Oct १०, २०१६ १५:१२ Asia/Kolkata

इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने अपने चचा हज़रत अब्बास के बारे में बहुत कुछ कहा है। 

उन्होंने एक स्थान पर इस बारे में कहा कि ईश्वर कृपा करे मेरे चचा पर जो दूरदर्शी होने के साथ ही आस्था की दृष्टि से बहुत सशक्त थे।

हज़रत अब्बास के बारे में इमाम सज्जाद कहते हैं कि ईश्वर के निकट अब्बास का विशेष स्थान है और यह इतना महान है कि प्रलय के दिन सारे शहीद उसे देखकर दंग रह जाएंगे।

सलाम हो अब्बास पर जिसने गौरव और सम्मान का पाठ सिखाया।  सलाम हो उस अब्बास पर जो मान-सम्मान की रक्षा करते हुए शहीद हुए।  जिस समय शत्रु ने बड़ी ही निर्दयता से अब्बास का सीधा हाथ काट दिया तो उन्होंने कहा था कि ईश्वर की सौगंध यदि मेरा दूसरा हाथ भी काट दो तब भी मैं धर्म का समर्थन नहीं छोड़ूंगा और हर स्थिति में धर्म के सच्चे मार्गदर्शक अर्थात पैग़म्बरे इस्लाम के नवासे का साथ देता रहूंगा।

आज मुहर्रम की 9 तारीख़ है।  इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अपने निष्ठावान साथियों को तीन गुटों में बांटा था।  उन्होंने हज़रत अब्बास को अपनी सेना का सेनापति बनाया था।  हज़रत अब्बास, घोड़े पर सवार होकर ख़ैमों अर्थात तंबूओं की पहरेदारी कर रहे थे।  जिस समय हज़रत अब्बास, ख़ैमों की पहरेदारी करते समय शत्रुओं की ओर देखते थे उनके भीतर भय उत्पन्न हो जाता था।

इमाम हुसैन के साथियों के मुक़ाबले में उमरे साद की सेना थी।  रय की सत्ता की प्राप्ति की अभिलाषा ने उमरे साद की आखों पर पर्दा डाल दिया था।  यह क्रूर व्यक्ति दिनरात रेई की सत्ता प्राप्त करने के सपने देख रहा था।  दूसरी ओर शिम्र, स्थिति में सत्ता की दौड़ में उमरे साद से पीछे नहीं रहना चाहता था।  वह कूफे की सेना के कमांडर इब्ने ज़ियाद की चाटुकारिता में लग गया।  इस प्रकार उसने भी एक सेना तैयार की।  सत्ता की लालच उसके भी मन में भरी हुई थी।  वह बहुत तेज़ी से करबला गया और उसने इब्ने ज़ियाद का ख़त उमरे साद को दिया।  उसने कहा कि यदि तुम हुसैन को मार नहीं सकते तो सेनापति का पद मुझको दे दो।

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मानो कि इस ओर ईश्वर के फरिश्तों के ख़ैमे लगे हों और दूसरी ओर शैतान की सेना के।  हालांकि वे लोग इमाम हुसैन के महत्व को जानते थे और उनकी महानता को देख रहे थे किंतु वे सब आंतरिक इच्छाओं और सांसारिक मायामोह में घिरकर नरक की ओर अग्रसर थे।

करबला की घटना से संबन्धित पुस्तकों में लिखा है कि उबैदुल्लाह इब्ने ज़ियाद से ख़त प्राप्त करने के बाद उमर इब्ने साद सोच रहा था कि इमाम हुसैन का मुक़ाबला करने में यदि वह थोड़ा हिकिचाया तो फिर इस समय उसका जो महत्व है वह घट जाएगा और शिम्र, उसके स्थान पर कमांडर बन जाएगा।  यही कारण था कि उसने अपने पद को सुरक्षित रखने के उद्देश्य से 9 मुहर्रम की शाम को इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के ख़ैमों पर हमले का आदेश दे दिया।  इस प्रकार से वह यह प्रयास कर रहा था कि स्वयं को एक शक्तिशाली सेनापति दर्शाए और शिम्र के भीतर पाई जाने वाली सत्ता की लालच का उचित जवाब दे।

इब्ने ज़ियाद के इस आदेश के बाद यज़ीद के सैनिकों ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के ख़ैमों की ओर बढ़ना आरंभ कर दिया।  जब इमाम हुसैन ने ख़ैमों के बाहर शत्रु के सैनिकों को आते देखा तो वे ख़ैमे के बाहर आए और उन्होंने अपने भाई अब्बास को बुलाया।  इमाम ने हज़रत अब्बास के साथ अपने बीस साथियों को शत्रु की सेना की ओर भेजा।  उन्होंने यज़ीद के सैनिकों से एक दिन का समय मांगते हुए कहा कि मैं यह समय ईश्वर की उपासना में व्यतीत करना चाहता हूं।  इमाम हुसैन ने कहा कि ईश्वर जानता है कि मैं नमाज़ और प्रार्थना को कितना अधिक पसंद करता हूं।

