इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) की शहादत
(last modified Wed, 27 Jul 2016 09:50:06 GMT )
Jul २७, २०१६ १५:२० Asia/Kolkata

आज मुसलमान इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) की शहादत का शोक मना रहे हैं।

ऐसी महान हस्ती जिसके अथक प्रयासों को पैग़म्बरे इस्लाम (स) के बाद इस्लामी इतिहास में महत्वपूर्ण माना जाता है। 148 हिजरी क़मरी में आज के दिन इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) 65 वर्ष की आयु में शहीद कर दिए गए। उनकी शहादत से न केवल इस्लामी जगत, बल्कि ज्ञान और सत्य की खोज में रहने वालों को बहुत दुख पहुंचा। हम इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) की शहादत की बासी पर सभी श्रोताओ की सेवा में संवेदना प्रकट करते हैं और इस दुखद अवसर पर उनके जीवन के कुछ पहलुओं को याद कर रहे हैं।

 

 

पैग़म्बरे इस्लाम (स) के परिजनों का एक संयुक्त लक्ष्य इस्लाम की सुरक्षा और अत्याचार एवं अन्याय से मुक़ाबला था। इसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए उन्होंने अपने अपने समय की परिस्थितियों के मुताबिक़, प्रतिरोध की शैली का चयन किया। इन महान हस्तियों ने कभी तलवार उठाकर तो कभी वैचारिक एवं इस्लामी शिक्षाओं का प्रचार प्रसार करके इस महान ज़िम्मेदारी को अंजाम दिया।

मासूम इमामों की जीवन शैली और नीति का निर्धारण अपने समय की परिस्थितियों को अनुसार रहा है। अगर हम उनमें से हर एक के समय की परिस्थितियों का अध्ययन करेंगे, तो हमें उनके आचरण के सिद्धांतों में किसी भी प्रकार का कोई विरोधाभास नज़र नहीं आएगा, बल्कि वे सभी एक उद्देश्य रखते थे। हालांकि उनमें से हर एक ने इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए विशेष रणनीति का चयन किया था।

 

 

वास्तविकता यह है कि इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) ने अपने समय की परिस्थितियों के मद्देनज़र इस्लामी शिक्षाओं का प्रचार प्रसार और उन्हें मज़बूती प्रदान करना एवं एक मत की आधारशीला रखना, एक इमाम के रूप में अपनी ज़िम्मेदारी समझा। एक ईश्वरीय मार्गदर्शक के रूप में इमाम (अ) ने लोगों एवं समाज का प्रशिक्षण करना और इस्लाम के वैचारिक मत की बुनियाद रखने को ज़रूरी समझा। इसलिए कि इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) का काल ऐसा काल था जिसमें विभिन्न घटनाएं हुईं और इसे इस्लामी इतिहास का घटनाक्रमों से भरा हुआ काल कहा जा सकता है। उस काल में बनी उमय्या से बनी अब्बास को शासन का हस्तांतरण हुआ। इस घटना में बहुत ही उतार चढ़ाव आए।

दूसरी ओर यह काल मतों और विचारधाराओं के टकराव एवं दार्शनिक विचारों के काल था। इस काल में मुसलमान भी ज्ञान की प्राप्ति में आगे आगे थे। इसके अलावा, अनुवाद द्वारा इस्लामी जगत तक दार्शनिक विचार पहुंच रहे थे। निश्चित रूप से इस काल में असमंजस की स्थिति में पड़ने और सुस्ती दिखाने से लोग भटक जाते और धर्म का ग़लत मतलब निकालते। ऐसे संवेदनशील दौर में इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) के सामने एक कठिन एवं अहम ज़िम्मेदारी थी। एक ओर, लोगों के नास्तिकतावाद की ओर झुकाव का ख़तरा था, तो दूसरी ओर इस्लामी सिद्धांतों एवं शिक्षाओं को परिवर्तन और ग़लत मतलब निकालने से सुरक्षित रखना था। ऐसी परिस्थितियों में इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) ने इस्लामी शिक्षाओं एवं सिद्धांतों को पुनर्जीवित करने का बीड़ा उठाया।

 

 

इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) की 34 वर्ष की इमामत के दौरान, ईश्वरीय शिक्षाओं की प्राप्ति की चाहत रखने वालों के लिए प्रत्यक्ष रूप से ईश्वरीय प्रतिनिधि द्वारा उन्हें प्राप्त करने के लिए स्वर्णिम अवसर था। इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) ने सार्वजनिक रूप से एवं विशेष रूप से लोगों को विभिन्न विषयों का ज्ञान दिया। सार्वजनिक क्लासों में शिया और सुन्नी दोनों भाग लेते थे और हज़रत इमाम सादिक़ से ज्ञान प्राप्त किया करते थे। इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) लोगों के बीच, मानवीय एवं भावनात्मक गहरे रिश्तों की बहुत सिफ़ारिश किया करते थे और फ़रमाते थे, एक दूसरे से जुड़ जाओ, एक दूसरे से प्रेम करो, एक दूसरे के साथ भलाई करो और एक दूसरे के साथ मोहब्बत एवं विनम्रता से पेश आओ।

पैग़म्बरे इस्लाम (स) का वंशज होने और व्यापक ज्ञान एवं नैतिकता जैसी अन्य अनेक विशेषताओं के कारण, इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) मुसमानों के बीच एक मज़बूत रस्सी की भांति थे, जिसे मज़बूती से थामे रहने से मुसलमानों के बीच एकता बनी हुई थी।

अपनी किताब इर्शाद में शेख़ मुफ़ीद लिखते हैं, लोग आसपास और दूरदराज़ के इलाक़ों से इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) के पास ज्ञान प्राप्ति के लिए आते थे। हर जगह उनकी लोक्रप्रियता बढ़ रही थी। इमाम (अ) ने विभिन्न प्रकार की शैक्षिक गतिविधियां अंजाम दीं। हदीस के विशेषज्ञ विद्वानों ने हज़रत से हदीस बयान करने वाले विद्वानों की संख्या 4000 हज़ार बताई है।

 

 

इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) अपने शिष्यों का बहुत सम्मान और उनका प्रोत्साहन किया करते थे। वे कभी कभी ख़ुद उनसे मुलाक़ात के लिए जाते थे और उनसे बातचीत किया करते थे। एक दिन हज़रत ने अपने एक शिष्य अबू हमज़ा से कहा, वास्तव में तुम्हें देखकर मुझे सुकून मिलता है।

इमाम (अ) के एक शिष्य अक़बा बिन ख़ालिद का कहना है, जब हम हज़रत से मुलाक़ात के लिए जाते थे, तो फ़रमाते थे, स्वागत है उन लोगों का जो हमें अपना दोस्त मानते हैं और हम उन्हें अपना दोस्त मानते हैं, स्वागत है। ईश्वर लोक परलोक में तुम्हें हमारे साथ रखे। इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) समस्त लोगों को ज्ञान प्राप्ति के लिए प्रोत्साहित करते थे और युवाओं को संबोधित करते हुए कहते थे, मुझे तुम जवानों में से किसी को इन दो स्थितियों के अलावा देखना पसंद नहीं है, या विद्वान हो या विद्यार्थी।

इसी प्रकार, आप फ़रमाते थे, ज्ञान प्राप्त करो, और उसे दूरदर्शिता एवं सज्जनता से सजाओ। अपने शिष्यों के साथ विनम्र रहो और गुरूओं के सामने सभ्य। कदापि विद्वानों के सामने स्वार्थी मत बनो, इसलिए कि इससे तुम्हारी सच्चाई समाप्त हो जाती है।

इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) का यह कथन एक अति मूल्यवान उपदेश है। जो ज्ञान विनम्रता और सभ्यता के साथ न हो, विद्यार्थी को उसका कोई लाभ नहीं पहुंचता, इसलिए कि लोग स्वार्थियों से नफ़रत करते हैं और उनकी सही बातों को भी स्वीकार नहीं करते।

इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) अपने शिष्यों से फ़रमाते थे, ज्ञान प्राप्ति से तुम्हारा उद्देश्य, दिखावा, अहं और वाद विवाद नहीं होना चाहिए। कमज़ोरी, कुछ तुच्छ विषय और लज्जा तुम्हारी ज्ञान प्राप्ति में रुकावट न बनने पायें। वह ज्ञान जिसका प्रसार न हो, वह उस दीप की भांति है जिसे बुझा दिया गया हो या उसके उजाले को ढक दिया गया हो।

