुसलमानों के निकट शबे क़द्र का महत्व और अधिक हो गया है। वे इस रात, अन्य इबादतों के साथ हज़रत अली (अ) का ग़म भी मनाते हैं।
पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने शाबान के अंत में पवित्र रमज़ान के महत्व के बारे में जो ख़ुतबा दिया था, उसमें फ़रमाया है, तुम्हारी पीठ गुनाहों के बोझ से भारी हो गई है। उसे लम्बे सजदों द्वारा हल्का करो।
वास्तविक मोमिन जब इबादत और उपासना का मीठा स्वाद चखता है तो वह सबसे अधिक सजदे की ज़रूरत का एहसास करता है। उनका मानना है कि सजदा ईश्वर के निकट होने का सबसे बेहतरीन माध्म है और जितना यह अधिक लम्बा होगा उतना ही अधिक मोमिन ईश्वर से निकट होगा। शैतान सबसे अधिक घृणा लम्बे सजदों से करता है, इसलिए कि लम्बा सजदा पापों को उस तरह नष्ट कर देता है, जिस तरह हवा पेड़ के पत्तों को झाड़ देती है। इमाम सादिक़ (अ) ने फ़रमाया है, अगर इंसान किसी ऐसी जगह कि उसे कोई नहीं देख रहा होता है, सजदे को लम्बा करता है, तो शैतान कहता है, मेरे लिए अफ़सोस की बात है कि लोग ईश्वर का अनुसरण कर रहे हैं और सजदा कर रहे हैं, लेकिन मैंने पाप किया और इनकार किया।
ईश्वर के लिए लम्बे सजदों का सच्चे इंसानों को मूल्यवान प्रतिफल मिलता है। ईश्वर के निकट होने का सबसे छोटा मार्ग वह समय है जब इंसान अपने पालनहार के सामने सिर झुकाता है और अपनी बंदगी का इज़हार करता है। एक दिन पैग़म्बरे इस्लाम (स) अपने घर के निर्माण में व्यस्त थे और एक व्यक्ति उधर से गुज़र रहा था। वह निकट आया और हज़रत से कहा, हे ईश्वरीय दूत मैं राज गीर हूं, क्या मैं आपकी सहायता कर सकता हूं? पैग़म्बरे इस्लाम ने उसे इसकी अनुमति प्रदान कर दी। काम समाप्त होने के बाद हज़रत ने उससे कहा, तुम अपने श्रम का क्या बदला चाहते हो? राज गीर ने तुरंत कहा, स्वर्ग चाहता हूं। पैग़म्बरे इस्लाम ने उसकी बात स्वीकार कर ली। जब वह ख़ुशी ख़ुशी वहां से जाने लगा तो पैग़म्बरे इस्लाम ने उसे आवाज़ दी और फ़रमाया, हे ईश्वर के बंदे, तू भी लम्बे सजदों द्वारा हमारी सहायता कर।
सजदा ईश्वर की बंदगी का बेहतरीन प्रतीक है। सजदा जब होता है जब इंसान ज़मीन पर बैठता है और अपनी पेशानी ज़मीन पर रखता है। वास्तव में यह स्थिति ईश्वर के सामने स्वयं को कुछ नहीं समझना और उसकी बंदगी का स्वीकार करना है। हज़रत अली (अ) फ़रमाते हैं, शारीरिक सजदा, दिल की गहराई से ज़मीन पर सात अंगों को टिकाना है, लेकिन हार्दिक सजदा दुनिया और उसकी चीज़ों से दिल को हटाकर परलोक, एवं बाक़ी रहने वाली चीज़ों के प्रति आशा रखना और ईश्वरीय दूत के आचरण से अपने जीवन को सुसज्जित करना है।
रमज़ान क्षमा के स्वीकार होने और ईश्वर की ओर पलटकर जाने का महीना है। जिन लोगों ने अपने जीवन में पाप किए हैं, वे रोज़े द्वारा अपना शुद्धिकरण कर सकते हैं। पैग़म्बरे इस्लाम (स) के परिजनों के अनुसार, इस महीने में पाप माफ़ कर दिए जाते हैं और यह उन लोगों के लिए बड़ी शुभ सूचना है जिनसे ग़लतियां हुई हैं। निःसंदेह जो पापी अपने पापों पर शर्मिंदा है अगर वह इस महीने में ईश्वर के लिए रोज़ा रखे और अपने कृत्यों के लिए तोबा करे तो ईश्वर उसके पापों को माफ़ कर देगा।
एक व्यक्ति ऐसा था जिसने अपना पूरा जीवन पापों में बिताया था और उसने अपने जीवन में कोई अच्छा कार्य नहीं किया था। भले लोग उससे दूर रहते थे और उससे घृणा करते थे। एक दिन जब उसकी मौत निकट आ गई तो उसने सोचा कि मैंने अपना पूरा जीवन नष्ट कर दिया है। उसने अपने कर्मों पर ध्यान दिया तो देखा कि पूरे जीवन में कोई भी अच्छा काम नहीं किया है। उसके मूंह से आह निकली और उसने कहा, हे वह कि जो लोक परलोक का मालिक है, उस व्यक्ति पर दया कर जिसके पास न लोक है और न परलोक। जैसे ही उसने यह कहा उसकी जान निकल गई। उसकी मौत की ख़बर शहर में फैल गई और लोग यह सुनकर ख़ुश हो गए। उसकी लाश एक कूड़े दान में ले जाकर डाल दी। शहर के एक विशिष्ट व्यक्ति ने रात में सपने में देखा कि कोई कह रहा है, क्यों उस व्यक्ति का शव कूड़े दान में डाल दिया? तुम्हें चाहिए कि उसके शव को वहां से निकालो उसे ग़ुस्ल और कफ़न दो और उसका अंतिम संस्कार करो। उसकी क़ब्र अच्छे लोगों के बीच बनाओ। वह विशिष्ट व्यक्ति सपने में कहता है, हे ईश्वर, वह एक पापी और बुरा व्यक्ति था। उसका कौन सा कर्म ईश्वर को पसंद आ गया कि जो मैं यह कार्य करूं। उसे आवाज़ आई, जब उसकी मौत निकट आ गई और वह हर ओर से निराश हो गया तो उसने बहुत ही मजबूरी में रोते हुए हमसे निवेदन किया, जिसके कारण हमने उस पर रहम किया और उसके पापों को क्षमा कर दिया और उसे अपने प्रकोप से बचा लिया।
पैग़म्बरे इस्लाम ने फ़रमाया है, रमज़ान मुबारक में ईश्वर पापियों के इतने पापों को क्षमा कर देता है कि उसके अलावा कोई और उसका हिसाब नहीं जानता है और रमज़ान की अंतिम रात जितने पापों को उसने पूरे महीने में क्षमा किया होता है उतने ही लोगों को नरक से मुक्ति प्रदान करता है और जो कोई रमज़ान में रोज़ा रखता है और जिन चीज़ों को ईश्वर ने हराम किया है उनसे परहेज़ करता है तो स्वर्ग को उसके लिए अनिवार्य कर देता है।