9 मुहरम की रात इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के ख़ैमों से नमाज़ और दुआओं की आवाज़ें आ रही थीं।  वहां पर मौजूद लोग पूरी निष्ठा के साथ ईश्वर की उपासना में व्यस्त थे।  इस रात इमाम ने अपने साथियों को एक स्थान पर जमा किया और उनको संबोधित करते हुए कहा कि ईश्वर तुम सबको अच्छा बदला दे।  तुमको जानना चाहिए कि कल क्या होने वाला है? उन्होंने कहा कि मैं तुम लोगों को इस बात की अनुमति देता हूं कि तुम लोग यहां से जा सकते हो और मुझको तुमसे कोई शिकायत नहीं है।  तुम लोग इस अंधेरी रात में यहां से जा सकते हो।  तुम मुझको यहां पर अकेले छोड़कर जा सकते हो क्योंकि यज़ीदी सैनिक मेरे ख़ून के प्यासे हैं।

इमाम हुसैन की यह बात सुनकर उनके साथी बड़े दुखी हुए और वे लज्जा का आभास कर रहे थे।  वे सोच रहे थे कि काश ज़मीन फट जाए और हम उसमें समा जाएं।  कुछ लोगों ने इमाम से कहा कि क्या हमसे कोई ग़लती हो गई है जो आप हमसे यहां से जाने को कह रहे हैं?  वहां पर मौजूद सबने एक स्वर में कहा कि जबतक हमारे शरीर में आत्मा है उस समय तक हम आपकी सहायता से पीछे नहीं हटेंगे।  वहां पर उपस्थित लोगों में 13 साल के हज़रत क़ासिम भी मौजूद थे।  उन्होंने कहा कि ईश्वर की सौगंध मेरे लिए शहादत तो शहद से भी अधिक मीठी है।  इमाम हुसैन के सभी साथी यह चाहते थे कि वे अपने इमाम पर न्योछावर हो जाएं।

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9 मुहर्रम की रात को ही इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के ख़ैमों के बाहर से एकदम से शिम्र की आवाज़ सुनाई दी।  शिम्र कह रहा था कि मेरे क़बीले वाले कहां हैं।  मैं उनको संरक्षण देना चाहता हूं।  हज़रत अब्बास को इमाम हुसैन से अलग करने के लिए शिम्र ने यह चाल चली थी।  उसने हज़रत अब्बास और उनके भाइयों को आवाज़ दी।  वह कह रहा था कि मैं अब्बास और उनके भाइयों को संरक्षण देना चाहता हूं।  अगर तुम लोग हुसैन का साथ देना छोड़ दो तो मैं वचन देता हूं कि तुमको कोई क्षति नहीं पहुंचेगी।

हज़रत अब्बास ने शिम्र के इस दुस्साहसी बयान पर क्रोधित होते हुए कहा कि तुझपर और तेरे संरक्षण पर लानत हो।  क्या तू यह चाहता है कि मैं पैग़म्बरे इस्लाम के नाती और वास्तविक मार्गदर्शक इमाम हुसैन का साथ छोड़ दूं? क्या मैं तुझ जैसे नीच इंसान का अनुसरण करूं।  हज़रत अब्बास ने कहा कि क्या तूम मुझको तो संरक्षण देने के लिए तैयार है किंतु हुसैन जैसे महान व्यक्ति के लिए कोई संरक्षण नहीं है?  उन्होंने शिम्र जैसे नीच व्यक्ति को इमाम के ख़ैमों से दूर किया।

हज़रत अब्बास इमाम हुसैन के छोटे बच्चों को बहुत चाहते थे।  छोटे बच्चों की प्यास से वे बहुत व्याकुल थे।  आशूर या दस मुहर्रम के दिन शत्रु की ओर से सख़्ती बढ़ती जा रही थी और भीषण गर्मी के कारण बच्चों की प्यास बेक़ाबू हो रही थी।  प्यासे बच्चों की निगाहें अब्बास पर थीं।  हज़रत अब्बास अब बच्चों की प्यास को बरदश्त नहीं कर पा रहे थे।  उन्होंने अपने भाई इमाम हुसैन से इजाज़त मांगी।  मश्क उठाई और नहरे अलक़मा का रुख़ किया।  वे वीरता का प्रदर्शन करते हुए नहर पर पहुंचे।  मश्क़ को पानी से भरा और एक चुल्लू में पानी लिया।  इसी बीच उनकी नज़रों के सामने इमाम हुसैन और उनके साथियों के प्यासे चेहरे आ गए।  उन्होंने स्वयं से कहा कि मैं किस प्रकार से पानी पी लूं जबकि इमाम हुसैन प्यासे हैं।  यह सोचते हुए उन्होंने पानी नहर में फेंक दिया।

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अब वे पानी से भरी मश्क लेकर वापस ख़ैमों की ओर बढ़े।  इसी बीच यज़ीद के सैनिकों ने हज़रत अब्बास को घेर लिया।  उन्होंने शत्रुओं के हमलों के बावजूद पानी से भरी मश्क को बचाने का पूरा प्रयास किया।  इसी बीच किसी ने पीछे से उनपर आक्रमण करके उनका हाथ काट दिया।  उन्होंने मश्क को अपने दूसरे हाथ से पकड़ा।  इसी दौरान उनपर फिर हमला करके दूसरा हाथ भी काट दिया गया।  अब उन्होंने अपने दातों से मश्क को पकड़ा और पूरी शक्ति से ख़ैमो का रूख किया।  इसी बीच एक तीर मश्क पर आकर लगा और सारा पानी बह गया।  पानी के बहते ही अब्बास की उम्मीद को गहरा झटका लगा।  उधर उनपर लगातार हमले हो रहे थे।  इन हमलों के कारण वे अपने घोड़े से ज़मीन पर गिरे और अपने बड़े भाई हज़रत इमाम हुसैन को संबोधित करते हुए पहली बार कहा है, मेरे भाई अपने भाई की मदद कीजिए।

 

 

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