भारतीय प्रधान मंत्री का अफ़्रीक़ी देशों का दौरा
भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी अफ़्रीक़ा महाद्वीप के दौरे के पहले चरण में मोज़म्बिक की राजधानी मपूटो पहुंचे। उसके बाद उनका दक्षिण अफ़्रीक़ा, तन्ज़ानिया और केन्या का दौरा करने का कार्यक्रम है।
भारतीय प्रधान मंत्री के अफ़्रीक़ा दौरे की अहमयित को समझने के लिए इस बात का उल्लेख ज़रूरी है कि भारत अफ़्रीक़ी देशों में ऊर्जा, उद्योग और खान के क्षेत्र में सालाना लगभग 75 अरब डॉलर पूंजि निवेश कर रहा है। पिछले 4 साल के दौरान भारतीय उद्योगपतियों व व्यापारियों ने लगभग 7 अरब 40 करोड़ डॉलर अफ़्रीक़ा में पूंजि निवेश किया। दक्षिण अफ़्रीक़ा, तन्ज़ानिया, सूडान, मोज़म्बिक, केन्या और युगांडा वे अफ़्रीक़ी देश हैं जो तेल और गैस के अपार भंडार से संपन्न हैं जिसके कारण भारत सरकार और भारत के निजी क्षेत्र के पूंजिपतियों का ध्यान इन देशों की ओर उन्मुख हुआ है।
इस समय भारत को दक्षिण अफ़्रीक़ा का छठा बड़ा व्यापारिक साझेदार समझा जाता है। 2015 और 2016 में दोनों देशों के बीच लगभग 5 अरब 30 करोड़ डॉलर का व्यापारिक लेन-देन हुआ। ब्रिक्स नामक नई उभरती आर्थिक शक्तियों के संगठन में भारत और दक्षिण अफ़्रीक़ा की सदस्यता, दोनों देशों के बीच सहयोग का बेहतर औचित्य पेश करती है।
दूसरी ओर भारत की बढ़ती जनसंख्या की ऊर्जा के क्षेत्र में ज़रूरत को पूरा करने के लिए नई दिल्ली उन अफ़्रीक़ी देशों के साथ संबंध मज़बूत करने के लिए मजबूर है जो तेल, गैस और पत्थर के कोयले से संपन्न हैं।
मोज़म्बिक पत्थर के कोयले से समृद्ध देश है। भारतीय प्रधान मंत्री ने मपूटो में पत्रकारों से बातचीत में इस बात से इंकार किया कि भारत ने अफ़्रीक़ा महाद्वीप को भुला दिया है।
भारतीय प्रधान मंत्री का अफ़्रीक़ा महद्वीप का दौरा ऐसी स्थिति में शुरु हुआ कि ज़ायोनी प्रधान मंत्री बिनयामिन नेतनयाहू अपने दौरे के अंतिम चरण में इथोपिया पहुंचे।
पर्यवेक्षकों का मानना है कि भारत और ज़ायोनी शासन अफ़्रीक़ा महाद्वीप को नई नज़र से देख रहे हैं। जैसा कि नेतनयाहू ने कहा कि अफ़्रीक़ा महाद्वीप का उदय हो रहा है। दुनिया में ऊर्जा व ईंधन के स्रोतों की कमी ने नई दिल्ली और तेल अबिब के ध्यान को अफ़्रीक़ा की ओर खींचा है।
भारत के अफ़्रीक़ा महाद्वीप की ओर आकर्षित होने का एक कारण यह भी है कि भारत भी अफ़्रीक़ा महाद्वीप की तरह 1 अरब से ज़्यादा आबादी रखने के बावजूद, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में प्रतिनिधित्व से वंचित है। इसलिए भारत के लिए सुरक्षा परिषद की सदस्यता के लिए अफ़्रीक़ा महाद्वीप के 54 प्रतिनिधियों का समर्थन बहुत अहमियत रखता है। अगर सुरक्षा परिषद के ढांचे में सुधार हो तो अफ़्रीक़ा महाद्वीप के 54 देशों का मत, भारत के लिए सुरक्षा परिषद की सदस्यता हासिल करने में निर्णायक हो सकता है। (MAQ/T)