 

 

 

इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) ने अपने इन बहुमूल्य कथनों में ज्ञान प्राप्ति के सही उद्देश्य का उल्लेख किया है और विद्यार्थियों से सिफ़ारिश की है कि उत्कृष्टता की प्राप्ति एवं लोगों की सेवा के उद्देश्य से ज्ञान प्राप्त करें। जो ज्ञान दिखावे और गर्व के लिए प्राप्त किया गया हो, उसका कोई लाभ नहीं होता, बल्कि उसका नुक़सान ही होता है।

इस प्रकार, इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) ने उचित अवसर का लाभ उठाते हुए और समाज की ज़रूरतों के मद्देनज़र, अपने पिता इमाम मोहम्मद बाक़र (अ) के शैक्षिक एवं सांस्कृतिक आंदोलन को आगे बढ़ाया और एक बड़ा शैक्षिक केन्द्र स्थापित किया। इस केन्द्र ने हिशाम बिन हकम, मुफ़्फ़ज़्ज़ल बिन अम्र और जाबिर बिन हय्यान जैसे शिष्यों को जन्म दिया।

जाबिर बिन हय्यान इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) के एक ऐसे प्रतिभाशाली शिष्य थे कि जिन्होंने रसायनशास्त्र के विषय पर 500 पत्रिकाएं लिखीं और रसायनशास्त्र के जनक के नाम से मशहूर हुए। मध्ययुगीन काल में जाबिर की किताबों का विभिन्न यूरोपीय भाषाओं में अनुवाद किया गया।

 

 

मुफ़्फ़ज्ज़ल भी मध्य इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) के एक दक्ष शिष्य थे। उन्होंने तौहीदे मुफ़्फ़ज़्ज़ल नामक किताब लिखी।

केवल शिया मुसलमान ही इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) के शिष्य नहीं थे। सुन्नी मुसलमानों ने भी इमाम से काफ़ी लाभ उठाया। सुन्नियों के चार इमामों में से कुछ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इमाम (अ) के शिष्य थे। इनमें सबसे प्रमुख अबू हनीफ़ा थे, जिन्होंने 2 वर्ष तक इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) से ज्ञान प्राप्त किया।

इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) ने धर्मशास्त्र और वाद्शास्त्र को लिखित रूप में पेश किया और विद्वानों समेत ज्ञान का मूल्यवान भंडार इस्लामी जगत के लिए विरासत में छोड़ा। इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) के प्रयासों से नैतिकता, धर्मशास्त्र, वाद्शास्त्र, क़ुरान की व्याख्या और अन्य विषयों में काफ़ी महत्वपूर्ण ज्ञान इस्लामी जगत विशेष रूप से शियों को प्राप्त हुआ। ज्ञान पर आधारित इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) के मत की बुनियादें बहुत मज़बूत हैं। इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) के नेतृत्व में शिया मत ऐसा पहला मत था जिसकी धार्मिक बुनियादों का आधार विचार और बुद्धि पर था। इस मत में किसी भी मत की तुलना में ज्ञान और बुद्धि को महत्व प्राप्त है। इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) की शिक्षाओं और हदीसों की अधिक संख्या के कारण शिया मत को जाफ़री मत कहा जाता है।

 

 

लोगों में जागृति लाने के कारण इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) बनी उमय्या और बनी अब्बास के अत्याचारों से अनभिज्ञ नहीं थे, बल्कि विभिन्न अवसरों पर उन्होंने उनका विरोध किया। द्वितीय अब्बासी ख़लीफ़ा मंसूर 21 वर्ष तक इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) का समकालीन था। वह इमाम (अ) की गतिविधियों से बहुत चिंतित रहता था और इमाम और जनता के बीच दूरी उत्पन्न करने का प्रयास करता रहता था। उसने इमाम (अ) पर बहुत अत्याचार किए, लेकिन हज़रत इमाम सादिक़ के मार्गदर्शन के दीप की रोशनी को समाप्त नहीं कर सका। अंततः जब उसने इमाम का मुक़ाबला करने में ख़ुद को असहाय पाया, तो एक साज़िश के तहत इमाम (अ) को ज़हर दिया, जिसके परिणाम स्वरूप वे आज के दिन शहीद हो गए।