अमरीका में नस्लवाद के ख़िलाफ़ जारी प्रदर्शनों के बीच भारत के दलितों को नज़र आया मौक़ा, कहा भेदभाव केवल अमरीका में नहीं
(last modified Fri, 12 Jun 2020 15:18:47 GMT )
Jun १२, २०२० २०:४८ Asia/Kolkata
  • अमरीका में नस्लवाद के ख़िलाफ़ जारी प्रदर्शनों के बीच भारत के दलितों को नज़र आया मौक़ा, कहा भेदभाव केवल अमरीका में नहीं

भारत में सदियों से अत्याचार और नाइंसाफ़ी झेलने वाले दलितों ने देश के सामने यह मांग रखी है कि वह स्वीकार करे कि दलितों पर अत्याचार हुआ है।  

अलजज़ीरा के अनुसार दलितों ने अपना आंदोलन शुरू किया है और आंदोलनकारियों का कहना है कि वह अमरीका में पुलिस के हाथों जार्ज फ़्लायड की हत्या के बाद शुरू होने वाले विश्व व्यापी आंदोलन का समर्थन करते हैं और उन्हें आशा है कि भारत में भी अब इसी तरह की बहस शुरू होगी।

नई दिल्ली में जेएनयू के बिरसा अम्बेडकर फुले छात्र संगठन के अध्यक्ष ओमप्रकाश महतौ का कहना है कि हम अमरीका में आंदोलन चला रहे लोगों से एकजुटता दर्शाते हैं क्योंकि हमने ख़ुद भेदभाव सहा है और हम उन्हें अच्छी तरह महसूस कर सकते हैं।

भारत ने वैसे तो जाति के आधार पर भेदभाव पर 1955 में प्रतिबंध लगा दिया था मगर दलितों के साथ भेदभाव अब भी जारी है और उनके लिए शिक्षा और रोज़गार में समान रूप से अवसर नहीं हैं।

महतौ का कहना है कि भारत में लोगों को यह स्वीकार करने की ज़रूरत है कि उनकी उस भेदभाव में भूमिका है जिसका सामना दलितों को रोज़मर्रा की ज़िंदगी में करना पड़ता है। यह सवीकार करने के बाद ही बहस शुरू हो सकती है और बदलाव आ सकता है। उन्होंने कहा कि हर जाति को मानना पड़ेगा कि हर इंसान की जान क़ीमती है।

दलित महिलाओं के अधिकारों के लिए काम करने वाली कार्यकर्ता रुथ मनोरमा का कहना है कि अफ़्रीक़ी मूल के अमरीकियों के आंदोलन से भारत के दलितों को बहुत बड़ी सीख मिली है। उन्होंन कहा कि यह बड़ा अच्छा समय है कि भारत में पहले से मौजूद मानसिकता को चुनौती दी जाए और पुराने ज़माने से दलितों पर हो रहे अत्याचार के बारे में बात की जाए। उनका कहना था कि कोरोना वायरस की महामारी के इस दौर में भी दलितों पर अत्याचार जारी है और साफ़ नज़र आ रहा है। लाक डाउन हुआ तो इससे भी दलित ज़्यादा प्रभावित हुए उन्हें एक टाइम का भोजन हासिल करने के लिए घंटों लाइन में खड़ा होना पड़ा।

कल्याणकारी संस्था पीपल्ज़ वाच के अध्यक्ष हेनरी तिफान्गे का कहना है कि यह भारत के लोगों के लिए समझने का समय है कि नस्ली भेदभाव केवल अमरीका में नहीं होता बल्कि भारत में दलितों के साथ भी वही बर्ताव किया जा रहा है।

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